चीन की ताक़त का नया मैदान - आसमान!
चीन और अमरीका के बीच जारी 'ट्रेड-वॉर' के बाद चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अपने देश की अर्थव्यवस्था के और खिड़की-दरवाज़े खोलने का फ़ैसला किया है.
बोआओ फ़ोरम फ़ॉर एशिया के सम्मेलन में शी ने कहा, ''चीन ट्रेड सरप्लस के पीछे नहीं भाग रहा. हम इम्पोर्ट बढ़ाना चाहते हैं और अंतरराष्ट्रीय भुगतान में ज़्यादा संतुलन चाहते हैं.''
चीन और अमरीका के बीच जारी 'ट्रेड-वॉर' के बाद चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अपने देश की अर्थव्यवस्था के और खिड़की-दरवाज़े खोलने का फ़ैसला किया है.
बोआओ फ़ोरम फ़ॉर एशिया के सम्मेलन में शी ने कहा, ''चीन ट्रेड सरप्लस के पीछे नहीं भाग रहा. हम इम्पोर्ट बढ़ाना चाहते हैं और अंतरराष्ट्रीय भुगतान में ज़्यादा संतुलन चाहते हैं.''
हाल में अमरीका और चीन के बीच तीख़ी कारोबारी जंग शुरू हुई जिसमें डोनल्ड ट्रंप ने चीन से अमरीका पहुंचने वाले कई उत्पादों पर टैक्स लगा दिया जिसके बाद शी जिनपिंग ने भी जवाबी कार्रवाई की.
चीन का रुख़ बदल रहा है. सख़्त और उदार कारोबारी नीति का ये मेल ज़रूरी भी है. लेकिन इस सारी कहानी के बीच एक ऐसा क्षेत्र है जहां चीन ने धीरे-धीरे क़दम जमाने शुरू किए थे और अब वो लीड पोज़ीशन लेता दिख रहा है.
चीन की हवाई लड़ाई
इस नई जंग का मैदान है हवाई यात्रा से जुड़ा बिज़नेस. बीजिंग में डैक्सिंग इंटरनेशनल एयरपोर्ट बनकर तैयार होने वाला है. इसका आधिकारिक नाम अब तक रखा नहीं गया है लेकिन इसकी धमक सुनाई देनी लगी है.
जब ये एयरपोर्ट बनकर तैयार हो जाएगा तो दुनिया का सबसे बड़ा हवाई अड्डा होगा. जब अपनी पूरी क्षमता पर चलेगा तो सबसे व्यस्त एयरपोर्ट भी बन जाएगा. ये एयरपोर्ट सितंबर 2019 में पूरा होने की उम्मीद है.
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इकनॉमिस्ट के मुताबिक इस एयरपोर्ट पर आठ रनवे होंगे और सालाना 10 करोड़ मुसाफ़िरों को संभालेगा. चीन की एयरलाइन जिस रफ़्तार से यात्री जोड़ रही हैं, ऐसा पहले कभी देखने को नहीं मिला है.
साल 2010 से 2017 के बीच चीन की तीन बड़ी एयरलाइन के पैसेंजर 70 फ़ीसदी बढ़कर 33 करोड़ 90 लाख पर पहुंच गए हैं. मार्च के अंत में एशिया की सबसे बड़ी एयरलाइन चाइना सॉदर्न और चाइना ईस्टर्न ने सालाना मुनाफ़े में रिकॉर्ड दर्ज किया.
खाड़ी वालों का क्या होगा?
दूसरी तरफ़ एमिरेट्स, एतिहाद और क़तर एयरवेज़ जैसे खाड़ी के खिलाड़ी हैं जो दुनिया भर के नागर विमानन बाज़ार में तहलका मचाए हुए थे.
लेकिन अब कहानी बदलने लगी है. चीन की विमान कंपनियां पंख फैला रही हैं और सालाना 10 फ़ीसदी ग्रोथ देखने वालीं खाड़ी की विमान कंपनियां अब लड़खड़ा रही हैं.
चीन की लगातार बढ़ती कंपनियों का असर ये हुआ कि इन कंपनियों का मुनाफ़ा सिमट रहा है.
ख़ास बात है कि खाड़ी देशों की एयरलाइन जहां लंबे रूट से पैसा बना रहे थे वहीं चीनी कंपनियां तेज़ी से बढ़ते स्थानीय बाज़ार के दम पर आगे बढ़ रही हैं.
साल 2007 में चीन में उड़ान भरने वालों की तादाद 18.4 करोड़ थी जबकि अब ये आंकड़ा बढ़कर 54.9 करोड़ पर पहुंच गया है.
इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन (IATA) का अनुमान है कि चीन साल 2022 तक अमरीका को पारकर सबसे बड़ा विमानन बाज़ार बन जाएगा और साल 2036 तक चीन में हवाई सफ़र करने वाले लोगों की संख्या 1.5 अरब पहुंच जाएगी.
और अब चीन की विमान कंपनियां इंटरनेशनल रूट पर ग्रोथ पकड़ रही हैं. पिछले एक दशक में मैनलैंड चीन की विमान कंपनियों ने 100 से ज़्यादा उड़ानें लंबे रूट पर शुरू की हैं.
ये कंपनियां चीनी लोगों की विदेश तक सफ़र करने वाली चाहत पर दांव लगा रही हैं. पिछले दस साल में विदेश जाने वाले मुसाफ़िरों की संख्या काफ़ी बढ़ी है. ये संख्या 4 करोड़ 10 लाख से बढ़कर 13 करोड़ पर पहुंच गई.
चीन ने कैसे उड़ान भरी?
चीन के विमानन उद्योग ने शुरुआत करने में भले थोड़ी देर लगाई लेकिन डेंग जियाओपिंग ने आर्थिक सुधारों के साथ इस इंडस्ट्री के लिए उड़ान भरने के दरवाज़े खुले.
एनालिस्ट का अनुमान है कि चीनी अगले बीस साल में 1 लाख करोड़ डॉलर के विमान खरीदेंगे. बोइंग ने बी737 फ़िनिशिंग फ़ैक्टरी बना ली है और एयरबस ने चीन में ए320 का फ़ाइनल असेंबली प्लांट भी तैयार है.
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चीन की इस छलांग से क्षेत्रीय कंपनियों को भी पसीने आने लगे हैं. मलेशिया एयरलाइंस दूसरी वजहों से मुश्किल में रही लेकिन अब कैथे पैसेफ़िक जैसी कंपनियां भी मुनाफ़े में सुराख़ का सामना कर रही हैं.
भारत कहां खड़ा है?
चीन से कई मामलों में मुक़ाबला करने की चाहत रखने वाला भारत हवाई प्रतिस्पर्धा में काफ़ी पीछे है.
इंडिया ब्रांड इक्विटी फ़ाउंडेशनके मुताबिक भारत में नागर विमानन उद्योग ने पिछले तीन साल में बढ़िया उछाल देखा है.
IATA के मुताबिक भारत साल 2025 से ब्रिटेन को पीछे छोड़कर तीसरे पायदान पर पहुंच जाएगा.
भारत में एयर-ट्रैफ़िक अप्रैल-फ़रवरी 2017-18 के दौरान साल दर साल 15.80 फ़ीसदी बढ़कर 28.02 करोड़ पर पहुंच गया.
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