खरबों रुपये खर्च कर दुनिया के नेताओं को खरीद रहा है चीन, क्या भारतीय नेता भी चीन के हाथों बिके?
लंदन/नई दिल्ली, जनवरी 14: ब्रिटिश खुफिया एजेंसी एमआई-5 ने ब्रिटिश संसद को आपातकालीन चेतावनी जारी करते हुए कहा है कि, ब्रिटिन में पिछले कई सालों से क्रिस्टीन ली नाम की एक चायनीज जासूस एक्टिव है, जिसने ब्रिटेन की राजनीतिक पार्टियों और नेताओं को करोड़ों रुपये 'चंदा' दिए हैं और चायनीज जासूस ब्रिटिश नेताओं को करप्ट कर रही है। ब्रिटिश खुफिया एजेंसी के खुलासे के बाद पूरी दुनिया में सनसनी फैल गई है। वहीं, खुलासा हुआ है कि, चीन की सरकार ने दुनियाभर के भ्रष्ट नेताओं को खरीदने के लिए खरबों रुपये खर्च किए हैं, जिसके बाद सवाल उठ रहे हैं, कि क्या भारत में भी चीन के जासूस एक्टिव हैं? क्या भारतीय नेताओं को भी चीन के जासूसों ने 'चंदा' दिया है और क्या भारत में चीन के जासूस हैं या नहीं, इसको लेकर जांच होगी?

ब्रिटिश सांसद को दिया चंदा
ब्रिटिश खुफिया एजेंसी एमआई-5 ने खुलासा किया है कि, चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की जासूस क्रिस्टीन ली ने ब्रिटेन की लेबर पार्टी के वरिष्ठ सांसद बैरी गार्डिनर को 5 लाख पाउंड से ज्यादा का दान दिया है, जो चीन की सरकार का 'पार्सल' था। खुलासा हुआ है कि, चीन खबरों रुपये पृथ्वी पर मौजूद दुनियाभर के कई नेताओं को अलग अलग तरहों से खरीदने के लिए खर्च कर रहा है और चीन में नेताओं को खरीदने के लिए बकायदा प्लान बनाए गये हैं। ब्रिटिश खुफिया एजेंसी ने कहा है कि, ब्रिटिश राजनीति को किसी भी वक्त प्रभावित करने के लिए चीन की तरफ से प्लानिंग की गई थी और भ्रष्ट हो चुके ब्रिटिश सांसद ऐसी स्थिति में चीन के 'प्रवक्ता' बन सकते थे या ऐसे ब्रिटिश सांसद चीन की सत्तावादी कम्युनिस्ट पार्टी के लिए ब्रिटेन में अनुकूल परिस्थितियों का निर्माण कर सकते थे।

खरबों रुपये का है चीनी प्रोजेक्ट
ब्रिटिश न्यूजपेपर डेली मेल की रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले कुछ सालों में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने लैटिन अमेरिका और कैरेबियन देशों की राजनीति को बुरी तरह से प्रभावित किया है और इन संप्रभु देशों की राजनीति में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने बहुत खतरनाक हस्तक्षेप किए हैं, जिससे ये देश पूरी तरह से चीन के 'गुलाम' बनकर रह गये हैं। चीन ने पिछले महीनों कई लैटिन अमेरिकी देशों में सिविलियन न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी का निर्माण करने, अंतरिक्ष कार्यक्रम विकसित करने और 5जी मोबाइल नेटवर्त विकसित करने के नाम पर लाखों लोगों की जासूसी की है, इसका खुलासा अमेरिकी रिपोर्ट में किया गया है। इसके साथ ही चीन ने इन देशों में चीनी प्रोपेगेंडा विकसित करने के लिए इन देशों को स्कूलों में चीनी भाषा और चीनी संस्कृति को थोप दिया है, और हेरिटेज फाउंडेशन के एक शोधकर्ता माटेओ हैदर के अनुसार, 'लैटिन अमेरिका पर चीन अपना महत्वपूर्ण प्रभुत्व स्थापित कर रहा है'।

685 बिलियन पाउंड का निवेश
खुलासा हुआ है कि, चीन ने साल 2005 के बाद से 42 राष्ट्रमंडल देशों में 685 बिलियन पाउंड यानि 6,95,82,42,00,80,499.99 रुपये से ज्यादा का निवेश किया है। सुरक्षा विशेषज्ञों का तर्क है कि बारबाडोस और जमैका जैसे देशों में भारी मात्रा में पैसा लगाकर चीनी सरकार ने उन्हें अब हमेशा के लिए अपना बना लिया है, क्योंकि चीन ने इन देशों को इतना कर्ज दे दिया है, जितना वो कभी लौटा नहीं पाएंगे, लिहाजा इन देशों के पास खुद को चीन के हवाले करने के अलावा कोई और उपाय नहीं है। वहीं, एमआई-5 के खुलासे के बाद ब्रिटेन की गृहमंत्री प्रीति पटेल ने कहा है कि, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ब्रिटिश सांसदों को निशाना बना रही है, जो काफी चिंताजनक है।

चेतावनी के बाद भी 'सोता' रहा ब्रिटेन?
रिपोर्ट के मुताबिक, ब्रिटेन की कंजरवेटिव पार्टी में चीन का घुसपैठ बढ़ता जा रहा है, इस बात को लेकर खुद कंजरवेटिव पार्टी के कई नेताओं ने आगाह किया था, लेकिन इस तरफ ध्यान नहीं दिया गया। इन सबके बीच ब्रिटेन में 5जी नेटवर्क के निर्माण के साथ साथ ब्रिटिश विश्वविद्यालयों में भी चीन काफी तेजी से घुसपैठ करता रहा और हिंकले परमाणु संयंत्र में भी चीन ने निवेश कर दिया है। इसके अलावा चीन
कई महत्वपर्ण जलमार्गों और बंदरगाहों पर भी प्रभुत्व जमाने की फिराक में है, ताकि आने वाले वक्त में चीन बेहद आसानी से अपने प्रतिद्वंदियों भारत और अमेरिका को चुनौती दे सके।

चीन का भारी-भरकम निवेश
अमेरिकन एंटरप्राइज इंस्टीट्यूट द्वारा संकलित आंकड़े बताते हैं, कि चीन ने बारबाडोस में सड़कों, घरों, सीवरों और एक होटल के निर्माण कार्य में करीब 500 मिलियन डॉलर का निवेश किया है, जिसने हालिया समय में ब्रिटेन के अंतिम शाही प्रभाव को हिलाकर रख दिया है। इसके अलावा चीन ने जमैका में 2.6 अरब पाउंड का निवेश किया है, जबकि इस देश की कुल जीडीपी ही 16.4 अरब पाउंड है और विशेषज्ञों का कहना है कि, इतना कर्ज ये देश कभी नहीं लौटा सकते हैं। लिहाजा ये देश अब अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर, जैसे ताइवान को लेकर आंख मूंदकर चीन का समर्थन करते हैं।

ये देश नहीं लौटा सकते हैं चीनी कर्ज!
चीन इन गरीब देशों को पूरी तरह से अपने प्रभुत्व में लेकर उन्हें अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में अपने प्रतिद्वंदियों के खिलाफ इस्तेमाल करता है। पिछले साल हांगकांग में जब चीन ने नेशनल सिक्योरिटी कानून लागू किया था, तो उस वक्त पापुआ न्यू गिनी, एंटीगुआ और बारबुडा से उसे यूनाइटेड नेशंस समर्थन मिला था। पापुआ न्यू गिनी को चीन ने 5.3 अरब पाउंड का कर्ज दिया हुआ है, जो उसकी जीडीपी का करीब 21 प्रतिशत है, वहीं एंटीगुआ और बारबुडा को चीन ने 1 अरब पाउंड का कर्ज दिया है, जो उसकी जीडीपी का करीब 60 प्रतिशत है। ऐसे में समझना काफी आसान है, कि चीन कैरेबियाई देशों को किस तरह से अपने जाल में फंसा चुका है। वहीं, दूसरे राष्ट्रमंडल देशों में सिएरा और लियोन ने भी हांगकांग के मुद्दे पर चीन को समर्थन दिया था। जहां 2005 से चीनी निवेश उसके सकल घरेलू उत्पाद का 145 प्रतिशत है।

चीन के जाल में फंस गया है श्रीलंका
सबसे ताजा उदाहरण भारत के पड़ोसी देश श्रीलंका को लेकर है, जो चीन के जाल में बुरी तरह से फंसा हुआ है। श्रीलंका की आबादी महज 2 करोड़ 20 लाख है, लेकिन चीन ने श्रीलंका को करीब 6 अरब डॉलर का कर्ज दे दिया है और अब श्रीलंका के लिए उस कर्ज का ब्याज तक चुकाना नामुमकिन हो रहा है। पिछले हफ्ते श्रीलंका के राष्ट्रपति ने चीन को चिट्ठी लिखकर कर्ज स्ट्रक्चर में रियायद देने की अपील की थी, जिसे चीन ने ठुकरा दिया है और अब इस साल के अंत तक श्रीलंका के दिवालिया हो जाने की संभावना है और विशेषज्ञों का कहना है कि, कहीं श्रीलंका के बड़े हिस्से पर चीन कब्जा ना कर ले। वहीं, पाकिस्तान का भी कुछ ऐसा ही हाल हो चुका है और पाकिस्तान की घरेलू राजनीति पर अब पूरी तरह से कम्युनिस्ट पार्टी का कब्जा हो चुका है और पाकिस्तान के लिए भी चीनी कर्ज चुकाना मुमकिन नहीं रहा। दूसरी तरफ चीन को संतुष्ट करने के चक्कर में पाकिस्तान लगातार दूसरे देशों को अपना दुश्मन बनाता जा रहा है।

भारत में होगी चीन के खिलाफ जांच?
जब दुनियाभर के नेताओं को चीन किसी ना किसी तरह से खरीदने की कोशिश कर रहा है, तो सवाल ये उठता है, कि क्या भारतीय नेताओं, भारत की राजनीतिक पार्टियों और भारत की मीडिया में चीनी 'निवेश' को लेकर जांच की जाएगी। क्योंकि, पिछले साल ही खुलासा हुआ है कि, भारत के एक ऑनलाइन मीडिया पोर्टल में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी का पैसा लगा हुआ है। लिहाजा, भारतीय राजनीति को चीन के प्रभाव से मुक्त रखने के लिए काफी सख्ती से जांच किए जाने की जरूरत है, ताकि आने वाले वक्त में भारतीय राजनीति का रिमोट कंट्रोल कहीं चीन के पास ना चला जाए। वहीं, भारतीय नेताओं को भी सतर्क रहने की जरूरत है, कि कहीं वो जाने-अनजाने चीन के जाल में ना फंस जाएं।
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