भारत के साथ टकराव के कारण चीन का ताइवान पर दबाव डालना हुआ आसान?
चीन एक ओर जहाँ ताइवान के पास सैन्य सक्रियता दिखा रहा है, वहीं दूसरी ओर भारत के साथ भी उसका टकराव चल रहा है. कयास लग रहे हैं कि इन दोनों क्षेत्रों में तनाव के पीछे चीन की कोई रणनीति तो नहीं?
हाल के दिनों में ताइवान की खाड़ी में चीनी सैन्य गतिविधियां बढ़ी हैं और पिछले कुछ वर्षों में भारत के साथ सीमा पर तनाव भी बढ़ा है. इन दोनों घटनाओं के बाद ये अटकलें लगाई जा रही हैं कि चीन ताइवान पर अपने दावों को मज़बूत करने के लिए भारत के साथ अपने टकराव का फ़ायदा उठा सकता है.
इस महीने शुरुआत में, पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने ताइवान के करीब युद्ध अभ्यास किया. चीन ताइवान को अपना ही 'विद्रोही प्रांत' मानता है. इस सैन्य अभ्यास को ताइवान में अमेरिकी सांसदों की यात्रा के जवाब के तौर पर देखा गया.
पीएलए ने अक्टूबर में ताइवान के वायु रक्षा क्षेत्र में रिकॉर्ड 200 लड़ाकू विमान भेजे थे.
उधर भारत के साथ सरहद के करीब, चीनी सैनिक ऊंचाई वाले हिमालयी क्षेत्रों में युद्ध के लिए विशेष हथियारों और उपकरणों के साथ प्रशिक्षण ले रहे हैं.
हाल ही में ख़त्म हुए चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) के सम्मेलन में एक "ऐतिहासिक" प्रस्ताव अपनाया गया है जिसमें ताइवान को वापस चीन में मिलाने को एक "ऐतिहासिक मिशन" बताया गया है.
अमेरिका को 'आग से न खेले चीन' वाली चेतावनी
ताइवान का हमेशा मानना रहा है कि ताइवान उसी का हिस्सा है. चीन इसे वन चाइना सिद्धांत बताता है. हाल के महीनों में यही वन चाइना सिद्धांत चीन में घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर छाया रहा है.
चीन की सरकारी मीडिया ने राष्ट्रपति शी जिनपिंग की अमेरिका को 'आग से न खेलने' की चेतावनी को काफ़ी हाइलाइट किया है. 16 नवंबर को राष्ट्रपति शी जिनपिंग और राष्ट्रपति जो बाइडन ने एक वर्चुअल मीटिंग की थी जहां दोनों ने परस्पर सहयोग और विवादास्पद विषयों पर चर्चा की थी.
उधर ताइवान की सत्तारुढ़ डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (डीपीपी) अमेरिका से चीन के विरुद्ध सैन्य मदद मांगती रही है. पार्टी ताइवान की स्वायत्तता बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध रही है.
साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट ने 21 नवंबर को लिखा, "डीपीपी ताइवान की अलग पहचान को प्रोमोट कर रही है और चीन विरोधी ज़ज़्बातों को हवा दे रही है. ताइवान की सियासी हवा यथास्थिति के पक्ष में है और स्वतंत्रता के हिमायतियों के लिए वहां स्थान कम ही है."
इस बीच नवंबर के शुरु से ही चीन की सोशल मीडिया साइट वीबो पर लोगों इस बात का क़यास लगा रहे हैं कि क्या चीन ताइवान के ख़िलाफ़ जंग छेड़ देगा.
21 नवंबर को साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट ने अपने संपादकीय में लिखा, "चीन का ताइवान के वायु क्षेत्र में विमान भेजना और कुछ सरकारी अधिकारियों के बड़बोलेपन से लगा कि युद्ध हो जाएगा."
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भारत के साथ सरहदों पर तनाव
साल 2020 में भारतीय सेना के साथ पूर्वी लद्दाख के गलवान में ख़ूनी संघर्ष के बाद, चीन ने उस क्षेत्र में सैनिकों और हथियारों की संख्या में बढ़ोतरी कर दी है.
21 नवंबर को चीन के सरकारी न्यूज़ चैनल ने इस क्षेत्र में चीनी सैनिकों को युद्ध अभ्यास करते दिखाया था. इस अभ्यास में सैनिक स्नाइपर राइफ़ल्स, ग्रेनेड लांचर्स और एंटी-टैंक मिसाइल का प्रयोग करते दिखे.
साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट ने 19 अक्तूबर को एक मिलिट्री सूत्र के हवाले से लिखा था कि चीन ने भारत के साथ सीमा पर 100 से अधिक एडवांस लॉन्ग रेंज रॉकेट लॉन्चर तैनात किए हैं. अख़बार ने इसे सर्दियों में किसी संभावित तनाव की तैयारी बताया है.
उधर भारत लद्दाख को कश्मीर से जोड़ने के लिए एक लंबी सुरंग को पूरा करने की तैयारी कर रहा है. इस सुरंग के ज़रिए भारतीय सैनिक और सैन्य साजो-सामान को शून्य डिग्री से कम तापमान के दौरान भी बारह महीने सरहद तक पहुँचाया जा सकता है.
मीडिया में आई ख़बरों में ये भी कहा गया है कि भारत ऊंचाई वाले इलाक़ों में मिलिट्री ड्रोन्स की भी तैनाती करेगा.
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ज़ोर आज़माइश
इतिहास पर नज़र दौड़ाएं तो भारत और ताइवान के साथ चीन के विवाद अलग-अलग किस्म के रहे हैं. लेकिन मौजूदा वैश्विक राजनीति के हिसाब से दोनों देश एक ही गठबंधन में हैं और दोनों के हितों में समानता है.
चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की नेशनल कांग्रेस अगले साल होनी है. इससे पहले शी जिनपिंग चाहेंगे कि पार्टी पर उनकी निर्विवाद पकड़ बन जाए. भारत और ताइवान के साथ संघर्ष उन्हें एक बार और आसानी से पार्टी महासचिव का पद दिलवा सकता है.
भारत की न्यूज़18 वेबसाइट ने 11 नवंबर को लिखा, "ये संभव है कि चीन की भारत के विरुद्ध कार्रवाई का संबंध ताइवान से हो. 160 किलोमीटर लंबी खाड़ी को पार करके ताइवान पर हमला करना अब भी एक चुनौती है. इसकी तुलना में हिमालय में युद्ध आसान है."
इंडो-पैसिफ़िक क्षेत्र में चीन और अमेरिका इस वक़्त एक कड़वाहट भरी सियासी रस्साकशी में उलझे हुए हैं.
ताइवान और अमेरिका के बीच सैन्य गठबंधन है और ताइवान को जापान से भी मदद मिलती है. उधर भारत क्वाड का हिस्सा है. क्वाड में भारत के अलावा अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं. इस गठबंधन को एक चीन विरोधी प्लेटफॉर्म माना जाता है.
अमेरिकी दखल कितनी संभव
हालांकि, क्वाड का सदस्य होने के बावजूद अमेरिका, भारत और चीन के बीच किसी सीमा विवाद में सीधे तौर पर शामिल नहीं होना चाहेगा.
इस लिहाज से जानकार मानते हैं कि अमेरिका की अपने सहयोगियों को समर्थन देने की कुव्वत पर सवाल उठाए जा सकते हैं और इससे चीन को ताइवान के साथ विवाद पर भी मदद मिलेगी.
भारत ने ताइवान और चीन के बीच रस्साकशी से खुद को अलग ही रखा है. शायद इसके पीछे चीन के साथ पहले से ही मौजूद विवादों को और अधिक जटिल बनाने से बचने की मंशा ही है.
कुछेक शिष्टाचार के संदेशों के अलावा भारत और ताइवान के बीच कूटनीतिक रिश्ते न के बराबर हैं.
ताइवान की राष्ट्रपति त्साई इंग-वेन ने प्रधानमंत्री मोदी को जन्मदिन की बधाई दी थी लेकिन मोदी की तरफ़ से इसका कोई जवाब नहीं आया था.
चार नवंबर को भारतीय अख़बार डेक्कन क्रॉनिकल लिखता है, "ताइवान पर चुप्पी का अर्थ चीन के ताइवान नैरेटिव का सर्मथन. इससे तो कम्युनिस्ट पार्टी को और शह मिलेगी."
आने वाले दिनों में ये देखना होगा कि भारत ताइवान पर अपना रुख़ बदलता है कि नहीं. दिसंबर में भारत और ताइवान दोनों ही लोकतंत्र पर होने जा रहे अमेरिकी सम्मेलन का हिस्सा होंगे. इस बैठक के लिए चीन को नहीं बुलाया गया है.
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