चीन ने लद्दाख को बताया भारत का गैर-कानूनी हिस्सा, कहा-हम इसके अस्तित्व को नहीं मानते हैं
बीजिंग। चीन ने भारत के संघ शासित प्रदेश लद्दाख के बारे में नई टिप्पणी करके एक बार फिर से विवाद पैदा कर दिया है। चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता की तरफ से ग्लोबल टाइम्स के साथ बातचीत में लद्दाख को गैर-कानूनी करार दे डाला है। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता की तरफ से कहा गया है कि उनका देश भारत की तरफ से स्थापित इस गैर-कानूनी राज्य को नहीं मानता है। इससे पहले चीन की तरफ से कहा गया था कि वह लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) के लिए सन् 1959 वाली स्थिति को मानता है। भारत की तरफ से भी उसके इस दावे को मानने से इनकार कर दिया गया है। फिलहाल भारत की तरफ से लद्दाख पर चीन की इस नई टिप्पणी को लेकर कोई बयान नहीं दिया गया है।
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आर्टिकल 370 को भी जिक्र
चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन से लद्दाख में बॉर्डर पर सड़क निर्माण से जुड़ा एक सवाल पूछा गया था। उन्होंने कहा चीन लद्दाख को नहीं मानता है और ऐसे में वह बॉर्डर के विवादित इलाकों में सैन्य नियंत्रण के मकसद से होने वाला निर्माण कार्यों का भी विरोध करता है। वेनबिन के शब्दों में, 'हाल ही में भारत और चीन के बीच जो सहमति बनी उसमें स्पष्ट है कि दोनों ही पक्षों की तरफ से बॉर्डर के इलाकों में ऐसे निर्माण कार्यों को आगे नहीं बढ़ाना चाहिए जिससे स्थिति जटिल हो ताकि दोनों पक्षों की तरफ से स्थिति को सहज करने की जारी कोशिशों पर कोई असर न पड़े।' वेनबिन ने ग्लोबल टाइम्स के साथ बातचीत में कहा है कि भारत की तरफ से टकराव को जबरन बढ़ाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि पिछले वर्ष जब भारत ने अनुच्छेद 370 को खत्म कर जम्मू कश्मीर और लद्दाख को संघ शासित राज्यों में विभाजित किया तो उस समय भी चीन की तरफ से इसका विरोध किया गया था। वेनबिन के मुताबिक चीन ने उस समय कहा क्षेत्र की वर्तमान स्थिति को लेकर गंभीर चिंता जताई थी और कहा था कि दोनों पक्षों को अधिकतम संयम बरतने की जरूरत है।
भारत ने LAC की स्थिति पर दिया जवाब
चीन की तरफ से सोमवार को कहा गया था कि वह लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) के लिए सन् 1959 वाली स्थिति को स्वीकार करता है। जबकि भारत की तरफ से उसके इस बयान को सिरे से खारिज कर दिया गया है। मंगलवार को विदेश मंत्रालय की तरफ से चीन की तरफ से आए बयान पर प्रतिक्रिया दी गई है। भारत ने साफ कर दिया है कि सन् 1959 वाली स्थिति को कभी नहीं स्वीकारा किया गया था। चीन की तरफ से जिस साल का जिक्र किया जा रहा है उस समय तत्कालीन चीनी प्रधानमंत्री झोहू एनलाई की तरफ से सात नवंबर 1959 को प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु के समक्ष एलएसी की रूपरेखा का प्रस्ताव दिया गया था। लेकिन भारत ने उस समय भी इसे मानने से इनकार कर दिया गया था।