चीन के बुरे दिन शुरू: विशालकाय BRI प्रोजेक्ट का बजा बैंड, जाने कितने खरब और कौन-कौन से देश डूबेंगे?
बांग्लादेश के वित्त मंत्री एएचएम मुस्तफा कमाल ने सार्वजनिक रूप से श्रीलंका में आर्थिक संकट को बढ़ाने के लिए आर्थिक रूप से अक्षम चीनी बीआरआई परियोजनाओं को दोषी ठहराया है।
बीजिंग, अगस्त 10: पूरी दुनिया में रेल, सड़क और हवाई नेटवर्क के जरिए जोड़कर वर्चस्व कामय करने के सपने देखने वाले ड्रैगन के अच्छे दिन अब खत्म हो गये हैं और चीनी ड्रैगन के सिर पर बीआरआई के नाम पर एक ऐसा पत्थर बंध गया, जो उसे समुद्र में डूबोकर ही दम लेगा। राष्ट्रपति शी जिनपिंग की महत्वाकांक्षी बीआरआई इनिशिएटिव, जिसे जिनपिंग ने 9 साल पहले पूरी दुनिया में धूमधाम से लॉन्च किया था और एक के बाद एक, छोटे देशों को कर्ज के जाल में फंसाना शुरू किया था, उस प्रोजेक्ट की अब बुरी तरह से बैंड बज गई है और चीन के बैंकों ने इतने कर्ज बांटे हैं, जिसे वापस निकालना तो नामुमकिन है ही, इसके साथ ही चीन अब तक इस प्रोजेक्ट में जितना खर्च कर चुका है, उसकी भरपाई भी नामुकिन होगी।
बीआरआई प्रोजेक्ट को लगा कोरोना
चीन ने जिस कोरोना वायरस को जन्म दिया और पाला पोसा, अब वो वायरस चीन की अर्थव्यवस्था को डंक मारने के लिए पूरी तरह से तैयार है और कोविड संकट ने विश्व के दर्जनों देशों की अर्थव्यवस्था को इतनी बुरी तरह से नुकसान पहुंचाया है, कि पिछले दो सालों में बीआरआई प्रोजेक्ट को लेकर एक भी नये प्रोजेक्ट साइन नहीं हुए हैं और चीन इस वजह से बौखलाया हुआ है। रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले 2 सालों से चीन के बीआरआई प्रोजेक्ट के लिए एक भी तीसरा देश नया इन्वेस्टमेंट करने के लिए तैयार नहीं हुआ है और अब श्रीलंका की दुर्गति देखकर कोई नया देश इस प्रोजेक्ट को साइन कर अपना मुंह भी नहीं जलाना चाहेगा। वहीं, चीन की गतिविधियों पर नजर रखने वाले विश्लेषकों का कहना है, कि कोविड की वजह से चीन की अर्थव्यवस्था भी बुरी तरह से प्रभावित हुई है और चीन का रीयल एस्टेट सेक्टर औंधे मुंह गिर चुका है, लिहाजा चीन के पास देशों को लोन देने के लिए भी पैसे नहीं हैं, ताकि बीआरआई को आगे बढ़ाया जाए, वहीं, दर्जन भर ऐसे देश हैं, जो अपनी चौपट हो चुकी अर्थव्यवस्था का हवाला देकर बीआरआई प्रोजेक्ट के पुनर्मुल्यांकण की बात कर रहे हैं।
बांग्लादेश की चीन को दो टूक
बांग्लादेश के वित्त मंत्री एएचएम मुस्तफा कमाल ने सार्वजनिक रूप से श्रीलंका में आर्थिक संकट को बढ़ाने के लिए आर्थिक रूप से अक्षम चीनी बीआरआई परियोजनाओं को दोषी ठहराया है। उन्होंने चेतावनी दी है, कि विकासशील देशों को बीआरआई के माध्यम से अधिक ऋण लेने के बारे में दो बार सोचना चाहिए, क्योंकि वैश्विक मुद्रास्फीति और धीमी गति से विकास ऋणग्रस्त उभरते बाजारों पर दबाव डालता है। मुस्तफा कमाल ने फाइनेंशियल टाइम्स को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि, "हर कोई चीन को दोष दे रहा है और चीन इससे इनकार नहीं कर सकता। यह उनकी जिम्मेदारी है।' आपको बता दें कि, बांग्लादेश पर चीन के विदेशी कर्ज का करीब छह फीसदी बकाया है और उसने आर्थिक संकट से निपटने के लिए पिछले महीने आईएमएफ से 4.5 अरब डॉलर का कर्ज मांगा है। बांग्लादेश भी आर्थिक संकट में घिर चुका है और पिछले हफ्ते उसने पेट्रोल और डीजल की कीमत में 50 प्रतिशत से ज्यादा का इजाफा किया है।
बांग्लादेश ने लोन लेने से किया इनकार
दरअसल, बांग्लादेश को चीन ने लोन का ऑफर दिया था, लेकिन बांग्लादेश ने चीन से लोन लेने से साफ इनकार कर दिया और बांग्लादेश ने चीन के सामने ये भी स्पष्ट कर दिया, कि वो आगे भी कोई कर्ज स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है। बांग्लादेश ने कहा कि, अगर बीजिंग कोई अनुदान देता है, तो सिर्फ उसे ही ढाका स्वीकार करेगा। सिर्फ बांग्लादेश ने ही नहीं, बल्कि नेपाल ने भी चीन को यही बात कही है, और नेपाल ने भी श्रीलंका के पतन के लिए चीन के कर्ज को जिम्मेदार माना है और चीन से कहा है, कि वो अब नया कर्ज स्वीकार नहीं करेगा, भले ही उसकी परियोजना धूल फांके। श्रीलंका के ऊपर चीन के कुल कर्ज का अकेले ही 10 प्रतिशत बकाया है और चीन ने श्रीलंका को कर्ज के रीस्ट्रक्चर करने और छूट देने से मना कर दिया है, लिहाजा अब पूरी दुनिया के सामने श्रीलंका एक बड़ा उदाहरण बन गया है और तमाम देश श्रीलंका का हवाला देकर चीन से कर्ज लेने से इनकार करने लगे हैं। श्रीलंका में हंबनटोटा बंदरगाह पहले ही चीन के कब्जे में जा चुका है और कोलंबो स्थिति एक अरब डॉलर की लागत से बना राजपक्षे अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा भी अब चीन के कब्जे में जाने वाला है।
बिक कर भी कर्ज नहीं चुका पाएगा पाकिस्तान
एक और देश जो चीनी कर्ज के बोझ तले दब रहा है, वह है पाकिस्तान। पाकिस्तान में चीन अपने महत्वाकांक्षी बीआरआई प्रोजेक्ट के लिए 53 अरब डॉलर खर्च कर रहा है, लेकिन ये प्रोजेक्ट पूरी तरह से ठप पड़ गया है और पिछले दो सालों से बंद हो चुका है। करीब 20 अरब डॉलर अभी तक खर्च हो चुके हैं, जिनमें से ज्यादातर पैसे पाकिस्तान के राजनेता और सैन्य अधिकारी खा चुके हैं और जो काम हुआ है, वो बेकार पड़ा हुआ है। पाकिस्तान के मकरान तट पर ग्वादर बंदरगाह अभी भी पूरा नहीं हुआ है, क्योंकि बलूच विद्रोहियों ने साफ कर दिया है, कि वो चीन को बलूचिस्तान से उखाड़ कर ही दम लेंगे। कई चीनी नागरिकों को बलूचिस्तान में मारा जा चुका है, जिसके एवज में पाकिस्तान को भारी-भरकम जुर्माना चीन को चुकाना पड़ा है। पिछले दिनों पाकिस्तानी वायुसेना के हेलीकॉप्टर को भी बलूच स्वतंत्रता सेनानियों ने मार गिराया था, लिहाजा चीन काफी डरा हुआ है और बीआरआई प्रोजेक्ट धूल फांक रहा है।
आर्थिक भंवर में फंस चुका है पाकिस्तान
ग्वादर बंदरगाह को लेकर पाकिस्तान को बहुत बड़े-बड़े ख्वाब दिखाए गये थे और कहा गया था, कि ग्वादर बंदरगाह बनने से कराची दुबई बन जाएगा, लेकिन हुआ ये, कि पाकिस्तान चीन का आर्थिक गुलाम हो चुका है और इस्लामाबाद के गले में बंधा विशालकाय पत्थर बन चुका है, जो उसे आज नहीं तो कल... समुद्र में जरूर डुबोएगा। पाकिस्तान वर्तमान में विदेशी मुद्रा भंडार, भोजन संकट और ईंधन मुद्रास्फीति से बुरी तरह से जूझ रहा है और यूक्रेन युद्ध की दोहरी मार के साथ आईएमएफ से कई अरब डॉलर का खैरात की मांग कर रहा है। वास्तव में, भारतीय उपमहाद्वीप में चीन की पैठ इस स्तर तक बढ़ गई है, कि नौकरशाही और मीडिया के साथ भी समझौता किया गया है और वे अपने ही देश के खिलाफ काम कर रहे हैं।
चीन ने और कहां-कहां लगाए पैसे?
पाकिस्तान के बाद चीन ने इंडोनेशिया में 44 अरब डॉलर, सिंगापुर में 41 अरब डॉलर, रूस में 39 अरब डॉलर, सऊदी अरब में 33 अरब डॉलर और मलेशिया में 30 अरब डॉलर का निवेश किया है। बीजिंग ने कंबोडिया में भी बड़े पैमाने पर निवेश किया है, जिसके कारण आसियान देश दक्षिण चीन सागर में चीन द्वारा किए गए एकतरफा बदलाव और ताइवान के खिलाफ युद्ध के प्रति मूकदर्शक बने हुए हैं।
अंत में खुद चीन भी डूबेगा
चीनी बीआरआई के खिलाफ रोना केवल भारतीय उपमहाद्वीप तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसकी गूंज केन्या में भी सुनी जा ही है, जिसे चीन ने 4.7 अरब अमेरिकी डॉलर दिया हुआ है, एक रेलवे की परियोजना के लिए, लेकिम अपने लॉन्च के पांच साल बाद यह परियोजना युगांडा में अपने गंतव्य से 200 मील दूर एक खाली मैदान में अचानक खत्म हो गई और चीन ने बाकी लोन देने से इनकार कर दिया है, लिहाजा हुआ ये, कि रेलवे परियोजना आधा-अधूरा ही तैयार हो पाया, लेकिन केन्या के ऊपर चीन का 4.7 अरब डॉलर का कर्ज चढ़ गया, जिसे वो कभी नहीं चुका सकता है और रेलवे योजना को पूरा करने के लिए उसे अब और लोन चाहिए, नहीं तो अभी तक जितना काम हुआ है, वो भी बर्बाद हो जाएगा। यानि, चीन अपने बीआरआई के फंदे में कई देशों को फंस चुका है, लेकिन इसका अंतिम असर खुद चीन पर भी होगा, क्योंकि अगर ये देश दिवालिया होते हैं, तो चीन को एक ढेला भी नहीं मिलेगा और अरबों डॉलर के साथ उसका बीआरआई प्रोजेक्ट भी डूब जाएगा।
Afghanistan में चलने लगे सीक्रेट स्कूल, जानिए तालिबान को 'धोखा' देकर कैसे पढ़ती है लड़कियां?