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वैज्ञानिकों की गंभीर चेतावनी, ये चार देश कर देंगे दुनिया को तबाह, महाविनाश रोकने के लिए लेना होगा एक्शन

जी-20 में शामिल चार देशों की वजह से दुनिया बर्बादी के मुहाने पर खड़ी है। वैज्ञानिकों ने चीन, रूस, ऑस्ट्रेलिया और ब्राजील को लेकर गंभीर चिंता जताई है।

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नई दिल्ली, जुलाई 26: वैज्ञानिकों ने एक चेतावनी जारी करते हुए कहा है कि विश्व में चार ऐसे देश हैं, जो दुनिया के लिए बेहद खतरनाक बनते जा रहे हैं और अगर उन्हें नहीं रोका गया, तो दुनिया को बर्बाद होने से कोई नहीं बचा सकता है। इन चार देशों के नाम हैं, ऑस्ट्रेलिया, चीन, रूस और ब्राजील। ये चारों देश जी-20 के सदस्य हैं, लेकिन इनकी भविष्य की योजनाएं हमारी पृथ्वी के लिए सोच से भी ज्यादा खतरनाक है। वैज्ञानिकों ने बेहद गंभीर चेतावनी जारी करते हुए कहा है कि चीन, रूस, ऑस्ट्रेलिया और ब्राजील में जो ऊर्जा नीतियां बनाई गई हैं, वो हमारी पृथ्वी के लिए महाविनाशकारी साबित होंगी, लिहाजा इन्हें फौरन रोका जाए।

दुनिया बर्बाद करने वाला 'प्लान'

दुनिया बर्बाद करने वाला 'प्लान'

''पीयर रिव्यू ग्रुप पेरिस इक्विटी चेक'' की तरफ से बेहद गंभीर चिंता और चेतावनी जारी की गई और कहा गया है कि इन चारों देशों ने विश्व के तमाम 'जलवायु परिवर्तन' को लेकर किए गये समझौतों को ताक पर रखकर कई ऐसी परियोजनाओं पर काम शुरू कर चुके हैं, जिसके परिणाम विनाशकारी होंगे। पेरिस में इस साल के अंत में होने वाले विश्व के सबसे बड़े जलवायु परिवर्तन सम्मेलन 'सीओपी-26' में भी इस मुद्दे को उठाने का फैसला किया गया है। आपको बता दें कि 'सीओपी-26' विश्व इतिहास का सबसे बड़ा क्लाइमेट चेंज कॉन्फ्रेंस होगा, जिसमें दुनिया के तमाम देश हिस्सा लेंगे और इसका मकसद 2050 तक वैश्विक जलवायु तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक कम करने के लिए योजना बनाना है। लेकिन, वैज्ञानिकों ने कहा है कि दुनिया के तमाम देश मिलकर जिस तरह से प्रकृति के साथ छेड़छाड़ कर रहे हैं, इस लक्ष्य तक पहुंचना नामुमकिन है।

हर चेतावनी दरकिनार

हर चेतावनी दरकिनार

यूरोपीय यूनियन और ब्रिटेन ने कार्बन उत्सर्जन को लेकर शपथ ले रखी है, कि वो किसी भी हाल में ऐसी परियोजनाओं को शुरू नहीं करेंगे, जिससे दुनिया में प्रदूषण और तापमान बढ़े। लेकिन रिपोर्ट है कि चीन, रूस, ब्राजील और ऑस्ट्रेलिया ने सभी नोटिफिकेशन और चेतावनी को खारिज कर दिया है। ''पीयर रिव्यू ग्रुप पेरिस इक्विटी चेक'' की रिपोर्ट के मुताबिक, इन देशों में कोयले का भीषण स्तर पर इस्तेमाल किया जा रहा है और अगर पूरी दुनिया के सभी देश इन्हीं चारों देशों की तरह कोयले और जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल करना शुरू कर दे, तो फौरन विश्व का तापमान 5 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा, जिसका मतलब प्रलय होगा। लेकिन, इन चारों को छोड़कर सभी देश दुनिया के प्रति अपनी जिम्मेदारी दिखा रहे हैं, जबकि ये चारों देश गैर-जिम्मेदार होकर करोड़ों टन कार्बन डायऑक्साइड का उत्सर्जन कर रहे हैं।

2050 तक होगी भयानक स्थिति

2050 तक होगी भयानक स्थिति

''पीयर रिव्यू ग्रुप पेरिस इक्विटी चेक'' की स्टडी में पाया गया है कि इन चारों देशों में ऐसे सैकड़ों प्रोजेक्ट चल रहे हैं, जो सीधे तौर पर जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार है, इसके साथ ही इन्होंने ऐसे सैकड़ों प्रोजेक्ट तैयार कर रखे हैं, जो सीधे तौर पर ग्लोबल वॉर्मिंग के लिए जिम्मेदार होगा। ''पीयर रिव्यू ग्रुप पेरिस इक्विटी चेक'' ने कहा है कि ''अगर ये चारों देश अपनी जिम्मेदारी नहीं लेते हैं और अपने प्रोजेक्ट को फौरन बंद नहीं करते हैं, तो इस साल के अंत में होने वाली सीओपी-26 की बैठक निराधार हो जाएगा और पृथ्वी की रक्षा के लिए सीओपी-26 ने जो लक्ष्य रखा है, कि हमें 2050 तक दुनिया का तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस कम करना है, उस लक्ष्य को पूरा नहीं किया जा सकेगा, जिसका नतीजा 2050 तक बेहद खतरनाक साबित हो सकता है।

जी-20 देशों की जिम्मेदारी कब होगी तय ?

जी-20 देशों की जिम्मेदारी कब होगी तय ?

चीन, रूस, ऑस्ट्रेलिया और ब्राजील के अलावा जी-20 नेशंस विश्व में 85 प्रतिशत कार्बन का उत्सर्जन करता है। इसका मतलब ये हुआ कि विश्व के 20 देश मिलकर 85 प्रतिशत कार्बन डॉयऑक्साइड हमारे वायुमंडल में छोड़ते हैं, जिसमें इन चारों का योगदान सबसे ज्यादा है। जिसको लेकर ''आवाज'' नाम के इंटरनेशनल संस्था ने कहा कि ''जी-20 देश विश्व के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाने में नाकाम साबित हुए हैं''। आपको बता दें कि यूनाइटेड नेशंस द्वारा आयोजित की जाने वाली सीओपी-26 की बैठक से पहले ग्लोबल वॉर्मिंग और जलवायु परिवर्तन को लेकर जी-20 देशों की बैठक हुई थी, लेकिन कार्बन उत्सर्जन को लेकर इसके सदस्य देशों के बीच आपस में तकरार हो गई। चीन अंधाधुंध तरक्की कर रहा है और उसका कहना है कि वो किसी भी हाल में अपने प्रोजेक्ट्स को बंद नहीं कर सकता है। ऐसे में चीन के रास्ते पर रूस, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील समेत कई और देश चल पड़े हैं, ऐसे में वैज्ञानिकों ने कहा है कि ''सीओपी-26 का कोई मतलब नहीं रह गया है''।

कुछ सालों में तड़पने लगेंगे लोग

कुछ सालों में तड़पने लगेंगे लोग

''पीयर रिव्यू ग्रुप पेरिस इक्विटी चेक'' के प्रमुख वैज्ञानिक यान रोबिउ डु पोंट ने कहा कि ''हम स्थिति को लेकर बहुत डरे हुए हैं और चिंता में है कि विश्व की बड़ी शक्तियां अपनी जिम्मेदारियों को मानने को तैयार नहीं है और जी-20 में शामिल देश, विश्व को उस रास्ते पर ले जा रहे हैं, जिसका अंत सिर्फ और सिर्फ विनाश है''। उन्होंने कहा कि '' जिस रास्ते पर अभी दुनिया तेजी से चल रही है, उस रास्ते पर भीषण बाढ़, सुनामी, सूखा, तबाह करने वाली गर्मी, लू और बेहद गंभीर मौसम परिवर्तन देखने को मिलेंगे, जिसे बर्दाश्त करने के काबिल इंसान नहीं रहेंगे''।

औद्योगिक क्रांति के बाद बढ़ा तापमान

औद्योगिक क्रांति के बाद बढ़ा तापमान

वैज्ञानिकों ने कहा कि ''औद्योगिक क्रांति के बाद से दुनिया गर्म हो रही है और 5 डिग्री सेल्सियस तक वैश्विक तापमान में इजाफा अगले कुछ सालों में ही हो जाएगा, जिससे दुनिया के तमाम वर्षावन सूख जाएंगे और विश्व का एक चौथाई हिस्सा पूरी तरह से सूख जाएंगा। लोग प्यास से मरने लगेंगे और दूसरी तरफ बर्फ का पिघलने से समुद्र का जलस्तर खतरनाक स्तर पर बढ़ जाएगा और एक बड़ी आबादी बाढ़ में डूब जाएगी।

गैस चेम्बर में बदलने लगी दुनिया

गैस चेम्बर में बदलने लगी दुनिया

इसके अलावा ध्रुवों से ''लॉस ऑफ रिफ्लेक्टिव आइस'' के पिघलने की वजह से सूरज से निकलने वाला रेडिएशन दुनिया में फैलना शुरू हो जाएगा। नहीं, साइबेरियामें पर्माफ्रॉस्ट पिघलने से मीथेन गैस का निकलना शुरू हो जाएगा, जिसके बाद इंसान कुछ भी कर ले, वो वैश्विक तापमान वृद्धि को नहीं रोक सकता है। वहीं, वैज्ञानिकों ने कहा है कि अगर हम किसी भी तरह से अभी भी तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक कम कर लें तो ग्लोबल वॉर्मिंग के गंभीर प्रभावों को रोका जा सकता है। वैज्ञानिकों ने कहा है कि वैश्विक तापमान में अभी ही 1.2 डिग्री सेल्सियस का इजाफा हो चुका है और दुनिया के अलग अलग हिस्सों में भीषण बाढ़, प्रचंड गर्मी के तौर पर हम इसका अंजाम देखना शुरू कर चुके हैं और अगले 30 सालों में इंसान ग्लोबल वॉर्मिंग का सबसे बुरा प्रभाव देखने वाले हैं।

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English summary
Because of the four countries included in the G-20, the world is standing on the verge of ruin. Scientists have expressed serious concern about China, Russia, Australia and Brazil.
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