145 सोने के भंडारों का लालच, चीन ने अब इस पड़ोसी मुल्क के पहाड़ों पर ठोका दावा
नई दिल्ली- पड़ोसी मुल्कों की जमीन को लेकर चीन की लालच बढ़ती ही चली जा रही है। साउथ चाइना सी में कृत्रिम द्वीप बनाकर कब्जा करने के बाद चीन का हौसला इतना बुलंद हो चुका है कि उसकी विस्तारवादी नीति रुकने का नाम नहीं ले रही है। लद्दाख में वह भारत की जमीन को लेकर खूनी संघर्ष कर चुका है, नेपाल के गावों को धोखे से कब्जा चुका है, भूटान के नेशनल पार्क पर दावा ठोक चुका है, रूस और जापान के इलाकों को भी लालच भरी नजरों से देख चुका है, ताइवान को अपना बता रहा और अब एक पड़ोसी मुल्क के बहुत बड़े इलाके पर दावा ठोक दिया है। यह देश है तजिकिस्तान, जिसके पूरे पामीर पहाड़ को ड्रैगन ने अपना बता दिया है।
तजिकिस्तान के पामीर के पहाड़ों पर चीन ने किया दावा
दक्षिण-पूर्व एशिया में अपनी चालबाजी दिखाने के बाद चीन की विस्तारवादी भूख मध्य-एशिया की तरफ बढ़ने लगी है। अब उसकी नजरें गरीबी की मार झेल रहे तजिकिस्तान के पामीर पहाड़ों पर टिक गई है। चीन की सरकारी मीडिया ने इसके लिए माहौल बनाना शुरू कर दिया है। दरअसल, दोनों मुल्कों के बीच 2010 में एक करार हुआ था, जिसके तहत तजिकिस्तान को अपना 1,158 किलोमीटर का इलाका चीन को मजबूरी में देना पड़ा था। अब चीन के एक इतिहासकार ने वहां के सरकारी अखबार के लिए एक आर्टिकल लिखा है, जिसमें उन्होंने पामीर के पहाड़ों को चीन का इलाका बता दिया है। चो याउ लु ने दावा किया है कि क्विन वंश के आखिरी वर्ष के शासन में चीन ने पामीर गंवा दिया था। उन्होंने लिखा है, 'वैश्विक शक्तियों के दबाव के कारण पामीर 128 वर्षों से चीन से बाहर रहा है।' दरअसल, चीन का यह दूसरे देशों की जमीन पर कब्जा करने का एक परखा हुआ तरीका है। पहले वह चाइनीज कम्युनिस्ट पार्टी के किसी एजेंट के जरिए माहौल बनाता है, फिर किसी भी तरह से उसपर कब्जे की कोशिश शुरू कर देता है।
आर्थिक रूप से तजिकिस्तान को फंसा चुका है ड्रैगन
चो ने जिस पामीर के पहाड़ों को अपना बताया है, उसे मान लेने का मतलब होगा कि तजिकिस्तान का 45 फीसदी इलाका असल में चीन का है। असल में 2010 के समझौते के तहत चीन इस गरीब देश के 6 फीसदी से ज्यादा इलाके पर पहले ही कुंडली मारकर बैठा हुआ है और अब बाकी बचे इलाके को भी अपने देश में मिलाना चाहता है। इसके लिए चीन शायद बहुत पहले से ही तैयारी कर रहा है। उसने 2017 में तजिकिस्तान को अपने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव में शामिल किया। इस समय चीन की कम से कम 350 कंपनियां वहां काम कर रही हैं। आर्थिक रूप से लचरे हुए इस देश को ड्रैगन पहले से ही पूरी तरह से अपने शिकंजे में जकड़ चुका है। एक आंकड़े के मुताबिक तजिकिस्तान पर जितना विदेशी कर्ज है, उसका आधा चीन से लिया हुआ है, जो उसकी जीडीपी की करीब 36 फीसदी है।
जमीन हड़पो नीति में और मुल्कों के नाम हो सकते हैं शामिल
चीन की ओर से मिल रही इन सूचनाओं से तजिकिस्तान के शासकों और अधिकारियों में खलबली मची हुई है। ऊपर से दुशांबे की चिंता इस बात से और बढ़ गई है कि चीन तजिकिस्तान-अफगानिस्तान सीमा पर ताशकुर्गान के पास एक एयरपोर्ट बना रहा है। चीन की ओर से उठे इस दावे से रूस के भी कान खड़े हो गए हैं, क्योंकि सामरिक दृष्टिकोण से उसके लिए भी यह बेहद महत्वपूर्ण इलाका माना जाता है। उस चाइनीज इतिहासकार का कहना है कि चीनी राज्य की स्थापना के बाद सबसे पहले उसे अपनी गायब हुई जमीन को वापस हासिल करना होगा। कुछ जमीनें वापस मिली भी हैं, लेकिन अभी भी कुछ पड़ोसी मुल्कों के कब्जे में है, उन्हीं में से पामीर का पहाड़ भी है, जो 128 साल से चीन के अधीन नहीं है।
पामीर को कब्जाने की तैयारी में वर्षों से जुटा है चीन
चीन कितना शातिर है, इसका अंदाजा पिछले साल वॉशिंगटन पोस्ट में छपी एक फ्रंट पेज स्टोरी से जाहिर होता है। उस रिपोर्ट में तभी दावा किया गया था कि चीन की सेना के जवान पामीर के पहाड़ों में मौजूद हैं। अखबार के मुताबिक एक चाइनीज सैनिक ने बताया कि 'हम यहां तीन-चार साल से हैं।' यानि शी जिनपिंग सरकार जो अब एक कथित इतिहासकार के जरिए उगलवा रही है, उसकी पूरी तैयारी चाइनीज कम्युनिस्ट पार्टी वर्षों से कर रही है। (ऊपर की तस्वीर प्रतीकात्मक)चीन कितना शातिर है, इसका अंदाजा पिछले साल वॉशिंगटन पोस्ट में छपी एक फ्रंट पेज स्टोरी से जाहिर होता है। उस रिपोर्ट में तभी दावा किया गया था कि चीन की सेना के जवान पामीर के पहाड़ों में मौजूद हैं। अखबार के मुताबिक एक चाइनीज सैनिक ने बताया कि 'हम यहां तीन-चार साल से हैं।' यानि शी जिनपिंग सरकार जो अब एक कथित इतिहासकार के जरिए उगलवा रही है, उसकी पूरी तैयारी चाइनीज कम्युनिस्ट पार्टी वर्षों से कर रही है। (ऊपर की तस्वीर प्रतीकात्मक)
तजिकिस्तान के 145 स्वर्ण भंडार पर ड्रैगन की नजर
लेकिन, शायद पामीर पहाड़ का मुद्दा उठाने के पीछे जिनपिंग सरकार की असल नीयत सोने के उन भंडारों पर कब्जे की है, जिसको लेकर उनकी सरकार ने तजिकिस्तान सरकार से बातचीत शुरू की है। चाइनीज रिपोर्ट ने ही इस बात का जिक्र किया है कि अकेले उस देश में ही सोने के 145 भंडार हैं। चौंकाने वाली बात ये है कि तजिकिस्तान ने चाइनीज कंपनियों के हाथों में ही इन खानों से खनन और उसे विकसित करने का अधिकार दे रखा है। अब तजिकिस्तान के अधिकारियों को डर सता रहा है कि यह चीन का पुराना हथियार है और वह सड़क और एयरपोर्ट के जरिए उसकी ज्यादा से ज्यादा जमीन को हथियाना चाहता है।
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