चीन का 'तियानक्सिया' सिद्धांत: क्या चीन अब किसी दूसरे देश को कभी जीतने देगा? एक अद्भुत कहानी
चीनी इतिहास करीब 4 हजार या 5 हजार साल का रहा है, वो कभी समान और संप्रभू राज्यों को मान्यता नहीं देती है। चीन के मूल में ही सबसे चौंकाने वाली बात यही है।
बीजिंग, जून 21: आखिर चीन क्यों पूरी दुनिया से पंगे ले रहा और वो क्यों हमेशा विस्तारवादी नीति के सहारे ही आगे बढ़ रहा है? आखिर क्यों चीन पूरी दुनिया पर अधिपत्य कायम करना चाहता है और क्यों चीन मानता है कि पूरी दुनिया में सिर्फ चीन ही शासन कर सकता है? इन तमाम सवालों का जवाब छिपा है सिर्फ एक शब्द में। और उस शब्द का नाम है 'तियानक्सिया'। इस वक्त जब दुनिया के अलग अलग देश अपनी प्राचीन विरासत और प्राचीन कहानियों को काल्पनिक बताकर आगे बढ़ रहे, उस वक्त चीन करीब 5 हजार साल पहले दिए गये एक मंत्र और देखे गये एक सपने के सहारे आगे बढ़ रहा है। आईये जानते हैं चीन की एक प्राचीन 'मंत्र' और उसके मूल में छिपे एक भविष्यवाणी की बेहद दिलचस्प कहानी।
'तियानक्सिया' से शुरू होती है कहानी
चीनी इतिहास करीब 4 हजार या 5 हजार साल का रहा है, वो कभी समान और संप्रभू राज्यों को मान्यता नहीं देती है। चीन के मूल में ही सबसे चौंकाने वाली बात यही है। चीन की मौलिक अवधारणा ये है कि सिर्फ एक सम्राट होगा, जो चीन का होगा। बाकी दुनिया में जो भी सम्राट होंगे सभी चीनी सम्राट के अधीन होंगे। और चीन उसी की तैयारी करता भी दिख रहा है। तियानक्सिया ये शब्द चीन का मूल मंत्र है, जिसका मतलब होता है, स्वर्ग के तहत एकीकृत वैश्विक प्रणाली यानि पूरी दुनिया एक आकाश के नीचे है और सभी लोग वैश्विक सिद्धांत के तहत आपस में जुड़े हुए हैं। यानि, इस चीनी मूल मंत्र से आप समझ सकते हैं कि चीन आखिर चाहता क्या है। चीन, विश्व की अर्थव्यवस्था के लिहाज से नंबर दो पर आ चुका है और वो बहुत जल्द अमेरिका को पीछे छोड़कर नंबर एक की कुर्सी पर बैठने की कोशिश कर रहा है। ताकि वो विश्व की समस्त शक्तियों को अपने अधीन लाया जा सके और अपने मूल मंत्र को पूरा कर सके।
चीन के मूल में विस्तारवाद
चीन की बीज में ही विस्तारवाद है और इसीलिए आप देख रहे होंगे कि चीन लगातार छोटे छोटे देशों को इतना कर्ज दे रहा है कि वो छोटे देश कभी भी उतने कर्ज की अदायगी चीन को नहीं कर पाएंगे और अंत में वो छोटे छोटे देश चीन की सत्ता के अधीन हो जाएंगे। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है अफ्रीकी महादेश के 50 से ज्यादा छोटे छोटे देश। अफ्रीका महाद्वीप के 50 से ज्यादा छोटे छोटे देशों को चीन ने अरबों डॉलर का कर्ज विकास के नाम पर दे रखा है, जिसे वो देश कभी भी वापस नहीं कर पाएंगे लिहाजा उन छोटे देशों के पास चीनी अधिपत्य स्वीकार करने के अलावा और कोई विकल्प नही होगा। दूसरी तरफ एशिया में अब पाकिस्तान और श्रीलंका जैसे देशों के पास चीनी अधिपत्य से बाहर निकलने का ऑप्शन खत्म हो चुका है। श्रीलंका और पाकिस्तान को चीन ने अरबों डॉलर का कर्ज दे रखा है और अब ये देश चीन के खिलाफ किसी भी तरह नहीं जा सकते हैं। चीन का ये विस्तारवाद 'तियानक्सिया' मूल मंत्र की वजह से ही माना जाता है।
चीन मानता है खुद को सर्वश्रेष्ठ
चीन में मानना है कि पूरी दुनिया टूटी-फूटी हुई है। तमाम देश एक दूसरे से लड़ने में व्यस्त हैं और दुनिया को राह दिखाने की जिम्मेदारी सिर्फ और सिर्फ चीन की है। इसीलिए अगर आप चीन के अखबारों और उनके स्कॉलर्स के लिखे हुए लेख पढ़ेंगे तो उसमें हर देश को ज्ञान और रास्ता दिखाने की कोशिश की जाती है। हर देश को चीन रास्ता दिखाने की बात करता दिखता है मानो वही सबका गुरु है। 'तियानक्सिया' की अवधारणा सभी देशों के लिए सद्भाव और समावेशी दुनिया को परिभाषित करता है। दरअसल, 'तियानक्सिया' एक तरह का साहित्यिक वर्णन है जो पूरी दुनिया को एक भौतिक स्थिति की तरह परिवर्तित करता है मगर मूल रूप से 'तियानक्सिया' एक राजनीतिक अवधारणा ही है जिसमें पूरी दुनिया के नेतृत्व के लिए चीन को कहता है और चीन उसी मंत्र की तरफ आगे बढ़ता दिख रहा है।
शतरंज और वीक्यू में अंतर
शतरंज और वी क्यू दोनों खेल हैं। शतरंज में अलग अलग खाने होते हैं और उसपर बाजी तय होती है। भारत, चीन के मामले में शतरंज की चाल बिछाता रहता है। लेकिन चीनी वीक्यू पैटर्न का इस्तेमाल करते हैं। ये एक चीनी खेल है, जो गुप्त तरीके से खेला जाता है। मतलब, खाली जगहों पर कब्जा करते रहो। पहले कुछ दिनों के लिए कब्जा करो.. फिर पीछे हटो, फिर कब्जा करो...और धीरे धीरे उस पूरे इलाके को अपना कहना शुरू कर दो। चीन में वी क्यू गेम बहुत खेला जाता है। और अगर आप चीन की विस्तारवादी नीति को ध्यान से देखेंगे तो पाएंगे की वीक्यू गेम की तरह ही चीन भारत के खिलाफ भी चाल चल रहा है। चीन भारतीय जमीन पर कब्जा करने के लिए वीक्यू गेम का ही इस्तेमाल कर रहा है। लिहाजा, भारत को भी शतरंज की चाल छोड़कर चीन को चीन के अंदाज में ही चुनौती पेश करनी चाहिए।
फिर से आक्रामक चीन
माना जाता है 'तियानक्सिया' अवधारणा को चीन में करीब 3 हजार साल पहले प्रैक्टिस में लाया गया था। झोऊ राजवंश ने 'तियानक्सिया' अवधारणा को अपनाया था और झोऊ राजवंश ने सबसे पहली बार पूरी दुनिया पर चीनी अधिपत्य करने का सपना देखा था। झोऊ राजवंश में कहा गया था कि जो भी चीन के खिलाफ नकारात्मक होंगे उन्हें रास्ते से हटा दिया जाए। लेकिन झोऊ राजवंश अपने मकसद में कामयाब नहीं हो पाया। आधुनिक चीन के आधे से ज्यादा हिस्से पर जब जापान ने कब्जा कर चीनियों को प्रताड़ित किया तो चीन अपने इस मूल मंत्र को भूल गया मगर कम्यूनिस्ट शासन के साथ लौटते ही माओ जेदांग ने इस सपने को फिर से चीनियों के मन में जिंदा कर दिया। माओ के विरोधी सन्यात सेन को इसी चीनी सपने तियानक्सिया की वजह से चीन में सफलता नहीं मिल सकी और अब जबकि चीन विश्व का दूसरा सबसे बड़ा ताकतवर मुल्क बन चुका है, तो चीन एक बार फिर से अपने इस मंत्र की तरफ आगे बढ़ चला है।
कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ चायना का सिद्धांत
चीन के अंतरराष्ट्रीय संबंधों को आज के दौर के आधार पर पांच बिल्डिंग ब्लॉक्स में समेटा जा सकता है। वे सभी 1949 में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (पीआरसी) की स्थापना के बाद से बनाए गए हैं। कुछ पुराने हैं, तो कुछ पिछले कुछ वर्षों में तैयार किए गए हैं, लेकिन हर अंतर्राष्ट्रीय सिद्धांत के मूल में भी 'तियानक्सिया' है। वरिष्ठ पत्रकार और चीन की राजनीति को करीब से समझने वाले शिउ सिन पोरो कहते हैं कि शी जिनपिंग की राजनीति का ब्लू-प्रिंट ही 'तियानक्सिया' है और शी जिनपिंग भी मानते हैं कि एक चीन है और बाकी हर देश उसके नीचे है। वहीं, कुछ और पत्रकारों ने कहा है कि चीन असल में खून खराबे की लड़ाई नहीं चाहता है, जो पश्चिमी देशों ने पिछली सदी में की है, चीन सबको जीतना चाहता है, वो भी वीक्यू चाल से। चीन किसी देश को चीन में नहीं मिलाना चाहता है, वो चाहता है कि अलग अलग देश रहें, लेकिन चीन चाहता है कि राजा वो रहे। बाकी सभी देश वही करे, जो चीन कहे। और वही करने की तरफ चीन काफी तेजी से आगे बढ़ता जा रहा है।
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