किसान आंदोलन का समर्थन कर ब्रिटेन में ध्यान खींचते बच्चे
ब्रिटेन में बच्चे सोशल मीडिया के ज़रिए भारत में चल रहे किसान प्रदर्शन को लेकर जागरूकता बढ़ा रहे हैं. बच्चों का यह अभियान ब्रिटेन में चर्चा का विषय बन गया है.
भारत में किसानों के विरोध प्रदर्शन और उससे उनके परिवारों और सिख समुदाय पर पड़ने वाले असर के बारे में समूचे ब्रिटेन में बच्चे जागरूकता बढ़ाने में जुटे हैं.
बीते एक महीने से अधिक समय से पंजाब और हरियाणा के हज़ारों किसान भारत में तीन नए कृषि क़ानूनों के विरोध में दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर डेरा डाले हुए हैं.
किसानों का दावा है कि ये तीन नए क़ानून बिना किसी परामर्श के लाए गए हैं और उन्हें इससे आजिविका के खोने और फ़सल की कीमतों की गारंटी खोने का डर है.
लेकिन केंद्र की सत्ता में आसीन भारतीय जनता पार्टी जोर देकर कह रही है कि खेती से आय और उत्पादकता बढ़ाने के लिए यह सुधार ज़रूरी है.
किसान और सरकार के बीच कई दौर की बातचीत विफल हो चुकी हैं और इस दौरान लंदन, लेस्टर और बर्मिंघम समेत ब्रिटेन में इसे लेकर प्रदर्शन तेज़ हुए हैं.
कई सिख बच्चे #istandwithfarmers हैशटैग के साथ इसका ऑनलाइन विरोध कर रहे हैं और यह ब्रिटेन के कुछ स्कूलों में चर्चा का विषय बन गया है.
आखिर क्या वजह है कि हज़ारों मील दूर हो रहे एक प्रदर्शन ने यहाँ लोगों का ध्यान खींचा है और कैसे वो क्रिएटिव आर्ट और होर्डिंग के ज़रिए जागरूकता बढ़ाने में जुटे हैं?
'मैंने प्रधानमंत्री को एक पत्र लिखा'
पंजाब के लुधियाना के परिवार से आठ साल की इशलीन गिल कौर बर्कशर के विंडसर में रहती हैं. पंजाब में उनका परिवार मुख्य रूप से गेंहूं और चावल की खेती से आमदनी पर निर्भर है.
जागरूकता बढ़ाने के लिए वह सोशल मीडिया पर वीडियो पोस्ट करती रहती हैं. उन्होंने ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन को पत्र लिखकर इस मामले में हस्तक्षेप की गुजारिश की है.
वे कहती हैं, "हमें उनका समर्थन चाहिए और उन्हें भारत की सरकार से इसे ख़त्म करने के लिए कहना चाहिए."
"यह देखकर दुख होता है कि किसानों के साथ उचित व्यवहार नहीं किया जा रहा है. इसका मेरे परिवार पर बहुत गंभीर असर पड़ेगा और इससे छोटे किसानों की खेती हमेशा के लिए ख़त्म हो सकती है."
"मैं खेती के लंबे जीवन की कामना के साथ अपने परिवार को देखने भारत जाना चाहती हूं. उनकी वजह से मेरी थाली में भोजन आता है और मैं इसके लिए उनकी आभारी हूं."
इस बच्ची की दादी भारत में प्रदर्शन में शामिल हैं. दादी पहचान उजागर नहीं करना चाहती हैं और उनका नाम केवल कौर बताने को कहती हैं.
वे कहती हैं, "हम बहादुर, मजबूत महिलाएँ हैं, या तो हम जीत कर घर लौटेंगे या न्याय के लिए लड़ते हुए मर जाएँगे."
इशलीन के पिता जगदीप सिंह गिल कहते हैं कि यह उनका कर्तव्य है कि वे बच्चों के साथ इस प्रदर्शन के बारे में बात करें और वे किसानों के प्रति इशलीन के 'जुनून और उत्साह' से अभिभूत हैं.
वे कहते हैं, "भारत में कई लोगों की एकमात्र आय खेती से है और इसके बिना वो अपनी ज़मीनें बेचने को मजबूर हो जाएँगे और आराम की ज़िंदगी व्यतीत करने में सक्षम नहीं होंगे."
प्रभावशाली 'उभरती शख्सियत'
वूल्वरहैम्पटन के लिल रे रे कहते हैं, "अगर किसान अन्न नहीं उगाएँगे और उसे नहीं बेचेंगे तो मुझे खाना नहीं मिलेगा."
उनके इंस्टाग्राम अकाउंट पर 26 हज़ार फॉलोअर्स है जिसे उनके पिता डीजे निकू संचालित करते हैं.
छह वर्षीय रे इस प्लेटफॉर्म पर किसानों के मुद्दे से जुड़े वीडियो डाल रहे हैं. किसानों के समर्थन में वेस्ट मिडलैंड्स में बिलबोर्ड अभियान के चेहरे के रूप में उनका चयन किया गया है.
वे कहते हैं, "मेरा परिवार पंजाब में नकोदर के बिलगा से है. किसानी हमारी जड़ों में है. हम फल और सब्जियाँ उगाते हैं. मैं इस विरोध प्रदर्शन में किसानों के साथ हो रहे व्यवहार को देखकर परेशान हूं.
मेरे परदादा किसान हैं और उनकी वजह से ही मैं आज यहाँ हूं."
लाइटहाउस आउटडोर डिजिटल मीडिया के जिस बिलबोर्ड पर वे आए हैं उस पर 'किसान एकता मज़दूर ज़िंदाबाद' स्लोगन लिखा गया है.
लिल रे रे को 'उभरती शख्सियत' बताते हुए कंपनी कहती हैं, हम इस तरह के महत्वपूर्ण कारण का समर्थन करने के लिए और अधिक प्रदर्शन करने की उम्मीद कर रहे हैं, ख़ासकर इस कठिन वक़्त में."
'किसानी हमारी ज़ड़ों में है'
पूर्वी लंदन के वूलविच की रहने वालीं 11 वर्षीय मुंसिमर कौर कहती हैं, "ये लोग हमारे हैं और पंजाब हमारी मातृभूमि है."
वे अपनी क्रिएटिव आर्ट को इस संदेश के साथ सोशल मीडिया पर पोस्ट करती रही हैं: "हम उन किसानों के साथ हैं जो हमारी विरासत बचाने के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं."
90 से अधिक उम्र की उनकी दादी भारत में अपनी पुश्तैनी ज़मीन पर हाल तक खेती करती रही हैं.
मुंसिमर कौर कहती हैं, "खेती हमारे परिवार के लिए बेहद महत्वपूर्ण है- मेरे दादा-दादी और नाना-नानी दोनों ही जोड़े और उनके माता-पिता उसी माहौल में पले बढ़े हैं. यह एक ऐसा पेशा है जो, हमारे परिवार में कई पीढ़ियों से चला आ रहा है."
वे कहती हैं, "मुझे लगता है कि यह बिल्कुल ही अनुचित है कि जो लोग इस क़ानून से लाभान्वित होंगे उन्हें भोजन की चिंता नहीं करनी होगी. लेकिन भारत के किसान जिन्हें इनकी वजह से नुकसान होगा, उन्हें नहीं पता होगा कि उनका अगला निवाला कहाँ से आएगा."
बर्मिंघम एजबेस्टन से लेबर पार्टी की मंत्री प्रीत गिल कहती हैं कि वे प्रदर्शनकारी किसानों के प्रति ब्रिटेन के इन बच्चों की प्रतिक्रियाएँ देखकर वास्तव में प्रोत्साहित हुई हैं.
वे कहती हैं, "मुझे युवा पीढ़ी से मिल रही प्रतिक्रियाओं को देखकर आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि हमने ब्लैक लाइव्स मैटर्स के मामले में ये देखा है जब दुनिया के सभी कोने से अन्याय के बारे में बातें की गईं.
"कोविड ने लोगों को अपने इतिहास अपनी जड़ों का एहसास कराया है और असमानता, अन्याय और ग़रीबी जैसी चीज़ों से जुड़े मसलों पर इसका असर हुआ है."
प्रीत गिल ने लेबर पार्टी की ओर से विदेश मंत्री डॉमिनिक राब को एक पत्र लिखा है जिसमें प्रदर्शनकारी किसानों के साथ जिस तरह का व्यवहार किया जा रहा है उसे लेकर उनके मानवाधिकारों पर चिंता जताई गई है.
वे कहती हैं, "यह मानवाधिकार का मसला है जिस पर ध्यान दिया जाना चाहिए."
विदेश मंत्रालय ने पहले कहा था कि किसानों का प्रदर्शन भारत सरकार का अंदरूनी मसला है.