धमकी से घबराई कनाडा की ट्रूडो सरकार, खालिस्तान को आतंकी खतरा मानने से कर रही इनकार
टोरंटो। कनाडा ने आतंकवाद पर आई रिपोर्ट से सिख चरमपंथ का जिक्र हटा लिया है। पिछले दिनों कनाडा की सरकार ने एक रिपोर्ट, '2018 पब्लिक रिपोर्ट ऑन द टेरररिज्म थ्रेट टू कनाडा,' जारी की थी। इस रिपोर्ट में कनाडा की सरकार ने सिख चरमपंथ को आतंकी खतरे के तौर पर बताया था। रिपोर्ट आने के बाद सरकार की जमकर आलोचना हुई थी जिसमें खालिस्तानी संगठनों से सहानुभूति रखने वाले लोग भी शामिल थे।
गुरुद्वारे से लौटते ही लिया फैसला
कनैडियन पीएम जस्टिन ट्रूडो पिछले दिनों वैंकुवर स्थित एक गुरुद्वारे में गए थे। यहां पर उन्होंने नगर कीर्तन में हिस्सा लिया था। गुरुद्वारे से लौटने के 24 घंटे बाद ही रिपोर्ट को बदला गया और इसमें से खालिस्तानी चरमपंथ से जुड़ी हर जानकारी को हटाने का फैसला कर लिया गया। ट्रूडो के इस फैसले से चुनावों से पहले सिखों को लुभाने वाला कदम करार दिया जा रहा है। बताया जा रहा है कि सत्ताधारी लिबरल पार्टी को बैसाखी के मौके पर होने वाले कार्यक्रमों में न बोलने देने की चेतावनी दी गई थी। इसके बाद ही खालिस्तानी चरमपंथ को रिपोर्ट से हटाया गया।
दिसंबर के बाद से ही सरकार पर दबाव
सरकार पर लगातार सिख समुदाय की ओर से दबाव बनाया जा रहा था कि वह पिछले वर्ष दिसंबर में रिलीज हुई पब्लिक सेफ्टी रिपोर्ट से खालिस्तान के जिक्र को हटाए। कनैडियन सरकार की ओर से पिछले हफ्ते ही इस रिपोर्ट का अपडेटेड वर्जन जारी किया गया था। इस अपडेटेड वर्जन के आने के बाद ही भारत की ओर से नाराजगी भी जता दी गई थी। कनाडा की सरकार के इस फैसले पर पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमंरिदर सिंह ने कहा था कि ट्रूडो सरकार के इस फैसले से भारत पर खतरा बढ़ सकता है।
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सिख वोटर्स को लुभाने का जरिया
कनाडा में अक्टूबर में आम चुनाव होने वाले हैं। यहां पर नगर कीर्तन या परेड, राजनेताओं के लिए हजारों सिख वोटर्स के बीच पहुंचने का जरिया समझे जाते हैं। कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया प्रांत के सरे में होने वाले बैसाखी कार्यक्रम में ही करीब 500,000 लोग पहुंचते हैं। इसके आयोजकों ने रिपोर्ट आने के बाद मन बना लिया था कि वह लिबरल पार्टी के नेताओं को खालसा डे के मौके पर बोलने नहीं देंगे।
धमकी कछ ही घंटों बाद बदला फैसला
सरे स्थित गुरुद्वारा साहिब दशमेश दरबार के प्रेसीडेंट और कार्यक्रम के मुख्य आयोजक मोनिंदर सिंह कर मानें तो राजनेताओं को न बोलने देने का जो फैसला लिया गया था उसने एक बड़ा असर दिखाया। उन्होंने बताया कि 36 घंटे के अंदर ही लिबरल सरकार ने इस पर फैसला लिया।
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