290 लोगों को HIV पीड़ित बनाने वाले को सुप्रीम कोर्ट ने भी सुनाई 25 साल की सजा
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नोम पेन्ह। कंबोडिया में बिना लाइसेंस वाले एक डॉक्टर की गलती के कारण 290 लोग एचआईवी संक्रमित हो गए। इस मामले के सामने आने के बाद हंगामा बढ़ा और कोर्ट में ये केस पहुंच गया। इस मामले में निचली अदालत ने दोषी डॉक्टर को 25 साल की सजा सुनाई थी। बाद में ये मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा, जिसमें अब सर्वोच्च अदालत ने भी इस सजा को बरकरार रखा है। इसके साथ ही कोर्ट ने शिकायत दर्ज कराने वाले 100 से अधिक परिवारों को मुआवजा देने का भी आदेश दिया। आइये जानते हैं आखिर क्या है ये चौंकाने वाला मामला...
दोषी डॉक्टर ने कबूला अपना जुर्म
समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, 60 वर्षीय दोषी डॉक्टर यम चिरिन को 2014 में कंबोडिया के उत्तर-पश्चिम में बट्टमबांग प्रांत से गिरफ्तार किया गया था। उस पर आरोप लगा था। उस पर एक ही सिरिंज का कई बार दूसरे लोगों पर इस्तेमाल करने और उन्हें एचआईवी वायरस से संक्रमित करने का आरोप लगा था। दिसंबर 2015 में बट्टामबांग प्रांत कोर्ट ने बिना लाइसेंस वाले इस डॉक्टर को मामले में दोषी पाया और उसे 25 साल की सजा सुनाई। इसके साथ ही कोर्ट ने उसे शिकायत दर्ज कराने वाले 100 से अधिक पीड़ितों को 500 से 3000 डॉलर तक मुआवजा देने का भी आदेश दिया था।
निचली अदालत के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने रखा बरकरार
दरअसल, एचआईवी वायरस वो वायरस है जिससे एड्स की गंभीर होती है। निचली अदालत से 25 साल की सजा के बाद सितंबर 2017 में दोषी डॉक्टर ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की। इसी मामले में अब सर्वोच्च अदालत ने बट्टमबांग प्रांत कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए दोषी की 25 साल की सजा को बरकरार रखा है। कोर्ट की ओर से कहा गया कि पूरे मामले में पाया गया कि निचली कोर्ट का फैसला उचित है, इसलिए उसे बरकरार रखा ही जाएगा।
जानिए, कैसे हुआ पूरे मामले का खुलासा
बता दें कि करीब 20 साल तक एक गांव में मेडिकल प्रैक्टिस करने वाले यम चिरिन ने खुद कोर्ट में अपनी गलती को स्वीकार किया था। कोर्ट में दोषी डॉक्टर ने यह स्वीकार किया कि उसने कई मरीजों को एक ही सीरिंज से इंजेक्शन लगाया, ऐसा इसलिए किया क्योंकि नई सीरिंज लाना मुश्किल था। इससे करीब 290 लोग एचआईवी से संक्रमित हो गए थे। इसी के बाद कुछ लोगों ने आरोपी डॉक्टर के खिलाफ कोर्ट का रुख किया, जिसमें कोर्ट ने डॉक्टर को दोषी ठहराते हुए सजा दी। हालांकि बाद में इस डॉक्टर ने सजा को 10 साल तक करने की गुहार भी सुप्रीम कोर्ट में लगाई लेकिन कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए 25 साल सजा ही कायम रखा।
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