G7 Summit: बाइडेन युग का पहला G7 समिट होस्ट करेगा ब्रिटेन, क्या इस बार भारत को मिलेगी सदस्यता?
इस साल का G7 समिट ब्रिटेन(Britain) में होगा, जिसकी आधिकारिक घोषणा कर दी गई है। पिछले साल कोरोना वायरस संक्रमण के चलते G7 समिट को रद्द कर दिया गया था। बड़ा सवाल ये है कि क्या इस बार भारत को G7 की सदस्यता मिलेगी ?
G7 Summit in London: लंडन: इस साल का G7 समिट ब्रिटेन(Britain) में होगा, जिसकी आधिकारिक घोषणा कर दी गई है। पिछले साल कोरोना वायरस(Corona virus) संक्रमण के चलते G7 समिट को रद्द कर दिया गया था। शुक्रवार को इसकी घोषणा करते हुए कहा गया कि G7 समिट में इस बार ग्रुप के सभी नेता आपस में मुलाकात करेंगे और वैश्विक अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाने के लिए कई फैसले लिए जाएंगे।
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आपको बता दें, कि G7 दुनिया के सात उन्नत अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों का एक समूह है, जो दुनिया की कुल अर्थव्यवस्था का 62 प्रतिशत शेयर करता है। G7 समूह में अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली और जापान हैं। G7 समूह का गठन 1975 में किया गया था, जिसका मकसद अर्थव्यवस्था को लेकर एक दूसरे का सहयोग करना था। लंबे वक्त से G7 में भारत को भी शामिल करने की मांग की जा रही है।
क्या भारत G7 में होगा शामिल?
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने पिछले साल जून में G7 समूह को 'पुराना समूह' बताते हुए इसमें भारत, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण कोरिया को शामिल करने की मांग की थी। पिछले साल G7 के 46वें शिखर सम्मेलन को स्थगित करते हुए डोनल्ड ट्रंप ने कहा था, कि G7 समूह पुराना हो चुका है, और अपने वर्तमान प्रारूप में यह वैश्विक घटनाओं का सही तरीके से प्रतिनिधित्व करने में सक्षम नहीं है।
2019 में 45वें G7 समिट का आयोजन फ्रांस में किया गया था, जिसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को विशेष अतिथि के तौर पर बुलाया गया था। डोनल्ड ट्रंप ने कहा था कि अब वक्त आ गया है, जब G7 ग्रुप को G10 या फिर G11 बना दिया जाए। ट्रंप ने G7 ग्रुप में भारत, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण कोरिया के अलावा रूस को भी शामिल करने की मांग की थी।
G7 को लेकर बाइडेन की रणनीति क्या होगी?
जहां डोनल्ड ट्रंप ने भारत को G7 ग्रुप में शामिल करने की जमकर वकालत की थी, वहीं अब सवाल उठ रहे हैं, कि बाइडेन प्रशासन का रूख G7 ग्रुप को लेकर क्या होने वाला है? क्या जो बाइडेन भारत को G7 समूह की सदस्यता दिलाने की मांग करेंगे? इस सवाल का जवाब बाइडेन के हालिया उठाए गये कदम से पता चलता है, जब बाइडेन ने अमेरिका की एशियाई राजनीति के लिए कर्ट कैम्पबेल को हेड के तौर पर चुना।
कर्ट कैम्पबेल को एशियाई प्रमुख बनाकर अमेरिका के होने वाले राष्ट्रपति जो बाइडेन ने ये संदेश दे दिया है, कि चीन को लेकर उनकी भी रणनीति ट्रंप प्रशासन की तरह ही होने वाली है। ऐसा इसलिए, क्योकि अमेरिकी किसी भी हाल में एशिया में चीन के वर्चस्व को कम करना चाहता है, और इसके लिए अमेरिका को हर हाल में भारत का साथ चाहिए, और कर्ट कैम्पबेल वो राजनीतिज्ञ हैं, जिन्होंने जापान और अमेरिका के साथ भारत को जोड़ते हुए एशिया में एक नया ट्रांएगल बनाया था।
कर्ट कैम्पबेल लगातार इस बात पर जोर देते हैं, कि हर मसले पर एक नया और बड़ा गठजोड़ बनाने से बेहतर है, कि अमेरिका औपचारिक तौर पर G-7 समूह में भारत, ऑस्ट्रेलिया और साउथ कोरिया को शामिल कर G-10 ग्रुप का निर्माण करे, जिसकी वकालत ब्रिटेन भी करता है। कर्ट कैम्पबेल के मुताबिक, G-10 का निर्माण टेक्नोलॉजी, ट्रेड, सप्लाई चेन के लिए करना बेहद जरूरी है और अगर भारत को इस ग्रुप में शामिल किया जाता है, तो ना सिर्फ G7 का महत्व बढ़ जाएगा बल्कि चीन को चुनौती देने में काफी आसानी हो जाएगी।
G7 पर भारत का रूख
आने वाले सालों में भारत अपनी इकॉनोमी को बढ़ाकर 5 ट्रिलियन डॉलर करना चाहता है। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Narendra modi) ने देश की अर्थव्यवस्था को 5 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा है। फिलहाल भारत की अर्थव्यवस्था का आकार 3 ट्रिलियन डॉलर के करीब है। हालांकि, पिछले साल कोरोना वायरस की वजह से लगाए गये लॉकडाउन ने भारतीय अर्थव्यवस्था को बहुत बड़ा झटका दिया है, बावजूद इसके भारत का लक्ष्य बदला नही है। अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए भारत भी G7 ग्रुप में शामिल होना चाहता है, ताकि भारतीय उद्योगों को यूरोपीय बाजार में रियायत के साथ ही आधुनिक टेक्नोलॉजी मिल सके।
नरेन्द्र मोदी जहां एक बार G7 समिट में शामिल हुए, वहीं पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने G7 समिट में पांच बार हिस्सा लिया था। ऐसे में अगर भारत G7 ग्रुप का हिस्सा बनता है, तो निश्चित तौर पर उसे वैश्विक स्तर पर एक नई पहचान बनाने में कामयाबी हासिल होगी।
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