
BRICS summit: अमेरिकी गुस्से के बाद भी भारत दे रहा है रूस को ‘जीवनदान’, अहसान चुकाएंगे पुतिन?
नई दिल्ली/मॉस्को, जून 22: यूक्रेन पर हमले के बाद ही यूरोप और अमेरिका समेत आधी से ज्यादा दुनिया के लिए 'अछूत' बन चुके रूस के साथ ब्रिक्स सम्मेलन में शिरकत कर क्या भारत रूस को 'जीवनदान' दे रहा है और क्या रूसी राष्ट्रपति भारतीय प्रधानमंत्री के इस 'रिस्क' के बदले में अहसान चुकाएंगे? ये सवाल इसलिए है, क्योंकि अमेरिका लगातार कई तरह से भारत को 'चेतावनी' दे रहा है और पिछले 18 महीनों से अमेरिका ने भारत में अपना राजदूत नहीं भेजा है। फिर भी भारत, चीन के साथ रूस के लिए विश्वमंच प्रदान कर रहा है।

यूक्रेन युद्ध के बाद पहली बड़ी बैठक
24 फरवरी को रूस ने यूक्रेन के खिलाफ 'सैन्य अभियान' चलाने की घोषणा की थी और उसके बाद ये पहला मौका है, जब रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन किसी वैश्विक सम्मेलन में हिस्सा लेंगे और विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्था वाले देशों के प्रमुखों के साथ मंच साझा करेंगे। पुतिन के लिए यह एक स्वागत योग्य तस्वीर पेश कर सकता है। चीन के शी जिनपिंग, भारत के नरेंद्र मोदी, ब्राजील के जायर बोल्सोनारो और दक्षिण अफ्रीका के सिरिल रामफोसा के साथ व्लादिमीर पुतिन का मंच साझा करना एक बड़ा संकेत है, कि प्रतिबंधों और विरोधों के बाद भी रूस अकेला नहीं है। चीन और रूस अपने संबंधों में 'कोई सीमा नहीं है' की व्याख्या कर चुके हैं और ब्रिक्स नेताओं में से किसी ने भी रूस की एकमुश्त निंदा नहीं की है और जिससे पश्चिमी देशों की भौहें चढ़ी हुई हों।

क्या ब्रिक्स में उठेगा यूक्रेन का मुद्दा?
ब्रिक्स के बारे में ये कहावत काफी प्रसिद्घ है, कि ये संगठन बेमेल विचारधारा वाले देशों का समूह है और इसके सदस्य देशों के बीच भी भारी अविश्वास है, खासकर भारत और चीन के बीच। वहीं, चीन और रूस के बीच मजबूत होते संबंध ने भारत के मन में भी रूस को लेकर एक दुविधा पैदा कर दी है। लेकिन, ब्रिक्स समूह द्वारा अपने 14वें वार्षिक शिखर सम्मेलन को आगे बढ़ाने का फैसला वैश्विक व्यवस्था पर ब्रिक्स देशों के दृष्टिकोण को दर्शाता है और यूक्रेन के मुद्दे पर पश्चिमी देशों से एक अलग विचार को प्रस्तुत करता है। नई दिल्ली में सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च (सीपीआर) के एक वरिष्ठ साथी सुशांत सिंह ने सीएनएन से बात करते हुए कहा कि, 'हम कुछ बहुत बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बारे में बात कर रहे हैं, जिनका नेतृत्व पुतिन के साथ दिखेगा, भले ही वह केवल एक आभासी मंच पर ही क्यों न हो'।

तय हुआ, ‘अछूत’ नहीं हैं पुतिन?
सुशांत सिंह कहते हैं कि, 'तथ्य ये है, कि विश्व के एक बड़े मंच पर पुतिन का स्वागत होगा और वो अछूत नहीं हैं और उन्हें वैश्विक समुदाय से बाहर नहीं किया गया है, इसकी पुष्टि होगी। ये हर साल होता है और अभी भी हो रहा है और ये पुतिन के लिए सरप्लस है'। जबकि देश यह तर्क दे सकते हैं कि रूस को शामिल करना बेहतर नहीं है। वहीं, ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के कुछ दिनों बाद दुनिया की अग्रणी उन्नत अर्थव्यवस्थाओं यानि जी-20 शिखर सम्मेलन और जी-7 शिखर सम्मेलन की बैठक होने वाली है, जो जो रूसी आक्रमण के खिलाफ अपनी आवाज को और भी ज्यादा आक्रामक करेगा। और भारत के लिए ये महत्वपूर्ण इसलिए है, क्योंकि इन दोनों शिखर सम्मेलनों में भारत को भी शामिल होना है। पीएम मोदी जी-7 बैठक में हिस्सा लेने के लिए जर्मनी की यात्रा करेंगे।

क्या भारत रखेगा सावधानी से कदम?
जी7 की बैठक में रूस के खिलाफ आक्रामक कार्रवाई की बात होगी, तो ब्रिक्स में यूक्रेन का मुद्दा उठेगा या नहीं, इसकी जानकारी भी अभी नहीं है। वहीं, एक्सपर्ट्स का मानना है कि, भारत काफी सावधानी से ब्रिक्स सम्मेलन में अपनी बातें रखेगा, ताकि पश्चिमी देश नाराज नहीं हो। जबकि, चीन, जो इस साल ब्रिक्स की मेजबानी कर रहा है, वो इन पांचों देशों में सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी है और माना जा रहा है, कि ब्रिक्स सम्मेलन में चीन अपने एजेंडे पर ध्यान केन्द्रित करेगा और चीन ब्रिक्स को अमेरिका के खिलाफ एक समूह मानता है, लिहाजा वो ब्रिक्स के विस्तार का प्रस्ताव रखेगा, जिसमें वो पाकिस्तान को भी शामिल करने की मांग करेगा, लिहाजा एक्सपर्ट्स का मानना है कि, भारत चीन के एजेंडे को लेकर भी काफी सतर्क रहेगा।

ब्रिक्स को लेकर सावधान रहेगा भारत?
जून 2020 में गलवान घाटी में भारत और चीन के बीच हिंसक झड़प हो चुका है और दोनों देशों के बीच तनाव बरकरार है। वहीं, ब्रिक्स सम्मेलन पर नजर रखने वाले एक्सपर्ट सीपीआर सिंह ने सीएनएन से बात करते हुए कहा कि, 'एक ओर, ब्रिक्स भारत के लिए "चीन के साथ किसी प्रकार के जुड़ाव सुनिश्चित करने का एक तरीका" रहा है। और यह महत्वपूर्ण बना हुआ है, क्योंकि नई दिल्ली बीजिंग को उकसाने को लेकर सावधान है, खासकर जब उसने संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ अपने क्वाड सुरक्षा समूह में भागीदारी की है और अमेरिका द्वारा चीन का मुकाबला करने की अपनी रणनीति के हिस्से के रूप में देखा जा रहा है'। उन्होंने कहा कि, 'अगर ब्रिक्स सम्मेलन में किसी ठोस पहल की घोषणा की जाती है तो मुझे आश्चर्य होगा, क्योंकि भारत तब क्वाड और अपने पश्चिमी भागीदारों को संदेश भेज रहा होगा, कि वह चीन और रूस के साथ मिलकर काम करने को तैयार है। लिहाजा ये बहुत कठिन है'।

भारत का अहसान चुकाएंगे पुतिन?
पश्चिमी देशों की नाराजगी मोल लेकर भी भारत, रूस के साथ ग्लोबल मंच शेयर करेगा और ब्रिक्स सम्मेलन में भारत के कदम पर पूरी दुनिया की नजर होगी। लेकिन, भारत में एक भावना यह भी बनी है, कि रूस की मदद कर भारत अपना कर्ज चुका है और पीएम मोदी भी पुतिन की दोस्ती की खातिर भी ब्रिक्स में शामिल हो रहे हैं। लिहाजा, भारत इस बात की उम्मीद कर रहा है, कि भारत और चीन के बीच के तनाव में रूस अगर भारत का साथ नहीं भी दे, तो वो उसी तरह से तटस्थ रहे, जैसा भारत यूक्रेन युद्ध के समय रहा है। ऐसे में सवाल यही है, कि क्या पुतिन भारत का ये अहसान चुकाएंगे?
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