
BRI के जरिए नेपाल की इकोनॉमी कंट्रोल करना चाहता था चीन, ड्रैगन के साथ हुआ MoU लीक
काठमांडू, जून 28: पूरी दुनिया पर वर्चस्व स्थापित करने के लिए चीन छोटे देशों की अर्थव्यवस्था को किस तरह से कंट्रोल करना चाहता है, इसका खुलासा नेपाल के साथ हुए एमओयू से हुआ है। बीजिंग की महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) परियोजनाओं पर चीन और नेपाल के बीच हस्ताक्षरित समझौता ज्ञापन (एमओयू) की एक एक्सेस कॉपी से पता चला है कि, कैसे चीन इन परियोजनाओं के माध्यम से नेपाल में आर्थिक आधिपत्य चाहता है।

नेपाल पर कंट्रोल चाहता है ड्रैगन
एमओयू पर हस्ताक्षर करने के इतने सालों के बाद भी नेपाल में बीआरआई प्रोजेक्ट पर काम आगे नहीं बढ़ा है, लेकिन नेपाल की स्थानीय मीडिया ने दोनों देशों के बीच बीआरई प्रोजेक्ट को लेकर किए गये समझौते की एक कॉपी हासिल की है, जिससे पता चलता है कि, चीन, नेपाल की अर्थव्यवस्था पर अपनी मुद्रा और मुक्त व्यापार प्रावधानों के साथ हावी होने का प्रयास कर रहा है। नेपाली मीडिया ने एमओयू का पर्दाफाश किया है। आपको बता दें कि, चीन किसी भी देश के साथ बीआरआई प्रोजेक्ट के तहत जब एमओयू साइन करता है, तो उसकी पहली शर्त ये होती है, कि उसकी शर्तें किसी भी हाल में जनता के बीच नहीं आनी चाहिए।

मई 2017 में किया गया था समझौता
चीन और नेपाल के बीच मई 2017 में बीआरई प्रोजेक्ट को लेकर एक समझौता यानि एमओयू किया गया था, लेकिन इन पांच सालों में न तो नेपाल और न ही चीन ने दस्तावेज़ को सार्वजनिक किया। इस बीच, खबरहुब ने दोनों देशों के बीच व्यापक रूप से चर्चित बीआरआई पर एमओयू की एक प्रति प्राप्त की है। नेपाल के स्थानीय मीडिया आउटलेट द्वारा एमओयू की सामग्री के विश्लेषण के अनुसार, चीन ने अपने बीआरआई समझौते के माध्यम से मुक्त व्यापार कनेक्टिविटी के नाम पर नेपाल में अपने आर्थिक आधिपत्य, शर्तों और निहित स्वार्थ को थोपने का प्रयास किया है।

नेपाल में चीनी करेंसी चलाने की कोशिश
प्राप्त एमओयू से पता चला है कि, बीआरआई पर नेपाल और चीन दोनों द्वारा हस्ताक्षरित दस्तावेज चीन की तरफ से एक स्पष्ट इशारा है, कि वह न केवल नेपाल की अर्थव्यवस्था पर हावी होना चाहता है, बल्कि नेपाल पर कब्जा करने और नेपाल में अपनी मुद्रा का उपयोग करने की कोशिश कर रहा है। इसके साथ ही चीन की एक शर्त ये भी थी, कि वो शून्य सीमा शुल्क के माध्यम से अपना माल बेचते हैं। इन दस्तावेजों के मुताबिक, BRI समझौते तहत "पारस्परिक रूप से लाभकारी क्षेत्रों पर सहयोग को बढ़ावा देने" के नाम पर नेपाल में अपना एकाधिकार थोपने का चीन का प्रयास स्पष्ट दिखता है। वहीं, नेपाल सरकार द्वारा दस्तावेजों को सार्वजनिक नहीं करने को लेकर नेपाल के आर्थिक विशेषज्ञों ने गहरी चिंता जताई है। राजनीतिक विश्लेषक सरोज मिश्रा को गंभीर संदेह है, कि दस्तावेज़ को सार्वजनिक नहीं करने के लिए नेपाल पर चीन का भारी दबाव हो सकता है। मिश्रा ने कहा, "जब तक यह बहुत संवेदनशील और सुरक्षा से संबंधित दस्तावेज नहीं है, तब तक प्रत्येक नेपाली नागरिक को सूचना के अधिकार का प्रयोग करने का अधिकार है।" उन्होंने इस बात पर भी चिंता जताई कि सरकार को इसे सार्वजनिक करने से क्या रोक रहा है?

कनेक्टिविटी मजबूत करने की शर्त
चीन ने एमओयू में यह कहते हुए अपना क्लॉज लगाया है, कि 'दोनों पक्ष कनेक्टिविटी सहयोग को मजबूत करने के लिए ट्रांजिस ट्रांसपोर्ट पर सहयोग को मजबूत करेंगे, लॉजिस्टिक सिस्टम को बढ़ावा देंगे, ट्रांसपोर्ट नेटवर्क सिक्योरिटी और इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट प्रोजेक्ट्स का संयुक्त अध्ययन करेंगे।' चीन ने अपनी शर्तों में रेलवे सहित क्रॉस बॉर्डर इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स को बढ़ावा देकर कनेक्टिविटी के लिए सहयोग को मजबूत करने का शर्ता रखा है। इनके साथ ही, नेपाल में सड़क, नागरिक उड्डयन, पावर ग्रिड, सूचना और संचार मजबूत करने की बात कही है'। चीन की यही शर्तें श्रीलंका और पाकिस्तान के साथ थीं और आज पूरी दुनिया देख रही है, कि इन दोनों देशों का क्या हाल हो गया है। बांग्लादेश के साथ ही चीन ने ऐसी ही शर्त रखने की कोशिश की थी, लेकिन बांग्लादेश ने इनकार कर दिया था। बांग्लादेश ने इस बात से भी इनकार कर दिया था, कि बांग्लादेश में इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास चीन के पैसों से होगा।

दस्तावेज में और क्या बातें हैं?
इन शर्तों के अलावा दस्तावेज में ये भी कहा गया है, कि एमओयू की समय सीमा समाप्त होने के बाद ये ऑटोमेटिक तीन सालों के लिए बढ़ जाएगा, जबतक की समझौते को रद्द करने के लिए कम से कम तीन महीने पहले किसी एक पक्ष के द्वारा नोटिस नहीं दिया जाता है। भले ही 2017 में MoU पर हस्ताक्षर करते समय, यह कहा गया था कि MoU हस्ताक्षर करने की तारीख से प्रभावी होगा और तीन साल के लिए वैध रहेगा। लेकिन, एक भी प्रोजेक्ट पर काम शुरू नहीं हुआ है। एक वरिष्ठ पत्रकार और भ्रष्टाचार विरोधी गैर-सरकारी संगठन फ्रीडम फोरम के अध्यक्ष तारानाथ दहल कहते हैं, ''यह बीआरआई दस्तावेज को सार्वजनिक नहीं करने के लिए नेपाल और चीन की ओर से पारंपरिक और संवादवादी दृष्टिकोण है। और चूंकि कोई पारदर्शिता नहीं है, तो फिर जवाबदेही का सवाल उठता है'।
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