क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

ब्लॉग: मुसलमानों में यहूदी विरोधी धारणा की वजह?

एक भारतीय मुसलमान के साथ इसराइली यहूदियों का बर्ताव कैसा रहा. पढ़िए ज़ुबैर अहमद का ब्लॉग.

By BBC News हिन्दी
Google Oneindia News
इसराइली मुसलमान
EPA/FAZRY ISMAIL
इसराइली मुसलमान

इसराइल से शुक्रवार की सुबह वापसी पर सबसे पहले मेरी माँ ने मुझे फ़ोन किया. उन्होंने पूछा कि यहूदियों ने मेरे साथ कैसा सलूक किया.

ये सवाल सुनकर मुझे आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि साधारण मुसलमानों में ये धारणा आम है कि यहूदी, मुसलमानों के कट्टर दुश्मन हैं.

ऐसा सवाल मुझ से हर वो मुसलमान पूछ सकता है जो कभी इसराइल नहीं गया या जो कभी किसी यहूदी से नहीं मिला. मेरे विचार में भारत के मुसलमानों की 99 प्रतिशत आबादी कभी किसी यहूदी व्यक्ति से नहीं टकराई होगी.

हमें बचपन से ये बताया जाता है कि यहूदियों पर भरोसा नहीं क्या जा सकता, इसलिए उनसे दोस्ती नहीं करनी चाहिए.

मैं दुनिया भर में कई यहूदियों से मिल चुका हूँ. कुछ मेरे दोस्त भी हैं लेकिन इसराइली यहूदियों से मेरा भी कभी कोई नाता नहीं रहा है.

मैं इस बात से इनकार नहीं करूँगा कि इसराइल की यात्रा से पहले मेरे ज़ेहन में भी ये सवाल उठ रहा था कि जब स्थानीय यहूदी मेरे मुसलमान होने पर मेरे साथ कैसा बर्ताव करेंगे.

'यहूदी-हिंदू राष्ट्र की मुहिम मज़बूत करने की गर्मजोशी'

इसराइल में दस दिनों तक रहने और दर्जनों इसराइली यहूदियों से मिलने के बाद मैं ये कह सकता हूँ कि उन्होंने मुझे सहजता से अपनाया.

मेरा मुसलमान होना उनके लिए कोई मुद्दा नहीं था. यहाँ तक कि मैं उनके धर्मगुरुओं यानी रब्बी से भी मिला और मैंने मेरे प्रति उनका बर्ताव नरम ही पाया.

उनके लिए बस इतना काफ़ी था कि मैं भारत से आया हूँ. भारतीयों को यहाँ काफ़ी पसंद किया जाता है.

इसराइल के अरब भी भारत से बेहद प्यार करते हैं और उन्होंने मुझे एक मुसलमान के बजाए एक भारतीय की तरह ही देखा.

मुस्लिम विरोध के कारण है भारत का इसराइल प्रेम?

चर्च ऑफ नेटिविटी
EPA
चर्च ऑफ नेटिविटी

मुसलमानों में यहूदी विरोधी धारणा की वजह?

मौजूदा दौर में रहने वाले मुसलमानों में यहूदी विरोधी धारणा इसराइल की फ़ौज की फ़लस्तीनियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई के कारण बनी है. इसराइल के 1967 में पूर्वीय यरुशलम पर क़ब्ज़ा करने से यहूदियों के ख़िलाफ़ नफ़रत पैदा हुई है.

शायद दुनिया भर के मुस्लिम समाज में कम ही लोग होंगे जो इस बात को सराहते होंगे कि 1948 में इसराइल की स्थापना के बाद से ही मुस्लिम-यहूदी दुश्मनी की शुरुआत होती है.

हाँ, 1920 के दशक में दोनों समुदायों के बीच हिंसा की कई घटनाएं हुई थीं और कई लोग मारे गए थे लेकिन इससे पहले पूरे 1400 साल के इतिहास में दोनों समुदाय एक साथ रहते आए थे.

मुस्लिम स्पेन में दसवीं शताब्दी से 1492 तक के काल को यहूदी संस्कृति का गोल्डन इरा माना जाता है. यहूदी धर्म के इतिहासकारों के अनुसार, सब से अहम रब्बी, विद्वान, कवि, दार्शनिक, खगोलविदों और चिकित्सक इसी मुस्लिम दौर में पैदा हुए थे. उनकी भाषा अरबी थी, इसीलिए अरब भी उन्हें जानते हैं.

इसराइल पर नेहरू ने आइंस्टाइन की भी नहीं सुनी थी

मोदी से मिलने मोशे इसराइल से भारत आ रहा है

इसराइल
EPA
इसराइल

'इसराइल-अरब के बीच दो भाइयों जैसा झगड़ा'

कई यहूदियों से बहस के दौरान पता चला कि वो ये स्वीकार करते हैं कि दशकों से चला आ रहा इसराइल और अरब का घातक झगड़ा दो भाइयों के बीच का झगड़ा है.

दोनों पैग़ंबर इब्राहिम की औलाद हैं. उनके एक बेटे इस्माइल से शुरू होने वाली नस्ल अरब कहलाई और इस्हाक़ की औलाद यहूदी कहलाए.

अगर ये दो भाइयों के बीच का झगड़ा है तो इससे हमारा क्या? हज़ारों मील दूर रहने वाले मुसलमान परेशान क्यों हैं?

ग़ज़ा और वेस्ट बैंक में रह रहे फ़लस्तीनी अरब आज अगर इसराइल के ख़िलाफ़ शिकायत करें तो बात समझ में आती है. इसराइल के अंदर आबाद इसराइली अरब भी भेदभाव के इलज़ाम लगाएं तो जायज़ है.

दूर रहने वाले मुसलमानों को नहीं पता कि फलस्तीनियों के पक्ष में आवाज़ उठाने वाले यहूदियों की एक बड़ी संख्या इसराइल में आबाद है.

सऊदी-इसराइल नज़दीकियों से क्यों उड़ी ईरान की नींद?

ट्रंप
Reuters
ट्रंप

लोग क्या चाहते हैं?

एक अंदाज़ के मुताबिक़, इसराइल में 30 से 40 प्रतिशत लोग चाहते हैं कि फ़लस्तीनियों के साथ मिलकर रहना चाहिए और उनका एक अलग स्टेट होना चाहिए.

कई यहूदी कहते हैं कि मुसलमानों को इसराइल की सरकार और आम यहूदियों में फ़र्क़ करना सीखना होगा. कई यहूदी ग़ज़ा की नाकाबंदी का विरोध करते हैं और मानते हैं कि ये खुली जेल की तरह है.

मैंने 10 दिनों में महसूस किया कि फ़लस्तीनियों के लिए कई यहूदियों का भी दिल धड़कता है. मैंने ये भी देखा कि कई इसराइली और फ़लस्तीनी आपस में मिलकर शांति के लिए सालों से कोशिश कर रहे हैं.

कुछ इसराइली अरबों ने कहा कि दोनों पक्षों में बातचीत कम है, आना-जाना कम है जिससे आपस में ग़लतफ़हमी पैदा हो जाती है.

तीन धर्मों वाले यरूशलम की आंखोंदेखी हक़ीक़त

भारत ने इसराइल का साथ क्यों नहीं दिया?

मुझे इसराइल में एहसास हुआ कि यरूशलम के भविष्य को लेकर भी दोनों खेमों में कोई अधिक खलबली नहीं मची. इसराइल हमेशा से इस मुक़द्दस शहर को अपनी राजधानी मानता है. राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने उस पर अमरीका की मुहर लगा दी है.

इस पुराने शहर के अरबों का कहना है कि अमरीका को ऐसा नहीं करना चाहिए था. एक ने कहा, "इतिहास इस शहर के भविष्य का फैसला करेगा."

यरूशलम पिछले 1400 सालों में से 103 साल को छोड़कर (जब ये ईसाईयों के शासन में था) मुसलमानों के हाथों में रहा है. स्थानीय अरब कहते हैं कि यहूदियों का शहर पर दावा बिब्लिकल है (प्राचीन काल में ये यहूदियों का शहर था). उनका दावा धार्मिक किताबों पर आधारित नहीं है बल्कि ठोस इतिहास पर है.

यरूशलम के भविष्य को लेकर मामला और भी पेचीदा हो जाता है. इस मुद्दे को लेकर उम्मीद मायूसी में बदल जाती है. लेकिन दोनों खेमों में शान्ति के लिए काम करने वाले मायूसी का शब्द नहीं सुनना चाहते.

इसराइल के हथियारों का ज़ख़ीरा कितना बड़ा है?

मोहब्बत के जाल में फांसने वाली मोसाद की वो जासूस

भारत-इसराइल दोस्ती से पाकिस्तान क्यों टेंशन में ?

BBC Hindi
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
English summary
Blog Reasons for anti Semiticism among Muslims
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X