लद्दाख में चीन की हरकत के विरोध में एक हुए डेमोक्रेट्स और रिपब्लिकन नेता, कहा-LAC को बदलना चाहती है चीनी सेना
वॉशिंगटन। चीन की सेना लद्दाख में लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) से पीछे हटने को तैयार नहीं है। पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन के बीच तनाव को तीन माह यानी 90 दिन होने वाले हैं। तनाव कम होने के कोई आसार नहीं नजर आ रहे हैं और अब भारत के लिए अमेरिका में चीनी आक्रामकता के खिलाफ समर्थन बढ़ता जा रहा है। आपको बता दें कि भारत में चीन के राजदूत सन विडोंग की तरफ से आया बयान चीन की मंशा को स्पष्ट करने वाला है। उन्होंने अपने एक बयान में पैंगोंग त्सो पर अपने देश का दावा पेश कर दिया है।
Recommended Video
यह भी पढ़ें-नेपाल के लिए चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग का खास संदेश
भारत के नाम पर एक हुए विरोधी
भारत को अमेरिकी कांग्रेस की दोनों ही पार्टियों, रिपब्लिकन और डेमोक्रेट का जबरदस्त समर्थन मिला है। पिछले कुछ हफ्तों में प्रतिनिधि सभा और सीनेट दोनों के कई सांसदों ने भारतीय क्षेत्रों को हथियाने की चीन की कोशिशों के खिलाफ भारत के सख्त रुख की तारीफ की है। डेमोक्रेटिक पार्टी के वरिष्ठ सांसदों में से एक फ्रैंक पैलोन ने प्रतिनिधि सभा में भारत के लद्दाख क्षेत्र में चीन की आक्रामकता की निंदा करते हुए कहा, 'मैं चीन से अपनी सैन्य आक्रामकता खत्म करने की अपील करता हूं। यह संघर्ष शांतिपूर्ण माध्यमों से ही हल होना चाहिए।' भारत-अमेरिका संबंधों का मजबूती से समर्थन करने वाले पैलोन 1988 से अमेरिकी कांग्रेस के सदस्य हैं। भारत के समर्थन पर अमेरिका के विभिन्न राजीतिक विचारधारा वाले और एक दूसरे के विरोधी भी एक साथ आ गए हैं। पैलोन ने दावा किया, 'झड़पों से कुछ महीने पहले चीन की सेना ने एलसी पर 5,000 सैनिकों का जमावड़ा किया और इसका साफ मतलब बल और आक्रामकता से सीमा की यथा स्थिति में बदलाव करना है।'
भारत के राजदूत को लिखी गई चिट्ठी
चीन के खिलाफ भारत को यह समर्थन ट्वीट के अलावा जन भाषणों, सदन में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिका में भारत के राजदूत तरणजीत सिंह संधू को पत्र लिखकर किया गया। कई सांसदों ने चीन के खिलाफ अपना आक्रोश जताने के लिए संधू को फोन भी किया। एक दिन पहले कोलोराडो से रिपब्लिकन सीनेटर कोरी गार्डनर ने संधू को फोन कर एलएसी में भारतीय सैनिकों के शहीद होने पर अपनी संवेदनाएं जताई। गार्डनर ने कहा, 'अमेरिका और भारत के संबंध व्यापक, गहरे और प्रगति पर हैं। हमने यह चर्चा की कि हमारे राष्ट्रों के बीच क्षेत्र में साझा चुनौतियों तथा आक्रामकता का मुकाबला करने और हिंद-प्रशांत में नियम आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था बनाए रखने के लिए दोनों देशों के बीच सहयोग कितना महत्वपूर्ण है।'