शुरू हो गया सबसे बड़ा जियोपॉलिटिकल गेम, दो खेमों में बंटेगी दुनिया, भारत बनेगा नाटो का सदस्य?
नई दिल्ली, मई 22: यूक्रेन युद्ध के बाद कई खेमों में बंटी दिख रही दुनिया के बाद अब विश्व में अबतक का सबसे बड़ा जियोपॉलिटिकल गेम शुरू हो चुका है और इसका असर पूरी दुनिया पर पड़ने वाला है। इस जियोपॉलिटिकल गेम के तहत पूरी दुनिया दो खेमों में बंट जाएगी। हम दुनिया के सबसे बड़े जियोपॉलिटिकल गेम की बात इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि कुछ दिन पहले ब्रिटेन की विदेश मंत्री ने ग्लोबल नाटो बनाने की बात कही है और उन्होंने इसका जिक्र इंडो-पैसिफिक के लिए किया है, यानि इंडो-पैसिफिक का जिक्र होते ही पहला चेहरा भारत नजर आता है, तो सवाल ये है, कि क्या भारत ग्लोबल नाटो का सदस्य बनेगा?

क्या है ग्लोबल नाटो का मतलब?
नाटो में शामिल होने की जिद को लेकर ही रूस ने यूक्रेन पर हमला किया और फिनलैंड और स्वीडन ने पिछले हफ्ते नाटो में शामिल होने के लिए आवेदन भी कर दिया है। लेकिन, ब्रिटेन की विदेश मंत्री लिज़ ट्रस ने ताइवान की मदद करने के लिए एक 'ग्लोबल नाटो' बनाने की बात कहकर पूरी दुनिया की राजनीति को ही गर्म कर दिया है। उन्होंने कहा कि, उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन यानि नाटो को भारत-प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा को बढ़ावा देने की कोशिश करनी चाहिए। ब्रिटिश विदेश मंत्री ने एक भाषण के दौरान कहा कि, ब्रिटेन "यूरो-अटलांटिक सुरक्षा और इंडो-पैसिफिक सुरक्षा के बीच गलत विकल्प" के खिलाफ है। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि, 'मेरा कहने का ये मतलब है, कि नाटो को अब ग्लोबल होना चाहिए, जिसे वैश्विक खतरों के खिलाफ खड़ा होना चाहिए'। उन्होंने ताइवान का जिक्र किया और कहा कि, इंडो-पैसिफिक में शांति के लिए हमारे सहयोगियों ऑस्ट्रेलिया और जापान के साथ काम करने की जरूरत है।

क्या बनाया जाएगा ग्लोबल नाटो?
ब्रिटेन की विदेश मंत्री ने एक तरह से साफ कर दिया है, कि अब एक ग्लोबल नाटो का गठन किया जाएगा। लेकिन, सवाल ये है, कि अगर ग्लोबल नाटो का निर्माण किया जाएगा, तो फिर उसमें किन किन देशों को शामिल किया जाएगा और क्या दुनिया के सभी देशों के शामिल किया जाएगा और अगर ऐसा है, तो फिर ग्लोबल नाटो लड़ेगा किससे? दरअसल, ग्लोबल नाटो के गठन को लेकर यूरोप में तेजी से बातचीत होने लगी है और चीन ने इसको लेकर सख्त प्रतिक्रिया भी दी है। और ग्लोबल नाटो को काउंटर करने के लिए चीन ने एक अलग से सिक्योरिटी ग्रुप बनाने की बात कही है, जो क्वाड के जैसा होगा। यानि, एक तरफ नाटो के देश होंगे, तो दूसरी तरफ चीन का अलग गठबंधन... यानि, दुनिया पूरी तरह से दो हिस्सों में बंट जाएगी।

चीन का नया ग्लोबल सिक्योरिटी प्रपोजल
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग एक नया वैश्विक सुरक्षा प्रस्ताव लेकर आए हैं जिसमें इंडो-पैसिफिक रणनीति के तर्क के साथ-साथ ऑस्ट्रेलिया, जापान, भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका से जुड़े क्वाड पर भी सवाल उठाया गया है। शी जिनपिंग ने पिछले महीने 21 अप्रैल को चीन में एशिया के वार्षिक सम्मेलन के लिए बोआओ फोरम में एक नई "वैश्विक सुरक्षा पहल" का प्रस्ताव रखा है, जिसमें उन्होंने शीत युद्ध की मानसिकता, वर्चस्ववाद और सत्ता की राजनीतिकरण को ऐसे मुद्दों को काउंटर किया कहा कि, ये "विश्व शांति को खतरे में डालेंगे" और "सुरक्षा चुनौतियों को बढ़ाएंगे"। शी जिनपिंग की इस घोषणा के एक हफ्ते बाद, चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने पीपुल्स डेली में एक लेख लिखा, जिसमें उन्होंने कहा कि, चीन की यह पहल "मानव शांति की कमी को पूरा करने के लिए चीनी ज्ञान का योगदान करती है और अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा चुनौती से निपटने के लिए समाधान प्रदान करती है।" वांग ने कहा कि, "चीन कभी भी आधिपत्य का दावा नहीं करेगा, विस्तार या प्रभाव के क्षेत्रों की तलाश नहीं करेगा और न ही हथियारों की दौड़ में शामिल होगा।" लेकिन, क्या वास्तव में ऐसा है, तो इसका जवाह है नहीं।

चीन के गठबंधन में कौन होंगे शामिल?
चीन ने हालांकि, नाटो को काउंटर करने के लिए जो गठबंधन बनाने की बात कही है, उसमें किसी बड़े देश के शामिल होने की संभावना काफी कम है। यहां तक कि, पाकिस्तान, जो चीन का सबसे करीबी है, उसके लिए भी चीन के गठबंधन में सीधे तौर पर शामिल होना काफी मुश्किल है। तो फिर सवाल उठता है, कि चीन के गठबंधन में कौन कौन से देश शामिल होंगे। तो वो देश उत्तर कोरिया, सीरिया, रूस और कुछ अफ्रीकी देश हो सकते हैं। लेकिन, सबसे बड़ी बात ये है, कि चीन और अमेरिका... दोनों ने अपने गठबंधन के लिए ग्लोबल शब्द का इस्तेमाल किया है, लिहाजा ये संगठन वैश्विक होगा और चीन कभी नहीं चाहेगा, कि उसके पड़ोसी देश या उसके दुश्मन देश, जैसे भारत, वेनेजुएला, ताइवान, फिलिपिंस, इंडोनेशिया इसमें शामिल हों। क्योंकि, अगर ये देश नाटो में शामिल होते हैं, तो इसका मतलब साफ है... चीन की आक्रामकता को डायरेक्ट चुनौती।

क्या क्वाड बन जाएगा ग्लोबल नाटो?
एक्सपर्ट्स के मुताबिक, चीन को पूरी तरह से अब आभास हो गया है, कि आज नहीं तो कल, क्वाड उसके लिए बहुत बड़ा खतरा बन जाएगा और आगे जाकर क्वाड एक सैन्य गठबंधन बन जाएगा और क्वाड और नाटो में समझौता भी हो सकता है। यानि, क्वाड और नाटो का विलय होना भी संभव है! और चीन को सबसे बड़ा डर ये है, कि अगर ऐसा होता है, तो इंडो-पैसिफिक में उसके वर्चस्व को तगड़ा झटका लगेगा और इसके साथ ही साथ वो भारत के साथ भी उलझ नहीं सकता है। लेकिन, भारत के लिए ये काफी कठिन फैसला होने वाला है, कि क्या वो ग्लोबल नाटो का हिस्सा बनेगा? अगल भारत ग्लोबल नाटो में शामिल होने का फैसला करता है, तो भारत को अपने ही बनाए 'गुट निरपेक्ष सिद्धांत' से पीछे हटना होगा। और ध्यान देने वाली बात ये है, कि यूक्रेन युद्ध में अगर भारत तटस्थ रह पाया है और अगर भारत की तटस्थता की इज्जत की गई है, तो उसके पीछे 'गुट निरपेक्ष सिद्धांत' ही है।

क्या भारत बनेगा नाटो का हिस्सा?
अमेरिका और रूस के बीच करीब 30 सालों तक शीत युद्ध चलता रहा और शीत युद्ध के दौरान भारत की दोस्ती अमेरिका के बजाय रूस के साथ ज्यादा रही और शीत युद्ध के दौरान भारत ने ऐसे किसी भी गठबंधन में शामिल होने से साफ इनकार कर दिया था और इसके पीछे भारत का गुटनिरपेक्ष सिद्धांत था। लेकिन, शीत युद्ध खत्म होने के बाद साल 1989 से 91 के बीच नाटो गठबंधन में ऐसे कई देश शामिल हो गये, जो गुट निरपेक्ष गुट का भी हिस्सा थे। और इसके पीछे नाटो की सबसे बड़ी शक्ति अनुच्छेद पांच है, जिसमें कहा गया है कि, नाटो के किसी भी सदस्य देश पर हमला गठबंधन के सभी सदस्य देशों के ऊपर हमला माना जाएगा और नाटो उस देश के खिलाफ संयुक्त सैन्य कार्रवाई करेगा। लिहाजा कई एक्सपर्ट्स का कहना है कि, भारत को अब नाटो का सदस्य बन जाना चाहिए, क्योंकि अगर भारत नाटो का सदस्य बनता है, तो उसे चीन और पाकिस्तान के खिलाफ एक 'कवच' मिल जाएगा। लेकिन, भारत की तरफ से आधिकारिक तौर पर कुछ नहीं कहा गया है।

भारत को होगा सामरिक फायदा
एक्सपर्ट्स का मानना है कि, अगर भारत नाटो गठबंधन का हिस्सा बन जाता है, तो भारत को सबसे बड़ा फायदा हथियार क्षेत्र में होगा और भारत को बिना किसी खास मेहनत के उन्नत हथियारों का निर्माण करने के लिए टेक्नोलॉजी मिल जाया करेगी और भारत का नाटो गठबंधन के साथ नियमित संपर्क स्थापित हो जाएगा। इसके साथ ही नाटो गठबंधन के कई सदस्य देशों के साथ भारत का पहले से ही रक्षा संबंध हैं, जिनमें ब्रिटेन, अमेरिका और फ्रांस शामिल हैं, लिहाजा भारत के लिए नाटो सहयोगियों के साथ संबंध बनाना काफी आसान भी होगा और भविष्य में भारत को दुनिया के सबसे शक्तिशाली सैन्य गठबंधन के साथ सैन्य रणनीतिक लाभ भी मिलेगा और भारत से उसके दुश्मन देश सीधे तौर पर डरेंगे।
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