ट्रंप की राह पर बाइडेन: अफगानिस्तान में तालिबानी नेताओं से बातचीत करेगा अमेरिका, भारत पर विपरीत असर
अफगानिस्तान के मुद्दे पर पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नक्शे कदम पर ही चलने का फैसला अमेरिका के नये राष्ट्रपति जो बाइडेन ने भी लिया है।
वाशिंगटन: अफगानिस्तान (Afghanistan) के मुद्दे पर पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) के नक्शे कदम पर ही चलने का फैसला अमेरिका के नये राष्ट्रपति जो बाइडेन (Joe Biden) ने भी लिया है। जो बाइडेन प्रशासन ने फैसला किया है कि अफगानिस्तान में राजनीतिक गतिरोध खत्म करने और शांति स्थापना के लिए तालिबानी (Taliban) नेताओं से बातचीत जारी रखी जाएगी। अमेरिका का ये कदम भारत कि हितों के विपरीत माना जा रहा है।
अफगानिस्तान में तालिबानी नेताओं से बातचीत
अमेरिका के नये राष्ट्रपति जो बाइडेन ने फैसला किया है कि अफगानिस्तान में शांति समझौते के लिए अफगानिस्तान के सभी दलों के साथ मिलकर बातचीत की जाएगी जिसमें तालिबानी नेता भी शामिल होंगे। अमेरिका के नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर जैक सुलिवन (Jake Sullivan) ने अफगानिस्तान मुद्दे पर बाइडेन प्रशासन का रूख रखते हुए कहा कि हम डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन द्वारा अफगानिस्तान पर लिए गये फैसले के मुताबिक ही आगे बढ़ेंगे। हम अफगानिस्तान के सभी पक्षों के साथ बातचीत कर शांति तक पहुंचने की कोशिश करेंगे।
क्या था डोनाल्ड ट्रंप का 'तालिबान प्लान'
पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने तालिबानी नेताओं के साथ पिछले साल फरवरी में कतर की राजधानी दोहा में एक शांति समझौते पर दस्तखत किया था। जिसके मुताबिक अमेरिका ने तालिबानी नेताओं को आश्वासन दिया था कि धीरे धीरे अफगानिस्तान की जमीन से अमेरिका अपनी सेना को हटा लिया। इसके बदले में तालिबानी नेताओं ने किसी तरह की हिंसक वारदातों को रोकने का डील किया था। इस डील के तहत डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिकी फौज को अफगानिस्तान से बुलाना शुरू कर दिया। पिछले 14 महीनों में अफगानिस्तान से 12 हजार जवानों को अमेरिका बुलाया जा चुका है। अब अफगानिस्तान में सिर्फ 2500 अमेरिकी जवान ही बचे हैं।
शर्तों के मुताबिक तालिबान ने अमेरिका को यकीन दिलाया था कि वो अफगानिस्तान की जमीन पर पनपे दूसरे आतंकी संगठनों को भी रोकेगा। जिनमें ओसामा बिन लादेन की अलकायदा भी है। इन आतंकी संगठनों को अमेरिका के खिलाफ इस्तेमाल होने से रोकेगा।
अब जो बाइडेन प्रशासन ने कहा है कि डोनाल्ड ट्रंप ने अफगानिस्तान को लेकर जो फैसला लिया था वो पूरी तरह से सही था और अमेरिका उसी फैसले के तहत आगे बढ़ेगा। अमेरिकी NSA ने कहा कि हम अफगानिस्तान सरकार और तालिबानी नेताओं के बीच मध्यस्तता कराने को पूरी तरह से तैयार हैं, जो US-तालिबान एग्रीमेंट का अहम भाग है।
रक्षा समझौते के बाद तालिबान
अमेरिका के एग्रीमेंट करने के बाद तालिबान ने अमेरिकी फौज के साथ साथ इंटरनेशनल सैनिकों को निशाना बनाना बंद कर दिया है लेकिन अफगानिस्तान सरकार से उसने लड़ाई बढ़ा दी है, जिस बात की आशंका पहले से लगाई जा रही थी। तालिबान के लिए अमेरिका के साथ समझौता इसलिए मुफीद था क्योंकि तालिबान जानता था कि अफगानिस्तान से अमेरिकी फौज के निकलते ही अफगानिस्तान सरकार कमजोर हो जाएगी और फिर तालिबान के लिए अफगानिस्तान की चुनी हुई सरकार को हटाकर अफगानिस्तान की सत्ता पर तालिबान को लाना बेहद आसान हो जाएगा। लिहाजा, तालिबान अब अफगानिस्तान सरकार को लगातार निशाना बना रहा है।
तालिबान ने अफगानिस्तान सरकार के सामने हजारों आतंकवादियों को रिहा करने की शर्त रखी है, जिसे अफगानिस्तान सरकार ने खारिज कर दिया है। माना जा रहा है कि तालिबान ने आतंकियों को रिहा करने की शर्त ही इसलिए रखी है ताकि उसे अफगानिस्तान सरकार से बात ही नहीं करनी पड़े और वो सरकार के खिलाफ लड़ाई जारी रखे। पिछले साल दोहा में अफगानिस्तान सरकार और तालिबानी नेताओं के बीच एक बार बात जरूर हुई मगर उस बातचीत से कोई नतीजा ना निकलना था और ना ही निकला।
अफगानिस्तान में अभी भी तालिबान हिंसा कर रहा है। अफगानिस्तान में आये दिन जर्नलिस्ट, सोशल एक्टिविस्ट, महिलाओं, राजनेताओं और जजों की हत्या की जा रही है। लेकिन अब अमेरिका पूरी तरह से खामोश बैठा हुआ है।
'शांति समझौते' से भारत को नुकसान
अफगानिस्तान को बीच मझधार में छोड़कर अमेरिकी फौजों के जाने का सिलसिला जारी है और जो बाइडेन भी ट्रंप की शांति प्रक्रिया को ही आगे बढ़ाएंगे, मगर अमेरिका के इस कदम से अफगानिस्तान की चुनी हुई सरकार अब कमजोर पड़ने लगी है। क्योंकि भारत हमेशा से अफगानिस्तान की चुनी हुई लोकतांत्रित सरकार को सपोर्ट करता आया है और भारत के कई प्रोजेक्ट इस वक्त अफगानिस्तान में चल रहे हैं। अफगानिस्तान में संसद का निर्माण भी भारत ने ही कराया है। अफगानिस्तान सरकार और भारत सरकार के बीच काफी अच्छे संबंध हैं। जो पाकिस्तान कतई नहीं चाहता है लिहाजा पाकिस्तान लगातार तालिबान को सपोर्ट कर रहा है। पाकिस्तान और तालिबान के बीच अच्छे संबंध हैं, जबकि भारत तालिबान को मान्यता नहीं देता है।
इस्लामिक कट्टरपंती संगठन तालिबान चाहता है कि अफगानिस्तान की लोकतांत्रिक सरकार को सत्ता से हटाकर वहां शरीयत कानून के हिसाब से राज चले। तालिबानी शासन में महिलाओं के पास कोई अधिकार नहीं होता और लोकतंत्र की कल्पना नहीं की जा सकती है।
अगर अफगानिस्तान की सत्ता को कमजोर करने में तालिबान कामयाब हुआ तो अफगानिस्तान की कहानी हमेशा के लिए बदल जाएगी। भारत के द्वारा अफगानिस्तान में चलाए जा रहे तमाम योजनाएं ठप पड़ जाएंगी साथ ही अफगास्तान की सीमा में रहने वाले आतंकी पाकिस्तान होते हुए भारत में आतंकी वारदातों को भी अंजाम देने की स्थिति में आ जाएंगे।
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