छोटे से भूटान ने विस्तारवादी चीन को Demarche थमाया, बेवजह सीमा-विवाद पैदा करने पर हड़काया
नई दिल्ली- भारत के पड़ोसी मित्र देश भूटान ने उसके पूर्वी हिस्से में बेवजह सीमा-विवाद पैदा करने के लिए चीन को डेमार्श (कूटनीतिक भाषा में आपत्ति पत्र ) थमा दिया है। भूटान ने चीन को थमाए गए आपत्ति पत्र में साफ कहा है कि विस्तारवादी चीन उसके जिस इलाके को अब विवादित बता रहा है, वह हमेशा से भूटान का अभिन्न हिस्सा है और दोनों देश के बीच अबतक सीमा को लेकर जितनी भी बातचीत हुई है, उसमें इसे कभी भी विवादित क्षेत्र नहीं माना गया है। बता दें कि ड्रैगन की हरकत पर भूटान की इस तरह की प्रतिक्रिया को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लद्दाख दौरे से जोड़कर देखा जा रहा है।
छोटे से भूटान ने विस्तारवादी चीन को ऐसे हड़काया
भारत के पूर्वी लद्दाख की गलवान वैली में दावा ठोकने और पड़ोसी नेपाल के गांवों को कब्जाने के बाद विस्तारवादी चीन ने भूटान जैसे छोटे से देश के इलाके में भी दावा ठोकना शुरू कर दिया था। लेकिन, भूटान ने ड्रैगन की हेकड़ी ढीली करने के लिए फौरन ही उसे कूटनीतिक हथियार से चेता दिया है और उसपर वेवजह सीमा-विवाद पैदा करने का आरोप लगाते हुए उसके दावों को सख्ती से ठुकरा दिया है। इसबार चीन ने भूटान के पूर्वी इलाके को हड़पने की साजिश रची थी, जो भारत के अरुणाचल प्रदेश की सीमा से लगा इलाका है। दरअसल, पिछले 2-3 जून को 58वीं ग्लोबल एनवायरमेंट्स फैसिलिटी काउंसिल की बैठक के दौरान चीन ने भूटान के साकतेंग वाइल्डलाइफ सैंचुरी प्रोजेक्ट के विकास के लिए आर्थिक सहायता देने का यह कहकर विरोध किया था कि वह एक 'विवादित' क्षेत्र है।
कूटनीतिक हथियार से ड्रैगन के साथ दंगल
चीन के दावे पर भूटान ने उसके खिलाफ आपत्ति पत्र जारी करते हुए कहा है,'काउंसिल के सदस्य चीन की ओर से किए गए दावे को भूटान सिरे से खारिज करता है। साकतेंग वाइल्डलाइफ सैंचुरी भूटान का एक अभिन्न और सार्वभौम क्षेत्र है और भूटान एवं चीन के बीच सीमा को लेकर हुई बातचीत के दौरान कभी भी यह विवादित क्षेत्र के तौर पर सामने नहीं आया है।' जाहिर है की जमीनखोर चीन के मुंह पर इस तरह का कूटनीतिक आपत्ति पत्र फेंककर भूटान ने उसे बहुत बड़ा तमाचा मारा है। क्योंकि, नेपाल में ड्रैगन की हरकतों को वहां की मौजूदा केपी शर्मा ओली सरकार दबाने की कोशिश कर रही है, उससे चीन को 'हथेली और पांचों उंगली' वाली अपनी खौफनाक योजना को अमल में लाने का हौसला मिल रहा था। लेकिन, भूटान ने उसे समय रहते सचेत कर दिया है।
लेह की बयार भूटान भी बह रही है!
भूटान के ऐक्शन को भारत के रिएक्शन से अलग करके नहीं देखा जा रहा है। पिछले शुक्रवार को जिस तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लद्दाख में भारतीय सेना के बीच विस्तारवादी चीन को चेतावनी दी थी और उसे दुनियाभर में कूटनीतिक समर्थन मिला है, उससे भूटान का भी साहस बढ़ा है और उसने भारत के साथ मित्रता के बीच शी जिनपिंग की आंख में आंख डालकर उन्हें अपनी हरकतों से बाज आने को कह दिया है। क्योंकि, भूटान के जिस इलाके में चीन ने नया विवाद शुरू करने की कोशिश की है, उससे भारत भी अछूता नहीं है। क्योंकि, अरुणाचल प्रदेश को लेकर चीन बराबर साजिशें रचता रहता है और भूटान का वह पूर्वी क्षेत्र भारतीय सीमा से सटा हुआ इलाका है। जाहिर है कि अगर भूटान शांत रह जाता तो यह भारत के लिए भी परेशानी का सबब बन सकता था।
नेपाल के कई गांवों को हड़प चुका है ड्रैगन
गौरतलब है कि पिछले महीने ही नेपाल सरकार की एक रिपोर्ट में यह बात कबूल की गई थी कि चीन ने उसके कई गांव पर अवैध कब्जा कर लिया है। इसके लिए चीन ने तिब्बत में निर्माण कार्यों को अपना हथकंडा बनाया और धीरे-धीरे नेपाली गांवों को तिब्बत में मिला लिया, जो कि अभी चीन के गैर-कानूनी कब्जे में है। बाद में नेपाल की विपक्षी पार्टी नेपाली कांग्रेस ने मौजूदा नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार से मांग की थी कि वह चीन से कूटनीतिक स्तर पर बातचीत करके अपनी जमीन वापस ले। इसके लिए नेपाली विपक्ष ने वहां की संसद में चर्चा के लिए नोटिस भी दे रखी है, जिसमें नेपाल के कई जिलों की 64 एकड़ जमीन चीन के हड़प लेने का आरोप लगाया गया है। नेपाल के जिस जिले की जमीन चीन ने चोरी से दबाई है उनमें दारचुला, दोलखा, हुमला, सिंधुपालचौक, गोरखा और रसुवा शामिल हैं।
शातिर चीन, खौफनाक चाल
एक बात जाहिर है कि चीन पिछले कुछ समय से हिमालय से सटे इलाकों में सिक्किम की सीमावर्ती इलाकों से लेकर पाकिस्तानी कब्जे वाली कश्मीर तक में बहुत ज्यादा सक्रिय हो चुका है। 2017 में उसने सिक्किम के डोकलाम में भारत से भिड़ने की कोशिश की, इस समय पूर्वी लद्दाख में वह खूनी खेल खेल रहा है। जबकि, नेपाल अब जाकर चिंतित हुआ है कि वह चीन के बहकावे में भारत के नक्शे पर माथा पीट रहा है और उधर चीन उसके गांव के गांव हड़प चुका है। उसके बाद उसने भूटान जैसे शांतिप्रिय राष्ट्र पर भी गंदी नजर डाल दी है। इसलिए, तिब्बत की निर्वासित सरकार के चीफ लोबसैंग सैंगे का ऐतिहासिक तथ्यों पर किया गया यह विश्लेषण पूरी तरह सही है कि दरअसल, चीन पीपुल्स रिब्लिक ऑफ चाइना के संस्थापक माओ जेडोंग या माओत्से तुंग की बताई रणनीति को ही तामील करना चाह रहा है, जिसमें 1960 के दशक में तिब्बत पर अवैध कब्जे के बाद वह उसी तरीके से लद्दाख, नेपाल, सिक्किम, भूटान और अरुणाचल प्रदेश को भी हड़पना चाहता है। जिसे माओ 'हथेली (यानि तिब्बत) के बाद पांचों उंगलियां' कहता था। लेकिन, शी जिनपिंग को अंदाजा नहीं है कि चीन ने अब जो आग लगाई है, उसमें आखिरकार उसका झुलसना तय लग रहा है।