BBC SPECIAL: चीन के फ़िल्मी 'दंगल' में दिल जीतता बॉलीवुड
मैं चीन के आन्हुई प्रांत के दूर के एक गांव में था जहां खाने की टेबल पर सात साल के बच्चे ने बताया कि उसने दंगल फ़िल्म देखी थी.
सिर्फ़ बच्चे ने ही नहीं, खाने के टेबल के चारों ओर बैठे करीब-करीब सभी लोगों ने बताया कि उन्हें फ़िल्म कितनी पसंद आई.
दंगल, हिंदी मीडियम, 3 ईडियट्स, पीके, टॉयलेट जैसी फ़िल्मों ने चीन के शहरों, गांवों में बॉलीवुड और भारत की छवि के लिए वो काम किया है लगा कि ये शायद ही डिप्लोमेसी से संभव हो.
मैं चीन के आन्हुई प्रांत के दूर के एक गांव में था जहां खाने की टेबल पर सात साल के बच्चे ने बताया कि उसने दंगल फ़िल्म देखी थी.
सिर्फ़ बच्चे ने ही नहीं, खाने के टेबल के चारों ओर बैठे करीब-करीब सभी लोगों ने बताया कि उन्हें फ़िल्म कितनी पसंद आई.
दंगल, हिंदी मीडियम, 3 ईडियट्स, पीके, टॉयलेट जैसी फ़िल्मों ने चीन के शहरों, गांवों में बॉलीवुड और भारत की छवि के लिए वो काम किया है लगा कि ये शायद ही डिप्लोमेसी से संभव हो.
शंघाई के एक पार्क में मैं आमिर खान फ़ैन कैरन छन से मिला. हिंदी गाने की फ़रमाइश पर उन्होंने मुझे 'सीक्रेट सुपरस्टार' फ़िल्म का 'मैं चांद हूं…' गाना गाकर सुनाया.
छन को हिंदी भाषा का ज्ञान नहीं लेकिन उन्हें गाने का मतलब पता था. 'दंगल' ने ना सिर्फ़ उनका परिचय बॉलीवुड से करवाया, फ़िल्म ने उनके निजी जीवन पर भी प्रभाव डाला.
छन ने कहा, "जब मैंने दंगल देखी तब मेरा वज़न 98 किलो था. फ़िल्म देखने के बाद मैंने खुद से कहा, मैं भी ये अपने वज़न कम कर सकती हूँ. अब देखिए मैं कैसी बन गई हूं."
साथ आईं टीना और लीफ़ ने मुझे बताया कि उन्होंने सीडीज़ या वेबसाइट्स पर भारतीय फ़िल्में देखनी शुरू की थी.
लीफ़ ने कहा, "भारतीय फ़िल्में देश की सभ्यता को दिखाती हैं. उनमें दिखाए जाने वाले डांस, गाने, भगवान की पूजा करना, ये सब मेरे दिल को छू लेते हैं."
एक वीगर लड़की ने मुझे बताया कि समुदाय में बॉलीवुड फ़िल्में कितनी पसंद की जाती हैं.
साल 2011 में रिलीज़ 3 इडियट्स ने भी फ़ैंस बनाए थे. कई कॉलेज छात्रों ने फ़िल्म ऑनलाइन देखी थी और उन्हें पता चला कि हिंदी फ़िल्में कैसी होती हैं.
फिल्म जानकारों के मुताबिक साल 2014 में रिलीज़ हुई धूम-3 ने चीन में मात्र 20 मिलियन युआन (20 करोड़ रुपए) का बिज़नेस किया था. लेकिन माना जाता कि साल 2015 में रिलीज़ 'पीके' ने लोगों में बॉलीवुड में रुचि बढ़ाई.
इन फ़िल्मों के बाद आई 'दंगल' जैसी फिल्मों ने सभी रेकॉर्ड तोड़ दिए.
बॉलीवुड के अलावा साउथ इंडियन मूवीज़ फ़ैन विवियन ने फिल्म पीके के बाद बाहुबली -2 देखी तो इतनी प्रभावित हुईं कि फ़िल्म के पोस्टर्स और गुडीज़ उन्होंने जापान से मंगवाए.
जापानी भाषा की ट्रांसलेट्रर विवियन कहती हैं, "बाहुबली पार्ट की स्टोरी टेलिंग, गाने और डांस देखकर मैं दंग रह गई. फ़िल्म में डायरेक्टर एसएस राजमौली ने खूबसूरती से भारत की अनोखी सभ्यता को दिखाया है."
विवयन चाहती हैं कि बाहुबली के हीरो प्रभास शंघाई ज़रूर आएं.
सेंट्रल शंघाई के एक कैफ़े में हाथ में प्रभास के पोस्टर, बैजेज़ लिए हुए विवियन ने कहा, "प्रभास का फ़िट शेप, गोलमोल चेहरा, घुंघराले बाल, स्टाइलिश मूछें, मीठी मुस्कुराहट और गहरी आवाज़ के कारण उन्हें चीन में हम छोछो कहकर पुकारते हैं. प्रभास को देखने के बाद अब मुझे मूछें पसंद आने लगी हैं."
चीन में कलाकारों का एक चीनी नाम भी होता है.
पिछले सालों में तेज़ी से थिएटरों के निर्माण के कारण चीन में फ़िल्म बॉक्स ऑफ़िस व्यापार 8.6 बिलियन डॉलर्स तक पहुंच गया है.
डिलॉयट की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2020 तक चीन के बॉक्स ऑफ़िस और ऑडियंस आंकड़े उत्तरी अमरीका को पीछे छोड़ देंगे.
साल 2016 में तीन भारतीय फ़िल्में - बाहुबली - I, पीके, फ़ैन चीन में रिलीज़ हुईं.
पिछले साल सिर्फ़ 'दंगल' चीन में रिलीज़ हुई. इसका कारण डोकलाम बॉर्डर विवाद बताया गया, हालांकि कुछ जानकार इससे इनकार भी करते हैं.
इस साल जून तक पांच भारतीय फ़िल्में सीक्रेट सुपर स्टार, हिंदी मीडियम, बजरंगी भाइजान, बाहुबली - 2 और टॉयलट चीन में रिलीज़ हो चुकी हैं. सुल्तान और पैडमैन रिलीज़ के लिए तैयार हैं.
भारतीय फ़िल्मों में दिखाई जाने वाली कहानियां चीन में इतनी लोकप्रिय हो रही हैं कि लोग चीन में बनने वाली फ़िल्मों की स्टोरीलाइन, ट्रीटमेंट पर सवाल उठा रहे हैं.
बॉलीवुड फ़ैन और विदेशी फ़िल्में चीन में मंगाने वाले चियानपिन ली के मुताबिक कॉलेज के ज़माने में वो 'थ्री इडियट्स' में साइलेंसर के किरदार जैसे थे जो किताबों का रट्टा लगाया करता था.
पूर्वी बीजिंग के अपने दफ़्तर में बैठे चियानबिन ने 'बींइंग ह्यूमन' की टी-शर्ट पहनी हुई थी और लैपटॉप पर भारतीय फ़िल्मों के क्लिप्स और वीडियो थे.
वो कहते हैं, "थ्री इडियट्स और हिंदी मीडियम जैसी फ़िल्मों में पारिवारिक रिश्ते, भावनाएं दिखाई जाती हैं जो चीन की फ़िल्मों में नहीं होतीं. परिवार, प्यार भारतीय फ़िल्मों के केंद्र में होती हैं. चीन की फ़िल्मों में मुझे ऐक्शन, स्पेशल एफ़ेक्ट्स, अजीब से प्लॉट ज़्यादा नज़र आते हैं जो मुझे समझ नहीं आते."
चियानपिन ली ने 'थ्री इडियट्स' साल 2008 में देखी.
वो कहते हैं, "मुझे लगा हमारी शिक्षा व्यवस्था भी ऐसी ही है. फिल्म देखने के बाद मुझे अपने कॉलेज की ज़िंदगी याद आ गई, जैसी ज़िंदगी मैं चाहता था लेकिन मुझे मिली नहीं."
चियानपिन को साउथ इंडियन फ़िल्में भी पसंद हैं.
चियानपिन ली कहते हैं, "मैं चाहूंगा कि चीन में लोग साउथ इंडियन फ़िल्में देखें. उनमें ऐक्शन को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जाता है, लोग आसमान में उड़ते हैं. बीच में मैंने भी फ़िल्मों में नायक की तरह रंग बिरंगे कपड़े पहनने शुरू कर दिए थे, तब मुझे लगा कि मैं कुछ ज़्यादा ही साउथ इंडियन फ़िल्में देख रहा हूँ."
चीन में स्थानीय और विदेशी फ़िल्मों का बिज़नेस करीब 50:50 बंटा हुआ है और विदेशी फ़िल्मों के लिए यहां कोटा सिस्टम है, यानि हर साल एक निश्चित संख्या की विदेशी फ़िल्में ही चीन में रिलीज़ हो सकती हैं.
विदेशी फ़िल्मों का मतलब हॉलीवुड, बॉलीवुड और दूसरे देशों का सिनेमा.
चियानपिन के मुताबिक चीन में हर साल 800-900 फ़िल्में रिलीज़ होती हैं जिनमें से 300-400 ही थिएटर तक पहुंच पाती हैं जबकि बाकि ऑनलाइन या टीवी तक सीमित रह जाती हैं या उन्हें रिलीज़ ही नहीं मिल पाती.
ज़्यादातर फ़िल्में युवाओं को ध्यान में रखकर बनाई जाती हैं, जैसे पिछले साल बनी वोल्फ़ वॉरियर 2 जिसने एक आंकड़े के मुताबिक बॉक्स ऑफ़िस पर 5.6 अरब युआन कमाए. एक युआन यानि करीब 10 रुपए होते हैं.
भारतीय फ़िल्मों का चीन मे इतिहास
चीन में घूमते हुए मुझे पता चला कि 50-55 उम्र के कई लोगों को राज कपूर की फिल्म 'आवारा' के टाइटल ट्रैक की धुन पता है. 'आवारा हूँ' को उसे कई लोग 'आबालागू' कहकर गाते हैं.
आवारा, जीतेंद्र और आशा पारेख की 'कारवां' जैसी फिल्मों की कहानी या गानों की धुन लोगों की ज़हन में कहीं मौजूद हैं.
ऐसे ही हैं ईस्टार फ़िल्म्स प्रमुख ऐलन ल्यू.
बीज़िंग के छाओयांग इलाके में उनके ऑफ़िस में पहुंचने के लिए एक बड़े से हॉल से होकर सीढ़ियों के सहारे पहले फ़्लोर पर जाना होता है.
नीचे हॉल में दीवार पर फिल्म 'सीक्रेट सुपरस्टार' का बड़ा पोस्टर लगा था.
जब ऐलन 10-11 साल के थे तब उन्होंने जो पहली फ़िल्म देखी वो हिंदी फिल्म आवारा थी. वो 1980 के दशक के शुरुआती साल थे.
वो याद करते हैं, "हर हफ़्ते मैं अपने मां-बाप के साथ एक बड़े से मैदान में फ़िल्म देखने जाता था. बीच में एक बड़ी सी स्क्रीन लगी रहती थी और हम कुर्सियों पर बैठते थे. मेरी पहली फ़िल्म आवारा थी. मेरे पिता के उम्र के लोगों को फिल्म के गाने 'आबालागू' की धुन गा सकते थे. मेरी दूसरी फ़िल्म जो मैंने बाहर देखी उसकी चीनी नाम दा पंग छू (कारवां) थी जो मुझे बहुत पसंद आई."
ऐलन बताते हैं कि 70 और 80 के दशक में चीन में कॉमर्शियल थिएटर का दौर नहीं था और ज़्यादातर लोग करीब 500 के क्षमता वाले कल्चरल थिएटरों में सिंगल स्क्रीन पर फिल्में देखते थे. विदेशी फ़िल्मों को डब किया जाता था.
जानकार बताते हैं कि राजनीतिक और अन्य कारणों से सालों भारतीय फिल्में चीन से नदारद रहीं.
जो आमिर खान की फ़िल्म 'दंगल' चीन में लेकर आए. उन्होंने पहली बार 'दंगल' फ़िल्म मुंबई में आमिर खान के घर पर देखी.
स्थानीय जड़ी-बूटी से बनी चाय की चुस्कियां लेते हुए ऐलन ने बताया, "जब दंगल खत्म हुई तो मैं रो रहा था. मुझे लगा कि ये मेरी ज़िंदगी का हिस्सा है. फ़िल्म में दिखाया गया है कि मां-बाप किस तरह बच्चों के साथ व्यवहार करते हैं. मुझे याद आया कि जब मैं छोटा था तो किस तरह मेरे मां-बाप ने मुझे नई बातें सिखाई. फ़िल्म देखने के बाद मुझे पूरा विश्वास था कि ये फ़िल्म चीन में ज़रूर चलेगी."
उम्मीद थी कि दंगल चीन में 200 मिलियन युआन (200 करोड़ रुपए) के आसपास कमाएगी जो कि किसी भारतीय फ़िल्म के लिए बड़ी बात थी. फ़िल्म ने 1.3 बिलियन युआन (13 अरब रुपए) की कमाई करके सभी को चौंका दिया.
ये तब हुआ जब चीन में एक सोच थी कि खेल या ड्रामा से जुड़ी फ़िल्में अच्छा प्रदर्शन नहीं करती लेकिन दंगल तो खेल और ड्रामें का मिश्रण थी.
साल 2015 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीन की यात्रा पर थे तो ल्यू के अनुसार चीन सरकार बेहतर रिश्तों के लिहाज़ से एक संदेश देना चाहती थी.
ऐलन ल्यू बताते हैं, "साल 2015 में हमने (चीन) सरकार के निवेदन पर भारतीय फ़िल्में लानी शुरू की. हमनें नहीं सोचा था कि थिएटर पर ये फ़िल्में कुछ खास कर पाएंगी क्योंकि ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था."
चीन में धर्म संवेदनशील विषय है, उधर फ़िल्म 'पीके' धर्म के बारे में थी.
ऐलन ल्यू बताते हैं, "हमने फ़िल्म के विषय के बजाय आमिर को प्रोमोट किया. आमिर चीन आए, उन्होंने कॉन्फ़्रेंस किए, प्रेस इंटर्व्यू दिए जिससे बाज़ार में बहुत प्रभाव हुआ. हमने सोचा था कि फ़िल्म 50 मिलियन युआन (50 करोड़ रुपए) के आसपास का व्यापार करेगी लेकिन फ़िल्म ने 100 मिलियन युआन (100 करोड़ रुपए) का व्यापार किया जो कि चीन में भारतीय सिनेमा के लिए एक रेकॉर्ड था."
पीके की सफ़लता से प्रोत्साहित होकर ऐलन बाहुबली - 1, फ़ैन, जैसी फ़िल्में चीन लेकर आए लेकिन वो नहीं चलीं. और फिर वो दंगल लेकर चीन में आए.
दंगल की रिलीज़ पर ऐलन एक टिकेटिंग ऐप पर लोगों के कमेंट्स मॉनिटर कर रहे थे.
ऐलन कहते हैं, "लोगों ने दंगल को किसी भारतीय और विदेशी फ़िल्म की तरह नहीं लिया. फिल्म के आखिर में भारतीय झंडे पर भी उन्हें कोई फ़र्क नहीं पड़ा. उस वक्त आप भारत या चीन के बारे में नहीं सोचते हैं."
दंगल के बाद सीक्रेट सुपरस्टार ने भी चीन में ज़बरदस्त बिज़नेस किया है.
चुनौतियां
चीन की फ़िल्मी जगत से जुड़े लोग बताते हैं कि चीन में भारतीय और हॉलीवुड फ़िल्मों को खरीदने का तरीका लगभग एक जैसा है. डिस्ट्रिब्यूटर को एक मिनिमम गारंटी देनी पड़ती है और कभी कभी उन्हें मुनाफ़े में भी हिस्सेदारी देनी होती है.
एक फ़िल्म खरीदार के अनुसार भारतीय फ़िल्मों की हाल की सफ़लता के कारण चीन में उन्हें लाने की कीमत हॉलीवुड फ़िल्मों से ज़्यादा हो गई है.
ऐलन ल्यू कहते हैं, "चीनी खरीदार भारत में बनने वाली सभी फ़िल्में ऊंचे दामों पर खरीद रहे हैं. मुझे इसे लेकर चिंता है. अगर आप हर तरह की फ़िल्में चीन लेकर आएंगे तो इससे भारतीय फ़िल्मों की छवि खराब होगी.
"एक डिस्ट्रीब्यूटर ने मुझे बताया कि ऐसा जर्मनी में भी हुआ था जहां भारतीय फ़िल्मों को ज़बरदस्त सफ़लता मिली लेकिन फिर सभी ने हर तरह की फ़िल्में जर्मनी में आयात करनी शुरू कर दी जिससे पूरा बाज़ार खराब हो गया. मुझे चिंता है कि ऐसा चीन में भी कहीं न हो जाए."
ऐलन आमिर की एक फ़िल्म का चीन में रीमेक कर रहे हैं और कबीर खान के साथ को-प्रोडक्शन से भी जुड़े हैं.
ऐलन कहते हैं, "चीन में हमारे पास ढेर सारी बहुत अच्छी फ़िल्में हैं जो भारतीय बाज़ारों में चल सकती हैं. मेरा अगला लक्ष्य यही होगा - चीन की फ़िल्मों को भारतीय बाज़ारों में लेकर जाना."