BBC SPECIAL: 'हर साल बेची जाती हैं 12 हज़ार नेपाली लड़कियां'
भारत और नेपाल की हज़ारों किलोमीटर लंबी सीमा पर इस तस्करी को रोकना लगभग नामुमकिन है.
नेपाल के शहर की चकाचौंध भरी ये गलियां किसी न किसी डांस बार पर जाकर ख़त्म होती हैं. यहां सूरज ढलते ही महफ़िल सजती है और सज-धजकर नाच रही लड़कियों के बीच फ़िल्मी धुनों पर लोग थिरकने लगते हैं.
रात परवान चढ़ने लगती है और इस बीच एक अन्य समूह इन डांस बारों पर पहुँचता है.
ये लोग ख़रीदार हैं जो बार में मौजूद लड़कियों की बोली लगाते हैं. सौदा तय हो जाता है और ये महफ़िल सुबह तक ऐसे ही चलती रहती है.
इसके बाद ये लड़कियां बड़े-बड़े शहरों में मौजूद डांस बार में ले जाई जाती हैं.
नेपाल के लिए लड़कियों की तस्करी कोई नई समस्या नहीं है.
2015 में आए विनाशकारी भूकंप के बाद लड़कियों की तस्करी में अचानक देखी जा रही बढ़ोतरी ने नेपाल सरकार और नेपाल पुलिस की चिंता बढ़ा दी है.
नेपाल पुलिस के प्रवक्ता मनोज नेऊपाने ने बीबीसी से बातचीत में कहा, "समस्या कितनी बड़ी है इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस साल नवंबर महीने तक नेपाल पुलिस ने 2,700 से भी ज़्यादा नेपाली लड़कियों को तस्करों और दलालों के चंगुल से छुड़वाया है."
मनोज नेऊपाने कहते हैं, "मानव तस्करी का ये जाल बहुत बड़ा है और इसके तार यहाँ से लेकर भारत और विदेशों तक फैले हुए हैं. मानव तस्करी की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए नेपाल पुलिस में हमने एक विशेष प्रकोष्ठ बनाया है. हमें सफ़लता मिल रही है. मगर उतनी नहीं."
तस्करी रोकना नामुमकिन
एक अमरीकी संस्थान के शोध के अनुसार हर साल 12,000 नेपाली लड़कियां तस्करी का शिकार हो रही हैं. रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि हर रोज़ नेपाल से 4,000 लड़कियां सीमापार कर भारत जाती हैं.
भारत और नेपाल की 1,751 किलोमीटर लंबी सीमा पर तस्करी को रोकना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है. ऐसा मानना है नेपाल-भारत की सीमा की चौकसी करने वाले सशस्त्र सीमा बल के अधिकारियों का.
उत्तर प्रदेश के गोरखपुर से लगे सोनौली बॉर्डर पर तैनात उप समादेष्टा दिलीप कुमार झा कहते हैं, "उन लड़कियों को रोकना मुश्किल है जो वयस्क हैं और अपनी मर्ज़ी से सरहद पार कर रही होती हैं. कई लड़कियां अपने सगे-सम्बन्धियों के साथ होती हैं."
दिलीप झा बताते हैं, "हमें पता है कि ये लड़कियां तस्करी का शिकार हो सकती हैं. मगर जानते हुए भी हम कुछ नहीं कर सकते क्योंकि उनके पास दस्तावेज़ सही होते हैं और वो वयस्क होती हैं. कभी जब शक पुख़्ता होता है तो हम ऐसी लड़कियों को नेपाल पुलिस के अधिकारियों या वहाँ के सामजिक संगठनों के सुपुर्द कर देते हैं. मगर ये समस्या काफ़ी बड़ी है."
ग़रीबी है वजह
नेपाल के अधिकारियों और भारत के सीमा प्रहरियों का कहना है कि मानव तस्करी का सबसे बड़ा कारण है ग़रीबी.
नेपाल के दूर-दराज़ के इलाकों में रोज़गार के संसाधन नहीं होने की वजह से बड़े पैमाने पर पलायन हो रहा है.
सुनीता दानुवर कम उम्र में ही तस्करी का शिकार हो गई थीं. उन्हें मुंबई ले जाया गया जहां उनका बलात्कार हुआ. फिर उन्हें जबरन जिस्मफरोशी के काम में धकेला गया.
मगर एक दिन उस जगह पुलिस का छापा पड़ा जहां सुनीता को रखा गया था. पुलिस ने उन्हें वहां से निकाला और वापस नेपाल भेज दिया.
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ये सिलसिला सिर्फ भारत के महानगरों तक सीमित नहीं है. सुनीता कहती हैं कि नेपाली लड़कियों को तस्करी के बाद उन्हें चीन, श्रीलंका और अरब देशों में बेचा जाता है जहां उन्हें जिस्मफ़रोशी के लिए मजबूर किया जाता है.
मगर तस्करी की पीड़ितों की विडंबना है कि वापसी के बाद उन्हें ना उनका परिवार अपनाता है और ना ही समाज.
काठमांडू में बने एक पुनर्वास केंद्र में रहने वाली एक पीड़ित नेपाली लड़की का कहना है, "मुझे अच्छी नौकरी का झांसा देकर दिल्ली ले जाया गया. मगर जब मैं वहां पहुंची तो खुद को एक छोटे से गंदे से कमरे में पाया. वहाँ पर और भी नेपाली लड़कियां थीं. मैं बेबस थी और मुझे जिस्मफ़रोशी के काम में ज़बरदस्ती झोंक दिया गया. कई महीनों के बाद मैं किसी तरह वहां से निकलकर भाग सकी."
छलावे का शिकार
नाम नहीं बताने की शर्त पर बात करने को तैयार हुई तस्करी की शिकार एक अन्य नेपाली युवती ने कहा कि वो शादी के झांसे में आ गई और होश संभाला तो खुद को जिस्मफ़रोशी की मंडी में पाया.
वो कहती हैं, "मैं जिस लड़के से प्यार करती थी उसने मुझे मुंबई में बेहतर ज़िन्दगी का भरोसा दिलाया. मैं उसके साथ दिल्ली चली गई. मगर वो मुझे उम्रदराज़ आदमी के पास छोड़कर भाग गया. उस व्यक्ति ने मेरा बलात्कार किया. फिर मैं जिस्मफ़रोशी की मंडी में फँस गई."
सुनीता दानुवर कैमरे के सामने आकर अपनी आपबीती सुनाने में हिचकिचाती नहीं हैं. बल्कि अब उन्होंने एक सामजिक संगठन बनाकर पीड़ित लड़कियों के पुनर्वास के लिए काम करना शुरू किया है. वो कहती हैं कि ये काम भी इतना आसान नहीं है.
वो बताती हैं, "शुरू में हमने पीड़ितों को प्रशिक्षण देना शुरू किया ताकि वो बाहर जाकर नौकरी कर सकें और अपनी आजीविका चला सकें. ऐसा हुआ भी. लेकिन जब लोगों को पता चला कि ये लड़कियां तस्करी का शिकार हुई थीं तो वो फायदा उठाने की कोशिश करने लगे."
"अब हम यहीं पर इनके लिए रोज़गार के मौके बढ़ाने की कोशिश पर काम कर रहे हैं."
मगर नेपाल में संसाधनों की कमी है. इसलिए इन पीड़ितों को और भी ज़्यादा संघर्ष करना पड़ रहा है.
हालांकि, कुछ एक सामाजिक संगठन इन पीड़ितों को सामान्य ज़िन्दगी में वापस लाने का प्रयास कर रहे हैं.
मगर जिस्मफ़रोशी की मंडियों में बेची गईं इन नेपाली लड़कियों की आत्मा पर लगे घाव उन्हें हमेशा तकलीफ़ देते रहेंगे.