अमेरिका के साथ मिलकर विध्वंसक परमाणु पनडुब्बी बनाएगा ऑस्ट्रेलिया, बौखलाए ड्रैगन ने कहा- दया नहीं दिखाएंगे
'ऑकस' के प्लेटफॉर्म पर घोषणा की गई है कि ऑस्ट्रेलिया एक महाविध्वंसक न्यूक्लियर पनडुब्बी का निर्माण करेगा, जिसमें अमेरिका और ब्रिटेन मदद करेगा। ऑस्ट्रेलिया का न्यूक्लियर पॉवर लैस होने को चीन के लिए 'बुरा सपना' होगा।
वॉशिंगटन, सितंबर 16: अफगानिस्तान से अमेरिका को निकलने की जल्दबाजी क्यों थी, अब इसका पता चलने लगा है। ड्रैगन की गर्दन में रस्सी बांधने के लिए अमेरिका ने काफी तेजी के साथ काम शुरू कर दिया है और प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका ने ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन के साथ मिलकर एक नया एलायंस बनाया है, जिसका मकसद सीधे तौर पर चीन को घेरना है। अमेरिका ने कहा है कि प्रशांत क्षेत्र में चीन की आक्रामकता को काबू में करने के लिए ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और ब्रिटेन के साथ एक बड़े नए गठबंधन में परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बी बेड़े का निर्माण करेगा। जो काफी ज्यादा विशालकाय और महाविध्वंसक होगा।
विशालकाय परमाणु पनडुब्बी का निर्माण
ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने गुरुवार सुबह अपने दो सबसे बड़े सहयोगी देशों, अमेरिका और ब्रिटेन की मदद से परमाणु-संचालित पनडुब्बियों पर स्विच करने के लिए एक ऐतिहासिक त्रिपक्षीय सुरक्षा समूह, जिसे 'ऑकस' के नाम से जाना जाता है, उसकी घोषणा की है और बताया है कि 'ऑकस' में ऑस्ट्रेलिया की भूमिका क्या होगी। ऑस्ट्रेलियन प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन ने एक साथ मिलकर ऐतिहासिल प्रेस कॉन्फ्रेंस की है। हालांकि, जो बाइडेन इस दौरान ऑस्ट्रेलियन प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन का नाम भूल गये। और फिर प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान काफी अजीब माहौल बन गया था। बाइडेन ने ब्रिटिश प्रधानमंत्री का तो नाम लिया, लेकिन वो ऑस्ट्रेलियन प्रधानमंत्री का नाम भूल गये।
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एक प्लेटफॉर्म पर ऑस्ट्रेलिया-यूएस-ब्रिटेन
'ऑकस' के प्लेटफॉर्म पर घोषणा की गई है कि ऑस्ट्रेलिया एक महाविध्वंसक न्यूक्लियर पनडुब्बी का निर्माण करेगा, जिसमें अमेरिका और ब्रिटेन मदद करेगा। इस घोषणा का मतलब है कि अब ऑस्ट्रेलिया 90 अरब डॉलर की लागत से बनने वाले विवादित फ्रांसीसी पनडुब्बी सौदा को नहीं करेगा। ऑस्ट्रेलिया के अंदर इस सौदे को लेकर काफी विवाद हो रहा था। दशकों की बहस के बाद यह पहली बार है जब ऑस्ट्रेलिया ने परमाणु शक्ति को अपनाया है, और पहली बार अमेरिका और ब्रिटेन ने अपनी परमाणु पनडुब्बी टेक्नोलॉजी को किसी अन्य देश के साथ साझा किया है। 'ऑकस' तीनों सहयोगियों को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, अंडरवाटर सिस्टम और लंबी दूरी की स्ट्राइक क्षमताओं में लेटेस्ट तकनीक साझा करने की भी अनुमति देगा।
न्यूक्लियर पॉवर पर ऑस्ट्रेलिया का बयान
आपको बता दें कि ऑस्ट्रेलिया में परमाणु ऊर्जा को लेकर काफी विवाद हैं। लिहाजा किसी भी विवाद से बचने के लिए ऑस्ट्रेलियन प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने कहा है कि ऑस्ट्रेलिया जिस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल न्यूक्लियर पडुब्बी बनाने के लिए करने जा रहा है, उसका इस्तेमाल वो किसी भी सूरत में घरेलू इस्तेमाल नहीं करेगा। यानि वो बिजली ग्रिड को ईंधन देने में मदद करने के लिए परमाणु ऊर्जा का उपयोग नहीं करेगा। ऑस्ट्रेलिया के पास दुनिया की यूरेनियम आपूर्ति का कम से कम 40 प्रतिशत है और नई पनडुब्बी सौदा देश के लिए कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए परमाणु ऊर्जा को अपनाने का मार्ग खोल सकता है।
चीन के लिए है बुरा सपना
ऑस्ट्रेलिया का न्यूक्लियर पॉवर लैस होने को चीन के लिए 'बुरा सपना' बताया जा रहा है। विशेष रूप से दक्षिण चीन सागर में अपना प्रभाव स्थापित करने के लिए रणनीतिक तौर पर ये न्यूक्लियर पनडुब्बी 'चीन का सबसे बुरा सपना' साबित होगा। ऑस्ट्रेलियन प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने कहा कि, 'हमारी दुनिया और अधिक जटिल होती जा रही है, खासकर यहां हमारे इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में। यह हम सभी को प्रभावित करता है। इंडो-पैसिफिक का भविष्य हम सभी के आगे के भविष्य को प्रभावित करेगा''। उन्होंने कहा कि, '''इन चुनौतियों का सामना करने के लिए, हमारे क्षेत्र को सुरक्षा और स्थिरता प्रदान करने में मदद करने के लिए, हमें अब अपनी साझेदारी को एक नए स्तर पर ले जाना चाहिए। इसलिए AUKUS का जन्म हुआ है''। 'ऑकस' एक साझेदारी है, जहां हमारी तकनीक, हमारे वैज्ञानिक, हमारे उद्योग, हमारे रक्षा बल, सभी एक सुरक्षित और ज्यादा शांत क्षेत्र प्रदान करने के लिए मिलकर काम कर रहे हैं, जिसका मकसद सभी के लिए लाभ को सुनिश्चित करना है''।
18 महीने में बनेगा न्यूक्लियर पनडुब्बी
ऑस्ट्रेलियन प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने कहा कि पनडुब्बियों को अगले 18 महीनों में विकसित किया जाएगा और अमेरिका और ब्रिटेन के सहयोग से एडिलेड में बनाया जाएगा। अधिकारियों ने कहा है कि ये पनडुब्बी ऑस्ट्रेलिया के मौजूदा बेड़े की तुलना में शांत होगा, लेकिन काफी ज्यादा विध्वंसक होगा। जो चीन के किसी भी संभावित खतरे को मुंहतोड़ जवाब देने में काबिल होगा। हालांकि, गुरुवार की घोषणा में न तो ऑस्ट्रेलियाई नेता और ना ही ब्रिटिश पीएम और ना ही जो बाइडेन ने चीन का कोई जिक्र किया। वहीं, ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने इस परियोजना को 'दुनिया में सबसे जटिल और तकनीकी रूप से जरूरी मांग' के तौर पर इसे वर्णित किया। उन्होंने कहा कि ये न्यूक्लियर पनडुब्बी कऊ दशक तक चलेगा। आपको बता दें कि 'ऑकस' की बैठक के बाद अब क्वाड की बैठक होना है, जिसमें हिस्सा लेने के लिए भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और जापान के पीएम भी अमेरिका जा रहे हैं।
आग बबूला हुआ ड्रैगन
ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और ब्रिटेन के बीच बने नये तीन-तरफा सुरक्षा गठबंधन पर हस्ताक्षर करने और परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बियों के निर्माण की कसम खाने के बाद चीन ने उग्र प्रतिक्रिया व्यक्त की है। चीन के वाशिंगटन डीसी दूतावास के प्रवक्ता लियू पेंग्यु ने 20वीं सदी में अमेरिका और सोवियत संघ के बीच गतिरोध के संदर्भ में देशों पर चीन के प्रति 'शीत युद्ध की मानसिकता' अपनाने का आरोप लगाया। चीन की तरफ से कहा गया है कि दुनिया के देशों को किसी तीसरे देश के हितों को नुकसान पहुंचाने वाले या बहिष्कार करने वाले ब्लॉकों का निर्माण नहीं करना चाहिए। चीन ने कहा है कि 'इन देशों को शीत-युद्ध मानसिकता और वैचारिक पूर्वाग्रह को दूर करना चाहिए।'
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