आने वाले समय में और भीषण होगी ऑस्ट्रेलियाई जंगलों में आग, जानिए कारण
बेंगलुरु। ऑस्ट्रेलिया के न्यू साउथ व्हेल्स और क्वीन्सलैंड के जंगलों में भयंकर आग लगी हुई है। आग तेज़ी से बेकाबू हो रही है, जिसे काबू में करने के लिये सेना की मदद ली जा रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस हफ्ते के अंत तक स्थिति और भी गंभीर हो सकती है। जंगलों में लगी आग अब तक दो राज्यों में करीब 10 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में फैल चुकी है। यानी अगर 100 किलोमीटर की भुजा का एक वर्ग बनायें, तो जितना क्षेत्रफल आयेगा, उतने क्षेत्र में आग लगी हुई है। जरा सोचिये क्या इसके पीछे जलवायु परिवर्तन भी एक कारण हो सकता है? जी हां जरूर। यह हम नहीं, तमाम देशों के वैज्ञानिक कह रहे हैं।
सबसे पहले बात करते हैं ऑस्ट्रेलियाई मौसम विभाग की, जिसने अपनी ताज़ा रिपोर्ट में कहा है कि आने वाले समय में ऐसी घटनाएं और बढ़ने की आशंका है, क्योंकि गर्मी का मौसम बढ़ रहा है और जाड़े में होने वाली बारिश कम होती जा रही है। अनुमान है कि अगले सोमवार तक पूरे देश में कहीं भी बारिश नहीं होगी।
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आपको बता दें कि दो राज्यों के जंगलों में फैली आग इतनी भयावह है कि ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने सिडनी में कैटेस्ट्रॉफिक फायर वॉर्निग जारी कर दी है। ऑस्ट्रेलिया के अब तक के इतिहास में जंगलों में लगी यह सबसे भयावह आग है।
जलवायु परिवर्तन से क्या है कनेक्शन
ऑस्ट्रेलिया में पिछले कई वर्षों में जंगलों में आग लगने का खतरा लगातार बढ़ता जा रहा है। खास कर दक्षिण-पूर्वी इलाकों में। ऑस्ट्रेलिया के मौसम विभाग के अनुसार पूरा महाद्वीप तेज़ी से गर्म हो रहा है, जिसके चलते हीटवेव यानी तेज़ गर्म हवाएं चलने का सिलसिला बढ़ गया है। इसकी वजह से जंगलों में आग लगने का खतरा और बढ़ जाता है। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण जलवायु पविर्तन है। सितंबर 2019 में एक रिसर्च प्रकाशित हुआ, जिसमें कहा गया कि एंथ्रोपोजेनिक क्लाइमेट चेंज के कारण तापमान बढ़ रहा है और इसकी वजह से बारिश आगे बढ़ गई है।
वहीं 2016 में ऑस्ट्रेलियाई जंगलों में लगी आग भी भयावह रही। ऑस्ट्रेलिया में पिछले कुछ वर्षों में या कहिये कुछ महीनों में स्थिति और खराब हो गई है। पिछले 34 महीने अब तक के सबसे सूखे माह रहे। यानी बारिश नहीं हुई। अगर हुई भी तो वो भी पर्याप्त नहीं। ऑस्ट्रेलिया के कई इलाकों में पिछले तीन वर्षों में जाड़े के मौसम में होने वाली बारिश औसत से आधी हो गई है। दक्षिणी ऑस्ट्रेलिया के लिये अक्टूबर 2019 सबसे गर्म अक्टूबर रहा। वहीं तापमान की बात करें तो जनवरी 2019 देश में अब तक का सबसे गर्म महीना रहा। जहां सबसे ज्यादा गर्मी न्यू साउथ व्हेल्स में पड़ी।
सरकार से नाराज़गी
इंसानों की गतिविधियों के कारण जिस तरह से ऑस्ट्रेलिया में आग का खतरा बढ़ रहा है उस पर सरकार भी मानो बात नहीं करना चाहती। जब-जब पर्यावरणविदों ने इस पर चर्चा करनी चाही, तब-तब सरकार पीछे हट गई। ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने जब इस आग का क्लाइमेट चेंज से ताल्लुक होने से इंकार किया, तो उन्हें तीखी टिप्पणियों का समाना करना पड़ा।
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ऑस्ट्रेलियाई काउंसिलर कैरल स्पार्क्स ने पिछले हफ्ते अपने एक बयान में कहा, "कई दशकों से वैज्ञानिक कहते आ रहे हैं कि बढ़ता तापमान, सूखा मौसम, अत्याधिक खनन और जरूरत से अधिक सिंचाई ही जंगलों में आग लगने के प्रमुख कारण हैं। इसके बावजूद सरकार ने अनदेखी की और अंतत: हमें मिली तो केवल राख।"
कोयले का सबसे बड़ा निर्यातक है ऑस्ट्रेलिया
आपको बता दें कि ऑस्ट्रेलिया दुनिया का सबसे बड़ा कोयला निर्यातक है। साथ ही यहां कोयले का प्रयोग भी बहुत अधिक मात्रा में होता है। एक तरफ ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिये पेरिस एग्रीमेंट सभी देशों से कोयले के प्रयोग को कम करने की अपील कर रहा है। वहीं दूसरी ओर ऑस्ट्रेलिया आने वाले वर्षों में कोयले के निर्यात को दुगना और लिक्वीफाइड नेचुरल गैस (एलएनजी) के निर्यात को तीन गुना बढ़ाने की तैयारी में जुटा हुआ है। जरा सोचिये अगर कोयले का खनन और निर्यात बढ़ा, तो ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन भी उतनी ही रफ्तार से बढ़ेगा। यानी कुल मिलाकर ऑस्ट्रेलियाई सरकार की यह नीति देश को आर्थिक संकट में डाल सकती है, क्योंकि सरकार के पास कोयले के निर्यात का कोई विकल्प नहीं है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
ऑस्ट्रेलिया के शोध संगठन क्लाइमेट एनालिटिक्स के सीईओ डा. बिल हेयर का कहना है कि ऑस्ट्रेलियाई जंगलों में आग और जलवायु परिवर्तन का एक मजबूत कनेक्शन है। भविष्य में आग की घटनाओं को कम करने का एक ही रास्ता है, वो है उत्सर्जन को नियंत्रण में करना। वहीं क्लाइमेट काउंसिल की सीईओ अमांडा मैककेंज़ी का कहना है कि अगर ठोस कदम नहीं उठाये गये, तो अभी तो ठंड के मौसम में हम भयावह आग देख रहे हैं, आने वाले समय यानी गर्मियां इससे भी ज्यादा भयावह हाेंगी।