नज़रियाः पाकिस्तान की आर्थिक तंगहाली के लिए कौन ज़िम्मेदार है?
इस दुष्चक्र को तोड़ पाना न तो आसान है और न ही आने वाले कुछ समयों में ऐसा होता दिख रहा है. आज जो पूरा सिस्टम दिख रहा है उसे मज़बूत करने में वर्षों लगेंगे. इसी प्रकार देश की समृद्ध करने का वादा करने वाले नए सिस्टम भी स्थापित करने में सालों लगेंगे.
बड़े पैमाने पर परिवर्तन के लिए, जिसे हम सभी ने बहुत ग़लत तरीके से केवल कुछ महीनों में देखने की उम्मीदें पाली थीं, ज़मीन स्तर पर कोशिशों की ज़रूरत है.
जुलाई 2018 में हुए चुनावों के बाद देश को जादुई तरीके से समृद्धि की राह पर लाने की उम्मीदें चूर चूर हो गई हैं क्योंकि पाकिस्तान को चालू खाते और बजटीय घाटे का सामना करना पड़ रहा है, विदेशी कर्ज़ लगातर बढ़ रहा है, मुद्रा का अवमूल्यन हो रहा है, निवेशकों के आत्मविश्वास में तेज़ी से कमी आ रही है और सरकार बेहद ग़रीबी की स्थिति में है.
2013 में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़) के 6.6 बिलियन डॉलर के सबसे हालिया बेलआउट पैकेज के महज 5 साल बाद, पाकिस्तान एक बार फिर 12 बिलियन डॉलर के बेलआउट पैकेज के लिए आईएमएफ़ से संपर्क किया है.
2013 के कर्ज़ का बकाया अभी बदस्तूर बना हुआ है और वर्तमान आर्थिक स्थिति के मद्देनज़र पाकिस्तान ऐसे बिंदु पर है जहां से स्थिति को सुधारना एक बड़ी समस्या हो सकती है.
क्या बेलआउट पैकेज समस्या का समाधान है, यह वो प्रश्न है जिसका फ़िलहाल कोई जवाब मौजूद नहीं है.
ऐसी कई चीज़ें हैं जो हमारी वर्तमान आर्थिक स्थिति के लिए गिनाई जा सकती हैं.
तेल की कीमतों में लगातार वृद्धि हो रही है और पाकिस्तान का आयात बिल लगातार बढ़ता जा रहा है. दशकों से पाकिस्तान कपड़े और सस्ते उत्पादों का निर्यात कर रहा है जबकि एनर्ज़ी, मशीनरी और अन्य उपभोक्ता वस्तुओं को आयात कर रहा है. इसने पाकिस्तान के चालू खाते को घाटे में डाल दिया है.
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पाकिस्तानी की बिगड़ती आर्थिक स्थिति
चीन जैसी विदेशी संस्थाओं पर बहुत अधिक निर्भरता ने पाकिस्तान को आर्थिक रूप से कमज़ोर बना दिया है. इसका नतीजा यह हुआ है कि पाकिस्तान के पास अपने आयात बिलों का भुगतान करने के लिए कोई विदेशी जमा पूंजी शेष नहीं बची है.
आख़िरकार पाकिस्तानी रुपये की विदेशी मुद्रा बाज़ार में कोई कीमत नहीं रह गई है. अक्तूबर से रुपया बहुत तेज़ी से गिरा है.
आर्थिक तस्वीर को ध्यान में रखते हुए, यह कहना व्यर्थ है कि पाकिस्तान में निवेशकों का विश्वास अपने न्यूनतम स्तर पर है. अप्रत्याशित राजनीतिक परिदृश्य, मिला-जुला राजनीतिक स्वरूप और प्रतिकूल आर्थिक स्थिति निवेशकों के आगे लाल झंडा लिए खड़ा है. कोई भी अपनी जमा पूंजी को जोखिम में लगाने का इच्छुक नहीं है.
नतीजतन, व्यापक बेहतर बुनियादी ढांचा, नए रोज़गार और विकास, जैसा कि एक नए बिजनेस के आने से होता है, ये सब पाकिस्तान में नहीं हो रहे.
कौन है ज़िम्मेदार?
सरकार को लगातार तंगी का सामना क्यों करना पड़ रहा है, अब यह रहस्य नहीं है. पाकिस्तान में एक अनुकूल, पारदर्शी और कुशल टैक्स प्रणाली की अनुपस्थिति से यह हुआ है कि टैक्स कलेक्शन सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी का लगभग 10 फ़ीसदी ही है.
टैक्स कलेक्शन में कमी और लुढ़कते टैक्स तंत्र का मतलब है कि लगने वाले टैक्स की आंच आम आदमी पर ही पड़ रही है.
अमीर सीधे तौर पर टैक्स से बच निकलते हैं और उन्हें कभी ज़िम्मेदार भी नहीं ठहराया जाता. चरम पर भ्रष्टाचार ने भी राजस्व के गिरावट में अपना योगदान दिया है.
पाकिस्तान जैसे देश जहां अत्यधिक आबादी के बीच सामाजिक सुरक्षा का नितांत अभाव है, टैक्स के जरिए केवल 10 फ़ीसदी का आना सरकार की सार्वजनिक परियोजनाओं के लिए पैसे इकट्ठा करने में एक बड़ी बाधा है.
यह ये भी बताता है कि सरकार क्यों ग़रीब है और साथ ही कि इसकी वित्तीय निर्भरता बाहरी स्रोतों पर क्यों बढ़ रही है.
पाकिस्तान को क्या करना होगा?
इस दुष्चक्र को तोड़ पाना न तो आसान है और न ही आने वाले कुछ समयों में ऐसा होता दिख रहा है. आज जो पूरा सिस्टम दिख रहा है उसे मज़बूत करने में वर्षों लगेंगे. इसी प्रकार देश की समृद्ध करने का वादा करने वाले नए सिस्टम भी स्थापित करने में सालों लगेंगे.
बड़े पैमाने पर परिवर्तन के लिए, जिसे हम सभी ने बहुत ग़लत तरीके से केवल कुछ महीनों में देखने की उम्मीदें पाली थीं, ज़मीन स्तर पर कोशिशों की ज़रूरत है.
बढ़ते उपभोक्तावाद और अप्रभावी टैक्स प्रणाली की समस्याओं से निजात पाना पाकिस्तान के लिए फिलहाल बेहद ज़रूरी है.
इस अवस्था में चीन के साथ अपने समझौतों की समीक्षा करना भी महत्वपूर्ण है, इस तथ्य पर विचार करते हुए कि आईएमएफ़ पाकिस्तान के लिए कर्ज़ की बारीकी से निगरानी कर रहा है और वो उसके कर्ज़ में पूरी पारदर्शिता और साफ़ साफ़ जानकारी चाहता है.
पाकिस्तान के लिए अगला कदम यह भी हो सकता है कि वो एक क्लोज्ड इकॉनमी (जिसमें आयात-निर्यात नहीं होते) की तरह काम करे. घरेलू उद्योग पर भरोसा करना स्थानीय उत्पादकों को प्रोत्साहित करेगा, रोज़गार सृजन का काम करेगा और आयात बोझ कम करने में मददगार होगा.
इसके नकारात्मक पहलू सीमित विकल्प और निम्न क्वालिटी के उत्पाद होंगे लेकिन यदि पाकिस्तान इसे लंबे समय तक चलाए रखे तो उसके दूरगामी प्रभावशाली फायदे हैं.
अन्य उपाय जो नई सरकार कर सकती है कि वो अनावश्यक सरकारी नियंत्रणों और नियमों को हटा कर अर्थव्यवस्था की सफ़ाई करे और आर्थिक निकायों को अधिकार दे कि वो डेटा और सबूतों के आधार पर व्यवस्थित दृष्टिकोण अपनाए.
सवाल यह है कि क्या आईएमएफ़ के बेलआउट पैकेज से पाकिस्तान को आर्थिक संकट से उबरने में मदद मिलेगी.
यह पाकिस्तान के सामने अपनी आर्थिक स्थिति को लेकर सतर्क हो जाने का संकेत भी हो सकता है ताकि वो इस पर त्वरित कार्रवाई करे क्योंकि इससे देश आर्थिक परेशानी में और गहरा उतर सकता है.
(लेखक पाकिस्तान के लाहौर में आर्थिक अनुसंधान केंद्र के लिए काम करते हैं. उन्होंने पाकिस्तान माइक्रोफाइनेंस नेटवर्क के लिए बतौर सोशल एसोसिएट और चिल्ड्रन ग्लोबल नेटवर्क- पाकिस्तान के लिए काम किया है.)
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