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नज़रिया: क्या भारत पर मनोवैज्ञानिक बढ़त बनाना चाहता है चीन?

मालदीव में राजनीतिक अस्थिरता के बीच हिंद महासागर में चीनी युद्धपोत के अभ्यास की ख़बर सामने आई.

हालांकि, इस कथित ड्रिल से बड़ी बात ये है कि इसमें मनोवैज्ञानिक बढ़त हासिल करने की कोशिश दिखती है.

चीन ने ये ड्रिल दक्षिणी चीन सागर में शुरू की थी. इसका मक़सद अमरीका को काउंटर करना था.

By BBC News हिन्दी
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चीन के एक युद्धपोत की फ़ाइल फ़ोटो
Getty Images/AFP
चीन के एक युद्धपोत की फ़ाइल फ़ोटो

मालदीव में राजनीतिक अस्थिरता के बीच हिंद महासागर में चीनी युद्धपोत के अभ्यास की ख़बर सामने आई.

हालांकि, इस कथित ड्रिल से बड़ी बात ये है कि इसमें मनोवैज्ञानिक बढ़त हासिल करने की कोशिश दिखती है.

चीन ने ये ड्रिल दक्षिणी चीन सागर में शुरू की थी. इसका मक़सद अमरीका को काउंटर करना था. ये अभ्यास जनवरी में शुरू हुआ था. उस वक्त मालदीव का संकट सामने नहीं आया था. ये अभ्यास फिलीपीन्स के आसपास हुआ था.

फिलीपीन्स के विपक्ष ने ये कहते हुए अभ्यास का विरोध किया था कि ड्रिल के बहाने चीन कब्ज़ा करना चाहता है. चीन के जहाज़ ऑस्ट्रेलिया के पानी को छूते हुए वापस लौटे. वापस लौटते समय उन्हें पूर्वी हिंद महासागर का छोटा सा हिस्सा पार करना पड़ा. ये जगह मालदीव से बहुत दूर है.

लेकिन इसे लेकर चीन के मीडिया ने ये ख़बर दी कि अब पहली बार हिंद महासागर में चीन का युद्धपोत पहुंच गया है. लेकिन इसका मक़सद क्या है, उसे समझना होगा.

चीन के युद्धपोत की तस्वीर
Getty Images/AFP
चीन के युद्धपोत की तस्वीर

सच क्या है?

मालदीव के विपक्षी नेताओं ने बार-बार कहा कि वो चाहते हैं कि भारत सेना भेजकर उनके देश में लोकतंत्र को बचाए. चीन के विदेश मंत्रालय ने खुलकर इस मांग का विरोध किया था.

भारत अगर हस्तक्षेप करता तो चीन माले में जो प्रभाव बना रहा है, वो कम हो जाता. उसी क्रम में चीन के मीडिया ने ये बताने की कोशिश की कि भारत को काउंटर करने के लिए चीन ने हिंद महासागर में अपना जहाज़ भेज दिया है.

लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं हुआ है. युद्धपोत मालदीव से बहुत दूर था. लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि चीन आगे कभी हिंद महासागर में नहीं आएगा.

भारत के रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता का जो बयान आया है, उसमें कहा गया है कि भारत को पता है कि हिंद महासागर में क्या हो रहा है. उस पर हमारी नज़र है. यानी भारत इससे बहुत ज़्यादा विचलित नहीं है.

चीनी युद्धपोत
Getty Images
चीनी युद्धपोत

लेकिन जैसा (पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार) शिवशंकर मेनन ने दो दिन पहले कहा कि चीन की प्रगति के बारे में हमें ये मानकर चलना है कि हम सुपरपावर के साथ डील कर रहे हैं. आपको ये मानकर चलना है कि अगर आज वो हिंद महासागर में नहीं आए हैं तो कल आएंगे. श्रीलंका, मालदीव और मॉरिशस के करीब आएंगे. अगर नहीं आए तो उसका दूसरा कारण है हिंद महासागर में अमरीका की दमदार उपस्थिति.

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मालदीव को लेकर क्या है रुख़

मालदीव के राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन ने आपातकाल को एक महीने के लिए बढ़ा दिया है. इससे दो बात साफ़ होती हैं. पहली ये कि मालदीव के राष्ट्रपति ने तय कर लिया है कि वो चीन के समर्थन से ज़िंदा रहेंगे.

दूसरी बात ये है कि मालदीव में विपक्ष इतना कमज़ोर नहीं है. वहां राष्ट्रपति इतना डर रहे हैं कि आपातकाल को बढ़ा रहे हैं. ये साफ़ ज़ाहिर है कि लोगों में उनके प्रति गुस्सा है और लोग चाहते हैं कि भारत की सेना हस्तक्षेप करे.

भारत ऐसा नहीं करेगा और इसकी वजह ये है कि फिर चीन को आसपास के सभी देशों में दख़ल देने का मौका मिलेगा.

मालदीव के मौजूदा राष्ट्रपति पर भारत का असर नहीं है. मालदीव का दौरा करने वाले अमरीकी पत्रकारों ने मुझे बताया है कि चीन की कंस्ट्रक्शन कंपनियों ने मालदीव में राजनीति, नौकरशाही और व्यापारिक क्षेत्र की आला हस्तियों को मकान बनाकर दिए हैं. वो शानदार गुणवत्ता और सुविधाओं वाले मकान हैं. भारत ऐसा नहीं करता है. भारत दूसरे देशों के साथ व्यापार बढ़ाता है और दूसरे समझौते करता है लेकिन पूरा शहर बनाकर देने का काम नहीं करता. ये न भारत की विदेश नीति है और न ही संसद इतने ख़र्च की अनुमति देगी.

भारत को उद्योग जगत से भी मदद नहीं मिलती है. चीन की कंपनियां खुलकर विदेश मंत्रालय की मदद करती हैं.

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शिप की प्रतीकात्मक तस्वीर
Getty Images
शिप की प्रतीकात्मक तस्वीर

श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति राजपक्षे को चुनाव में जीत दिलाने के लिए चीन ने वहां स्टेडियम बनवाया था. चीन की ये क्षमता है कि वो किसी भी देश के उच्च वर्ग में लालच पैदा कर देता है.

आप इंडोनेशिया जाएं, मलेशिया जाएं या फिर थाईलैंड, श्रीलंका या बांग्लादेश. पूरे क्षेत्र में भारतीय संस्कृति से लेकर फ़िल्मों तक के लिए सम्मान का भाव है. पूरे एशिया में भारत की इज़्ज़त है. ये शायद सिर्फ़ हमारे राजनयिकों को पता नहीं है. बाकी सभी को इसकी जानकारी है. भारत ने अपने सांस्कृतिक रिश्तों को मज़बूत करने की कोशिश नहीं की. नेपाल तक भारत के हाथ से चला गया.

इसकी वजह ये है कि मंत्री हों या फिर नौकरशाह सभी तकनीकी तौर पर काम करते हैं. रिश्ते बनाने की कोशिश नहीं की जाती है.

भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने पहली बार प्रवासी भारतीयों से रिश्ते बनाने की कोशिश की लेकिन उसमें भी ज़ोर व्यावसायिक रिश्तों पर है. सांस्कृतिक संबंधों की डोर अलग ही है.

(बीबीसी संवाददाता वात्सल्य राय से बातचीत पर आधारित. ये उनके निजी विचार हैं.)

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English summary
Attitude Does China want to make a psychological edge on India
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