इस्लामिक स्टेट के ये क़ैदी क्या पश्चिम के लिए टाइम बम हैं?
इस्लामिक स्टेट के हज़ारों लड़ाके और उनके परिवार के लोग बेहद बुरी हालत में सीरिया में कैंपों में रह रहे हैं.
इस्लामिक स्टेट की हार के बाद पकड़े गए हज़ारों हारे हुए लड़ाके सीरिया की जेलों में बंद हैं जहाँ आवश्यकता से अधिक क़ैदी हैं. अब यहां हालात ख़राब होते जा रहे है, दंगे, फ़साद और लड़ाई-झगड़े आम बात हो गए हैं.
इस्लामिक स्टेट ने इन लड़ाकों, इनकी बीवियों और बच्चों को आज़ाद करने की क़सम खाई है. वहीं मानव तस्करों के गैंग भी सक्रिय हैं जो रिपोर्टों के मुताबिक रिश्वत देकर किसी तरह रिहाइयां करा रहे हैं.
इसी महीने ब्रिटेन की एक अदालत ने अपने फ़ैसले में कहा है कि ब्रिटेन में पैदा हुईं और सीरिया से लौटी स्कूली छात्रा शमीमा बेग़म अपनी नागरिकता वापस पाने की क़ानूनी लड़ाई ब्रिटेन में रहकर लड़ सकती है. अदालत के इस क़दम ने भी इस्लामिक स्टेट के लड़ाकों के मुद्दे को हवा दी है.
हाल ही में ब्रितानी मूल के इस्लामिक स्टेट लड़ाके कुर्द हिरासत में मौत हो गई थी.
मार्च 2019 में जब इस्लामिक स्टेट की स्वघोषित ख़िलाफ़त का अंतिम हिस्सा बाग़ूज़ भी उसके हाथों से निकल गया तो उसके दसियों हज़ार सदस्यों की धरपकड़ की गई और उन्हें सीरियाई कुर्दों के नियंत्रण वाले कैंपों में डाल दिया गया.
आलोचक कहते हैं कि ये 'अधूरा छूट गया काम है' जो दुनिया की सुरक्षा के लिए बड़ा ख़तरा साबित हो सकता है.
इसी महीने प्रकाशित हुई किंग्स कॉलेज लंदन के डिफेंस स्टडीज़ विभाग की रिसर्च में चेताया गया है कि किसी तरह से हिरासत से भाग रहे इस्लामिक स्टेट के लड़ाके दुनिया के दूसरे हिस्सों में एकजुट हो रहे हैं और अब इस्लामिक स्टेट के फिर से समूह बनाने का ख़तरा बढ़ गया है.
ब्रिटेन की संसदीय सुरक्षा समिति के चेयरमैन और सांसद टोबियाज़ एलवुड कहते हैं, 'अगर हम इस्लामिक स्टेट को हराने के लिए प्रतिबद्ध हैं तो इसका मतलब ये नहीं है कि हवाई अभियान ख़त्म होने के बाद हम बोरिया बिस्तर बांध लें.'
'सीरिया और इराक़ में दसियों हज़ार लड़ाके, कट्टरपंथी, उनसे हमदर्दी रखने वाले और उनके परिवार हैं. और हमें ये फ़ैसला लेना है कि हम दाएश (इस्लामिक स्टेट) को पूरी तरह ख़त्म करना चाहते हैं या नहीं. अन्यथा उनकी विचारधारा ज़िंदा रहेगी और वो फिर से सिर उठा सकते हैं.'
लड़ाकों की औलादें
2014-2019 के बीच दुनियाभर से चालीस हज़ार के क़रीब जेहादियों ने सीरिया और इराक़ का रुख किया था और इस्लामिक स्टेट से जुड़े थे. अनुमानों के मुताबिक इनमें से 10-20 हज़ार विदेशी लड़ाके ज़िंदा बचे होंगे जो अब या तो जेलों में हैं या फरार हैं.
कुछ पड़ोसी देश इराक़ की अदालतों में पेश भी हुए हैं. लेकिन अधिकतर बेहद ख़राब हालात में कैंपों में बंद हैं और इस्लामिक स्टेट ने इन्हें, जिनमें औरतें भी शामिल हैं, रिहा कराने की क़सम खाई है. इन औरतों को इस्लामिक स्टेट 'पवित्र औरतें' और 'खिलाफ़त की दुल्हनें' कहता है.
संयुक्त राष्ट्र ने इसी साल अनुमान लगाया था कि कुर्द संचालित कैंपों में विदेशी लड़ाकों के क़रीब आठ हज़ार बच्चे बंद हैं. इनमें से 700 के क़रीब बच्चे यूरोप के देशों, जिनमें ब्रिटेन भी शामिल है, से आए लड़ाकों के हैं. यूरोपीय देश अभी तक इन बच्चों को स्वीकार करने में आनाकानी करते रहे हैं.
महिलाएं
हिंसक चरमपंथ के शोध के लिए संस्थान चला रहीं एने स्पेकहार्ड ने बीते तीन सालों में दो सौ जेहादियों और उनके परिवारों के साक्षात्कार किए हैं.
उन्होंने उत्तरी सीरिया में अल-होल जैसे कैंपों का दौरा भी किया है. वो बताती हैं कि इन कैंपों की हालत बेहद ख़राब है और यहां से हर सप्ताह कोई न कोई भागने की कोशिश करता ही है.
यहां रह रही बहुत सी महिलाओं ने इस्लामिक स्टेट से संबंध ख़त्म कर लिया है लेकि वो अब भी बदला लिए जाने के डर के साये में जी रही हैं.
वो बताती हैं कि इन कैंपों में 'इस्लामिक स्टेट की विचारधारा थोपने वाली महिलाएं भी हैं और ये महिलाओं दूसरी महिलाओं की हत्या तक कर देती हैं. वो दूसरी महिलाओं के टेंटों को आग लगा देती हैं. वो पत्थर फेंकती हैं और अपने बच्चों को भी दूसरों पर पत्थर फेंकना ही सिखाती हैं.'
तो क्या ये माना जाए कि इन कैंपों में रह रहे इस्लामिक स्टेट के लड़ाकों के परिवार कट्टर जेहादी हैं? एनी कहती हैं कि ऐसा नहीं है, बहुत से परिवारों ने चुपचाप अपनी विचारधारा बदल ली है लेकिन वो इस्लामिक स्टेट की महिला लड़ाकों के डर में रहती हैं. उन्हें डर रहता है कि कहीं ये महिलाएं उन पर हमला न कर दें.
इस्लामिक स्टेट की तथाकथित ख़िलाफ़त में ये महिलाएं हिस्बाह समूह से जुड़ीं थीं. ये इस्लामिक स्टेट की महिला मोरल पुलिस थी जो लोगों को सख़्त सज़ाएं देती थी. आज भले ही ये महिलाएं कैंपों में क़ैद हों, लेकिन इन्होंने यहां भी अपने आप को संगठित कर लिया है और ये वही काम कर रही हैं जो ये इस्लामिक स्टेट के समय किया करती थीं.
एनी स्पेकहार्ड कहती हैं कि अपने शोध के दौरान वो महिलाओं से उनकी कहानियां भी पूछ रही हैं लेकिन डर की वजह से बहुत सी महिलाएं अपनी ख़ामोशी तोड़ने में हिचकती हैं. उन्हें डर सताए रहता है कि कहीं वो हमले का शिकार न हो जाएं.
'ऐसे में बच्चे डर और अवसाद में जी रहे हैं. पहले उन्हें इस्लामिक स्टेट का डर था, अब वो इन कैंपों में डर और दहशत में रह रहे हैं.'
रूस के उत्तरी कॉकस क्षेत्र से भी बड़ी तादाद में लड़ाके तथाकथित इस्लामिक स्टेट गए थे. रूस एक ऐसा देश है जो अपने नागरिकों के बीवी-बच्चों को वापस ले रहा है.
सेंट पीटर्सवर्ग के कंफ्लिक्ट एनेलिसिस एंड प्रीवेंशन सेंटर की निदेशक इकैटेरीना सोकीरियांसकाया कहती हैं, 'राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन ने लड़ाकों की बीवियों और बच्चों को वापस लाने के विचार का समर्थन किया है.'
'उन्होंने ये स्पष्ट कहा था कि बच्चों को उनके अभिभवकों के किए कामों के लिए ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है और उन्हें युद्ध क्षेत्र में नहीं छोड़ा जा सकता है.'
अगर इस्लामिक स्टेट के लावारिस जेहादियों के मुद्दे को समझा जाए तो इसके तीन पक्ष हैं, क़ानूनी, मानवीय और सुरक्षा से जुड़ा.
यदि क़ानूनी नज़रिए से देखा जाए तो, हज़ारों लोगों को, ख़ासकर जिनमें बच्चे हों, अनिश्चितकाल के लिए ऐसे कैंपों में छोड़ दिए जाने को सही नहीं ठहराया जा सकता है.
बहुत से जेहादी, जिनमें लड़ाके और उनके परिवार वाले भी शामिल हैं, का कहना है कि वो वापस अपने देश लौटकर अदालत में पेश होना चाहते हैं और अगर जेल जाना पड़े तो वो जाना चाहते हैं.
समस्या ये है कि पश्चिमी देशों की सरकारों को उन्हें वापस अपने देश लाने में डर है कि ये क़दम स्थानीय आबादी को स्वीकार नहीं होगा और इसके परिणाम हो सकते हैं. ख़ासकर यदि अदालतों में उन्हें दोषी साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं हुए तो उन्हें रिहा करना पड़ेगा.
उन्हें इस बात की भी चिंता है कि इसका पहले से ही क्षमता से ज़्यादा क़ैदी संभाल रही जेलों पर इसके प्रभाव हो सकते हैं. सीरिया और इराक़ में सालों तक लड़ने वाले कट्टरपंथी विचारधारा के लोगों को अगर जेल में डाला गया तो क्या होगा, ये डर भी सरकारों को सता रहा है.
अगर इसके मानवीय पक्ष के देखों तो राहत एजेंसियां सरकारों की तीखी आलोचना कर रहीं हैं. कैंपों के अमानवीय हालातों को लेकर सरकारों से सवाल पूछे जा रहे हैं.
एक बड़ी आबादी पर घोर अत्याचार करने वाले, लोगों को ग़ुलाम बनाने वाले, महिलाओं-बच्चियों का बलात्कार करने वाले इन मौत के सौदागरों के प्रति दुनिया के किसी कोने में कोई सहानुभूति शायद ही हो.
लेकिन पश्चिमी देशों ने मध्य पूर्व को लेकर कोई भी नैतिक अधिकार तब खो दिया था जब अमरीका ने सैकड़ों लोगों को बिना किसी न्याय प्रक्रिया के इराक़ से ले जाकर क्यूबा में नौसेना के अड्डे ग्वांतानामो बे में बंद कर दिया था.
यूरोपीय देशों के लिए, जिन्होंने स्वयं ग्वांटेनामो बे की आलोचना की थी, अब अपने लावारिस नागरिकों की समस्याओं को सिर्फ़ इसलिए नज़र अंदाज़ कर देना क्योंकि ये बहुत मुश्किल काम है, उन पर दोगला होने के आरोप के लिए जगह बना देता है.
अंत में, इस पूरी समस्या का सुरक्षा पहलू भी है. अंत में सरकारों को ये निर्णय करना है कि क्या ज़्यादा ख़तरनाक है- इन नागरिकों को वापस लाना और न्याय का सामना करवाना या फिर उन्हें वहीं छोड़ देना.
अब तक सीरिया से 400 ब्रितानी वापस लौटे हैं और उन्होंने कोई बड़ा सुरक्षा ख़तरा खड़ा नहीं किया है.
लेकिन इनमें अधिकतर वो लोग हैं जो सीरिया में विद्रोह के शुरुआती दिनों में वहां गए थे.
आज ब्रिटेन की आंतरिक सुरक्षा एजेंसी एमआई15 और पुलिस को चिंता है कि कैंपों में रह रहे लोगों में से कुछ अधिक कट्टरवादी हैं क्योंकि वो सालों तक हिंसा में शामिल रहे हैं या हिंसा देखते रहे हैं.
रूसी जानकार कैटरीना सोकीरियांसकाया की अपनी चिंताएं हैं. वो कहती हैं,"हम इसके मानवीय पक्ष पर कोई बात ही नहीं कर रहे हैं. भविष्य में उठने वाले किसी भी जेहादी कट्टरवादी अभियान को रोकने के लिए इस समस्या का समाधान करना ज़रूरी है क्योंकि हम यहां उनके बेहद चरमपंथी परिस्थितियों में कैंपों में पलने-बढ़ने की बात कर रहे हैं."
ब्रितानी गृह मंत्रालय का कहना है कि वो अपराध के संदिग्धों को इराक़ या सीरिया में क़ानून का सामना करते हुए देखना चाहते हैं.
अब आगे क्या?
क्या ये संभव है कि पुरुष लड़ाकों को वहीं छोड़कर महिलाओं और बच्चों को वापस ले आया जाए? एना स्पेकहार्ड मानती हैं कि ऐसा किया जा सकता है.
वो कहती हैं, 'ऐसी बहुत सी महिलाएं हैं जिन्हें अगर अदालत में पेश किया जाए तो उन्हें सज़ा में माफ़ी मिल सकती है. अगर वो जेल भी जाती हैं तो उनके बच्चे उनसे मुलाक़ाते कर सकेंगे. कम से कम वो सीरिया में यातना तो नहीं झेल रही होंगी.'
'सबसे अच्छा तो ये है कि माओं और बच्चों को वापस लाया जाए. लेकिन अगर ये मुश्किल हो तो फिर कम से कम बच्चों को तो वापस लाया ही जाए.'
दोनों ही बातों से, ये तो स्पष्ट है कि मौजूदा हालात को अनिश्चिकाल तक ऐसे ही नहीं रहने दिया जा सकता.
सीरियाई कुर्द, जिन्होंने इस्लामिक स्टेट को हराने में मदद की, और जो अब कैंपों की सुरक्षा कर रहे हैं, उनके अपनी समस्याएं भी हैं.
राष्ट्रपति ट्रंप के अपने सैन्य बलों को वापस बुला लिए जाने के बाद कुर्दों पर अब आगे बढ़ रहे तुर्क बलों के हमले का ख़तरा है.
वहीं इन लड़ाकों को लेकर कुर्दों का पक्ष स्पष्ट है. उनका कहना है, 'ये सभी इस्लामिक स्टेट बंदी यूरोपीय देशों से आए हैं. हम लंबे समय तक इनकी रक्षा नहीं कर सकते हैं. आपको इन्हें वापस लेना ही होगा.'