नजरियाः भारत और वियतनाम की क़रीबी, चीन को इशारा
शनिवार को नई दिल्ली में भारत और वियतनाम के बीच परमाणु सहयोग बढ़ाने समेत तीन समझौतों पर हस्ताक्षर हुए.
भारत दौरे पर आए वियतनाम के राष्ट्रपति त्राण दाई क्वांग और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच रक्षा, तेल, गैस और कृषि समेत कई क्षेत्रों में द्विपक्षीय सहयोग बढ़ाने पर भी सहमति बनी.
बैठक के बाद संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा,
शनिवार को नई दिल्ली में भारत और वियतनाम के बीच परमाणु सहयोग बढ़ाने समेत तीन समझौतों पर हस्ताक्षर हुए.
भारत दौरे पर आए वियतनाम के राष्ट्रपति त्राण दाई क्वांग और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच रक्षा, तेल, गैस और कृषि समेत कई क्षेत्रों में द्विपक्षीय सहयोग बढ़ाने पर भी सहमति बनी.
बैठक के बाद संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, "हम इंडो-पैसिफ़िक क्षेत्र को स्वतंत्र और संपन्न बनाने के लिए संयुक्त प्रयास करेंगे, जहां पर अंतरराष्ट्रीय कानूनों का सम्मान हो और मतभेदों को आपसी वार्ता से सुलझाया जा सके."
भारत और वियतनाम के बीच हुए ये समझौते कितने अहमियत रखते हैं और संयुक्त बयान में अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों के सम्मान पर ज़ोर देने के मायने क्या हैं, जानने के लिए बीबीसी संवाददाता आदर्श राठौर ने रक्षा मामलों के विशेषज्ञ उदय भास्कर से बात की. पढ़ें उनका नज़रिया:
चीन की तरफ़ इशारा
ये समझौते भारत और वियतनाम के द्विपक्षीय रिश्तों के लिए बहुत अहमियत रखते हैं. दोनों ने राजनीतिक, सामरिक, आर्थिक और ऊर्जा से जुड़े पहलुओं पर समझौते किए हैं. साथ ही उन्होंने कुछ सिद्धांतों को भी रेखांकित किया है.
ख़ास बात, इन्होंने अंतरराष्ट्रीय कानूनों के सम्मान पर जो ज़ोर दिया है. दरअसल वह चीन की तरफ़ इशारा है.
वियतनाम के पास साउथ चाइना सी में हालात गंभीर हैं, लेकिन उथल-पुथल कम दिख रही है. यहां पर चीन ने कृत्रिम द्वीप भी बनाया है, जिसे लेकर वियतनाम आपत्ति उठाता रहा है. ऐसे में इन बातों को देखते हुए यह एक संकेत है कि भारत और वियतनाम अपने-अपने दायरे में रहते हुए अंतरराष्ट्रीय सिद्धांतों को अहमियत देते हैं.
लेकिन देखना यह होगा कि जून-जुलाई में जब दस आसियान देशों के रक्षा मंत्रियों की बैठक होगी, तो वे देश भी इन सिद्धांतों को समर्थन देने के लिए तैयार होंगे या नहीं.
भारत को क्या लाभ?
हर द्विपक्षीय रिश्ता अपने आप में अहम होता है, भले ही देश बड़ा हो या छोटा. वैसे भी भारत इस समय एशिया महाद्वीप में अपनी विश्वसनीयता बढ़ाना चाहता है, इसलिए हर द्विपक्षीय रिश्ते को अहमियत दे रहा है.
भारत और वियतनाम के बीच द्विपक्षीय संबंध ऐतिहासिक हैं और उस समय से हैं, जब इंदिरा गांधी यहां प्रधानमंत्री थीं. उस समय शीत युद्ध के सामरिक कारणों से यह संबंध रहा है. लेकिन शीतयुद्ध ख़त्म होने के बाद काफ़ी कुछ बदल गया है.
आज उत्तर और दक्षिण वियतनाम फिर से एक ही देश बन गया है और कम्युनिस्ट पार्टी वहां सत्ता में है. वियतनाम की राजनीति भी बदली है और उसने चीन के साथ अपने संबंधों को काफ़ी बेहतर बनाया है. बावजूद इसके वियतनाम को भी चिंता होती है.
चीन के साथ वियतनाम का व्यापार भारत से कई गुना ज़्यादा है और तीनों देश इस बात को जानते हैं. इसके बावजूद वियतनाम ने भारत के साथ इस तरह का संयुक्त बयान जारी किया और सिद्धांतों की बात की.