अमरीकाः चांद पर खुदाई क्यों करवाना चाहते हैं राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप
डोनल्ड ट्रंप चाहते हैं कि अमरीका चांद पर खुदाई का काम शुरू करे. ज़ाहिर है कि अमरीका की नज़र चांद पर मौजूद खनिज पदार्थ पर है. अमरीकी राष्ट्रपति ने हाल ही में एक एग़्जिक्यूटिव ऑर्डर पर दस्तख़त किए हैं जिसमें ये कहा गया है कि अमरीका को अंतरिक्ष में उपलब्ध संसाधनों को तलाशने और उसके इस्तेमाल का हक़ है. आदेश में ये भी कहा गया है कि अमरीका अंतरिक्ष को
डोनल्ड ट्रंप चाहते हैं कि अमरीका चांद पर खुदाई का काम शुरू करे. ज़ाहिर है कि अमरीका की नज़र चांद पर मौजूद खनिज पदार्थ पर है.
अमरीकी राष्ट्रपति ने हाल ही में एक एग़्जिक्यूटिव ऑर्डर पर दस्तख़त किए हैं जिसमें ये कहा गया है कि अमरीका को अंतरिक्ष में उपलब्ध संसाधनों को तलाशने और उसके इस्तेमाल का हक़ है.
आदेश में ये भी कहा गया है कि अमरीका अंतरिक्ष को संसाधनों के साझे इस्तेमाल की जगह के तौर पर नहीं देखता है और ऐसा करने के लिए किसी अंतरराष्ट्रीय समझौते की इजाज़त लेने की ज़रूरत भी नहीं समझता है.
लेकिन सवाल ये उठता है कि अमरीका अंतरिक्ष में खनन क्यों करना चाहता है? और इसके क्या फ़ायदे हो सकते हैं?
रेडियो वन न्यूज़बीट ने इस सिलसिले में कई विशेषज्ञों से बात करके इससे जुड़े सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश की है.
'पृश्वी के बाहर जीवन'
पेशे से स्पेस जर्नलिस्ट साराह क्रुड्डास कहती हैं, "चंद्रमा के खनन से इंसान को अंतरिक्ष में और आगे जाने में मदद मिलेगी. इंसान मंगल तक भी जा सकता है."
"चंद्रमा आकाशगंगा में एक पेट्रोल स्टेशन का काम कर सकता है क्योंकि इसके पास रॉकेट फ़्यूल के ज़रूरी संसाधन जैसे हाइड्रोजन और ऑक्सिजन उपलब्ध हैं."
अंतरिक्ष में फ़्यूल स्टेशन होने का मतलब हुआ कि रॉकेट अंतरिक्ष में ईंधन की चिंता किए बग़ैर और आगे तक जा सकेंगे.
साराह कहती हैं, "जब आप छुट्टियों पर जाते हैं तो किचन सिंक लेकर नहीं जाते हैं. ये कुछ वैसा ही है. जब हम अंतरिक्ष जाते हैं तो हमें हर चीज़ साथ लेकर जाने की ज़रूरत नहीं पड़नी चाहिए."
"गहराई से तलाश करना बेहद अहम हैं क्योंकि अंतरिक्ष में बहुत संभावनाएं हैं और उनके दोहन से हमारी पृथ्वी को फ़ायदा हो सकता है."
जलवायु परिवर्तन की समस्या
यूनिवर्सिटी ऑफ़ ससेक्स में ऊर्जा नीति विभाग के प्रोफ़ेसर बेंजामिन सोवाकूल कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन की वजह से दुनिया ऊर्जा के ग़ैर-पारंपरिक स्रोतों की तरफ़ रुख़ कर रही है और उसे अंतरिक्ष में उपलब्ध इन संसाधनों की ज़रूरत है.
प्रोफ़ेसर बेंजामिन का कहना है, "हमारे पास जो संसाधन उपलब्ध हैं, हमने उसे लगभग ख़त्म कर दिया है. अंतरिक्ष में उपलब्ध खनिज पदार्थों का खनन करके हम इलेक्ट्रिक कारें बना सकते हैं. ये लंबे समय में हमारे पर्यावरण के लिए अच्छा होगा."
"हमें लीथियम और कोबाल्ट जैसे खनिजों की ज़रूरत पड़ती है. ये चीन, रूस या फिर कांगो जैसे देशों में मुख्यतः पाया जाता है. इसे हासिल करना मुश्किल भी है. दुनिया भर के अलग-अलग आपूर्तिकर्ता देशों से खनिजों की आपूर्ति सुनिश्चित करना एक जटिल काम है. इन देशों के अलग-अलग नियम क़ायदे हैं. चंद्रमा पर किसी एक ताक़त का खनन करना मुमकिन है कि ज़्यादा आसान हो."
सारा बताती हैं कि इन खनिज पदार्थों का कांगो जैसी जगहों पर खनन बेहद खौफ़नाक़ परिस्थितियों में होता है.
हालांकि प्रोफ़ेसर बेंजामिन इस बात को लेकर आगाह भी करते हैं कि अंतरिक्ष में खनन से धरती के जलवायु परिवर्तन की समस्या का कोई फौरी हल नहीं निकलने वाला है.
अमरीका-चीन तनाव
चांद पर खनन करने के राष्ट्रपति ट्रंप के फ़ैसले की एक वजह तो ये हो सकती है कि दुनिया के दूसरे देशों के बनिस्बत खनिज पदार्थों तक अमरीका की पहुंच कम है.
प्रोफ़ेसर बेंजामिन कहते हैं, "अमरीका इस रेस में पिछड़ चुका है. चीन और रूस जैसे देश आगे हैं. चीन में जिन खनिज पदार्थों का खनन हो रहा है, वे दुनिया भर में उपलब्ध हैं. राष्ट्रपति ट्रंप जैसे लोगों के लिए ये वाकई लुभाने वाली बात है कि आप वहां से खनिज पदार्थ हासिल कर रहे हैं, जहां चीन नहीं है, जैसे कि अंतरिक्ष."
राष्ट्रपति ट्रंप जब से सत्ता में आए हैं, अमरीका और चीन के बीच तभी से तनाव की स्थिति बनी हुई है.
प्रोफ़ेसर बेंजामिन की राय में ये राष्ट्रपति ट्रंप के लिए अपने प्रभुत्व और नेतृत्व को जतलाने का एक मौक़ा है.
क़ानून क्या कहता है?
राष्ट्रपति ट्रंप के आदेश में ये स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि अंतरिक्ष में की जा रही अमरीकी कोशिशों पर अंतरराष्ट्रीय क़ानून नहीं लागू होंगे.
लेकिन सच तो ये है कि अंतरिक्ष के बाहर इंसान क्या कर सकता है और क्या नहीं, इसे लेकर क़ानूनी स्थिति बहुत स्पष्ट नहीं है.
सारा कहती हैं, "स्पेस लॉ का विकास हो रहा है. ये कुछ ऐसा है जो समय के साथ बदलेगा. कोई देश चांद पर अपना दावा नहीं कर सकता है लेकिन इसकी मौजूदा स्थिति मैरीटाइम लॉ (समंदर में लागू होने वाले क़ानून) की तरह है. अगर आप वहां जाते हैं, कुछ तलाशते हैं, खनन करते हैं तो ये आपका है और आप इसे अपने पास रख सकते हैं."
प्रोफ़ेसर बेंजामिन कहते हैं, "अंतरिक्ष पर हमारी नज़र एक ऐसी चीज़ है जिसे ज़्यादा देर टाला नहीं जा सकता है क्योंकि हमारी पृथ्वी पर जलवायु परिवर्तन हो रहा है."
"एक दलील तो लोग ये भी देते हैं कि जाने के लिए अब केवल अंतरिक्ष ही बचा रह गया है क्योंकि हमने धरती पर आख़िरकार सबकुछ गड़बड़ कर दिया है. इस नज़रिये के तहत भविष्य के इंसानों के लिए अंतरिक्ष का दोहन ही अब एकमात्र विकल्प रह गया है."
क्या ये हमारे जीवनकाल में मुमकिन है?
सारा कहती हैं, "टेक्नॉलॉजी मौजूद है और तेज़ी से प्रोग्रेस भी हो रहा है. क्योंकि कई प्राइवेट कंपनियां अब इसमें शामिल हैं. पहले तो केवल सरकारें ही इसमें पैसा लगाती थीं लेकिन प्राइवेट कंपनियों और लोगों की बदौलत अब ज़्यादा पैसा और बड़ी महत्वाकांक्षाएं इससे जुड़ा हुआ है."
"हम आने वाले समय में बड़ी प्रगति देख सकेंगे. जैसे कि चंद्रमा और क्षुद्रग्रहों पर खनन, मंगल पर इंसान का जाना. ये बातें हमारे जीवनकाल में ही साकार होने वाली हैं."
लेकिन प्रोफ़ेसर बेंजामिन कहते हैं कि धरती पर इस समय खनन की जो प्रक्रिया है, उसमें भी नई तकनीकी का इस्तेमाल उतना ही अहम है.
वे कहते हैं, "चंद्रमा पर खनन का काम दूर की कौड़ी है. इसे हासिल करना वाकई मुश्किल है. इसलिए पहले तो हमें मौजूदा खनन को ही और विकसित करना होगा जैसे कि गैस और गहरे पानी में खुदाई. इसके बाद हम अगले चरण में जा सकते हैं."
प्रोफ़ेसर बेंजामिन की राय में चंद्रमा पर खनन में अभी कम से कम 10 से 15 साल लगेंगे और वो भी इस बात पर निर्भर करेगा कि इसमें कितना पैसा और संसाधन खर्च होगा.