अमरीका: ट्रंप सरकार का नया आदेश भारतीय छात्रों के लिए कितनी बड़ी आफ़त?
नए आदेश के तहत अमरीका ने ऑनलाइन पढ़ाई करने वाले अंतरराष्ट्रीय छात्रों को अपने वतन लौटने को कहा है.
अमरीका की सरकार ने उन सभी छात्रों के वीज़ा रद्द करने का निर्णय किया है, जिनके शैक्षणिक कोर्स पूरी तरह से ऑनलाइन हो चुके हैं. इसकी वजह से अमरीका में रह रहे विदेशी छात्र हैरान-परेशान हैं.
अमरीकी आप्रवासन के इस नए नियम के अनुसार, "इस समय अमरीका में मौजूद छात्र, जिनके कोर्स पूरी तरह से ऑनलाइन हो चुके हैं, उन्हें या तो देश छोड़कर जाना होगा या फिर किसी ऐसे कोर्स में एडमिशन लेना होगा, जो पूरी तरह से ऑनलाइन नहीं हैं और जिनके लिए कक्षाओं में जाना अनिवार्य है."
इस नए नियम के कारण एफ़-1 और एम-1 श्रेणी का वीज़ा लेकर अमरीका जाने वाले छात्रों पर बुरा असर होगा. विदेशी छात्र अमरीका में किसी विषय की पढ़ाई कर रहे हैं या कोई वोकेशनल कोर्स कर रहे हैं- सब पर ये नियम लागू होगा.
नया नियम यह चेतावनी भी देता है कि 'अगर सरकारी निर्देश का अनुपालन नहीं किया गया तो छात्रों को निर्वासित किया जा सकता है.' अमरीका में सरकार के इस फ़ैसले की व्यापक आलोचना हो रही है.
स्थानीय मीडिया में प्रकाशित एक विश्लेषण के अनुसार, 'अमरीका में उच्च शिक्षा की थोड़ी बहुत जानकारी रखने वाला भी यह जानता होगा कि जुलाई के मध्य में किसी छात्र का ऐसे कोर्स में अपना ट्रांसफ़र करवाना, जिनमें कक्षाएँ अनिवार्य हों, बिल्कुल असंभव है.'
दरअसल अमरीका के इमिग्रेशन एंड कस्टम्स एनफ़ोर्समेंट (आईसीई) विभाग ने छात्रों को यह सुझाव दिया था कि 'अमरीका में मौजूद छात्रों को रेगुलर क्लास वाले कोर्स में ट्रांसफ़र लेने के बारे में सोचना चाहिए.'
Having foreign students on US campuses is a great way to make non-Americans pro-American. It is also a great way to introduce them to our ideals & persuade them to stay or take those ideals home. We seem now to be intent on turning them away & against us https://t.co/adJF2q70gr
— Richard N. Haass (@RichardHaass) July 6, 2020
सरकार के इस निर्णय पर काउंसिल ऑफ़ फ़ॉरेन रिलेशंस के अध्यक्ष रिचर्ड हास ने ट्वीट किया है, "अमरीकी विश्वविद्यालयों में विदेशी छात्रों को आने देना, ग़ैर-अमरीकियों को अमरीका समर्थक बनाने का एक अच्छा तरीक़ा माना गया है. लेकिन अब हम उन्हें अपने से दूर कर रहे हैं और अपना विरोधी बना रहे हैं."
व्हाइट हाउस की वेबसाइट पर एक ऑनलाइन याचिका डाली गई है. जिसमें आईसीई से अपना फ़ैसला वापस लेने की अपील करते हुए लोगों ने लिखा है कि 'महामारी के बीच अंतरराष्ट्रीय छात्रों को वापस उनके देश लौटने के लिए मजबूर ना किया जाए.'
हार्वर्ड विश्वविद्यालय ने हाल ही में घोषणा की है कि वो अपने पाठ्यक्रम को साल 2020-21 के लिए पूरी तरह से ऑनलाइन कर रहे हैं. स्थानीय मीडिया के मुताबिक़ विश्वविद्यालय के अध्यक्ष लैरी बेको ने भी इस पर गहरी चिंता व्यक्त की है.
कितने छात्रों पर सरकार के इस फ़ैसले का असर होगा, इस बारे में कोई आधिकारिक सूचना अब तक नहीं दी गई है.
भारत और चीन के छात्रों पर प्रभाव!
अमरीका में भारत और चीन के छात्रों की बड़ी संख्या है. डेटा के अनुसार, साल 2018-19 में लगभग 10 लाख अंतरराष्ट्रीय छात्र अमरीका पहुँचे थे जिनमें से क़रीब तीन लाख 72 हज़ार छात्र चीन और क़रीब दो लाख छात्र भारत से थे.
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से सामाजिक मानवशास्त्र में पीएचडी कर रहीं अपर्णा गोपालन ने कहा, "बहुत तनाव है, भ्रम की स्थिति है. हर कोई पूछ रहा है कि क्या वे इससे प्रभावित होंगे. लोग नहीं जानते. यहाँ सब छात्र एक दूसरे से पूछ रहे हैं, अपने शिक्षकों से पूछ रहे हैं."
पाकिस्तानी छात्र सईद अली साउथ फ़्लोरिडा यूनिवर्सिटी में पढ़ रहे हैं. उनका कहना है, "अपने दोस्तों, परिवार और देश को छोड़कर यहाँ पढ़ने आना ताकि अपने सपनों को पूरा कर सकूं, पहले ही कम मुश्किल नहीं था. आईसीई के इस निर्णय ने मेरा दिल तोड़ दिया है. इतनी मुश्किलों से यहाँ तक पहुँचने की मेरी सारी मेहनत इससे बर्बाद हो सकती है."
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पाकिस्तान में लाहौर के रहने वाला मोहम्मद इहाब रसूल फ़्लोरिडा यूनिवर्सिटी से कम्युनिकेशन का कोर्स कर रहे हैं.
वो कहते हैं, "लोगों में बहुत तनाव है क्योंकि उन्हें नहीं पता कि वो कितने दिन और यहाँ पर हैं. और अगर आईसीई को लगता है कि घर से क्लास लेना आसान है, तो वो ग़लत है."
रसूल कहते हैं, "हमारे देश और अमरीका में समय का अंतर है. फिर वहाँ इंटरनेट की दिक्कत है. पाकिस्तान में तो बिजली जाने की समस्या भी बड़ी है. साथ ही महामारी से हर जगह तनाव है. ऐसे में घर लौट जाने से हमारा बहुत नुकसान होगा."
रसूल के भाई और उनकी बहन भी अमरीका में छात्र हैं.
अमरीका में बहुत से लोगों का यह भी मानना है कि 'ट्रंप प्रशासन इस नए निर्णय के ज़रिए महामारी का फ़ायदा उठाते हुए, अमरीका में विदेशी लोगों की एंट्री को सीमित करने के अपने लक्ष्य की ओर बढ़ना चाहता है.'
अमरीका में कोरोना वायरस संक्रमण से अब तक एक लाख तीस हज़ार से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है और अमरीका के कई राज्यों में संक्रमण के मामले एक बार फिर तेज़ी से बढ़ रहे हैं.
'निर्णय चीन को परेशान करने के लिए'
पिछले महीने ही राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कुछ ग्रीन कार्डों पर रोक लगा दी थी और विदेशी श्रमिकों के ग़ैर-अप्रवासी एच-1बी, जे-1 और एल वीज़ा को 2020 के अंत तक टाल दिया था.
ट्रंप प्रशासन के इस रवैए के बारे में आप्रवासन से जुड़े मामलों के वकील सायरस मेहता कहते हैं, "ये ज़ेनोफ़ोबिया यानी विदेशी लोगों को ना पसंद करने वाली सोच है. इसके पीछे कोई आर्थिक तर्क नहीं है."
जबकि एक अन्य वकील मैथ्यू कोलकेन का विश्वास है कि 'ट्रंप प्रशासन ने चीनी सरकार की आँखों में चुभन पैदा करने के लिए यह क़दम उठाया है.'
पिछले कुछ महीनों में अमरीका और चीन के बीच संबंध बहुत तेज़ी से बिगड़े हैं.
अंतरराष्ट्रीय मीडिया में प्रकाशित रिपोर्ट्स के अनुसार, ट्रंप प्रशासन के छात्र वीज़ा से संबंधित इस क़दम से चीन में काफ़ी ग़ुस्सा है.
कई अमरीकी शिक्षण संस्थानों ने कोरोना संक्रमण के डर से मार्च-अप्रैल में ही ऑनलाइन पढ़ाई कराने का निर्णय कर लिया था.
वकील सायरस मेहता बताते हैं, "आमतौर पर, ऑनलाइन कोर्स अंतरराष्ट्रीय छात्रों के लिए वर्जित होते हैं. देखा गया है कि अंतरराष्ट्रीय छात्र किसी ऐसे कॉलेज के लिए आवेदन नहीं कर सकते जहाँ सिर्फ़ ऑनलाइन पढ़ाई होती है."
लेकिन कोविड-19 महामारी की वजह से आईसीई द्वारा संचालित स्टूडेंट एंड एक्सचेंज विज़िटर प्रोग्राम के तहत पहले विदेशी छात्रों को यह अनुमति दी गई थी कि वे 2020 की गर्मियों तक होने वाली कक्षाएँ, अमरीका में रहते हुए ऑनलाइन ले सकते हैं.
अब ऐसे समय में, जब अमरीका से अंतरराष्ट्रीय उड़ानें शुरू नहीं हुई हैं और कुछ अमरीकी राज्यों में कोरोना संक्रमण तेज़ी से बढ़ा है, ट्रंप प्रशासन के 'रुख़ में आए इस बदलाव' ने बहुतों को हैरान कर दिया है.
छात्रों के साथ-साथ शिक्षण संस्थानों पर भी असर
ट्रंप प्रशासन का यह आदेश उन लोगों को प्रभावित करने वाला है जिन्हें पहले ही वीज़ा जारी किया जा चुका है, जो पहले से ही अमरीका में हैं, एक रेगुलर कोर्स में दाख़िला ले चुके हैं और अपने सेमेस्टर की पढ़ाई शुरू होने का इंतज़ार कर रहे थे.
मैथ्यू कोलकेन कहते हैं, "मुझे लगता है कि यह विश्वविद्यालयों और छात्रों से भी अधिक स्थानीय समुदायों को प्रभावित करने वाला निर्णय है."
मैथ्यू का कहना है कि 'इससे लोगों को मिलने वाला किराया कम हो जाएगा और छोटे व्यवसायों के मालिक जो छात्रों पर निर्भर होते हैं उनकी आय भी कम हो जाएगी.'
विश्लेषकों का कहना है कि इस आदेश से अमरीकी शिक्षण संस्थानों को भी चोट पहुँचेगी.
सायरस मेहता इसे समझाने की कोशिश करते हैं. वो कहते हैं, "सभी अमरीकी विश्वविद्यालय अपने कैंपस में अंतरराष्ट्रीय छात्रों को पसंद करते हैं और इसकी बड़ी वजह है कि ये छात्र पूरी ट्यूशन फ़ीस का भुगतान करते हैं. और जब विश्वविद्यालय अमरीकी छात्रों को लेते हैं, तो उन्हें फ़ीस में छूट देनी पड़ती है. फ़ीस के रूप में ज़्यादा पैसा हासिल करने के लिए अधिकांश अमरीकी विश्वविद्यालय अंतरराष्ट्रीय छात्रों पर निर्भर हैं."
एक अनुमान के मुताबिक़, अमरीकी कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाले अंतरराष्ट्रीय छात्रों ने शैक्षणिक वर्ष 2018-19 में क़रीब 41 अरब अमरीकी डॉलर का योगदान किया था और अमरीकी अर्थव्यवस्था को 4 लाख 58 हज़ार से ज़्यादा नौकरियाँ पैदा करने में मदद की थी.
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ये स्थिति अमरीका से बाहर के छात्रों के लिए भी एक नया मोड़ है.
ब्राउन यूनिवर्सिटी की छात्रा और बांग्लादेश से वास्ता रखने वाली श्वेता मजूमदार कहती हैं, "जो लोग हाइब्रिड मॉडल के स्कूल में हैं, अमरीका से बाहर हैं, उन्हें भी तो कक्षाएँ लेने के लिए अमरीका आना होगा."
हाइब्रिड मॉडल से उनका मतलब किसी ऐसे कोर्स से है जिसके लिए छात्रों को कुछ कक्षाएं ऑनलाइन लेनी होती हैं और बाकी के लिए उन्हें कैंपस जाना होता है.
'क्लास में जाना अब मजबूरी'
श्वेता इस बार गर्मियों की छुट्टियों में इस डर से अपने घर नहीं गईं कि महामारी की वजह से कहीं उन्हें वापस ही ना आने दिया जाए.
जबकि ब्राउन यूनिवर्सिटी में उनकी भारतीय दोस्त अंचिता दासगुप्ता महामारी को देखते हुए अपने घर, कोलकाता लौट गई थीं.
कोलकाता में मौजूद अंचिता ने बीबीसी से बातचीत में कहा, "नए आदेश के अनुसार वो हमसे चाहते है कि हम अगर हाइब्रिड मॉडल में भी हैं तो भी हम कम से कम रोज़ एक क्लास कॉलेज में लें. यानी अगर मैं अमरीका पहुँच भी जाऊँ, तो हमें अपने हॉस्टल में रहकर ऑनलाइन क्लास करने नहीं दिया जाएगा. हमें क्लास में जाना ही होगा जो मेरे लिए चिंता की बात है."
उन्होंने कहा, "मैं अमरीका में अपने कई ऐसे दोस्तों को जानती हूँ जो प्रतिबंधों का पालन नहीं कर रहे, ख़ासकर युवा लोग. अगर मैं अमरीका लौटती हूँ और उनके संपर्क में आती हूँ तो यह मेरे लिए ख़तरनाक साबित हो सकता है. अब मेरे पास विकल्प बचता है कि मैं एक सेमेस्टर ख़राब करूँ और छह महीने बाद अपना कोर्स पूरा करूँ जो अमरीका जैसे महंगे देश में रहकर पढ़ाई करने के लिहाज़ से बहुत से लोगों के लिए वाक़ई मुश्किल होगा."
अंचिता ट्रंप प्रशासन के इस निर्णय से काफ़ी नाराज़ हैं. वो कहती हैं, "वो चाहते हैं कि हम दो में से एक चीज़ चुनें - या तो अपनी सेहत को या फिर कोर्स ड्रॉप कर दें. अगर ब्राउन यूनिवर्सिटी हाइब्रिड मॉडल का पालन करती है तो हमें लौटना ही होगा क्योंकि हमारे पास अब ऑनलाइन क्लास लेने का विकल्प नहीं है."
अंचिता जैसे बहुत से छात्रों के लिए इन विकल्पों में से एक को चुनना वाक़ई मुश्किल है.
विशेषज्ञों का कहना है कि नए आदेश का उल्लंघन करने पर किसी छात्र को हिरासत में भी लिया जा सकता है, और अगर ऐसा होता है तो उस छात्र को ज़बरन वापस भेजे जाने का कलंक और भविष्य में अमरीकी में प्रवेश ना मिलने का ख़तरा भी मोल लेना पड़ सकता है.
वीज़ा से संबंधित इस आदेश की संवैधानिकता को अदालत में चुनौती दी जा सकती है, लेकिन वकील मैथ्यू कोलकेन को लगता है कि 'इससे फ़ायदा नहीं होगा.'
मैथ्यू कोलकेन कहते हैं, "ट्रंप प्रशासन के इस निर्णय से जो बड़ा संदेश निकलकर आ रहा है, वो ये है कि अमरीका में मिलने वाले अवसरों पर किसी अन्य देश के नागरिकों से ज़्यादा हक़ अमरीकी नागरिकों का है."