यूएन ह्यूमन राइट्स को 'पाखंड' बताकर अमेरिका ने तोड़ा नाता, ट्रंप के इन 4 फैसलों ने पूरे विश्व को किया हैरान
वॉशिंगटन। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने डेढ़ साल के कार्यकाल में कई कठोर निर्णय लिए हैं, जो ना सिर्फ अमेरिका के लिए बल्कि पूरे विश्व बिरादरी के लिए किसी हैरानी से कम नहीं है। ट्रंप प्रशासन के विवादस्पद फैसलों में पेरिस जलवायु समझौता से नाता तोड़ना, येरुशलम को इजरायली राजधानी के रूप में मान्यता देना, ईरान के साथ परमाणु समझौता को खत्म करना और अब संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) से बाहर होने का ऐलान करके पूरी दुनिया के हैरानी में डाल दिया है। यूएन में अमेरिकी राजदूत निक्की हेली ने यह कहते हुए UNHRC से नाता तोड़ दिया कि यह परिषद ना सिर्फ 'पाखंडी' है, बल्कि 'मानवाधिकारों का मजाक भी उड़ाती है'। UNHRC के चीफ जैद राद अल-हुसैन ने कहा कि अमेरिका के इस फैसले से अगर आपको हैरानी नहीं हो रही है, तो बहुत ही 'निराशाजनक' है। 2006 में यह सोचकर UNHRC की स्थापना की गई थी कि यह परिषद दुनिया में मानव के हितों के लिए आवाज उठाएगी और उनके अधिकारों की रक्षा करेगी, जिसका अमेरिका ने धज्जियां उड़ा दी है।
UNHRC पर बरसी निक्की हेली
हालांकि, यह पहली बार नहीं है जब UNHRC और अमेरिका के बीच टकराव देखने को मिला है। इससे पहले बुश (जॉर्ज डब्ल्यू बुश) प्रशासन ने भी इस काउंसिल का यह कहते हुए बहिष्कार कर दिया था कि यह ना सिर्फ 'पाखंड' है, बल्कि नागरिकों के अधिकारों का सही ढंग से सम्मान भी नहीं करती है। लेकिन, ओबामा प्रशासन ने आते ही 2009 में फिर से इस काउंसिल में शामिल होने का निर्णय लिया और उस वक्त स्टेट सेक्रेटरी हिलेरी क्लिंटन ने कहा था, 'हमारा मानना है कि हर देश को वैश्विक नियमों को आकार देने में मदद करनी चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि लोगों को स्वतंत्र रूप से रहने और अपने समाज में पूरी तरह से भाग लेने का अधिकार प्राप्त हो।'
यह पहली बार है कि जब UNHRC के 48 मेंबर्स में से किसी एक मेंबर इसको छोड़ने का फैसला लिया है। UNHRC पर भेदभाव का आरोप लगाती हुए निक्की हेली ने कहा, 'कई व्यवस्थित मुद्दों को हल करने में काउंसिल असफल रहा है। जैसा कि सऊदी अरब जैसे मुल्क, जो खुलेआम मानवाधिकार का उल्लंघन करते हैं और वे फिर भी इस काउंसिल का सदस्य बने हुए हैं।'
निक्की
हेली
ने
आगे
कहा,
'यह
स्वीकार
करना
मुश्किल
है
कि
इस
काउंसिल
ने
कभी
भी
वेनेजुएला
पर
एक
प्रस्ताव
नहीं
माना
है
और
फिर
भी
उसने
मार्च
में
इजराइल
के
खिलाफ
पांच
पक्षपातपूर्ण
प्रस्तावों
को
अपनाया
था'
गाजा
पट्टी
पर
चल
रहे
खूनखराबे
पर
यूएन
काउंसिल
मेंबर्स
ने
इजरायल
के
खिलाफ
स्वतंत्र
जांच
कराने
के
लिए
वोटिंग
की
थी,
जिसमें
सिर्फ
अमेरिका
और
ऑस्ट्रेलिया
ने
ही
इसका
विरोध
किया
था।
अमेरिका
का
मानना
है
कि
यह
काउंसिल
ना
सिर्फ
पक्षपात
करती
है,
बल्कि
पाखंडी
भी
है।
पेरिस समझौता पर ट्रंप का हटना
पिछले साल जून में अमेरिका राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने वर्ष 2015 में हुए पेरिस क्लाइमेट एग्रीमेंट से यह कहते हुए बाहर निकलने का ऐलान कर दिया कि यह समझौता हमारी अर्थव्यवस्था के लिए खतरा बन रहा है। ट्रंप ने इस डील से अमेरिका के बाहर निकलने पर चीन और भारत को दोषी ठहराया था। अमेरिका ने कहा था कि भारत को वर्ष 2015 के पेरिस एग्रीमेंट के तहत बिलियन डॉलर की रकम मिलती है और साथ ही चीन को भी बड़ा फायदा होता है। चीन और भारत जैसे देश अमेरिका की ओर से मिलने वाली बिलियन डॉलर्स की मदद से कोयले से संचालित होने वाले पावर प्लांट्स को दोगुना कर लेते। ट्रंप के इस फैसले के बाद बराक ओबामा काफी दुखी हुए थे।
यरुशलम को इजरायली राजधानी के रूप में मान्यता
पिछले साल दिसंबर में ट्रंप प्रशासन ने एक और विवादास्पद निर्णय लेते हुए यरुशलम को इजराइल की राजधानी के रूप में मान्यता दे दी, जिसका पूरी दुनिया ने विरोध किया। ट्रंप के इस फैसले के बाद इजराल फिलिस्तीन के बीच गाजा पट्टी पर हिंसा अब तक जारी है। पिछले छह माह में गाजा पट्टी पर 500 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं और हजारों की संख्या में घायल है। यरुशलम को इजरायल की राजधानी के रूप में मान्यता देते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि यह इजरायल का हिस्सा है। 1980 में इजरायल से येरुशलम को अपनी राजधानी बताया था, लेकिन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने एक प्रस्ताव पास करके पूर्वी यरुशलम पर इजरायल के कब्जे की निंदा की थी। लेकिन, ट्रंप ने UN के प्रस्ताव को ताक में रख अपनी दूतावास को तेलअवीव से येरुशलम मे शिफ्ट कर दी।
ट्रंप का ईरान परमाणु समझौते से हटना
हालांकि, डोनाल्ड ट्रंप ने आते ही ईरान के परमाणु समझौते का विरोध किया था और इस डील से हटकर बखैड़ा खड़ा करने का किया है। ओबामा के दौर में ईरान-अमेरिका के बीच परमाणु समझौता हुआ था, जिसे ट्रंप ने पिछले माह मई में यह कहते हुए डील से हटने का फैसला लिया कि समझौता ठीक नहीं है और इससे आतंकवाद को बढ़ावा मिल रहा है। इस डील से हटने के बाद अमेरिका ने ईरान पर कई अलग-अलग प्रतिबंध भी लगा दिए। ट्रंप के इस फैसले ने मिडिल ईस्ट में तनाव पैदा करने का काम किया है। भारत और ईयू समेत कई देश ट्रंप के इस फैसले से सहमत नही है।