अमरीका को ना तो भारत से मोहब्बत है ना पाकिस्तान सेः नज़रिया
अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने एक बार फिर कश्मीर मुद्दे में मध्यस्थ की भूमिका निभाने की पेशकश की है. इससे पहले उन्होंने भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों से बात करते हुए दोनों देशों के बीच बढ़ रहे तनाव को काम करने की सलाह दी थी.
अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ क़रीब 30 मिनट तक लंबी बातचीत की
अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने एक बार फिर कश्मीर मुद्दे में मध्यस्थ की भूमिका निभाने की पेशकश की है. इससे पहले उन्होंने भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों से बात करते हुए दोनों देशों के बीच बढ़ रहे तनाव को काम करने की सलाह दी थी.
अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ क़रीब 30 मिनट तक लंबी बातचीत की फिर उन्होंने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान को फोन मिलाया.
ट्रंप ने दोनों प्रधानमंत्रियों से हुई अपनी बातचीत को लेकर ट्वीट भी किया जिसमें उन्होंने कहा, "मैंने अपने दो अच्छे दोस्तों से बात की - भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान. बातचीत व्यापार और अहम रणनीतिक मुद्दों पर बातचीत हुई. खास तौर पर भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव कम करने पर भी बात हुई. हालात जटिल हैं मगर बातचीत अच्छी हुई."
Spoke to my two good friends, Prime Minister Modi of India, and Prime Minister Khan of Pakistan, regarding Trade, Strategic Partnerships and, most importantly, for India and Pakistan to work towards reducing tensions in Kashmir. A tough situation, but good conversations!
— Donald J. Trump (@realDonaldTrump) 19 August 2019
कुछ वक्त पहले इमरान ख़ान डोनल्ड ट्रंप ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान की अमरीका यात्रा के दौरान कहा था कि वो कश्मीर के मुद्दे पर मध्यस्थता के लिए तैयार हैं.
उन्होंने ये भी दावा किया था कि भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक हालिया मुलाक़ात के दौरान उनसे कश्मीर के मुद्दे पर मध्यस्थता करने का आग्रह किया था.
तो क्या ट्रंप ने जो ताज़ा सलाह दी है उसे उनकी मध्यस्थता की कोशिश माना जा सकता है?
इस बातचीत को लेकर राजनयिकों के बीच अलग-अलग राय है. कुछ मानते हैं कि अमरीकी राष्ट्रपति समय-समय पर ऐसा बोलते आए हैं चाहे वो बराक ओबामा हों या फिर उनसे भी पहले जो अमरीका के राष्ट्रपति रहे हों.
पाकिस्तान में भारत के राजदूत रहे जी पार्थसारथी भी ऐसा ही मानते हैं.
उनका कहना है, "ट्रंप ने कोई मध्यस्थता नहीं की बल्कि वही किया जो उनसे पहले के राष्ट्रपतियों ने भी किया है. ये कहना कि आतंकवाद बंद किया जाए, दोनों देशों के बीच तनाव काम हो - ये कहने का अमरीका को हक़ भी है क्योंकि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में उसने भारत की मदद की है."
हालांकि पार्थसारथी को लगता है कि इस वक़्त अमरीकी राष्ट्रपति की ये पहल उनकी 'राजनयिक मजबूरी' भी हो सकती है क्योंकि अमरीका को अफ़ग़ानिस्तान से अपनी फ़ौज हटानी भी है.
जी पार्थसारथी ने बीबीसी से बात करते हुए उन्होंने कहा, "वो (अमरीका) अफ़ग़ानिस्तान से भाग रहा है. उसके बीच में वो कोई रुकावट नहीं चाहते हैं. वो नहीं चाहते कि इस प्रक्रिया के दौरान कोई नई अड़चन पैदा हो."
"अमरीका इन सब चीज़ों में दिलचस्पी लेता रहा है. लेकिन इसे मध्यस्थता नहीं कहा जा सकता है. हाँ, मध्यस्थता तब कहेंगे जब भारत और पाकिस्तान के बीच चल रही बातचीत के बीच में अमरीका आकर बैठ जाए."
पार्थसारथी का कहना है कि अमरीका को पाकिस्तान में कोई दिलचस्पी नहीं है.
वे कहते हैं, "न तो अमरीका पकिस्तान को कोई आर्थिक सहायता देता है, न ही कोई व्यापार करता है, और पूंजीनिवेश का तो सवाल ही नहीं उठता. उनको तो बस इतना ही मतलब है कि अफ़ग़ानिस्तान से निकलते समय कोई नई अड़चन या उलझन पैदा ना हो."
वहीं सरहद पार, यानी पकिस्तान में मौजूद कूटनीति पर नज़र रखने वालों का मानना है कि ट्रंप के फ़ोन करने की नौबत भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के हाल ही में दिए गए बयान से पैदा हुई होगी जिसमे उन्होंने कड़े अल्फ़ाज़ों का इस्तेमाल किया था.
राजनाथ सिंह ने हाल में कहा था कि पाकिस्तान से बात होती है तो वह केवल अब 'पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके)' पर ही होगी.
इस्लामाबाद में कूटनीतिक विश्लेषक मरियाना बाबर, बीबीसी से बात करते हुए कहतीं हैं, "पूरी दुनिया को मालूम हैं कि दोनों पडोसी देशों के पास परमाणु शक्ति है. हालिया वक़्त में दोनों देशों के बीच हालात ज़्यादा ख़राब चल रहे हैं."
उनका कहना था, "ऐसे में भारत के रक्षा मंत्री के बयान को पूरे विश्व ने गंभीरता से लिया है."
मरियाना बाबर का ये भी कहना था कि अमरीका को ना तो भारत से मोहब्बत है ना पाकिस्तान से. वो कहती हैं, "वो तो अब अफ़ग़ानिस्तान के बारे में ज़्यादा सोच रहे हैं. क्योंकि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान की सरहद से फौजों को हटा लेने के संकेत दिए थे."
"जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप से मुलाक़ात की थी, उन्होंने साफ़ तौर पर कहा था कि वो अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान की सरहद पर ध्यान दे या फिर भारत पाकिस्तान की सरहद पर. उन्होंने अफ़ग़ानिस्तान की सरहद से फौजों को हटाने के संकेत भी दिए."
वो कहती हैं "अमरीका को ना तो भारत से मुहब्बत है ना पाकिस्तान से. उसे तो सिर्फ अपने राष्ट्र हित को देखना है. फिलहाल उसके राष्ट्र के हित में सबसे ऊपर है अफ़ग़ानिस्तान से फौजों को शांतिपूर्वक निकालना. शायद इसी वजह से ट्रंप ने कश्मीर मुद्दे पर भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों से इस तरह बातचीत की."
पकिस्तान ने जब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में कश्मीर का मामला उठाया था तो उस वक़्त अमरीका ने भारत का साथ दिया था जिससे पाकिस्तान अलग-थलग पड़ गया था. ये भारत की बड़ी कूटनीतिक जीत बताई जाती है.
मगर जानकारों को लगता है कि जैसे-जैसे अफ़ग़ानिस्तान से अमरीकी फौजों के हटने का दिन क़रीब आता जाएगा, अमरीका की ओर से इस तरह के और भी हस्तक्षेप की संभावनाएं बढ़ सकती हैं.