मालदीव संकट: हमेशा ही खतरे में रहा है लोकतंत्र और तानाशाही रही हावी
हिंद महासागर में स्थित देश मालद्वीव इन दिनों संकट की स्थिति से गुजर रहा है। आपातकाल का सामना कर रहे मालदीव में स्थितियां आने वाले दिनों में क्या करवट लेंगी कोई नहीं जानता है। सुप्रीम कोर्ट से टकराव की राह पर चलते हुए राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन की सरकार ने 15 दिनों के लिए इमरजेंसी लागू कर दी है।
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हिंद महासागर में स्थित देश मालदीव इन दिनों संकट की स्थिति से गुजर रहा है। आपातकाल का सामना कर रहे मालदीव में स्थितियां आने वाले दिनों में क्या करवट लेंगी कोई नहीं जानता है। यहां सुप्रीम कोर्ट से टकराव की राह पर चलते हुए राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन की सरकार ने 15 दिनों के लिए इमरजेंसी लागू कर दी है। इमरजेंसी के ऐलान के बाद से ही कई राजनेताओं को गिरफ्तार किया गया है जिसमें यहां के पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल गयूम भी शामिल हैं। ताजा स्थिति में पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट के जज अली हमीद को भी गिरफ्तार कर लिया है। आइए आपको बताते हैं कि क्या है मालदीव संकट और कैसे इसकी शुरुआत हुई?
हमेशा खतरे में रहा लोकतंत्र
यह पहला मौका नहीं है जब मालदीव में लोकतंत्र इस तरह से खतरे में आया है। साल 1965 में ब्रिटिश शासन से आजाद होने के बाद मालद्वीव्स में हमेशा ही लोकतंत्र पर खतरा मंडराता रहा। 16 नवंबर 2013 को अब्दुल्ला यामीन को मालदीव के छठें राष्ष्ट्रपति के तौर पर कमान सौंपी गई। उस समय उन्होंने जो भाषण दिया उसमें कहा, 'अब देश में शांति लाने का समय आ गया है और लोगों ने तय कर लिया है कि अब यह समय देश के विकास का समय है।' लेकिन पिछले कुछ समय से यहां पर जो हालात बने हुए हैं उसके बाद अब लोगों ने उनकी मंशा पर भी सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं। हालात उस समय से बिगड़ने शुरू हुए जब यहां पर इस अफवाह ने जोर पकड़ना शुरू किया कि सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति पर महाभियोग लगाकर उन्हें हटा सकता है। वहीं सरकार भी अपने रुख पर अडिग थी कि सुप्रीम कोर्ट के ऐसे किसी भी प्रयास को सफल नहीं होने दिया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद बवाल
पिछले हफ्ते जब सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला दिया कि सभी राजनेताओं को यामीन का विरोध करना होगा तो देश में एक नई मुसीबत की शुरुआत हो गई। सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद को भी रिहा करने का आदेश दिया। इसके अलावा कोर्ट ने उन 12 सांसदों को भी बहाल कर दिया जिन्हें विपक्ष के साथ गठजोड़ करने की वजह से बाहर कर दिया गया था। इन सांसदों की वापसी के साथ ही यामीन की प्रोग्रेसिव पार्टी 85 सदस्यों वाली संसद में बहुमत गंवा सकती थी और इस बात की भी संभावना थी कि सरकार का एक तबका राष्ट्रपति के खिलाफ खड़ा हो जाता।
1993 से राजनीति में यामीन
मई 1959 में जन्में यामीन साल 1993 से सरकार का हिस्सा हैं। वह पूर्व राष्ट्रपति मौमून अब्दुल गयूम के भाई भी लगते हैं। गयूम करीब 30 वर्षों तक मालद्वीव्स के राष्ट्रपति रहे हैं और उन्हें एक स्वायत्तशासी की उपाधि दी जा चुकी है। यामीन ने साल 1993 से वाणिज्य मंत्री के तौर पर अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की। इसके बाद उन्हें अपने भाई की कैबिनेट में कई अहम पद मिले। साल 2013 में सत्ता में आने के बाद से ही कई लोग इस बात को मानने लगे थे कि मालद्वीव्स में तानाशाह युग की शुरुआत फिर से हो सकती है।
जब खत्म हुआ शाही दौर
मालदीव भारत के दक्षिण-पश्चिम में स्थित है और साल 1968 में यहां पर राजशाही की जगह सरकार के शासन की शुरुआत हुई। उस समय यहां के सुल्तान को हटाकर इब्राहीम नासीर देश के राष्ट्रपति बने थे। साल 1978 में मौमून अब्दुल गयूम को सत्ता मिली और करीब 30 वर्षों तक उन्होंने शासन किया। गयूम ने छह चुनाव बिना किसी रुकावट के जीते थे। उनके कार्यकाल के दौरान देश में आर्थिक और राजनीति स्थायित्व का आगाज हुआ। इस दौरान मालद्वीव्स के पर्यटन क्षेत्र ने खासी तरक्की की थी। हालांकि कई लोग उन्हें एक तानाशाह मानते थे और तीन दशकों के कार्यकाल के दौरान वह तीन बार तख्तापलट का शिकार होने से बचे थे। दिसंबर 2004 में आई सुनामी मालदीव और गयूम के लिए भी काल साबित हुई। इस सुनामी ने गयूम का करियर खत्म कर दिया था।
2008 में नए राष्ट्रपति नशीद
गयूम के विरोधी मोहम्मद नशीद जो कि एक पत्रकार और एक सामाजिक कार्यकर्ता थे, उन्होंने मालदीव डेमोक्रेटिक पार्टी की स्थापना की। इसके साथ ही वह देश की राजनीति में पूरी तरह से सक्रिय हो गए। साल 2008 में यहां पर नए संविधान को मान्यता मिली और नए राष्ट्रपति चुनाव हुए जिसमें कई पार्टियों ने हिस्सा लिया। मोहम्मद नशीद चुनावों में विजेता बनकर उभरे और उन्हें मालदीव के पहले ऐसे राष्ट्रपति होने का दर्जा मिला जो लोकतांत्रित तौर पर चुने गए थे। नशीद भी ठीक से शासन करते, उससे पहले ही उनके खिलाफ विरोध की शुरुआत हो गई।
बंदूक की नोक पर हुआ इस्तीफा
अपने शुरुआती दिनों में उन्होंने मालदीव में कई तरह के सुधार किए। उनकी सरकार को बहुमत नहीं मिल सका था और इस वजह से विपक्ष अक्सर उन्हें आड़े हाथों लेता रहता था। देश में आर्थिक अव्यवस्था की वजह से नशीद के खिलाफ पहले से ही नाराजगी थी। इससे अलग इस्लाम के कट्टर अनुयायियों को लगने लगा था कि नशीद का प्रशासन देश में इस्लाम को खत्म कर डालेगा। नशीद के लिए मुश्किलें उस समय और बढ़ गईं जब उन्होंने एक जज को भ्रष्टाचार का आरोपी बताते हुए उन्हें जेल में भेज दिया। नशीद को उनके फैसले की वजह से इस्तीफा देने के लिए मजबूर कर दिया गया। कहा जाता है कि नशीद के सिर पर बंदूक रखकर उनसे इस्तीफा लिया गया था।
51 प्रतिशत वोटों से जीते यामीन
साल 2013 में मालदीव में फिर से चुनाव हुए और यामीन को राष्ट्रपति चुना गया। यामीन 51 प्रतिशत से भी ज्यादा वोटों से जीते थे और नशीद को 49 प्रतिशत वोट मिले थे। यामीन के चुनाव जीतने के बाद कहा जाने लगा कि गयूम की पार्टी ने वापसी कर ली है और ऐसे में तानाशाही ज्यादा दूर नहीं है। यामीन ने देश में पश्चिमी ताकतों की विरोधी सोच को मजबूत किया और इस्लाम को एक ऐसे विकल्प के तौर पर प्रयोग किया जो पब्लिक सपोर्ट दिला सकता था। साल 2015 से ही मालद्वीव्स में राजनीतिक असंतोष है और राष्ट्रपति ने कई गिरफ्तारियों का आदेश दिया। इसी वर्ष नशीद की पार्टी ने देश में कई तरह के विरोध प्रदर्शनों की योजना बनाई थी। नशीद को 'आतंकवाद' के आरोपों के बाद गिरफ्तार कर लिया गया। वहीं उप राष्ट्रपति अहमद अदीब और उनके 17 समर्थकों को भी सार्वजनिक तौर पर आक्रामकता फैलाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया।
देश में असंतोष की स्थिति
अब जबकि सुप्रीम कोर्ट ने यामीन के विरोधियों की रिहाई के आदेश दे दिए थे यामीन ने भरोसा दिलाया था कि वह शांतिपूर्वक कोर्ट के आदेश को लागू करवाएंगे। इसके साथ ही उन्होंने देश में नए चुनावों का वादा भी किया था। विशेषज्ञों की मानें तो वह कहीं न कहीं जनता के बीच अपनी लोकप्रियता को परखना चाहते थे। अभी तक किसी भी कैदी को रिहा नहीं किया गया है और विपक्ष का आरोप है कि वर्तमान सरकार देश में उठ रहीं आवाजों को खामोश करके अंसतोष की स्थिति पैदा करना चाहती है।