श्रीलंका में ईस्टर हमले के बाद वहां के मुसलमानों ने क्या कुछ झेलाः ग्राउंड रिपोर्ट
एक दुकानदार ने बताय़ा, "हमलावर बौद्ध थे. वो मोटरसाइकिल पर आए. वो चिल्ला रहे थे, हम शेर हैं. उन्होंने मोटरसाइकिलों से पेट्रोल, डीज़ल निकाला और दुकानों में आग लगा थी. हमलावर बाहर के लोग थे. यहां धर्म को लेकर कोई समस्या नहीं हैं. हम सिन्हला बौद्ध लोगों के साथ एक ही प्लेट में खाते हैं और व्यापार करते हैं."
श्रीलंका की राजधानी कोलंबो से क़रीब 40 किलोमीटर दूर प्रसिद्ध मिनुअनगोड़ा मस्जिद है.
माना जाता है कि हवाई अड्डे के पास स्थित ये मस्जिद क़रीब 300 साल पुरानी है. हम जुमे के दिन यहां पहुंचे थे. मस्जिद पर हमले के बाद ये पहली जुमे की नमाज़ थी.
13 मई की रात कई सौ लोगों की भीड़ ने इस मस्जिद पर हमला बोल दिया था. टूटा गेट, टूटी पत्थर की बेंच, टूटे हुए खिड़की के शीशे, चारों ओर बिखरे शीशे के टुकड़े.
स्थानीय काउंसिल से आए लोग मस्जिद को हुए नुक़सान का जायज़ा ले रहे थे.
मस्जिद के सीसीटीवी फ़ुटेज पर रात का वाक़या क़ैद था. टीवी के दाहिने ऊपरी हिस्से पर शाम सात बजे का वक़्त दिख रहा था.
थोड़ी ही देर में मस्जिद के सामने दंगाइयों का हुजूम इकट्ठा होना शुरू हो जाता है. चेहरे हेल्मेट से ढके थे. उनके हाथों में लाठियों और पत्थर थे.
कुछ लोग मस्जिद के गेट को तोड़ते हुए अंदर घुस गए और मस्जिद के शीशे तोड़ने शुरू कर दिए.
सुरक्षा बलों के आने से हमले थोड़े थमे, लेकिन पत्थरों की बरसात फिर शुरू हो गई.
हमलों के बाद लोगों का व्यवहार बदला है
मस्जिद के ईमाम मोहम्मद नजीब उस शाम घर पर थे जब उन्हें इस हमले के बारे में पता चला.
वो तुरंत मस्जिद जाना चाहते थे लेकिन सुरक्षा कारणों से नहीं गए. वो अगले दिन सुबह मस्जिद पहुंचे.
मोहम्मद नजीब कहते हैं, "मेरा दिल भर आया. मेरा दिल टूट गया. ये अल्लाह का घर है. मैं समझ नहीं पाया कि इसे क्यों तोड़ा गया."
मोहम्मद नजीब बताते हैं कि ईस्टर हमलों के बाद से उन्हें लोगों के व्यवहार में फ़र्क़ दिखने लगा था.
वो बताते हैं, "लोगों के चेहरों को देखकर लगता था कि कुछ बदल गया है. जो लोग हमारे दुकानों पर आते थे उन्होंने आना बंद कर दिया. जो लोग हमसे नज़दीक थे उनके चेहरे पर भी थोड़ी घृणा दिखने लगी."
सोशल मीडिया पर उन दुकानों, व्यापारों का नाम शेयर किया गया जिनके मालिक मुसलमान थे. लोगों से कहा गया कि वो उनका बॉयकॉट करें.
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लोगों में भय का माहौल
21 अप्रेल को आईएसआईएस से जुड़े मुस्लिम चरमपंथियों ने होटलों और गिरिजाघरों पर हमले किए थे जिनमें 250 से ज़्यादा लोग मारे गए थे.
हमलों के बाद कुछ दिनों बाद मुस्लिम विरोधी हिंसा में कई सौ दुकानों, घरों को नुक़सान पहुंचाया गया.
श्रीलंका सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक़ इन हमलों के पीछे राजनीति थी और हमलावर सिन्हला लोग थे.
पहले आत्मघाती हमले और उसके बाद मुस्लिम विरोधी हिंसा के कारण श्रीलंका में लोग सकते में हैं.
एलटीटीई के साथ दशकों चले गृहयुद्ध के बाद श्रीलंका में पिछले 10 साल शांति के रहे थे.
लोग डर रहे हैं कि क्या एलटीटीई गृहयुद्ध दिनों की बुरी यादें वापस आ गई हैं?
कोलंबो की सड़कों, महंगे होटलों में बंदूक़ लिए सैनिक तैनात हैं. कुछ लोग देश से बाहर जाने तक की बात सोच रहे हैं. लोगों में डर है.
सामाजिक टीकाकार अमान अशरफ़ कहते हैं कि सालों बाद उन्होंने सड़कों पर ऐसे हालात देखे हैं.
वो कहते हैं, "जब हम बड़े हो रहे थे तब हमने सड़कों पर ये हालात देखे थे. आज के बच्चे अपने मां-बाप से पूछ रहे हैं, सड़कों पर सेना का इतना भारी जमावड़ा क्यों है. 15-20 साल पहले ये नज़ारा आम बात थी. जब शांति आई तो सड़कों से बैरियर हटा लिए गए थे."
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'मुसलमान रहना है और शांति चाहता हूं'
मिनुअनगोड़ा मस्जिद में जुमे की नमाज़ पढ़ने वालों में मोहम्मद सियाम भी थे.
वो कहते हैं, "हमले के बाद जब मैं मस्जिद में आया तो जगह की हालत देखकर मुझे रोना आ गया. मैंने अल्लाह से कहा, कुछ कीजिए."
जब उन्होंने दंगाइयों को इकट्ठा होते देखा तो वो अपनी मोटरसाइकिल लेकर वहां से भाग गए.
वो कहते हैं, "मैं किसी से लड़ाई नहीं चाहता. मैं श्रीलंका में पैदा हुआ. मेरा मां श्रीलंका की हैं. मैं कहीं बाहर नहीं जाना चाहता. मैं एक मुसलमान ही रहना चाहता हूं. मेरे तीन बच्चे और बीवी हैं और हम शांति चाहते हैं."
मस्जिद पर हमले के बाद मुसलमानों के साथ एकजुटता दिखाने के लिए जुमे की नमाज़ में दो ईसाई पादरी और एक बौद्ध भिक्षु भी पहुंचे थे.
मस्जिद के चारों ओर हथियारबंद सुरक्षाबल तैनात थे.
दंगाइयों ने मस्जिद के ठीक सामने मिनुअनगोड़ा सेंट्रल मार्केट में भी ख़ासी तबाही मचाई थी और क़रीब आधी दुकानों को जलाकर बर्बाद कर दिया था.
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इस मार्केट में ज़्यादातर दुकानें मुसलमानों की हैं. हमले के तीन दिन बाद भी कुछ दुकानों में अधजली चीज़ों से धुंआ निकल रहा था.
एक दूसरी दुकान में किनारे एक डंडे पर आग से किसी तरह बच गया श्रीलंका का झंडा रखा था.
कुछ बच गई दुकानों के अंदर और बाहर शीशे के टुकड़े बिखरे थे. जो दुकान बचे गए उसके मालिक सामान को उठाकर कहीं और ले जा रहे थे. जिनका सब कुछ लुट गया, वो दुकानों के बाहर सिर पकड़कर बैठे थे.
एक दुकानदार ने बताय़ा, "हमलावर बौद्ध थे. वो मोटरसाइकिल पर आए. वो चिल्ला रहे थे, हम शेर हैं. उन्होंने मोटरसाइकिलों से पेट्रोल, डीज़ल निकाला और दुकानों में आग लगा थी. हमलावर बाहर के लोग थे. यहां धर्म को लेकर कोई समस्या नहीं हैं. हम सिन्हला बौद्ध लोगों के साथ एक ही प्लेट में खाते हैं और व्यापार करते हैं."
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भाईचारा
बग़ल में श्रियानी की कपड़ों की दुकान भी जलकर स्वाहा हो गई थी. अधजले कपड़ों के टुकड़े जले हुए ढेर में बिखरे हुए थे. वो सिन्हला बौद्ध हैं.
वो कहती हैं, "हम मुसलमानों के साथ भाई-बहन की तरह रहते हैं. इस घटना के बाद हम और नज़दीक आ गए हैं."
मस्जिद और बाज़ार दोनों जगह लोगों की शिकायत थी कि दंगाई हमला करते रहे लेकिन पास खड़े सुरक्षाबलों ने कुछ नहीं किया.
सोशल मीडिया पर एक क्लिप भी वायरल हुई जिसमें सेना की वर्दी पहने एक व्यक्ति कथित तौर पर दंगाइयों को इशारे से अपनी ओर बुला रहा है.
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सेना के प्रवक्ता ब्रिगेडियर सुमित अत्तापत्तू के मुताबिक़ जांच में पाया गया कि वीडिया में दिख रहा सैनिक कंधे पर टंगी रायफ़ल ठीक कर रहा था.
वो कहते हैं, "ये पहली बार है कि हमारे पास ऐसी शिकायत आ रही है. हमने सेना, वायु और जल सेना के 16 हज़ार जवान सुरक्षा के लिए तैनात किए हैं. कभी कभी दंगाइयों की संख्या हमसे कहीं ज़्यादा होती है लेकिन हम ताक़त का इस्तेमाल नहीं कर सकते. अगर हम ऐसा करेंगे तो बहुत ज़्यादा नुक़सान होगा."
क़त्लेआम
मिनुअनगोड़ा से आगे हम कोटरमुल्ला इलाक़े में पहुंचे जहां दंगाइयों ने 49 वर्षीय मोहम्मद सालेह फ़ैसल अमीर की तलवारों से हत्या कर दी. दंगाइयों ने उन पर मिट्टी का तेल छिड़कर जलाने का भी प्रयास किया.
उन्होंने मोहम्मद अमीर की गाड़ी को आग लगा थी और दूसरे घरों में मिट्टी के तेल के ड्रम भी उठाकर ले गए. मोहम्मद अमीर के घर से लगी फ़र्नीचर की भी दुकान है.
रात क़रीब 10 बजे का वक़्त था जब उन्हें घर के बाहर शोर सुनाई दिया. उन्होंने अपने चार बच्चों और पत्नी फ़ातिमा जिफ़रिया से कहा कि वो बत्ती बंद करे दें और अंदर रहें.
बाहर से पत्थर के टकराने का शोर सुनाई दे रहा था. थोड़ी देर बाद जब फ़ातिमा और बच्चे बाहर आए तो मोहम्मद अमीर गेट के पास ख़ून में सने ज़मीन पर पड़े थे.
फ़ातिमा मदद के लिए चिल्लाईं तो अगल बग़ल से लोग दौड़े हुए आए.
फ़ातिमा बताती हैं, ''हमारे बच्चों ने अपनी आंखों से देखा कि क्या है. उन्हें पता है कि उनके पिता को कैसे मारा गया. जिस बच्चे ने ये सब देखा है उसे आप क्या बता सकते हैं."
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कौन है दुकानों को जलाने वाले?
दंगाइयां ने कोटरमुल्ला से आगे हेट्टीपोला में भी मस्जिद, दुकानों, घरों में तोड़फोड़ की.
वहां लोगों ने बताया कि वो डरे हुए हैं.
श्रीलंका की सिन्हला बौद्ध बहुल जनसंख्या क़रीब दो करोड़ की है और क़रीब 10 प्रतिशत मुसलमान हैं.
इससे पहले 2014 और 2018 में भी मुसलमानों पर हमले हुए हैं. हमलों के लिए सिन्हला बौद्ध चरमपंथियों को ज़िम्मेदार ठहराया जाता रहा है. बीबीएस आरोपों से इनकार करता है.
ताज़ा घटनाक्रम में पुलिस ने क़रीब 100 लोगों को गिरफ़्तार किया है जिसमें कथित सिन्हला बौद्ध चरमपंथी भी शामिल हैं.
जानकारों के मुताबिक़ प्रशासन के लिए चुनौती बोडू बल सेना या बीबीएस जैसे संगठन हैं जिन पर आरोप है कि मुसलमानों के ख़िलाफ़ नफ़रत फैलाते हैं.
बीबीएस से जुड़े लोगों का आरोप है कि श्रीलंका के इस्लामीकरण की कोशिश हो रही है और बढ़ते अरब संस्कृति के असर के कारण श्रीलंका के मुसलमान देश की अपनी संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं.
बीबीएस सीईओ दिलांथा बिथानगा ने बताया, "इस्लाम को बढ़ाना और इस्लामीकरण एक वैश्विक एजेंडा है. लोगों को इस्लाम में परिवर्तित किया जा रहा है. लेकिन हम मासूम मुसलमानों के ख़िलाफ़ नहीं हैं. हम बौद्ध हैं और हम किसी से घृणा नहीं कर सकते."
स्थानीय जानकार बताते हैं कि हिंदू बहुल तमिल चरमपंथी और सरकार के बीच युद्ध के दौरान भी मुसलमान और सिन्हला बौद्ध समुदायों के बीच अच्छे संबंध थे.
तो ये कौन लोग हैं जो मुसलमानों के घरों, उनकी दुकानों पर हमले कर रहे हैं?
विथानगा कहते हैं, "हो सकता है इसके पीछ सिन्हला हों, या फिर इसके पीछे ख़ुद इस्लामी संगठन भी हो सकते हैं."
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श्रीलंका के कुछ मुसलमान भी अरब देशों के बढ़ते प्रभाव को लेकर चिंतित हैं.
एक वक़्त था जब अमान अशरफ़ के परिवार का श्रीलंका की राजनीति से नज़दीकी ताल्लुक़ था.
वो कहते हैं, "श्रीलंका में अरब संस्कृति का असर बढ़ रहा है और मुसलमान इसका मुक़ाबला उस मज़बूती से नहीं कर रहे हैं जैसा उन्हें करना चाहिए. शुरुआत में हमने सोचा कि ये असर कपड़ों, खाने पर है लेकिन हमें पता भी नहीं चला कि कैसे लोगों की मानसिकता ही बदल गई."
अमान के मुताबिक़ मुसलमानों के एक बड़े तबक़े को पता ही नहीं चला कि चरमपंथ ने कुछ लोगों पर इतना ज़बरदस्त प्रभाव डाला.
कुछ मुसलमानों ने बताया कि पिछले सालों में उन्होंने आर्थिक रूप से, व्यापार में अच्छी तरक्क़ी की है जिससे कुछ दूसरे समुदायों में इसे लेकर जलन है.
पिछले कुछ महीने श्रीलंका के लिए राजनीतिक उथल-पुथल से भरे रहे हैं. राष्ट्रपति सिरिसेना और प्रधानमंत्री के बीच खुली लड़ाई ने श्रीलंका के लिए चुनौतियां बढ़ा दी हैं.
कोलंबो के आर्चबिशप कार्डिनल मैल्कम रंजीत के मुताबिक़ देश के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति बेहद महत्वपूर्ण है.
21 अप्रेल को गिरिजाघरों पर हमलों के बाद कार्डिनल रंजीत के शांति प्रयासों को काफ़ी सराहा गया था.
वो कहते हैं, "हमने पिछले महीनों में देखा है कि राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के बीच सब ठीक नहीं है. देश के लिए ज़रूरी है कि वो साथ काम करें…. जब क़रीब 300 लोगों की मौत होती है तो दिमाग़ में शक पैदा होते हैं. मुसलमानों ने इस घटना (हमले) को अंजाम नहीं दिया. ये अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद है."
उधर अमान अशरफ़ को उम्मीद है कि लोगों के बीच मज़बूत आपसी रिश्ते सभी चुनौतियों पर भारी पड़ेंगे.