अफसन डोरजिएफ़: इस लामा की चलती तो तिब्बत पर रूस का दबदबा होता!
उन्हें कुछ लोगों ने संत कहा, कुछ ने जासूस लेकिन अफसन डोरजिएफ़ खुद को एक बौद्ध लामा के तौर पर देखते थे.
अफसन डोरजिएफ़ रूस के साइबेरिया इलाके में रहने वाले मूल निवासी बुरयात लोगों के धार्मिक नेता थे, वे एक विद्वान भी थे और कूटनीति में भी उनका दखल था.
रूस के यूरोप वाले हिस्से में पहला बौद्ध मठ बनाने का श्रेय भी अफसन डोरजिएफ़ को ही दिया जाता है.
उन्हें कुछ लोगों ने संत कहा, कुछ ने जासूस लेकिन अफसन डोरजिएफ़ खुद को एक बौद्ध लामा के तौर पर देखते थे.
अफसन डोरजिएफ़ रूस के साइबेरिया इलाके में रहने वाले मूल निवासी बुरयात लोगों के धार्मिक नेता थे, वे एक विद्वान भी थे और कूटनीति में भी उनका दखल था.
रूस के यूरोप वाले हिस्से में पहला बौद्ध मठ बनाने का श्रेय भी अफसन डोरजिएफ़ को ही दिया जाता है. ये सौ साल से भी पुरानी बात है.
अफसन डोरजिएफ़ का नाम रूस में बौद्ध धर्म की महत्वपूर्ण शख़्सियतों में लिया जाता है, हालांकि उनका जिक्र कम मिलता है.
ब्रितानी इतिहासकार कैटरिओना बैस ने अफसन डोरजिएफ़ पर काफी काम किया है. वे अफसन के बारे में ज़्यादा जानकारी जुटाने के लिए साइबेरिया तक गईं.
अफसन डोरजिएफ़ के व्यक्तित्व और उनकी ज़िंदगी के बारे में कैटरिओना बैस ने साइबेरिया के बुरियात लोगों से बात की थी.
रूस में बौद्ध धर्म
बीबीसी रूसी सेवा के रेडियो आर्काइव्स में कैटरिओना बैस का एक 25 साल पुराना इंटरव्यू मिला.
इस इंटरव्यू में कैटरिओना बैस प्रोग्राम के प्रेजेंटर यूरी कोलकर से को बताया, 20वीं सदी की शुरुआत में अफसन डोरजिएफ़ ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति अहम रोल निभाया था.
ये वो दौर था जब तिब्बत चीन से आज़ादी के लिए संघर्ष कर रहा था और रूस और ब्रिटेन दोनों ही देश इस पठारी इलाके में अपना असर बढ़ाने की कोशिश कर रहे थे.
अफसन डोरजिएफ़ एक शिक्षक थे और तेरहवें दलाई लामा के नजदीकी सलाहकार भी. अफसन का ये मानना था कि तिब्बत को रूस से मदद लेनी चाहिए.
वे ब्रिटेन को एक हमलावर मुल्क के तौर पर देखते थे और दूसरी तरफ़ लंदन में उन्हें राजनीतिक रूप से एक उत्साही व्यक्ति और एक एजेंट के तौर पर देखा जाता था.
रूस के ज़ार निकोलस द्वितीय से अफसन डोरजिएफ़ ने तेरहवें दलाई लामा के प्रतिनिधि की हैसियत से मुलाकात की और तिब्बत को रूस के संरक्षण की जबर्दस्त पैरवी की.
बीबीसी रूसी सेवा के इस आर्काइव प्रोग्राम में प्रेजेंटर यूरी कोलकर कहते हैं कि अफसन डोरजिएफ़ के इरादों और गतिविधियों पर आज भी बहस की जा रही है.
अस्सी के दशक में...
ब्रितानी इतिहासकार कैटरिओना बैस का कहना है कि अफसन डोरजिएफ़ के बारे में उस वक्त तक भी लोगों के पूर्वाग्रह कम नहीं हुए थे.
कैटरिओना तिब्बत और रूस मामलों की जानकार हैं. कई किताबें लिख चुकी हैं और अस्सी के दशक में तिब्बत में पढ़ाया भी है.
बुरियातिया की खाक़ छानने से जुड़े अपने अनुभव के बारे में उन्होंने बताया कि अफसन डोरजिएफ़ के बारे में लोगों की अलग-अलग राय है.
अफसन डोरजिएफ़ पर पड़ताल के सिलसिले में कैटरिओना बैस दो बार रूस के बुरियातिया इलाके में गईं, पहली बार 1992 के पतझड़ में और दूसरी बार 1993 की गर्मियों में.
वो कहती हैं, "मैं जानती हूं कि तिब्बत के ग्रेट गेम में उनका भी एक अहम रोल था. रूस और ब्रिटेन तिब्बत पर अपना असर बढ़ाने की कोशिश में एक दूसरे से उलझे गए थे."
"जब मैं तिब्बत में काम कर रही थी तो मैंने पाया कि वहां के लोग उन्हें एक बहुत बड़ा धार्मिक विद्वान मानते थे. मैं अफसन डोरजिएफ़ को समझना चाहती थी."
सेंट पीट्सबर्ग का बौद्ध मठ
डैनज़न समाएव को अफसन डोरजिएफ़ का आध्यात्मिक उत्तराधिकारी के तौर पर देखा जाता है.
उन्होंने अपना जीवन रूस की सयान पहाड़ियों के लोगों के लिए समर्पित कर दिया है.
सोवियत संघ के पतन के बाद अफरा-तफरी भरे माहौल में डैनज़न समाएव ने सयान पहाड़ियों के लोगों को बचाने में मदद की थी.
डैनज़न खायबज़ुन समाएव बुरयात समुदाय के धार्मिक नेता थे और सेंट पीट्सबर्ग में गुंज़ेहोयनाय के बौद्ध मठ के रेक्टर (1990-1997) रहे थे.
ये वही बौद्ध मठ है जिसकी स्थापना अफसन डोरजिएफ़ ने की थी.
अफसन से जुड़े मिथक
साल 2015 में सेंट पीट्सबर्ग में अफसन डोरजिएफ़ के बौद्ध मठ की स्थापना की सौवीं सालगिरह मनाई गई.
उस दौरान कैटरिओना बैस को अफसन डोरजिएफ़ का एक बार फिर से ख़्लाय आया.
वो कहती हैं, "अफसन की ज़िंदगी से जुड़े रहस्य तिब्बत, सोवियत संघ और सोवियत संघ के विघटन के बाद बदलती राजनीतिक वास्तविकताओं को प्रभावित करने वाले थे."
"मुझे ये जानकर हैरत हुई कि ये मिथक अभी तक वजूद में हैं."
"मैंने पुराने दस्तावेज़ खंगाले. बुरियातिया यात्रा के अपने नोट्स फिर से पलटे. बुरियात लोगों की आवाज़ें सुनीं, जिनकी यादें मैंने रिकॉर्ड कर ली थीं."
संस्कृतियों के केंद्र में...
कैटरिओना बैस कहती हैं, "मैंने बौद्ध मठों में मंत्रोच्चार सुने. बौद्ध लामाओं को देखा. मुझे एहसास हुआ कि अफसन डोरजिएफ़ एक समय में कई संस्कृतियों के केंद्र में थे."
"और उन्हें अलग-अलग लोग अलग-अलग तरह से देखते हैं."
रूसी साम्राज्य, सोवियत संघ की सरकार, सोवियत संघ के विघटन के बाद रूस, तिब्बत, ब्रिटेन, बुरियातिया और कालमायकिया के अलग-अलग जनजातीय लोग और धार्मिक समूह उन्हें अपने-अपने तरीके से देखते थे.
रूसी एजेंट?
कैटरिओना बैस कहती हैं, "मैं ये जानकर हैरत में पड़ गई कि बौद्ध लामा के भेष में अफसन डोरजिएफ़ रूस के एक लेजेंड जासूसी थे जबकि ब्रिटेन उन्हें संदेह से देखता था."
अफसन डोरजिएफ़ के बारे में लोग जो भी कहते हैं, उनमें एक तरह का विरोधाभास दिखता है.
कुछ उनका जिक्र आदर के साथ करते हैं तो कुछ उन्हें संदेह की नज़र से देखते हैं.
हालांकि एशिया को लेकर रूसी सरकार की रणनीति क्या थी, इसके बारे में बहुत ज्यादा रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है.
लेकिन अफसन डोरजिएफ़ को रूस के साथ ही जोड़कर देखा जाता था.
अफसन को लेकर लोगों के पूर्वाग्रह लंबे समय तक बरकरार रहे जबकि इसके कई सबूत हैं कि वे बेतुके थे.
अफसन डोरजिएफ़ 25 सालों तक तिब्बत में रहे. वहां उन्होंने बौद्ध धर्म की सबसे बड़ी अकादमिक डिग्री इहारंबा हासिल की.
बौद्ध धर्म का संरक्षण
तिब्बती लोग उन्हें आज भी एक महान वैज्ञानिक के तौर पर याद करते हैं.
साल 1904 में जब तेरहवें दलाई लामा मंगोलिया में निर्वासन की ज़िंदगी जी रहे थे तो वो अफसन डोरजिएफ़ ही थे जिन्होंने तिब्बती लामाओं को धर्म, अध्यात्म और दर्शन का ज्ञान दिया था.
चौदहवें दलाई लामा के भाई प्रोफ़ेसर थुब्टेन नोरबु ने बताया था कि वे अफसन डोरजिएफ़ के बारे पश्चिमी दुनिया के विचारों से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके.
उन्होंने कहा था, "जब मैंने बाक़ी तिब्बतियों की तरह तिब्बत छोड़ दिया तो मैं ये जानकर हैरत में पड़ गया कि बाक़ी दुनिया डोरजिएफ़ को एक रूसी एजेंट मानती थी."
आधुनिक ऐतिहासिक सबूत ये बतलाते हैं कि अफसन डोरजिएफ़ किसी भी तरह से रूस या तिब्बत के महज एक एजेंट नहीं थे.
हकीकत तो ये है कि 20वीं सदी की शुरुआत में वे तिब्बत और रूस के बीच का कूटनीतिक संपर्क थे.
इस बात पर बहस की की जा सकती है कि अफसन डोरजिएफ़ की गतिविधियां पहली नज़र में तिब्बत में और फिर सोवियत संघ बौद्ध धर्म के संरक्षण के इरादे से थीं.
सच तो ये भी है कि अफसन डोरजिएफ़ को रूस की कठपुतली इस लिए कहा गया था क्योंकि ब्रितानी साम्राज्यवाद अपने मक़सद में नाकाम हो गया था.
ऐसा लगता है कि 20वीं सदी के ब्रिटिश राजनेताओं के लिए ये कल्पना करना मुश्किल था कि कोई ग़ैर-यूरोपीय शख़्स ऐसे भी एजेंडे पर चल सकता था जो यूरोपीय शक्तियों के हितों के माकूल न हो.
अफसन डोरजिएफ़ की मौत
वैज्ञानिक आज भी अफसन डोरजिएफ़ के जीवन के रहस्यों का पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं.
उनकी राजनीति कैसे थी, इस बारे में कोई पक्के तौर पर कुछ नहीं कह सकता. अफसन डोरजिएफ़ के लेखन से जुड़ी बहुत कम चीज़ें संभाल कर रखी जा सकी हैं.
पेट्रोग्रैड में 1919 में एक हमला हुआ था और वहां की बौद्ध मठ में अफसन डोरजिएफ़ की लाइब्रेरी बर्बादी हो गई थी.
अक्टूबर क्रांति के बाद अफसन डोरजिएफ़ के बारे में नई बातें सामने आईं.
पूर्वी साइबेरिया के उला उडे शहर में केजीबी के बुरयात यूनिट के मेंबर एलेक्ज़ेंडर एंटोनोव ने बीबीसी रूसी सेवा को बताया था कि अफसन डोरजिएफ़ को 1937 में गिरफ़्तार कर लिया गया था.
उन पर मंगोलियाई चरमपंथी होने और जासूसी का आरोप लगाया गया था.
29 जनवरी, 1938 को उलान उडे के ही एक जेल अस्पताल में 85 साल की उम्र में अफसन डोरजिएफ़ की मौत हो गई थी.
दूसरी तरफ़ अफसन डोरजिएफ़ ने बुरियातिया यात्रा के समय देखा कि वहां के बौद्ध समुदाय में अफसन डोरजिएफ़ को लेकर गजब की दीवानगी थी.
लोग उनकी तस्वीरें अपने घरों में लगाते थे, उनकी रहस्यमयी शक्तियों के बारे किस्से कहे-सुने जाते थे.
बुरियातिया का सबसे बड़ा सरकारी सम्मान अफसन डोरजिएफ़ के नाम पर है.
साल 2015 आते-आते बुरियातिया के इलाके में अफसन डोरजिएफ़ उतने लोकप्रिय नहीं रह गए थे.
इसकी वजह भी थी, और वो थी रूस की नई नीति. बौद्ध नेताओं से उनकी देशभक्ति दिखलाने के लिए कहा जाने लगा.
उनसे कहा जाने लगा कि बाहरी ताकतों से वे अपने रिश्ते खत्म करें. बुरियातिया के बौद्ध लोगों ने तिब्बत और ख़ासकर दलाई लामा से अपने रिश्ते सीमित कर दिए.
रूसी बौद्ध लोगों के मौजूदा नेता हांबो लामा आयुषेव रूस की सरकार खासकर व्लादिमीर पुतिन की नीतियों का समर्थन करते हैं.