कोरोना वायरस की चपेट में एक ऐसा देश जो त्रासदी को छिपा रहा है
20 मार्च को लोग फ़ारसियों के नए साल नवरोज़ का जश्न मना रहे हैं. वहीं, दूसरी ओर इस बात की गंभीर आशंकाएं हैं कि ईरान की सरकार इस वायरस के फैलाव और असर को बड़े पैमाने पर दबाने की कोशिशों में लगी हुई है. आशंका यह भी है कि आने वाले वक़्त में यहां हालात और ख़राब हो सकते हैं. देश में कोरोना वायरस का कहर शुरू होने के बाद से लगातार
ईरान कोरोना वायरस की सबसे भयानक मुश्किल से जूझ रहे देशों में से एक है.
20 मार्च को लोग फ़ारसियों के नए साल नवरोज़ का जश्न मना रहे हैं. वहीं, दूसरी ओर इस बात की गंभीर आशंकाएं हैं कि ईरान की सरकार इस वायरस के फैलाव और असर को बड़े पैमाने पर दबाने की कोशिशों में लगी हुई है.
आशंका यह भी है कि आने वाले वक़्त में यहां हालात और ख़राब हो सकते हैं.
देश में कोरोना वायरस का कहर शुरू होने के बाद से लगातार मोहम्मद बिना आराम किए अपने मरीज़ों की ज़िंदगियां बचाने की हर मुमकिन कोशिश में लगे हैं.
मोहम्मद ईरान के उत्तरी प्रांत गिलान के एक अस्पताल में डॉक्टर हैं. वो पिछले 14 दिनों में एक बार भी अपने परिवार से नहीं मिले हैं.
उन्होंने अपने सहयोगी खोये हैं. उन्होंने अपने दोस्त खो दिए हैं, जिनमें से एक उनके पूर्व परामर्शदाता जो कि मेडिकल स्कूल में उनके शिक्षक थे, वो भी शामिल हैं. वो हाल में कोरोना वायरस का शिकार हुए.
मोहम्मद के मुताबिक, 'यह केवल हमारे अस्पताल की बात नहीं है. कोरोना ने हमारे पूरे हेल्थ सिस्टम को अपाहिज बना दिया है.'
वो कहते हैं, "स्टाफ़ का मनोबल गिर चुका है. हमारे परिवार बेहद चिंतित हैं और हम पर भारी दबाव है."
मोहम्मद का असली नाम हम यहां नहीं दे रहे हैं क्योंकि ईरान में सरकार के ख़िलाफ बोलना मुश्किल भरा साबित हो सकता है. ऐसा करने पर आपको गिरफ़्तार किया जा सकता है.
लेकिन, देश के उत्तरी प्रांत के हर हिस्से से कई डॉक्टरों ने बीबीसी को इस मुश्किल हालात के बारे में दहला देने वाली जानकारियां दी हैं. उन्होंने बताया है कि वे कितनी ख़राब स्थितियों का सामना कर रहे हैं और इस संकट को संभालने में सरकार किस क़दर नाकाम रही है.
मोहम्मद ने कहा, "हमारे पास पर्याप्त संख्या में मास्क नहीं हैं. हमारे मेडिकल स्टाफ़ में हर रोज़ मौतें हो रही हैं."
उन्होंने कहा, "मुझे नहीं पता कि कितनी मौतें हुई हैं, लेकिन सरकार इस त्रासदी की असलियत को दबाने में लगी हुई है. उन्होंने इस बीमारी के शुरू होने के दिनों में ही झूठ बोला."
महज़ 16 दिनों में ही, Covid-19 ईरान के सभी 31 प्रांतों में फैल गया.
दूसरी ओर, 16 देशों का दावा है कि उनके यहां यह बीमारी ईरान से फैली है. ये देश इराक़, अफ़ग़ानिस्तान, बहरीन, कुवैत, ओमान, लेबनान, युनाइटेड अरब अमीरात, कनाडा, पाकिस्तान, जॉर्जिया, एस्टोनिया, न्यूज़ीलैंड, बेलारूस, अज़रबैजान, क़तर और आर्मेनिया हैं.
सरकार की आलोचना करने वालों का कहना है कि ईरान की सरकार लगातार इस संकट को कम करके पेश कर रही है.
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19 फ़रवरी को अपने पहले ऐलान में सरकार ने कहा कि लोगों को इस वायरस से घबराना नहीं चाहिए. देश के सुप्रीम लीडर अयातुल्ला अली ख़मेनी ने ईरान के दुश्मनों पर आरोप लगाया कि वे इस ख़तरे को बढ़ा-चढ़ाकर दिखा रहे हैं.
इसके एक हफ़्ते बाद मामलों और मौतों का आंकड़ा बढ़ता गया. राष्ट्रपति हसन रुहानी ने देश के सुप्रीम लीडर की बातों को दोहराया और 'देश के दुश्मनों के षड्यंत्रों और भयभीत करने की कोशिशों' के ख़िलाफ़ चेतावनी दी.
उन्होंने कहा कि इन षड्यंत्रों का मक़सद देश को पटरी से उतार देना है. उन्होंने ईरान के लोगों से आह्वान किया कि वे अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी को जारी रखें और काम करने जाते रहें.
हाल में, सरकारी नियंत्रण वाले टीवी प्रोग्रामों में ऐलान किया गया कि कोरोना वायरस अमरीका का बनाया गया 'जैविक हथियार' हो सकता है. सुप्रीम लीडर ने एक 'बायोलॉजिकल अटैक' के बारे में ट्वीट किया.
ईरानी हेल्थ मिनिस्ट्री के मुताबिक़, 19 मार्च तक देश में कोविड-19 के 17,361 मामले सामने आए, जबकि इससे हुई मौतों का आंकड़ा 1,135 रहा.
चीन और इटली के बाद इस वायरस की सबसे बुरी चपेट में आने के मामले में ईरान तीसरे नंबर पर है.
ईरान में इस वायरस से सबसे बुरी तरह प्रभावित तीन प्रांतों- गिलान, गोलेस्तारन और मज़ंदरन के डॉक्टरों ने बीबीसी को बताया कि कोरोना वायरस की टेस्टिंग किट्स की संख्या काफ़ी कम है और मेडिकल सप्लाई सीमित है.
इनमें सामान्य दवाइयां, ऑक्सीजन टैंक, स्टेरीलाइज्ड मास्क, प्रोटेक्टिव स्क्रब्स और ग्लव्स शामिल हैं.
डॉक्टरों को अब टेंपरेरी फ़ील्ड हॉस्पिटलों में काम करना पड़ रहा है.
एक इंटेंसिव केयर डॉक्टर ने बताया कि किस तरह से उनका स्थानीय फ़ुटबॉल स्टेडियम अस्पताल बना दिया गया और उसमें बेड लगा दिए गए ताकि मरीज़ों की लगातार बढ़ती तादाद को मैनेज किया जा सके.
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बीबीसी ने जिन भी डॉक्टरों से बात की उन्होंने यही कहा कि अपने अनुभव के आधार पर वे यह कह सकते हैं कि इस बीमारी से जुड़े सरकारी आंकड़े हक़ीक़त के मुक़ाबले काफ़ी कम हैं.
गोलेस्तान प्रांत की एक डॉक्टर ने कहा कि उनके हॉस्पिटल में औसतन हर रोज़ 300 मरीज़ आ रहे हैं. उनका अनुमान है कि इन मरीज़ों में से 60-70 फ़ीसदी कोरोना वायरस से पीड़ित होते हैं.
उन्होंने बताया कि संसाधनों की कमी के चलते केवल उन्हीं मरीज़ों को भर्ती किया जा रहा है जो कि गंभीर रूप से बीमार हैं.
और केवल जिन्हें भर्ती किया जा रहा है उन्हीं को सरकारी आंकड़ों में गिना जा रहा है.
डॉक्टर ने बताया कि गुज़रे दो हफ़्तों से हर दिन उनके यहां औसतन 5 मरीज़ों की मौत हो रही है.
उनका कहना है कि अक्सर जब तक कोई कोरोना वायरस की टेस्टिंग किट लेकर आता है तब तक उनका मरीज़ मर चुका होता है.
मेडिकल स्टाफ़ के लिए सबसे तकलीफ़देह अपनों को खोना है. मेडिकल प्रोफ़ेशनल्स का कहना है कि वे अब तक अपने कई सहयोगियों को खो चुके हैं.
एक बेहद दुखद मामला फ़रवरी के आख़िर में 25 साल की नरज़िस ख़ानालिज़ादेह का आया. वो ईरान के उत्तरी शहर लाहीजान में एक नर्स थीं.
उनकी फ़ोटो सोशल मीडिया में वायरल हो गई. लेकिन, सरकार ने यह मानने से इनकार कर दिया कि उनकी मौत कोविड-19 से हुई थी.
सरकारी नियंत्रण वाले टीवी चैनल्स लगातार मेडिकल स्टाफ़ की एक ऐसी तस्वीर पेश कर रहे हैं जिसमें उन्हें भयभीत न होने वाला और मोर्चे पर सबसे आगे खड़े होकर लड़ने वाला दिखाया जा रहा है जो वायरस से साहस के साथ मुक़ाबला कर रहा है और मरीज़ों की ज़िंदगियां बचा रहा है.
लेकिन, नरज़िस की मौत के तुरंत बाद ईरानी नर्सिंग ऑर्गनाइजेशन ने पुष्टि की कि उनकी मृत्यु कोरोना वायरस से हुई थी.
वायरस इतनी तेज़ी से कैसे फैल गया?
सरकार के मुताबिक़, दो 'पेशेंट ज़ीरो' (यानी ऐसा पहला मरीज़ जो कि किसी संक्रमण वाली बीमारी का कैरियर होता है और जिससे आगे यह संक्रमण फैलता है) से इसकी शुरुआत हुई.
ये दोनों मरीज़ 19 फरवरी को ईरान के कोम शहर में मर गए. सरकार के मुताबिक़, इनमें से एक मरीज़ चीन में इस वायरस के संपर्क में आया था.
कोम तेज़ी से ईरान में इस संक्रमण का केंद्र बन गया. यह शहर शिया मुसलमानों का एक प्रमुख तीर्थस्थल है. यहां पर देश के टॉप इस्लामिक धर्मगुरु रहते हैं. इस शहर में हर साल क़रीब 2 करोड़ घरेलू और क़रीब 25 लाख विदेशी टूरिस्ट आते हैं.
हर हफ़्ते हज़ारों की संख्या में तीर्थयात्री शहर घूमते हैं. वे यहां के धर्मस्थलों और प्रमुख स्थानों पर जाते हैं और उन्हें चूमकर और छूकर अपना सम्मान देते हैं.
वायरस तेज़ी से फैला और मामलों में इज़ाफ़ा होना शुरू हो गया. लेकिन, तेज़ी से शहर को क्वारंटीन करने की बजाय सुप्रीम लीडर के प्रतिनिधियों, मसलन मौलवी मुहम्मद सईदी, ने मुहिम चलाई कि तीर्थयात्री शहर में आना जारी रखें.
उन्होंने कहा था, "हम मानते हैं कि पवित्र धार्मिक स्थान पर बीमारी ठीक होती है इसलिए लोगों को यहां आना चाहिए और आध्यात्मिक और शारीरिक बीमारियों से मुक्त होना चाहिए."
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइज़ेशन (डब्ल्यूएचओ) के इमर्जेंसी ऑपरेशंस के डायरेक्टर रिचर्ड ब्रेनन ने कहा, 'कोम धार्मिक रूप से ख़ास है और इस वजह से ईरान के घरेलू और विदेशी पर्यटकों की यहां आवाजाही जारी रही. इससे पूरे देश में यह वायरस तेज़ी से फैल गया.'
ब्रेनन हाल में ही कोम से वापस लौटकर आए हैं. उन्होंने कहा कि अपनी विजिट के दौरान उन्होंने कोम और राजधानी तेहरान में टेस्टिंग लैब्स और अस्पतालों में कामकाज को बढ़ाने की कोशिशों को देखा है.
शहर के धार्मिक स्थलों को अब बंद कर दिया गया है.
क्या सरकार ने इसे छिपाने की कोशिश की?
फ़रवरी में देश में दो बड़े इवेंट - इस्लामिक क्रांति की 41वीं वर्षगांठ मनाई गई और संसदीय चुनाव हुए.
एक सीनियर डॉक्टर ने बताया, "11 फ़रवरी को इस्लामिक क्रांति की जीत के दिन के कई दिन पहले मैंने और मेरे सहयोगियों ने पहली बार असामान्य रेस्पिरेटरी बीमारी को रिकॉर्ड किया था."
उन्होंने कहा कि उन्होंने अपने हॉस्पिटल से कई रिपोर्ट्स सीनियर हेल्थ मिनिस्टर्स को तेहरान भेजीं जिनमें इस वायरस के शुरू होने की चेतावनी दी गई थी.
उन्होंने कहा, "हम मानते हैं कि स्वास्थ्य अधिकारियों ने इस तथ्य को छिपाने का फ़ैसला किया कि कोरोना वायरस ईरान पहुंच चुका है ताकि वे आम राज्य-प्रायोजित कार्यक्रम जारी रख सकें."
क्रांति की वर्षगांठ और चुनाव दोनों कार्यक्रमों को सरकार की लोकप्रियता के टेस्ट के तौर पर देखा जा रहा था क्योंकि इससे पिछले छह महीने ईरान के लोगों के लिए ज़्यादा अच्छे नहीं रहे थे.
नवंबर 2019 में तेल की कीमतों में बढ़ोतरी के विरोध में हिंसक प्रदर्शन हुए थे. इसके अलावा टॉप ईरानी कमांडर कासिम सुलेमानी की अमरीकी हमले में मौत के बाद बदले की कार्रवाई में ईरान ने इराक में अमरीकी सैन्य अड्डे पर मिसाइलों से हमला कर दिया था. इसके चलते अमरीका और ईरान में तनाव अपने चरम पर पहुंच गया था.
ईरान में यूक्रेन के पैसेंजर प्लेन को गिराए जाने से 176 लोगों की जान चली गई. शुरुआत में ईरानी अफ़सरों ने इस बात से इनकार किया कि प्लेन को मिसाइल से मार गिराया गया था, लेकिन बाद में इस ग़लती को स्वीकार किया गया. इससे लोगों का सरकार से भरोसा हिल गया.
ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्ला अली ख़मेनी ने ईरान के दुश्मनों पर कोरोना वायरस के ख़तरे को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने का आरोप लगाया ताकि वोटर चुनाव से दूर रहें.
ख़मेनी ने कहा, "नेगेटिव प्रोपेगैंडा कई महीनों से जारी था. और गुज़रे दो दिनों में उनकी मीडिया ने वायरस और बीमारी की आड़ में हर मौक़े का इस्तेमाल लोगों को वोट डालने से रोकने के लिए किया है."
हाल में, ईरान के हेल्थ मिनिस्टर सईद नमकी ने रिपोर्ट्स में देरी के दावों को ख़ारिज कर दिया. सरकारी टीवी पर ऐलान किया गया कि इस मसले को तत्काल 19 फ़रवरी को ही देखा गया, जबकि 21 फ़रवरी को चुनाव होने थे.
चुनाव के पांच दिन बाद सरकार के पुष्टि किए गए मामले बढ़कर 139 पर पहुंच गए थे और मरने वालों की तादाद 19 पर पहुंच गई थी.
उसी दिन कोम के एक कट्टर सांसद अहमद अमीराबादी फ़राहानी संसद में खड़े हुए और कहा कि दो हफ्तों की अवधि में उनके शहर में 50 लोगों की मौत हुई है.
डिप्टी हेल्थ मिनिस्टर इराज़ हरिर्ची ने फ़राहानी के दावों को ख़ारिज कर दिया और कहा कि अगर मरने वालों की तादाद 25 भी हुई तो वे इस्तीफ़ा दे देंगे.
उसी दिन बाद में हरिर्ची को कोरोना वायरस पर प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान काफ़ी पसीना बहाते हुए और खांसते हुए देखा गया. बाद में उन्होंने ऐलान किया कि उनकी टेस्ट रिपोर्ट पॉज़िटिव है. इस तरह से वह ईरान के उन कई सारे हाई-प्रोफ़ाइल राजनेताओं में सबसे पहले थे जो कोरोना की चपेट में आ चुके थे.
हरिर्ची कथित तौर पर पूरी तरह से रिकवर हो चुके हैं और 13 मार्च को टीवी पर वो लाइव नज़र भी आए हैं.
कई एक्सपर्ट्स और जर्नलिस्ट्स ने अंदेशा जताया है कि सरकारी आंकड़े ख़तरनाक हैं और ये बड़े स्तर पर ईरान में मौजूद इस संकट को कम करके दिखाने की कोशिश का नतीजा हैं.
बीबीसी पर्शियन की जांच में भी इस बात का पता चला कि मरने वालों की तादाद सरकारी आंकड़ों से छह गुना ज़्यादा है.
लेकिन, भले ही सरकारी आंकड़े लगातार ऊपर जा रहे हों, ईरान के सामने सवाल यही खड़ा हो रहा है कि इस वायरस को रोका कैसे जाए?
लॉकडाउन में रहना
अलीरेज़ा के पिता मार्च के मध्य में गुज़र गए.
अलीरेज़ा ने कहा, "जब उन्होंने मेरे पिता को दफ़नाया तब हमारे परिवार से वहां कोई नहीं था. मैं उनको आख़िरी बार देख भी नहीं पाई. उन्होंने हमें कहा कि वह मर गए हैं और उन्हें तेहरान के मुख्य कब्रिस्तान में एक स्पेशल ज़ोन में दफ़्न कर दिया गया है."
सुरक्षा के लिहाज़ से अलीरेज़ा का नाम बदल दिया गया है.
अलीरेज़ा के परिवार से अधिकारियों ने अंतिम संस्कार के लिए भीड़ इकट्ठी नहीं करने के लिए कह दिया. हालांकि, उन्होंने कहा कि उनके पिता को दफ़नाने के बाद वे एक बार उनकी कब्र पर जा सकते हैं.
लेकिन, जब वह कब्रिस्तान पहुंचीं तो स्टाफ़ ने उन्हें बताया कि उनके लिए यहां आना सुरक्षित नहीं है क्योंकि वे वहां कई और शवों को दफ़ना रहे हैं.
अलीरेज़ा ने कहा, "हम अपने पिता की मौत से ज़्यादा उनके दफ़नाए जाने पर बातचीत करते हैं. मैं धार्मिक शख्स नहीं हूं, लेकिन मुझे अंदर से अजीब सा लग रहा है, जैसे हमने अपने पिता की बेअदबी की हो."
ईरानी अधिकारियों ने अब अंतिम संस्कार के लिए किसी भी बड़ी भीड़ पर रोक लगा दी है.
कई धर्मगुरु, जिनमें सुप्रीम लीडर भी शामिल हैं, धार्मिक फ़तवे जारी कर चुके हैं. इन फ़तवों में पारंपरिक रूप से शव को नहलाने की प्रक्रिया को बंद करने के लिए कहा गया है ताकि शवों को नहलाने वालों (मोर्देशूर) को वायरस से सुरक्षित रखा जा सके.
एक ओर जहां डब्ल्यूएचओ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तत्काल और आक्रामक रूप से क़दम उठाने की अपील कर रहा है, वहीं दूसरी ओर ईरान का रेस्पॉन्स चीन और इटली के उठाए गए क़दमों के मुक़ाबले बेहद हल्का है.
स्कूलों, यूनिवर्सिटीज़ और सेमिनरीज़ को बंद कर दिया गया है. फ़ुटबॉल मैचों को कैंसिल कर दिया गया है. राजधानी तेहरान में बड़े पैमाने पर डिसइंफेक्शन कैंपेन चलाया जा रहा है.
ईरान के सभी लोगों को सलाह दी गई है कि वे ट्रैवल न करें और अपने घरों में ही रहें. 1979 में इस्लामिक रिपब्लिक बनने के बाद से पहली बार शुक्रवार की नमाज़ को भी रद्द कर दिया गया है.
ज़रूरत से ज़्यादा भरी हुई जेलों में वायरस को न फैलने देने के लिए 1,55,000 कैदियों को अस्थाई रूप से रिहा कर दिया गया है. इनमें राजनीतिक क़ैदी भी शामिल हैं. माना जा रहा है कि इनमें से कई की सेहत ख़राब है. इनमें ब्रिटिश-ईरानी चैरिटी वर्कर नाज़नीन ज़घारी-रैटक्लिफ़ भी हैं.
हालांकि, ज़्यादातर सरकारी बिल्डिंग्स, दफ़्तर और बैंक खुले हुए हैं.
यहां तक कि रिटायर्ड टीचर फ़तेमेह और उनके पति (असली नाम छिपा लिए गए हैं) जैसे मध्यमवर्गीय ईरानी लोग भी कह रहे हैं कि समस्या यह है कि अभी भी लोग ग्रोसरी से लेकर फ्यूल तक ख़रीदने के लिए कैश का सहारा ले रहे हैं.
उन्होंने कहा, "हमें अपनी मंथली पेंशन लेने के लिए बैंक जाना पड़ता है. हमें आने वाले दिनों में नौरोज़ का स्पेशल भत्ता मिलने की उम्मीद है."
ईरान के और बाहर के कई मेडिकल एक्सपर्ट्स का कहना है कि जब तक सरकार पारदर्शी आंकड़े नहीं लाती और कोम की तरह से समूचे शहरों को क्वारंटीन नहीं करती तब तक वायरस पूरे देश को अपनी चपेट में लेना जारी रखेगा.
प्रेसिडेंट रुहानी ने बार-बार कहा है कि सरकार शहरों को लॉकडाउन में नहीं डालेगी और सभी दुकानें खुली रहेंगी और लोग अपना काम जारी रखें. यह एक ऐसा फ़ैसला है जिसके बारे में कई लोगों का मानना है कि ईरान के पास इसके अलावा कोई दूसरा विकल्प है नहीं.
अमरीकी प्रतिबंधों ने ईरान की अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दी है.
फ़ारसियों का नया साल देश का सबसे बड़ा सालाना जलसा होता है, लेकिन फ़तेमेह का कहना है कि इस बार जश्न मनाने जैसा लग नहीं रहा.
वह कहती हैं, "अपनी पूरी ज़िंदगी में मैं कभी भी नौरोज़ के मौक़े पर ऐसे घर पर अकेली नहीं रही. यहां तक कि जंग के दौरान भी ऐसा नहीं हुआ, जबकि सद्दाम ने मिसाइलों से हमारे शहरों पर हमला कर दिया था. उस दौरान भी हम नौरोज़ पर लोगों से मिलने उनके घर जाते थे."