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एक बिज़नेसमैन जो 'स्वच्छ ऑस्ट्रेलिया' का दुश्मन है

दुनिया के अधिकतर देशों में यह समझा जाता है कि पेट साफ़ करना एक निजी काम है, जिसे लोग एक बंद जगह में करते हैं.

एक स्वच्छ और स्वस्थ माहौल के लिए इसे प्रोत्साहित भी किया जाता है लेकिन क्या आपने कभी 'सीरियल पूपर' के बारे में सुना है, ऐसा व्यक्ति जो किसी खुली जगह पर बार-बार पेट ख़ाली करके चलता बनता है.

By BBC News हिन्दी
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टॉयलेट
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दुनिया के अधिकतर देशों में यह समझा जाता है कि पेट साफ़ करना एक निजी काम है, जिसे लोग एक बंद जगह में करते हैं.

एक स्वच्छ और स्वस्थ माहौल के लिए इसे प्रोत्साहित भी किया जाता है लेकिन क्या आपने कभी 'सीरियल पूपर' के बारे में सुना है, ऐसा व्यक्ति जो किसी खुली जगह पर बार-बार पेट ख़ाली करके चलता बनता है.

ऐसा टॉयलेट न ढूँढ पाने की मजबूरी में नहीं बल्कि ग़ुस्से में करने वाले लोग भी होते हैं.

हाल ही में एक ऑस्ट्रेलियाई बिजनेसमैन को एक ही रास्ते पर करीब 30 बार अपनी बदबूदार निशानी छोड़ने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था.

हमने यही सवाल साइकोलॉजिस्ट और एंगर मैनेजमेंट एक्सपर्ट से पूछा कि आखिर क्या वजहें होती हैं कि एक इंसान इस तरह की हरकत करने लगता है.

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खुले में वो भी बार बार, आख़िर क्यों?

बर्मिंघम सिटी यूनिवर्सिटी के क्लिनिकल फॉरेंसिक साइकोलॉजिस्ट प्रोफेसर माइक बेरी इसके पीछे गुस्सा, चिंता, बदले की भावना या फिर बीमारी को वजह बताते हैं.

वो कहते हैं, "यह दिलचस्प है. मैंने ऐसे कई मामलों पर काम किया है, जब किसी ने घर में ऐसा किया हो. मैं हमेशा पुलिस से पूछता था कि 'सीरियल पूपर' जो छोड़ गया है, वह सख़्त था या नरम. वो मेरी तरफ इस तरह देखते थे जैसे में कोई पागल हूँ."

"और मैं उनसे कहता था कि अगर सॉफ्ट है, तो ऐसा करने वाला चिंता में होगा. इस तरह आप एक बच्चे को पाएंगे, जो बेड गंदी कर देता है और अगर यह सख़्त होगा तो ऐसा करने वाला गुस्से में होगा."


दूसरा सवाल ये है कि क्या कोई ऐसा बार-बार एक ही जगह पर कर रहा है?

प्रोफ़ेसर बेरी कहते हैं कि अगर कोई ऐसा करता है तो वो किसी को सबक सिखाना चाहता है या फिर उसका इरादा परेशान करने का है.

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जीत का एहसास

ऐसा कम ही होता है जब किसी का पेट खराब हो और टॉयलेट जाने में असमर्थ हो तो वह खुले में मजबूरी में ऐसा करे, पर बार-बार ऐसा करने वाले मामले को आप श्रेणियों में बांट सकते हैं.

पिछले महीने गिरफ्तार की गई कनाडा की एक महिला को पहली श्रेणी में रखा जा सकता है. वो ब्रिटिश कोलंबिया के टिम हॉर्टन्स कॉफी हाउस की फर्श को टॉयलेट की तरह इस्तेमाल करती हुई कैमरे में कैद हुई थीं. बाद में यह पता चला कि उन्हें टॉयलेट इस्तेमाल करने से मना कर दिया गया था.

दूसरी श्रेणी में उसे रखते हैं जो ऐसा काम हमेशा करते हैं. उदाहरण के लिए पिछले साल पुलिस को एक 'सीरियल पूपर' को कोलोराडो की पुलिस ढूंढ रही थी, जो मॉर्निंग वॉक के दौरान कई सप्ताह तक एक ख़ास घर के बाहर ख़ुद को हल्का कर रहे थे.

हालांकि विशेषज्ञ निजी मामलों पर टिपण्णी नहीं करना चाहते हैं पर वो मानते हैं कि सीरियल पूपर खुद को दुनिया के सामने एक विजेता के रूप में पेश करने की कोशिश करते हैं.

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स्कैटोलॉजीः अपने मल से लगाव

ब्रिटिश एसोसिएशन ऑफ एंगर मैनेजमेंट के निदेशक माइक फिशर कहते हैं, "मुझे लगता है कि जो लोग खुले में शौच करते हैं, उन्हें मानसिक परेशानी होती है. यह बहुत ही साफ है. अगर आप सामाजिक व्यक्ति हैं तो यह अंतिम चीज होगी जो आप करेंगे."


माइक फिशर कहते हैं कुछ लोग ऐसे होते हैं जो खुले में इसलिए शौच करते हैं क्योंकि उन्हें अपने मल से लगाव होता है, यह एक तरह की मनोवैज्ञानिक समस्या है. वे कहते हैं, "मुझे याद है कि कई साल पहले एक वर्कशॉप में मुझे एक फ्रांस का व्यक्ति मिला था, जिसने मुझसे कहा था कि जब वो बच्चा था, वो टॉयलेट की जगह बाथ टब में ही जान-बूझकर मलत्याग कर देता था. यह 'स्कैटोलॉजी' का उदाहरण है."

पर बड़े होने पर भी क्या वो ऐसा ही करता था? इसके जवाब में फिशर कहते हैं, "नहीं, अब वो ऐसा नहीं करता है पर अपने मल से आज भी उन्हें लगाव है."

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विरोध का तरीका

अमेरिकन काउंसिल ऑन साइंस एंड हेल्थ कहता है कि खुले में शौच एक बीमारी है, जिसमें कोई मल या मूत्र को रोक नहीं पाता है. यह उसके नियंत्रण में हो भी सकता है या नहीं भी.

खुले में शौच नियमों के खिलाफ है. जेलों में भी कैदी विरोध जताने के लिए ऐसा करते हैं. वहां विरोध का यह तरीका माना जाता है. इससे कोई मतलब नहीं है कि आप कितने कमजोर हैं, लेकिन शौच एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है.

बर्मिंघम सिटी यूनिवर्सिटी के क्लिनिकल फॉरेंसिक साइकोलॉजिस्ट प्रोफेसर माइक बेरी कहते हैं, "हमारे पास 70 के दशक का एक प्रसिद्ध मामला है, जब आयरलैंड के सैनिकों ने अपने मल से दीवार पोत दिया था."

ब्रिटिश एसोसिएशन ऑफ एंगर मैनेजमेंट के निदेशक माइक फिशर कहते हैं समाज विरोधी व्यवहार को गुस्से से कभी नहीं जोड़ा जा सकता है.

वो कहते हैं, "मैंने अधिकतर मामलों के पीछे गुस्से को वजह के रूप में देखा है. यह बदले की भावना से भी किया जाता है. यह किसी को शर्मिंदा करने के लिए किया जाता है."

माइक फिशर बताते हैं कि जिन बच्चों को बार-बार मारा-पीटा जाता है, ऐसा देखा जाता है कि वे भी घर में इधर-उधर शौच कर देते हैं.

BBC Hindi
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English summary
A businessman who is an enemy of Clean Australia
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