7 साल पहले का एक लाख अब हुआ 710 करोड़
बिटक्वाइन की कीमत इस साल 10 गुना बढ़ी और एक बिटक्वाइन 11 हज़ार डॉलर का हो गया है. भारतीय करेंसी में एक बिटक्वाइन यानी सवा सात लाख रुपये.
पिछले कुछ महीनों में कई बार चेतावनियां जारी की जा चुकी हैं- बिटक्वाइन का बुलबुला बस फूटने ही वाला है.
लेकिन वर्चुअल मुद्रा बिटक्वाइन की कीमत तो थमने का नाम ही नहीं ले रही है. साल 2017 के अभी 11 महीने ही बीते हैं और एक बिटक्वाइन की कीमत 11 हज़ार डॉलर यानी करीब सवा सात लाख रुपये हो गई है.
ठीक एक साल पहले बिटक्वाइन का भाव 753 डॉलर पर था यानी एक साल में ही इसमें लगभग 1,215 फ़ीसदी का उछाल आया है.
लक्ज़मबर्ग आधारित बिटक्वाइन एक्सचेंज के मुताबिक बिटक्वाइन ने इस साल अपना सफ़र 1000 डॉलर से शुरू किया था यानी जनवरी की शुरुआत में एक बिटक्वाइन के बदले 1000 डॉलर मिलते थे.
2009 में लॉन्च होने के बाद से इस वर्चुअल करेंसी के दाम में भारी उतार-चढ़ाव आता रहा है.
बिटक्वाइन का हाल ट्यूलिप के फूलों जैसा न हो जाए!
बिटक्वाइन के आगे पहली बार सोने की चमक फीकी
क्यों बढ़ रहा है भाव?
तो ऐसा कैसे संभव है कि जो मुद्रा प्रत्यक्ष रूप से मौजूद ही नहीं है, उसका भाव दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है. जानकारों के लिए इस सवाल का जवाब एक और सवाल में छिपा है कि बिटक्वाइन में निवेश करने वाले आख़िर हैं कौन?
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रूपया कमज़ोर लेकिन बिटक्वाइन बलवान
रिसर्च फर्म ऑटोनोमस नेक्स्ट ने इसका पता लगाने की कोशिश की. उसका दावा है कि इसके पीछे हेज फंड्स का हाथ है, जो शेयर ख़रीदती है और फिर उन्हें मुनाफ़े में बेच देती है. ये फंड्स कुछ ऐसा ही बिटक्वाइन के साथ भी कर रहा है.
फाइनेंशियल मार्केट में हेज फंड निवेश के ऐसे वैकल्पिक कोष हैं, जिनका इस्तेमाल बेहतर रिटर्न पाने के लिए किया जाता है. ये फंड एक साथ निवेश की कई रणनीतियां अपनाते हैं, ताकि रिटर्न सुनिश्चित किया जा सके.
ऑटोनोमस नेक्स्ट के मुताबिक, इस साल बिटक्वाइन की ख़रीद-फ़रोख्त में इन हेज फंड्स की भागीदारी 30 से बढ़कर 130 हो गई है.
यही वजह है कि बिटक्वाइन ने ऐसा छप्पर फाड़ मुनाफ़ा दिया है कि दुनिया में सबसे ज़्यादा मुनाफ़ा देने वाली कंपनियां डिज़्नी, आईबीएम या मैक्डोनल्ड भी इसके आस-पास तक नहीं हैं.
विश्लेषक नाथनियल पॉपर इसी बात को आगे बढ़ाते हुए कहते हैं कि इन फंड्स के आने से बिटक्वाइन के ख़रीदार दुनियाभर में फैल गए हैं. न्यूयॉर्क टाइम्स में एक लेख में पॉपर ने लिखा, "वो मानते हैं कि उन्होंने एक ऐसा निवेश ढूंढ लिया है जो सोने के साथ प्रतिस्पर्धा कर सकता है. ये ऐसा निवेश है जिस पर कंपनियों का अधिकार नहीं है और न ही इस पर सरकारों का कोई नियंत्रण है."
चार्ली बिलेलो जैसे विश्लेषकों का अनुमान है कि बिटक्वाइन की मौजूदा पूंजी एक लाख 60 हज़ार डॉलर तक पहुँच गई है जो कि जनरल इलेक्ट्रिक जैसी कंपनियों से भी अधिक है.
बिलेलो कहते हैं कि 7 साल पहले अगर किसी ने बिटक्वाइन में 10 हज़ार डॉलर का निवेश किया है तो आज ये रकम बढ़कर 110 करोड़ डॉलर हो गई है.
बिटक्वाइन की अब तक की कहानी सिर चकरा देने वाली है. इतना पढ़ने के बाद दिमाग़ में कुछ सवाल उठने लाज़मी हैं. मसलन....
बिटक्वाइन है क्या?
बिटक्वाइन एक वर्चुअल मुद्रा है जिस पर कोई सरकारी नियंत्रण नहीं हैं. इस मुद्रा को किसी बैंक ने जारी नहीं किया है. चूंकि ये किसी देश की मुद्रा नहीं है इसलिए इस पर कोई टैक्स नहीं लगता है. बिटक्वाइन पूरी तरह गुप्त करेंसी है और इसे सरकार से छुपाकर रखा जा सकता है.
साथ ही इसे दुनिया में कहीं भी सीधा ख़रीदा या बेचा जा सकता है.
शुरुआत में कंप्यूटर पर बेहद जटिल कार्यों के बदले ये क्रिप्टो करेंसी कमाई जाती थी.
ये कैसे काम करती है?
प्रत्येक बिटक्वाइन कंप्यूटर में एक फ़ाइल होती है जिसे स्मार्टफ़ोन या कंप्यूटर के डिज़िटल वॉलेट में रखा जाता है. प्रत्येक लेन-देन को आम सूची में दर्ज किया जाता है और इसे ब्लॉकचेन कहा जाता है. चूंकि ये करेंसी सिर्फ़ कोड में होती है इसलिए न इसे ज़ब्त किया जा सकता है और न ही नष्ट किया जा सकता है.
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ये कैसे मिलती है?
बिटक्वाइन हासिल करने के तीन मुख्य तरीके हैं. इन्हें असली पैसों से ख़रीदा जाए, दूसरा, ऐसे उत्पादों और सेवाओं के बदले जिनका भुगतान बिटक्वाइन में होता है और तीसरे, नई कंपनियों के माध्यम से इन्हें ख़रीदा जाए, जिनकी अपनी वर्चुअल मुद्रा है.
मूल्यांकन कैसे?
बिटक्वाइन मूल्यवान हैं, क्योंकि लोग उन्हें असली सामान और सेवाओं के बदले ख़रीदने के इच्छुक हैं. यहाँ तक कि नकद पैसा देकर भी लोग बिटक्वाइन ख़रीदने में हिचकते नहीं हैं.
बिटक्वाइन को कैसे मिल रही है हवा?
साल 2009 में सतोशी नाकामोतो नामक समूह ने पहली बार बिटक्वाइन को दुनिया के सामने पेश किया था.
हालाँकि अभी दुनियाभर में 700 से अधिक वर्चुअल मुद्राएं इंटरनेट के माध्यम से संचालित हो रही हैं. दिन पर दिन नई-नई कंपनियां अपनी वर्चुअल मुद्रा लेकर आ रही हैं.
दरअसल, लोग इसलिए भी इन वर्चुअल मुद्राओं को लेकर उत्साहित हैं क्योंकि इन पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं हैं और न ही किसी तरह के सरकारी क़ायदे-क़ानून हैं.
कहा जा रहा है कि साल 2017 में बिटक्वाइन में आए इस जबर्दस्त उछाल की वजह एशिया ख़ासकर जापान और दक्षिण कोरिया से आया निवेश है. इसके अलावा कई और हेज फंडस आना और शिकागो मर्केंटाइल एक्सचेंज पर बिटक्वाइन फ्यूचर्स लॉन्च करने को भी वजह बताया जा रहा है.
बिटक्वाइन कैसे लुढ़क सकता है?
वर्चुअल मुद्रा का अहम सिद्धांत है कि इसका लेन-देन दुनिया के किसी भी कोने में बैठे-बैठे हो सकता है, बस ज़रूरत है एक इंटरनेट कनेक्शन की. लेन-देन एक्सचेंज फर्म के माध्यम से होता है.
वर्चुअल मुद्रा को वर्चुअल वॉलेट में ही रखा जाता है और जिस डेटाबेस में ये स्टोर रहता है उसे ब्लॉकचेन कहते हैं. लेकिन क्या बिटक्वाइन गिर भी सकता है?
जवाब इतना आसान तो नहीं है, लेकिन जब हेज फंड अचानक अपना पैसा निकालेंगे तो गिरावट आ सकती है. न्यूयॉर्क टाइम्स में झोऊ ने लिखा, "जैसे के अचानक ये ख़बर लीक कर दी जाए कि एक बड़ा निवेशक अपना पैसा निकाल रहा है. इससे हड़कंप मच सकता है और दूसरे निवेशक भी अपनी रकम निकाल सकते हैं."
अमरीका के सबसे बड़े बैंक जेपी मॉर्गन चेज़ के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) जेमी डिमॉन और दिग्गज निवेशक वॉरेन बफ़ेट बिटक्वाइन को पहले ही फ़र्जी करार दे चुके हैं और उनका कहना है कि पिरामिड स्कीम्स की तरह है.