6th जेनरेशन युद्ध का कौन बनेगा महाशक्ति? अगर US हारा तो दुनिया पर होगा ड्रैगन का एकछत्र 'राज'
IISS की रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि, 6G के लिए चीन का सैन्य दृष्टिकोण अमेरिका के समान ही है और अमेरिका के पास अधिक मानव-केंद्रित दृष्टिकोण है।
6G military supremacy: दुनिया काफी तेजी से विनाशकारी युद्ध की तरफ बढ़ रही है और इस वक्त जब दुनियाभर में 5G ब्रॉडबैंड नेटवर्क शुरू किए जा रहे हैं, उस वक्त अमेरिका और चीन 6जी हथियारों के निर्माण की दिशा में आगे बढ़ चुके हैं, जिससे साफ जाहिर होता है, कि आने वाले वक्त में इंसानी हाथ में ऐसे ऐसे हथियार होंगे, जिनसे पलक झपकते दुनिया खत्म हो सकती है। इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्ट्रैटेजिक स्टडीज (आईआईएसएस) की अगस्त की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि, चीन सैन्य उद्देश्यों के लिए 6जी तकनीक को लागू करने में एक सेंन्ट्रलाइज्ड कमांड मॉडल को फोलो कर रहा है। तो दूसरी तरफ अमेरिका महत्वपूर्ण फैसले लेने के लिए निचले स्तर के कमांड और ऑपरेटरों को पर ज्यादा भरोसा कर रहा है।
अमेरिका-रूस में 6जी हथियार रेस
IISS की रिपोर्ट में कहा गया है कि, 6G टेक्नोलॉजी चीन के हाइपरसोनिक हथियार कार्यक्रम में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है, जिसमें हाइपरसोनिक स्पीड से मौजूदा संचार व्यवस्था को ब्लैक ऑउट करना भी शामिल है, जिससे दुश्मन का संचार साधन पूरी तरह से ध्वस्त हो सकता है। इस साल जनवरी महीने में चीनी अखबार साउथ चायना मॉर्निंग पोस्ट की एक रिपोर्ट में बताया गया था, कि चीनी रिसर्चर्स ने 6G लेजर उपकरण डेवलप किए हैं, जिसके जरिए चीन हाइपरसोनिक प्लाइट की सतह पर सिग्नल ब्लॉकिंग प्लाज्मा को भेद सकता है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है, कि चीन की इस सैन्य सफलता में दूसरे सैन्य एप्लीकेशंस भी शामिल हैं, जिसमें स्टील्थ फाइटर जेट का पता लगाना और स्पेस कम्युनिकेशन का पता लगाना भी शामिल है। चीनी अखबार की रिपोर्ट में कहा गया है, कि चीन के हाइपरसोनिक हथियार कार्यक्रम में 6जी एप्लीकेशंस शामिल हैं। वहीं, रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र किया गया है, कि चीन की ये टेक्नोलॉजी स्पेस आधारिक सर्विलांस सिस्टम और टोही क्षमताओं सुधार कर सकती है। वहीं, ये टेक्नोलॉजी डेटा प्रोसेसिंग को टर्बोचार्ज कर सकती है और काफी ज्यादा समय तक उपकरणों को कई आवृत्तियों से कनेक्ट करने में सक्षम कर सकती है।
चुटकी में फैसले ले पाएगी सेना
साउथ चायना मॉर्निंग पोस्ट ने अपनी रिपोर्ट में इस बात का दावा किया है, कि 6जी एप्लीकेशंस के साथ आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस की क्षमता में अद्भुत विस्तार किया जा सकता है, जिससे मशीन लर्निंग और सेना के फैसले लेने की क्षमता में अभूतपूर्व विस्तार होता है, क्योंकि 6जी एप्लीकेशंस के जरिए रक्षा सामग्री जुटाने और कमांड और नियंत्रण में बिजली की रफ्तर से सुधार होचता है। वहीं, 6G सैन्य कर्मियों के लिए आभासी और विस्तारित वास्तविकता प्रशिक्षण भी प्रदान कर सकता है। एशिया टाइम्स की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि, चीनी डिफेंस पायलट को अब तक जिस तरीके की ट्रेनिंग जी जाती रही है, उसकी काफी आलोचना की गई है, क्योंकि वो युद्ध की स्थिति में काफी ज्यादा जमीन से मिली सूचनाओं पर निर्भर रहते हैं। ऐसे में सवाल उठाया गया है, कि अगर युद्ध की परिस्थितियां बदलती हैं, तो फिर चीनी पायलट फौरन फैसले नहीं पाएंगे, क्योंकि उनके पास नई स्थितियों की जानकारी ही नहीं होगी। लेकिन, 6जी टेक्नोलॉजी पायलट की इन परेशानियों को खत्म कर देगी।
अमेरिका के ही रास्ते पर चीन
IISS की रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि, 6G के लिए चीन का सैन्य दृष्टिकोण अमेरिका के समान ही है और अमेरिका के पास अधिक मानव-केंद्रित दृष्टिकोण है। अमेरिका में लोअर लेवल तक ऑपरेटर्स भरे हुए हैं और युद्ध के मैदान में किस तरह से स्थितियां बदल रही हैं, इसपर भी नजर रखने के लिए अलग अलग विंग बनाए गये हैं, जो टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल तो करते हैं, लेकिन पूरी तरह से टेक्नोलॉजी पर ही निर्भर नहीं होते हैं। अमेरिका ऐसा इसलिए करता है, युद्ध क्षेत्र में अचानक बदली परिस्थितियों के मुताबिक फौरन फैसले लिए जा सके। रिपोर्ट में कहा गया है कि, प्रोसेसिंग स्पीट बढ़ाने के लिए अमेरिका 6जी टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल के रास्ते पर आग बढ़ चुका है। IISS की रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है, कि अमेरिका 6G को एक लीपफ्रॉग तकनीक के रूप में देखता है जो उद्योग के नेताओं, अन्य सरकारी एजेंसियों और अंतर्राष्ट्रीय भागीदारों के सहयोग के साथ-साथ इसके विकास के लिए बड़े पैमाने पर प्रोटोटाइप और प्रयोग पर जोर देते हुए, अपनी सैन्य बढ़त बनाए रखने में मदद करेगा।
अमेरिका और चीन की प्लानिंग क्या है?
6जी टेक्नोलॉजी में विस्तार के लिए यूएस-दक्षिण कोरिया की साझेदारी महत्वपूर्ण हो सकती है। IDTechEX के अनुसार, दक्षिण कोरिया की प्रमुख टेक फर्म सैमसंग के पास अगले दस पेटेंटकर्ताओं की तुलना में दस गुना ज्यादा 5G-संबंधित पेटेंट हैं और इसी तरह वह 6G और भविष्य में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले चिप्स में भारी निवेश कर रहा है जो प्रौद्योगिकी को ड्राइव करेंगे। वहीं, सैन्य उद्देश्यों के लिए 6G तकनीक विकसित करने के लिए चीन केन्द्रीयकृत और काफी कठोर मॉडल पर काम कर रहा है, तो अमेरिका के हाथ बंधे हुए मालूम होते हैं, लेकिन अमेरिका अपनी टेक्नोलॉजी को लेकर दर्जनों रिसर्च पर एक साथ काम कर रहा है। IISS की रिपोर्ट में कहा गया है कि, 6G विकसित करने के लिए चीन का राज्य-केंद्रित दृष्टिकोण इसे वैश्विक मानकों-सेटिंग को प्रभावित करने और हेरफेर करने के लिए अपने सभी संसाधनों को प्रत्यक्ष सरकारी नियंत्रण में रखने में सक्षम बनाता है।
चीन को क्या फायदा मिलता है?
1980 के दशक में टेक्नोलॉजी को लेकर चीन इस बाजार का एक नौसिखिया खिलाड़ी था, लेकिन स्टेटिक्स बताते हैं, कि चीन अपने इसी अप्रोच के साथ आज 5जी टेक्नोलॉजी का प्रमुख खिलाड़ी बन चुका है और उसकी क्षमताएं क्या हैं, इसके बारे में बहुत कुछ जानने के बाद भी ज्यादातर चीजें अज्ञात हैं। वहीं, चीन 6जी टेक्नोलॉजी को लेकर भी एक मजबूत खिलाड़ी के तौर पर आगे बढ़ रहा है। वहीं, चीन अपने 6जी टेक्नोलॉजी को लेकर अपने प्रतिद्वंदी के मुकाबले 30 प्रतिशत तक लागत कम रखता है। हालांकि, रिपोर्ट में कहा गया है कि, चीन को 6G तकनीक विकसित करने में महत्वपूर्ण बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है और अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद से चीन को 6जी टेक्नोलॉजी डेलवपमेंट में काफी मुश्किलें आ रही हैं, खासकर उपकरणों के आयात-निर्यात पर गंभीर असर पड़ा है।
इस युद्ध में का कौन बनेगा सिकंदर?
एक्सपर्ट्स का मानना है कि, जब अमेरिका और चीन जैसी महाशक्तियों के बीच 6जी टेक्नोलॉजी को लेकर रेस लगती है, तो फिर निर्णायक कारक यह हो सकता है, कि दोनों में से कौन 6G तकनीक को वैश्विक सार्वजनिक भलाई के रूप में प्रदान कर सकता है और कौन वैश्विक प्रौद्योगिकी नेता के रूप में दुनियाभर में अपनी वैधता को मजबूत करता है। जिस तरह अमेरिकी डॉलर अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए वास्तविक मुद्रा बन गया है और वैश्विक वित्तीय प्रणाली में अमेरिकी प्रभुत्व को मजबूत किया, चीनी या यूएस 6 जी प्रौद्योगिकी का व्यापक अनुकूलन या तो महाशक्ति को प्रौद्योगिकी-संचालित चौथी औद्योगिक क्रांति के केंद्र के रूप में स्थापित कर सकता है। वहीं, कई एक्सपर्ट्स यह भी मानते हैं, कि 6जी टेक्नोलॉजी के इस रेस में पूरी दुनिया दो केन्द्र में बंट सकती है, जिसे एक तरफ से चीन तो दूसरी तरफ से अमेरिका नियंत्रित कर सकता है।
रूसी हथियारों को लेकर जयशंकर ने अमेरिका को धो डाला, कहा, पहले तानाशाही की, अब ज्ञान दे रहे