क्लाइमेट चेंज पर पीएम मोदी पर हमला बोलने वाली 16 वर्षीय ग्रेटा नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नॉमिनेट
कोपेनहेगन। 16 वर्ष की स्वीडिश नागरिक जिन्होंने क्लाइमेट चेंज के मुद्दे पर आवाज उठाई थी, उन्हें इस वर्ष के नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नॉमिनेट किया गया है। ग्रेटा पिछले वर्ष अगस्त में उस समय खबरों में आई थीं जब उन्होंने क्लाइमेट चेंज के खिलाफ जारी दुनिया से पहल करने की अपील की थी। ग्रेटा ने इसके लिए स्वीडन की संसद के बाहर विरोध प्रदर्शन तक किया था। ग्रेटा ने अपने इस एक्शन से दुनियाभर के स्कूलों में पढ़ रहे बच्चों को क्लाइमेट चेंज के पक्ष में मुहिम शुरू करने की प्रेरणा दी थी।
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संसद के सामने दिया धरना
पिछले वर्ष स्वीडन की संसद सामने ग्रेटा ने हड़ताल की थी। ग्रेटा के बाद स्कूलों के छात्रों ने भी प्रदर्शन शुरू किए जो आज तक जारी हैं। गार्डियन की एक रिपोर्ट के मुताबिक शुक्रवार को भी 1,659 टाउंस और 105 देशों में ग्लोबल एक्शन के लिए प्रदर्शन के मकसद से स्कूली बच्चों की हड़ताल जारी है। नॉर्वे की सोशलिस्ट पार्टी की सांसद फ्रेडी आंद्रे ओस्टेगार्ड ने कहा, 'हमनें ग्रेटा के नाम की प्रस्ताव दिया है क्योंकि अगर हमनें क्लाइमेट चेंज को रोकने के लिए कुछ नहीं किया तो फिर यह युद्ध, संघर्षों और शरणार्थी संकट की वजह बनेगा।'
पीएम मोदी से की थी अपील
ओस्टेगार्ड के मुताबिक ग्रेटा ने एक आंदोलन की शुरुआत की है जो शांति में सबसे बड़ा योगदान करने वाला है। ग्रेटा ने पिछले वर्ष अगस्त में जब ग्रेटा ने दुनियाभर के नेताओं से क्लाइमेट चेंज की वजह से होने वाले प्रभावों को रोकने के लिए वर्ल्ड लीडर्स से अपील की थी तो उसमें एक नाम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम भी शामिल था।
कई वर्ल्ड लीडर्स को दी चुनौती
ग्रेटा ने साल 2018 जनवरी में स्विट्जरलैंड के दावोस में हुई यूएन क्लाइमेट समिट के दौरान कई नेताओं को चुनौती दी थी। ग्रेटा ने कहा था, 'एक बदलाव आ रहा है, आप इसे पसंद करें या नहीं।'यहां पर आए वर्ल्ड लीडर्स को ग्रेटा ने स्पष्ट तौर पर कहा था कि अगर आज नहीं जागे तो फिर हम कभी नहीं जाग पाएंगे।
दुनिया भर के छात्र कर रहे आंदोलन
ग्रेटा ने नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नॉमिनेट पर खुशी जताई है। उन्होंने ट्विटर पर लिखा, 'मैं इस नॉमिनेशन के बाद काफी सम्मानित महसूस कर रही हूं और लोगों की शुक्रगुजार हूं जो उन्होंने मुझे इस पुरस्कार क के लिए नॉमिनेट किया।'ग्रेटा के भाषण के बाद ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम, कनाडा, जापान और यहां तक कि अमेरिका और ब्रिटेन में भी छात्रों ने उनके ही नक्शेकदम पर चलने का फैसला किया है।