कराची में हमला करने वाले तहरीक-ए-तालिबान के 10 चौंकाने वाले रहस्य
इस्लामाबाद। पाकिस्तान के जिन्ना इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर हुए आतंकी हमले के तुरंत बाद भले ही पाकिस्तान के आतंकी सरगना हाफिज सईद ने इसके लिए भारत की नयी सरकार को जिम्मेदार ठहराया हो लेकिन पाकिस्तान के तहरीक-ए-तालिबान नामक एक आतंकी संगठन ने इसकी जिम्मेदारी ले ली है।
तहरीक-ए-तालिबान की तरफ से किसी अज्ञात जगह से मीडिया को जो संदेश भेजा गया उसमें कहा गया कि जिन्ना इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर जो हमला हुआ वह हमने करवाया है और यह हमला उनके लीडर हकीमुल्लाह मसूद की हत्या का बदला लेने के लिए किया गया है। घुमाइए यह स्लाइडर और जानिए कि कौन, क्या कब, कैसे और किसने रची 'तहरीक-ए-तालिबान' की तस्वीर-
दो टुकड़े
तहरीके तालिबान ने करांची एयरपोर्ट पर हमलों की जिम्मेारी ली है पर सच यह है हमले से ठीक दस दिन पहले 28 मई को पाकिस्तान में तहरीक-ए-तालिबान के दो टुकड़े हो गये थे।
शुरूआत
पाकिस्तान में जिस तहरीक-ए-तालिबान ने जिन्ना एयरपोर्ट पर हमले की जिम्मेदारी ली है उसकी शुरूआत अफगान वार के खात्मे के बाद 2007 में हुई थी। दक्षिणी वजीरीस्तान के महसूद कबीले से जुड़े बैतुल्लाह मसूद ने 13 अलग अलग आतंकी संगठनों को इकट्ठा करके तहरीके तालिबान की शुरूआत की थी।
दो टुकड़ों में बंटा तहरीक-ए-तालिबान
महसूद ने तहरीक के दो काम तय किये थे। एक, नाटो फोर्स के खिलाफ जंग लड़ी जाएगी और दूसरा पाकिस्तान में शरीया कानून लागू करवाया जाएगा। यानी, जो अफगानिस्तान में नहीं हो सका, अब यह तालिबानी समूह पाकिस्तान में करवाना चाहता था।
एक छत
पंजाब के बिखरे हुए तालिबानी भी कुछ कुछ तहरीके तालिबान की तर्ज पर एक छत के नीचे आने की कोशिश करने लगे, लेकिन फिलहाल पाकिस्तान में ताकतवर समूह तहरीके तालिबान ही था जो खनन इलाकों में अपना जबर्दस्त प्रभुत्व रखता था।
कमजोरी
तहरीके तालिबान का यही संगठित कदम उनकी कमजोरी भी साबित हुई, सिर्फ इसलिए नहीं कि वह नाटो सैनिकों के निशाने पर आ गया बल्कि इसलिए भी पाकिस्तान में आतंक की राजनीति के निशाने पर भी आ गया।
क्या हुआ मसूद की हत्या के बाद
तहरीक-ए-तालिबान के दो शीर्ष कमाण्डरों के मारे जाने के बाद जो तीसरा कमाण्डर चुना गया वह पहली बार महसूद कबीले का नहीं था। वह स्वात घाटी से था। सितंबर 2013 में जब तहरीके तालिबाने के दूसरे कमांडर हकीमुल्ला मसूद की हत्या हुई तब नये कमांडर के तौर पर मौलाना फजलुल्लाह के नाम पर राजी करवाया गया।
रेडियो मुल्लाह के नाम से जाना जाता है
मुस्लिम कबीलाओं में जिस तरह की परंपरा है उसे देखते हुए फजलुल्लाह के नाम के पीछे राजनीति और दबाव साफ दिखाई देता है। अफगानिस्तान में जंग लड़ चुका फजलुल्लाह स्वात घाटी में अपने रेडियो मुल्ला के लिए ज्यादा जाना जाता था।
शरीया कानून एक बड़ा बहाना
आतंकी समूह की तरह मौलाना फजलुल्लाह भी शरीया लागू करने के बहाने अपना शासन चलाता था। तहरीके तालिबान का चीफ हो जाने के बाद स्वाभाविक तौर पर अंदर विरोध होना ही था। और वह हुआ। छह महीने के भीतर ही तहरीके तालिबान के दो टुकड़े हो गये।
नया नेता बैतुल्लाह मसूद
तहरीके तालिबान से जो टुकड़ी अलग हुई वह उसी महसूद कबीले से जुड़ी हुई है जिसके बैतुल्लाह मसूद ने इस तालिबानी समूह की शुरूआत की थी। 28 मई को तहरीक से अलग होने की घोषणा करते हुए मसूद गुट ने खालिद मसूद को अपना नया नेता घोषित कर दिया।
जिम्मेदारी अपने ऊपर
कई संगीन आरोपों के साथ साथ अलग हुए गुट ने दो अन्य गंभीर आरोप भी लगाये थे। एक, फजलुल्लाह विदेशी पैसा लेता है और दूसरा अपने आपको ताकतवर दिखाने के लिए दूसरे समूहों द्वारा की गई कार्रवाईयों की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले लेता है। अब मामला ऐसे भी जुड़ रहा है कि नवाज शरीफ ने भारत आकर नरेंद्र मोदी से मुलाकात की!