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राहत इंदौरी की ऑफिशियल बायोग्राफी-'राहत साहब : मुझे सुनाते रहे लोग वाकिआ मेरा', जानिए कुछ खास बातें

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इंदौर। मशहूर शायर राहत इंदौरी नहीं रहे। 11 अगस्त 2020 को राहत इंदौरी ने 70 साल की उम्र में अंतिम सांस ली। मंगलवार सुबह ही उन्होंने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर पोस्ट कर खुद के कोरोना पॉजिटिव होने की सूचना दी थी। उसके बाद से अरविंदो अस्पताल इंदौर में उनका इलाज चल रहा था। शाम ढलते-ढलते राहत इंदौरी साहब के निधन की खबर आ गई। राहत इंदौरी की मौत की खबर से उनके प्रशंसकों और शायरी के दीवानों में शोक की लहर दौड़ गई।

 'राहत साहब : मुझे सुनाते रहे लोग वाकिआ मेरा'

'राहत साहब : मुझे सुनाते रहे लोग वाकिआ मेरा'

यूं तो राहत इंदौरी पर अनेक पुस्तकें लिखी गई हैं। उनकी शायरी और जीवनी को लेकर तमाम बातें किताबों में हैं, मगर राहत इंदौरी की आधिकारिक जीवनी डॉ. दीपक रुहानी ने लिखी है। 'राहत साहब : मुझे सुनाते रहे लोग वाकिआ मेरा' शीर्षक से लिखी गई राहत इंदौरी की ऑफिशियल बायोग्राफी का विमोचन 4 नवंबर 2019 को दिल्ली में साहित्य आजतक 2019 के कार्यक्रम में हुआ था।

 राहत इंदौरी की जीवनी

राहत इंदौरी की जीवनी

मध्य प्रदेश के इंदौर में 1 जनवरी 1950 को कपड़ा मिल के कर्मचारी रफ्तुल्लाह कुरैशी और मकबूल उन निशा बेगम के घर राहत इंदौरी का जन्म हुआ।

राहत इंदौरी की शुरुआती तालीम नूतन स्कूल इंदौर में हुई। इस्लामिया करीमिया कॉलेज इंदौर से 1973 में उन्होंने स्नातक किया।

शायर राहत इंदौरी ने वर्ष 1975 में बरकतउल्लाह विश्वविद्यालय, भोपाल से उर्दू साहित्य में एमए करने के बाद 1985 में भोपाल विश्वविद्यालय से उर्दू साहित्य में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की।

बाद में कुछ समय तक राहत साहब ने इंद्रकुमार कॉलेज, इंदौर में उर्दू साहित्य का अध्यापन कार्य शुरू कर दिया।

शायरी और मुशायरों की व्‍यस्‍तताएं राहत साहब को ज्‍यादा देर तक इससे बांध कर नहीं रख सकीं और वे देश विदेश में शायरी के चाहने वालों के दिलों में निवास करते रहे।

जब रेलवे स्‍टेशन पर राहत ने अपने कपड़े धोए

जब रेलवे स्‍टेशन पर राहत ने अपने कपड़े धोए

राहत इंदौरी साहब के जीवन के शुरुआती दौर का एक किस्‍सा है कि एक बार उनको बनारस मुशायरे में जाना था। वे ट्रेन में सवार होकर लखनऊ से जौनपुर होते हुए बनारस जा रहे थे।

उनके पास कपड़े सिर्फ वे ही थे जो वे पहने थे। सफर में वे कपड़े गंदे हो चुके थे। साथ में दूसरे कपड़े थे नहीं इसलिए वे जौनपुर से पहले जाफराबाद रेलवे स्‍टेशन पर उतर गए।

यहां एक हैंडपाइप पर उन्‍होंने कपड़े धोए सुखाए और उन्‍हें ही दुबारा पहन कर कोई दूसरी गाड़ी पकड़ कर बनारस पहुंचे। उस वक्‍त मुशायरों में पेमेंट इतना कम था कि उससे एक ढंग का कपड़ा खरीद पाना भी मुश्‍किल हो जाए।

नौ अध्‍यायों में बंटी है यह जीवनी

नौ अध्‍यायों में बंटी है यह जीवनी

डाॅ. दीपक रूहानी ने डॉ. राहत इंदौरी की किताब 'राहत साहब' को कुल नौ अध्‍यायों में विभक्‍त किया है। इसमें हर अघ्‍याय शीर्षक राहत साहब के किसी न किसी शेर पर आधारित है। अक्‍सर शायर या कवि अपनी आत्‍मकथा नहीं लिखते। येवंतुश्‍को कहा करते थे कि कवि की कविता ही उसकी आत्‍मकथा है। राहत की शायरी में उनकी आत्‍मकथा भी पिरोई हुई दिखती है। उनके सुख, दुख, उनके अहसासात सब उनके जीवन का हिस्‍सा हैं...जीवन जो शायरी मे उतनी ही शिद्दत से गुंथा हुआ है।

Rahat indori shayri: चले गए 'बुलाती है मगर जाने का नईं' लिखने वाले राहत इंदौरी, पढ़िए उनके चुनिंदा शेरRahat indori shayri: चले गए 'बुलाती है मगर जाने का नईं' लिखने वाले राहत इंदौरी, पढ़िए उनके चुनिंदा शेर

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English summary
Rahat Indori biography in Hindi Book 'Rahat Sahab' wrote- Dr. Deepak Ruhani
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