कश्मीर पर अरब मुल्कों के रवैए से खफा पाकिस्तान, इजरायल की तरफ बढ़ा सकता है दोस्ती का हाथ
नई दिल्ली। पाकिस्तान ने भारत के साथ कूटनीतिक, व्यापारिक एवं अन्य द्विपक्षीय संबंधों में विगत फरवरी से काफी कटौती की है। दूसरी ओर भारत की न केवल अरब मुल्कों से नजदीकियां बढ़ीं, बल्कि 'ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक को-आपरेशन' (OIC) में भी मोदी सरकार को अहमियत मिली। पहले पुलावामा हमले के बाद एयर स्ट्राइक के समय और फिर जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 निष्प्रभावी किए जाने पर पाकिस्तान ने ओआईसी से अपनी हिमायत करानी चाही। मगर, ठीक उसी दौरान भारत को हाथों-हाथ लिया गया। ऐसी स्थिति में पाकिस्तान में 'इजरायल से संबंध' की चर्चा शुरू हो गई हैं। वहां के कई पत्रकार, रणनीति विशेषज्ञ और हुकूमत से जुड़े लोग इजरायल को मान्यता देने की बात करने लगे हैं। खासतौर पर इमरान खान की अगुवाई वाली पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) सत्तारूढ़ पार्टी के विदेश नीति बदलने की चर्चा हो रही हैं। बीते सालभर के बयान और स्थिति पर गौर करें तो यह एक सवाल उठता है- "पाकिस्तान का झुकाव अब इजरायल की ओर है?"
कश्मीर पर अरब मुल्कों का नहीं मिला संतोषजनक साथ
पाकिस्तानी विदेश नीति में परिवर्तन के संभावित कदमों को लेकर कई पाक के रक्षा विशेषज्ञ एवं कई पत्रकार अपने मंत्रियों के बयानों का विश्लेषण कर रहे हैं। वहीं, लोग इस्लामिक देशों वाले संगठन में भारत के लिए बढ़ी दिलचस्पी को लेकर भी सकते में हैं। कई खाड़ी देशों में हाल ही मोदी को विशेष सम्मान दिए जाने से भारत के खिलाफ माहौल बनाने में लगे पाक की उम्मीदें धूमिल हुईं। इस बीच कश्मीर पर चर्चा के दौरान पाकिस्तानी विदेश मंत्री कुरैशी का यह बयान आया, "यहां (पाकिस्तान में) बातें करना बहुत आसान है। असल में वे (बहुत से मुस्लिम देश) हमें गंभीरता से नहीं ले रहे। भारत उनके लिए बड़ा बाजार है। उनकी प्राथमिकता में व्यापार है।"
'पाक को अब विदेश नीति में बदलाव की जरूरत'
ट्विटर पर पाकिस्तानियों के बीच कश्मीर मुद्दे पर भारी असंतोष नजर आ रहा है। वहां अब पूर्व तानाशाह मुर्शरफ की बातें भी याद की जाने लगी हैं। पाकिस्तानी टीवी चैनल पर एक विशेषज्ञ कहते सुने गए कि किसी भी मुल्क के ना तो स्थायी मित्र होते हैं और ना ही स्थायी शत्रु, स्थायी केवल हित होते हैं। यही विदेश नीति पाक को समझनी चाहिए।" पाकिस्तान को जब अरब देशों द्वारा नहीं सुना जा रहा है तो वहां एक धड़ा इजरायल को लेकर अपनी विदेश नीति बदलना चाहता है।
पत्रकार कामरान खान के शब्दों में, "भारत के कश्मीर पर कब्जे को लेकर अपनी विफलता देखते हुए सरकार "भारत का मुकाबला" करने के लिए इजरायल को मान्यता दे सकती है। आज के समय में हमें अपनी विदेशी नीति की रणनीति में बदलाव कर भारतीय मंसूबों का जवाब देने की जरूरत है।"
सार्वजनिक तौर पर पाकिस्तान रिश्ते नहीं कुबूल सकता
पाकिस्तान के रूस के साथ फिलहाल जैसे रिश्ते हैं, उस तरह इजयरायल के साथ नहीं हो सकते। रूस का पाकिस्तान की तरफ झुकाव चीन की वजह से हुआ। दूसरे, भारत-अमेरिका के बीच बीते डेढ़ दशक में संबंध काफी गर्माए हैं। ऐसे में रूस को पाकिस्तान में अपने हथियार और विमान बेचने में भी संकोच नहीं है। अमेरिका से बढ़ती कड़वाहट और मुल्क के अंदर अमेरिका विरोधी माहौल पनपते देख पाक को रूस से संबंध बढ़ाना अच्छा लगा है। हालांकि, इजरायल के मामले में ऐसा नहीं हो सकता। इसके पीछे की बड़ी वजह पाकिस्तान में होने वाले विरोध प्रदर्शन हैं। पाक में इस्लामिक प्रथाएं कायम हैं और अमेरिका-इजरायल जैसे देशों की व्यवस्था के खिलाफ तालीम दी जाती रही है। यदि पाक सरकार इजरायल से दोस्ती करने का कोई कदम सार्वजनिक तौर पर उठाती है तो यहां बड़े पैमाने पर विरोधी मार्च निकलेंगे और हिंसक प्रदर्शन भी हो सकते हैं।
जब 2005 में तुर्की में मिले पाक-इजरायल के हाथ
इजरायल
की
स्थापना
के
दशकों
बाद
तक
भारत
दुनिया
के
समक्ष
इजरायल
से
अपने
संबंध
को
छिपाता
रहा।
विशेषज्ञों
का
मानना
है
कि
इसी
राह
पर
शायद
पाकिस्तान
हो।
हालांकि,
पाक
सरकार
आॅफिशियल
स्टेटमेंट्स
में
इजरायल
से
संपर्क
स्थापित
किए
जाने
की
बातों
से
इनकार
करती
रही
है।
इन
दोनों
देशों
के
बीच
संबंधों
की
चर्चा
2005
की
एक
मुलाकात
से
शुरू
हुई।
14
साल
पहले
तुर्की
की
राजधानी
अंकारा
में
1
सितंबर,
2005
को
पाकिस्तानी
और
इजरायल
के
विदेश
मंत्री
साथ
देखे
गए।
पाकिस्तानी
विदेश
मंत्री
खुर्शीद
कसूरी
ने
इजरायली
समकक्ष
सिलवन
शालोम
से
हाथ
मिलाया।
पांच
दशक
से
अधिक
समय
बीत
जाने
के
बाद
पहली
बार
सार्वजनिक
रूप
से
दोनों
देशों
के
बीच
बातचीत
शुरू
होने
का
संकेत
माना
गया।
भारत
के
लिए
यह
चौंकाने
वाली
बात
थी।
मगर,
तब
फिलिस्तीनी
राष्ट्रपति
महमूद
अब्बास
ने
पाकिस्तान
और
इजरायल
के
बीच
उस
वार्ता
का
स्वागत
किया
था।
अन्य
मुस्लिम
देशों
की
तरह
ही
पाकिस्तान
की
भी
फिलिस्तीन
को
लेकर
स्पष्ट
नीति
रही
है
कि
वे
इजरायल
को
सपोर्ट
नहीं
करेंगे।
मुर्शरफ ने की इजरायल की ओर हाथ बढ़ाने की शुरूआत
2005
की
उस
मुलाकात
के
बाद
पाकिस्तान
के
पूर्व
तानाशाह
मुशर्रफ
ने
वर्ष
2012
में
एक
इंटरव्यू
में
अपने
दृष्टिकोण
के
पीछे
की
मूल
नीति
को
बयां
किया।
उन्होंने
कहा,
"शुरूआत
से
ही
हम
फिलिस्तीन
समर्थक
रहे
हैं।
लेकिन
मैं
यथार्थवाद
में
विश्वास
करता
हूं
और
जमीनी
हकीकत
का
आंकलन
करता
हूं।
सन्
1948
के
बाद
से
बहुत
कुछ
हो
गया
है,
अब
समायोजित
करना
होगा।
नीतियां
स्थिर
नहीं
रहनी
चाहिए।
इज़राइल
अब
एक
'निर्विवादित
तथ्य'
है।
इस्लामिक
दुनिया
के
बहुत
से
लोग
यह
समझ
चुके
हैं।
मुझे
भी
पता
है
कि
कई
मुस्लिम
देशों
के
इज़राइल
के
साथ
संबंध
हैं,
चाहे
वह
बोर्ड
से
ऊपर
हों
या
गुप्त
रूप
से।
पाकिस्तान
को
भी
ज्यादा
दूर
नहीं
रहना
है।
किंतु
इजराइल
के
प्रति
हमारा
राजनयिक
रुख
जो
है,
वह
बदला
नहीं
जा
रहा।"
बहरहाल,
पिछले
डेढ़
दशक
से
यानी
अंकारा
में
हुई
बैठक
के
बाद
से,
इजरायल
और
पाकिस्तान
के
बीच
बातचीत
मोटे
तौर
पर
आतंकवाद
और
हथियारों
के
सौदे
तक
सीमित
रही
है।
हालांकि,
बीते
सालभर
में
इजरायल
को
मान्यता
देने
को
लेकर
इस्लामाबाद
में
नए
सिरे
से
बहस
छिड़
गई
है।
जब इजरायली विमान गुप्तरूप से पाकिस्तान आया
अक्टूबर 2018 में एक इजरायली पत्रकार के ट्वीट से तहलका मच गया। जब ट्वीट में इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू एवं इस्लामाबाद के प्रतिनिधियों के बीच गुप्त रूप से कुछ बात होने का दावा किया गया। इजराइली पत्रकार अवी शार्फ़ ने यह ट्वीट 25 अक्टूबर को दिन में दस बजे किया था। इस ट्वीट के बाद दुनियाभर में मीडिया में यह खबर चल गईं कि एक विमान पाकिस्तान आया और दस घंटे के बाद राडार पर दोबारा देखा गया। उसे इजरायली विमान बताया गया। विमान की आवाजाही एवं लाइव एयर ट्रैफ़िक पर नज़र रखने वाली वेबसाइट फ़्लाइट राडार पर इस विमान के इस्लामाबाद आने और 10 घंटे बाद जाने के साक्ष्य प्रस्तुत भी किए गए। जिसके बाद यह कयास लगाए जाने लगे कि दोनों देशों के बीच कुछ तो हुआ है। इसकी वजह यही थी कि इजरायली विमान का पाकिस्तान आना कोई सामान्य घटना नहीं है। हालांकि, पाकिस्तान में बढ़ती चर्चाओं के बीच पाकिस्तान सिविल एविएशन अथॉरिटी ने उस दावे को खारिज कर दिया।
पाकिस्तान के झुकाव की हालिया गतिविधियां
इस साल फरवरी में, विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने एक इजरायल अखबार माएरिव से कहा कि पाकिस्तान इजरायल के साथ सामान्य संबंध चाहता है। ऐसे में यह बात भी रह गई कि पाक ने इजरायल को मान्यता नहीं दी है, और यह भी कि पाकिस्तान इजरायल को दुश्मन नहीं मानता। बीते कुछ हफ्तों से दोनों देशों के बीच रिश्तों को लेकर कई पत्रकार और अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञ लगातार चर्चा कर रहे हैं। जिनमें कामरान ख़ान, अस्मा शिराज़ी जैसे पत्रकार शामिल हैं। इन लोगों के ट्वीट पाक के इजराइल के साथ राजनयिक संबंध बनने का समर्थन कर रहे हैं।
कुरैशी ने माना- अब इस्लाम के नाम पर रोने से काम नहीं चलेगा
यूएई
द्वारा
भारतीय
प्रधानमंत्री
नरेंद्र
मोदी
को
सर्वोच्च
नागरिक
सम्मान
दिए
जाने
पर
पाकिस्तानी
विदेश
मंत्री
कुरैशी
ने
यह
भी
स्वीकारते
हुए
कहा,
"यूएई
का
निर्णय
खाड़ी
राज्य
के
अपने
राष्ट्रीय
हित
के
आकलन
पर
आधारित
है।
हमें
यह
समझने
की
जरूरत
है
कि
अंतरराष्ट्रीय
संबंध
धार्मिक
भावनाओं
से
ऊपर
हैं।"
यानी,
पाक
को
यह
समझ
आने
लगा
कि
वह
'मुसलमानों
का
दर्द'
लेकर
माहौल
नहीं
बना
सकता।
पाकिस्तान
को
इसका
ताजा
उदाहरण
कश्मीर
मुद्दे
पर
मिला।
उसने
इसे
लेकर
खूब
हाय-तौबा
मचाई।
हालांकि,
ओआईसी
का
समर्थन
वैश्विक
स्तर
पर
उभरकर
सामने
नहीं
आया।
एक
अन्य
वरिष्ठ
मंत्री
फवाद
चौधरी
ने
हाल
ही
ट्वीट
किया,
"पाकिस्तान
में
कुछ
वर्ग
ईरान
और
अरबों
के
बारे
में
अधिक
चिंतित
हैं।
इन
मुल्कों
के
साथ
नरेंद्र
मोदी
की
नजदीकियों
से
ऐसे
लोगों
को
सबक
लेना
चाहिए
कि
आपके
अपने
राष्ट्र
से
बड़ा
कुछ
भी
नहीं
है।
आपकी
अपनी
सीमाएं
हैं।"
भारत की वजह से पाक का इजरायल से संबंध बनाना मजबूरी
भारत इजरायल और अरब देशों, यानी दोनों मोर्चों पर सार्थक बातचीत करने में सक्षम है। भारत के दोनों धड़ों से अच्छे व्यापारिक संबंध हैं। यही वजह है कि जब भारतीय वायुसेना ने जब पाकिस्तान के बालाकोट में हमला किया, उसके कुछ समय बाद ही यूएई एवं अरब राज्यों द्वारा भारतीय पीएम नरेंद्र मोदी को अपना सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार दे दिया गया। इससे पाक के गुरूर को ठेस पहुंची। एक बड़ा झटका 'ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक को-आपरेशन' (OIC) का भारत को 'गेस्ट ऑफ ऑनर' के रूप में आमंत्रित करना भी रहा। पाक के कड़े ऐतराज के बावजूद भारत को उन इस्लामिक देशों ने अबू धाबी में बुलाया। ओआईसी 57 मुस्लिम देशों का संगठन है, जिसमें पाकिस्तान शामिल है। इससे पाकिस्तानी हुकूमत यह समझने लगी कि दुनिया में रिश्ते मजहब को प्राथमिकता नहीं देते, बल्कि प्राथमिकता में व्यापार है, बाजार है।
इजरायल जैसे राडार, बम और ड्रोन नहीं हैं पाक के पास
पाकिस्तान यह भलीभांति जानता है कि भारत की मिलिट्री एडवांटेज में इजरायल का बड़ा हाथ है। चाहे वह हल्के हथियार हों या अत्याधुनिक राडार सिस्टम। इजरायल ने भारत को रक्षा उपकरण, स्पाइस-2000 बम एवं ड्रोन मुहैया कराए हैं। 1999 की कारगिल की जंग में पाकिस्तान ने इन्हीं वजहों से मुंह की खाई थी। ऐसे में पाक विशेषज्ञ मानते हैं कि भारतीय मोर्चे से बराबरी करने के लिए पाक के पास इजरायली तकनीक होना जरूरी है।
जब पाक रूस से मित्रता कर सकता है तो इजरायल से क्यों नहीं?
पाक अखबार ऐक्सप्रेस ट्रिब्यून ने 'विदेश नीति बदलने की जरूरत' संपादकीय लिखा है। उसके अलावा कई लोग ये भी सवाल कर रहे हैं कि जब रूस से नजदीकियां बनाने की कोशिश हो सकती हैं तो हमें इजरायल पर भी सोचना चाहिए। पीओके में यदि भारत के तेवर कम करने हैं तो पाक को आधुनिक रक्षा उपकरणों की सर्वाधिक जरूरत होगी। इजरायली जैसे ड्रेान, अवॉक्स सिस्टम एवं लेजर गाइडेड बम चीन भी पाक को मुहैया नहीं करा सकता। हाल ही इजरायली प्रधानमंत्री ने अपनी भारत यात्रा रद्द कर दी। इसके भी लोग कई तरह के कयास लगा रहे हैं। पाकिस्तानी प्रतिनिधित्व से जुड़ा बड़ा तबका अपनी विदेश नीति पर विचार कर रहा है।'
PM
मोदी
ने
किया
गरवी
गुजरात
भवन
का
उद्घाटन,
बोले-
हम
एक
और
सिद्धि
के
लिए
एकत्रित
हुए
हैं