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कोरोना लॉकडाउन में घर से 3300 किलोमीटर दूर युवा की मौत...फिर?

क्या मौजूदा समय मरने के लिए उपयुक्त है? इस सवाल का जवाब देना मुश्किल है. लेकिन कोविड-19 महामारी ने इसे विशेष रूप से जटिल बना दिया है खासकर उन मामलों में जिसमें किसी की मौत अपने घर से बहुत दूर हो गई हो. लॉकडाउन और पाबंदियों के चलते शव को एक जगह से दूसरी जगह ले जाना ही नहीं अंतिम संस्कार की व्यवस्था करना भी बेहद मुश्किल हो रहा है.

By स्वामीनाथन नटराजन
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कोरोना वायरस के बारे में जानकारी
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कोरोना वायरस के बारे में जानकारी

क्या मौजूदा समय मरने के लिए उपयुक्त है?

इस सवाल का जवाब देना मुश्किल है. लेकिन कोविड-19 महामारी ने इसे विशेष रूप से जटिल बना दिया है खासकर उन मामलों में जिसमें किसी की मौत अपने घर से बहुत दूर हो गई हो.

लॉकडाउन और पाबंदियों के चलते शव को एक जगह से दूसरी जगह ले जाना ही नहीं अंतिम संस्कार की व्यवस्था करना भी बेहद मुश्किल हो रहा है.

ऐसे समय में अगर भारत में एक युवा की हर्ट अटैक से मौत हो जाए और वह भी अपने घर से 3300 किलोमीटर दूर तो क्या स्थिति होगी?

दो एंबुलेंस ड्राइवरों ने लॉकडाउन में इस युवा के शव को उनके घर तक पहुंचा दिया ताकि उनका परिवार अंतिम संस्कार कर सके.

एंबुलेंस ड्राइवर जयेंद्रन पेरूमल, साथी ड्राइवर चिन्नाथांबी सेल्लअइया के साथ
Jayendran Perumal
एंबुलेंस ड्राइवर जयेंद्रन पेरूमल, साथी ड्राइवर चिन्नाथांबी सेल्लअइया के साथ

हीरो जैसा स्वागत

एंबुलेंस ड्राइवर जयेंद्रन पेरूमल ने बीबीसी को बताया, "जब हम राज्य की राजधानी आइज़ल पहुंचे तो वहां हमारे स्वागत के लिए गलियों में दोनों तरफ खड़े लोग तालियां बजा रहे थे. हमें खुशी मिली और सम्मान मिलने का एहसास भी हुआ."

40 साल के पेरूमल, साथी ड्राइवर चिन्नाथांबी सेल्लअइया के साथ शव को तमिलनाडु से लेकर उत्तर पूर्व राज्य मिजोरम पहुंचे थे. लॉकडाउन के समय में भी उन्होंने लगभग पूरे भारत की यात्रा कर ली.

स्वागत में खड़े लोग
Jayendran Perumal
स्वागत में खड़े लोग

छोटे छोटे ब्रेक लेने के बाद करीब 3300 किलोमीटर की दूरी को तय करने में दोनों को साढे तीन दिन लगे. उनके आइजल पहुंचने पर स्वागत के लिए खड़े लोगों में एक शख्स ने एक कार्ड पकड़ा हुआ था, जिसमें 'गॉड ब्लेस यू', एंबुलेंस ड्राइवरों की मातृभाषा तमिल में लिखा हुआ था.

लॉकडाउन की चुनौतियां

बीते 23 अप्रैल को 28 साल के विवियन रेमसेंग की मौत चेन्नई में हार्ट अटैक से हो गई. उनके परिवार वाले मिज़ोरम में उनका अंतिम संस्कार करना चाहते थे.

लॉकडाउन के चलते चेन्नई से कोलकाता के रास्ते उत्तर पूर्वी भारतीय राज्यों की उड़ानें निलंबित हैं. ऐसे में उनके सामने केवल सड़क मार्ग का विकल्प मौजूद था.

जयेंद्रन ने बताया, "सरकारी अस्पताल में शव पर लेप चढ़ाया गया. इसके बाद हमें चेन्नई सिटी पुलिस कमिश्नर से अनुमति वाला पत्र मिला और हम 24 अप्रैल की रात मिज़ोरम के लिए निकले."

एंबुलेंस ड्राइवर जयेंद्रन पेरूमल, साथी ड्राइवर चिन्नाथांबी सेल्लअइया के साथ
Jayendran Perumal
एंबुलेंस ड्राइवर जयेंद्रन पेरूमल, साथी ड्राइवर चिन्नाथांबी सेल्लअइया के साथ

विवियन के मृत्यु प्रमाण पत्र पर साफ़ लिखा हुआ था कि मौत हर्ट अटैक से हुई है, यह ड्राइवरों के लिए राहत की बात थी. भारत के कई हिस्सों में कोविड-19 से मरने वाले लोगों के अंतिम संस्कार पर हमले की ख़बर सामने आई है. कोविड-19 मरीज के शव से भी लोगों में डर होता है कि वे संक्रमित हो सकते हैं.

इतना तो कर ही सकता था

विवियन के दोस्त राफ़ेल मलचनहिमा भी ड्राइवरों के साथ चेन्नई से मिज़ोरम तक आए. राफेल ने द हिंदू समाचार पत्र से कहा, "जब मुझे मालूम हुआ है कि शव को परिवार तक पहुंचाने के लिए किसी को साथ जाना होगा. मैंने साथ जाने का फ़ैसला कर लिया. हालांकि लॉकडाउन में यात्रा करने को लेकर थोड़ी चिंता ज़रूर थी. लेकिन अपने दोस्त और उसके परिवार वालों के लिए मैं इतना तो कर ही सकता था."

इन लोगों ने भारत के पूर्वी समुद्रतटीय रास्ते को पकड़ा. बड़े शहरों से गुज़रने के बदले वहां की बायपास सड़कों से निकले और बांग्लादेश और नेपाल की सीमा के साथ पतले पतले कॉरिडोर का रास्ता लेते हुए पूर्वोत्तर भारत पहुंचे.

एंबुलेंस ड्राइवर जयेंद्रन पेरूमल, साथी ड्राइवर चिन्नाथांबी सेल्लअइया के साथ.
Jayendran Perumal
एंबुलेंस ड्राइवर जयेंद्रन पेरूमल, साथी ड्राइवर चिन्नाथांबी सेल्लअइया के साथ.

बदलता मौसम

इस यात्रा के दौरान तीनों को पूरे भारत के जलवायु की झलक देखने का मौका मिला. जयेंद्रन ने बताया, "जब हम निकले थे तो चन्नई में गर्मी और ह्यूमिडिटी थी, ओडिशा में काफी बारिश हो रही थी और मिज़ोरम में हमें ठंड लगने लगी थी."

मिज़ोरम की राजधानी आइज़ल समुद्र तल से एक किलोमीटर ऊंचाई पर स्थित है. यात्रा के अंतिम चरण में पर्वतीय चढ़ाई और खराब रास्तों के चलते इन्हें काफी समय लगा. जयेंद्रन ने बताया, "कई जगहों पर तो रास्ता इतना पतला है कि वहां से एक ही वाहन गुजर सकता है. दूसरी तरफ गहरी खाई का डर भी था."

तैनात पुलिस कर्मी
Jayendran Perumal
तैनात पुलिस कर्मी

खाना और आराम

लॉकडाउन के चलते इन लोगों को पुलिस जगह जगह पर रोकती भी रही, लेकिन यात्रा के लिए जरूरी दस्तावेज़ होने के चलते उन्हें गुजरने दिया गया. कार्मिशयल मालवाहक ट्रकों के लिए पेट्रोल स्टेशन भी खुले होने से इन्हें काफी मदद मिली. लेकिन रेस्टोरेंट बंद होने से खाने का संकट था. वैसे हाइवे से गुज़रते हुए चोरी छिपे ढाबा चलाते लोग भी इन्हें मिले. इन लोगों ने गांव वालों से भी खाने का सामान ख़रीदा लेकिन ज्यादातर वक्त बिस्किट खाकर काम चलाया. बारी से बारी से एंबुलेंस में नींद भी ली.

एक एंबुलेंस ड्राइवर ने बताया, "जब हमने परिवार वालों को शव सौंपा तो वे खुश हुए थे. शव से किसी तरह की दुर्गंध भी नहीं आ रही थी." शव पर रसायनों का लेप चढ़ाने के बाद उसे एंबुलेंस के फ्रीज़र सेक्शन में रखा गया था.

विवियन के परिवार वाले और स्थानीय अधिकारियों की इच्छा थी कि एंबुलेंस ड्राइवर एक दिन आराम करने के बाद लौंटे लेकिन थोड़े समय के आराम के बाद ही एंबुलेंस चालक वापसी के लिए निकल पड़े. तब तक विवियन का अंतिम संस्कार भी नहीं हो पाया था.

JAYENDRAN PERUMAL

कभी ना भूलने वाला अनुभव

चिन्नाथांबी ने बताया, "वहां के लोगों ने जितना प्यार और सम्मान दिया, मैं इसे आख़िरी दम तक नहीं भूल पाऊंगा. हम 3345 किलोमीटर की यात्रा करके वहां पहुंचे थे. लोगों ने हमें धन्यवाद दिया. खाने के लिए भोजन और स्नैक्स दिए."

दोनों एंबुलेंस ड्राइवर तमिलनाडु के ग्रामीण इलाकों के रहने वाले हैं और प्रत्येक महीने 15 हजार रुपया कमाते हैं. यह इतना पैसा नहीं है कि वे अपने परिवार को साथ रखने के लिए चेन्नई ला सकें.

कृतज्ञता

दोनों ड्राइवरों को धन्यवाद स्वरूप एक-एक शर्ट और परंपरागत शॉल भेंट दी गई. इसके अलावा मिज़ोरम राज्य सरकार की ओर से इन दोनों को दो हज़ार रूपये का नकद सम्मान भी दिया गया.

इन दोनों का कहना है कि उन्हें जितना सम्मान मिला उससे वे अभिभूत हैं. घर की और लौटते हुए दोनों इनाम में मिले पैसों के उपयोग के बारे में भी सोच चुके हैं.

जयेंद्रन ने बताया, "मैं ये पैसा अपने गांव में बने ओल्ड एज़ होम को दान कर दूंगा."

चिन्नाथांबी ने कहा, "मैं इससे नोट्सबुक ख़रीद कर ग़रीब बच्चों में बांट दूंगा."

BBC Hindi
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English summary
Youth dies in Coronavirus Lockdown, 3300 km away from home ... then?
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