सफेद चादर पर दुल्हन की पवित्रता नापने के खिलाफ युवा, WhatsApp पर छेड़ी मुहिम
21वीं शताब्दी में पहुंचने के बावजूद देश में कई ऐसी परंपराएं और रिवाज हैं, जिसने देश को सालों पुरानी बेड़ियों में जकड़ा हुआ है। आज के दौर में जब महिलाएं पुरुषों से कंधे से कंधे मिलाकर चल रही हैं, तब भी कई ऐसे समुदाय हैं जो शादी के बाद उनका वर्जिनिटी टेस्ट कराते हैं।
पुणे। 21वीं शताब्दी में पहुंचने के बावजूद देश में कई ऐसी परंपराएं और रिवाज हैं, जिसने देश को सालों पुरानी बेड़ियों में जकड़ा हुआ है। आज के दौर में जब महिलाएं पुरुषों से कंधे से कंधे मिलाकर चल रही हैं, तब भी कई ऐसे समुदाय हैं जो शादी के बाद उनका वर्जिनिटी टेस्ट कराते हैं। शादी के बाद दुल्हन के होने वाले वर्जिनिटी टेस्ट के खिलाफ कई युवाओं ने मुहिम छेड़ दी है। इसी में से एक समुदाय है कंजरभाट, जहां होने वाले वर्जिनिटी टेस्ट का युवा विरोध कर रहे हैं। ये युवा व्हाट्सऐप के जरिये इस टेस्ट के खिलाफ कैंपेन चला रहे हैं।
सफेद चादर पर खून से देखी जाती है दुल्हन की पवित्रता
वॉशिंग्टन पोस्ट में छपी खबर के अनुसार विवेक तमाइचिकर युवाओं को इस रुढ़िवादी प्रथा के खिलाफ खड़े होने के लिए प्रेरित कर रहे हैं, और इन्होंने ही इसके लिए एक व्हाट्सऐप ग्रुप भी बनाया है। कंजरभाट समुदाय में होने वाले वर्जिनिटी टेस्ट में शादी के बाद दुल्हन को अपनी वर्जिनिटी साबित करनी होती है। इसके लिए शादी के दिन दूल्हा-दुल्हन को शारीरिक संबंध बनाने को कहा जाता है। सफेद चादर पर अगर दुल्हन का खून लगा होता है, तो उसे 'पवित्र' कहा जाता है। अगर दुल्हन खुद को पवित्र साबित करने में नाकाम रहती है, तो उसे 'खोटा माल' करार दे दिया जाता है।
वर्जिनिटी टेस्ट के खिलाफ युवाओं ने शुरू की मुहीम
वर्जिनिटी टेस्ट में एक समिति दूल्हे से भी पूछती है कि क्या 'माल' पवित्र था? वहीं कई औरतें नवविवाहित जोड़े के कमरे में जाकर सफेद चादर का मुआयना करती हैं। सदियों पुरानी इस रुढ़िवादी परंपरा के खिलाफ सिर्फ युवाओं ने ही नहीं, बल्कि विधवा और तलाकशुदा महिलाओं ने भी आवाज बुलंद कर दी है। 55 वर्षीय तलाकशुदा लीलाबाई कहती हैं कि उन्हें केवल 12 साल की उम्र में वर्जिनिटी टेस्ट से गुजरना पड़ा था। उन्होंने कहा, 'उस वक्त मैं काफी छोटी थी। मुझे मालूम ही नहीं था कि क्या हो रहा है।' सालों तक अपने गुस्से को दबाने वाली लीलाबाई को अपनी बेटी को भी इस टेस्ट से गुजरते हुए देखना पड़ा। अब वो इस प्रथा को बंद करने के लिए कंजरभाट समुदाय की तलाकशुदा और विधवा महिलाओं का एक ग्रुप चलाती हैं।
'नहीं होने दूंगा पत्नी का वर्जिनिटी टेस्ट'
वहीं विरोध की शुरुआत करने वाले विवेक तमाइचिकर एक व्हाट्सऐप ग्रुप के जरिये लोगों को इस मुहीम से जोड़ रहे हैं। उन्होंने उन सभी नौजवानों का ग्रुप बनाया है जिनके लिए ये प्रथा औरतों के साथ होना वाला अन्याय है और जो इसे खत्म करना चाहते हैं। तमाइचिकर इस साल के अंत में अपनी मंगेतक से शादी करने वाले हैं और उन्होंने साफ कर दिया है कि वो अपनी पत्नी को इस टेस्ट से गुजरने नहीं देंगे। तमाइचिकर जैसे और कई युवा हैं जो इस प्रथा को गलत मानते हैं, ऐसे सभी युवाओं को समाज के बहिष्कार का सामना करना पड़ता है। तमाइचिकर के रिश्तेदार कृष्णा और अरुणा इंद्रेकर ने साल 1996 में ही इस प्रथा के खिलाफ बगावत कर दी थी।
22 साल पहले इस जोड़े ने की थी बगावत की शुरूआत
मुंबई के रहने वाले कृष्णा और उनकी पत्नी अरुणा इंद्रेकर ने सालों पहले अपने परिवार और समाज से लड़कर न केवल लव-मैरिज की, बल्कि वर्जिनिटी टेस्ट के भी खिलाफ गए। कृष्णा और अरुणा ने 21 साल पहले लव-मैरिज की थी। तब दोनों ने अपने घरवालों के खिलाफ जाकर कोर्ट मैरिज की थी। कृष्णा ने पंचायत द्वारा स्थापित दुल्हनों के वर्जिनिटी टेस्ट को भी मानने से इनकार कर दिया था। तब कृष्णा को लोगों ने ताना दिया था, 'तुमने तीन-चार किताबें क्या पढ़ लीं, अब तुम सोचते हो कि तुम सालों की परंपराओं से ऊपर हो।'
टेस्ट न करवाने पर समाज कर देता है बहिष्कार
वहीं कंजरभाट समुदाय के लोगों का मानना है कि ये टेस्ट कभी नहीं रुकेगा। ये सालों से चलता आ रहा है और आगे भी चलता रहेगा। उन्होंने ये भी कहा कि तमाइचिकर जैसे लोग मीडिया में ये सब क्यों कह रहे हैं? वो चाहते हैं कि दूर विदेश में बैठे लोग उनके समाज के बारे में अच्छी राय रखें। समुदाय की औरतें इस टेस्ट को लेकर बंटी हुईं हैं। युवा लड़कियां जहां इसे गलत मानती हैं, वहीं सालों से इसे परंपरा के तौर पर देख रही महिलाओं के लिए ये सही भी है। वहीं कई महिलाएं ऐसी हैं जो समुदाय से बहिष्कृत होने के डर से इसके खिलाफ बोलने से डरती हैं।
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