अच्छी सर्विस चाहिए तो खर्च करना पड़ेगा, सरकार के पास पैसे नहीं हैं- गडकरी की दो टूक
नई दिल्ली- केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने मंगलवार को कहा है कि अगर लोग अच्छी सड़कें चाहते हैं, तो उन्हें टोल पर खर्च करना ही पड़ेगा। इस तरह से गडकरी ने साफ कर दिया है कि सरकार के पास फंड का अभाव है, इसलिए देश में टोल सिस्टम बरकरार रहेगा।
सरकार के पास पैसे नहीं हैं- गडकरी
लोकसभा में सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय की ओर से अनुदानों की मांग पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि पिछले 5 साल में सरकार ने 40,000 किलो मीटर हाइवे बनाया है। बहस के दौरान कुछ सदस्यों ने देश भर में वसूले जा रहे टोल का मुद्दा उठाया था। इसपर उन्होंने कहा कि, "टोल जिंदगी भर बंद नहीं हो सकता.....कम-ज्यादा हो सकता है। टोल का जन्मदाता मैं हूं......." इस दौरान केंद्रीय मंत्री ने ये भी दलील दी कि टोल के जरिए उन इलाकों से पैसे जुटाए जाते हैं, जहां पर खर्च करने की क्षमता है और फिर उसका इस्तेमाल ग्रामीण और पहाड़ी इलाकों में सड़कों के निर्माण पर किया जाता है। गडकरी ने साफ कहा कि, "अगर आपको अच्छी सर्विस चाहिए, तो आपको उसके लिए खर्च करना पड़ेगा। सरकार के पास पैसे नहीं हैं........."
जमीन अधिग्रहण सबसे बड़ी बाधा
केंद्रीय मंत्री ने रोड प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने में जमीन अधिग्रहण को सबसे बड़ी बाधा बताया। इसके लिए उन्होंने राज्य सरकारों से आग्रह किया कि इसका समाधान तलाशें और कोई रास्ता निकालने में मदद करें। मंत्री ने ये भी बताया कि उनका मंत्रालय तभी कोई प्रोजेक्ट पर काम शुरू करता है, जब 80 फीसदी जमीन अधिग्रहण हो जाता है और इस नीति को कड़ाई से पालन किया जाता है। उन्होंने बंगाल और बिहार का नाम लेकर कहा कि इन दोनों राज्यों में अधिग्रहण का काम सबसे धीमा है।
3 लाख करोड़ का एनपीए बचाया
नितिन गडकरी ने कहा कि 2014 में जब उन्होंने मंत्रालय का जिम्मा संभाला था, तो 3.85 लाख करोड़ रुपये का 403 प्रोजेक्ट बंद हो चुका था। उनके मुताबिक मोदी सरकार ने पिछले पांच वर्षों में इन प्रोजेक्ट को शुरू करवा कर 3 लाख करोड़ रुपये का एनपीए बचाया है और अब 90 फीसदी प्रोजेक्ट पर तेजी से काम चल रहा है। उन्होंने सदन को ये भी बताया कि उनके मंत्रालय ने नई दिल्ली से मुंबई के बीच एक नए ग्रीन एक्सप्रेसवे पर काम कर रहा है, जिससे इस दूरी को सिर्फ 12 घंटे में तय किया जा सकेगा। उनके मुताबिक ग्रीन एक्सप्रेसवे राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र के अति पिछड़े और आदिवासी इलाकों से होकर गुजरेगा और इससे जमीन अधिग्रहण पर 16,000 करोड़ रुपये की बचत होगी।
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