गोसंरक्षण: योगी के इरादे नेक लेकिन सवाल अनेक, क्या 900 रुपए काफी हैं?
नई दिल्ली। गोसेवा और गोसंरक्षण के संकल्प के साथ सत्ता संभालते ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अवैध बूचड़खानों और गोवंश का अवैध धंधा करने वालों पर शिकंजा कस दिया। कार्रवाई से छुट्टा मवेशियों की संख्या अचानक बढ़ गई। छुट्टा जानवर किसानों और आम जनता के लिए समस्या खड़ी करने लगे। नाराज किसान छुट्टा मवेशियों को प्राथमिक पाठशाला और अस्पतालों के परिसर में बंद करने लगे। गोसंरक्षण के प्रति गंभीर योगी सरकार ने पहले कारवाई की और जब नई समस्या सामने आई तब उसके निदान के उपाय शुरू किये। गो कल्याण के लिए योगी सरकार ने अपने बजट में लगभग 500 करोड़ का प्रावधान किया। इसके बाद टोल टैक्स और उत्पाद शुल्क पर 0.5 प्रतिशत गाय कल्याण सेस (काऊ वेल्फेयर सेस) लगाने का फैसला किया। और अब योगी सरकार ने निराश्रित गोवंश की देखभाल के लिए एक और बड़ी योजना का एलान किया है। इसके तहत सरकार आवारा गोवंश की देखभाल करने वालों के खाते में हर माह 900 रुपये भेजेगी। यह योजना पूरे प्रदेश में सभी 75 जिलों में एक साथ लागू की जायेगी। संभव है कि योगी सरकार अनुपूरक बजट में इसका एलान करे। लेकिन बड़ा सवाल है कि इन उपायों से क्या प्रदेश में छुट्टा मवेशियों की समस्या से छुटकारा मिलेगा? क्या छुट्टा गायों की देखभाल के लिए प्रतिमाह 900 रूपये पर्याप्त हैं?
‘ऊंट के मुंह में जीरा’ न साबित हों 900 रुपये
उत्तर प्रदेश की योगी सरकार चाहती है कि प्रदेश में गोरक्षा के साथ ही गोसेवा भी सुनिश्चित हो क्योंकि गोसेवा हिन्दुओं की आस्था और भावनाओं से जुडी है। योगी सरकार की मंशा साफ़ है। सरकार गोवंश के अवैध व्यापार और तस्करी पर सख्ती से रोक लगाने के साथ ही चाहती है कि इस पर राजनीति न हो, न ही किसी तरह का सांप्रदायिक वैमनस्य समाज में पनपे। सरकार ने हर जिले में सरकारी भूमि पर निश्चित समय सीमा पर गोशाला निर्माण के निर्देश प्रशासन को दिए हैं। इस पर काम भी शुरू गया है लेकिन इसमें समय लग रहा है। सरकार ने समस्या के प्रभावी निदान के लिए उन किसानों को प्रति माह 900 रूपये देने का ऐलान किया है जिनके पास अनुपयोगी मवेशी हैं। यानी मवेशी के चारे के लिए प्रतिदिन 30 रूपये किसानों को मिलेंगे। मवेशी के एक वक्त के चारे के लिए 15 रूपये पर्याप्त नहीं लगते। यह उपाय भी कहीं ‘ऊंट के मुह में जीरा' की तर्ज पर ‘गाय के मुंह में जीरा' न साबित हों। यहाँ सरकार मी मंशा पर सवाल नहीं है। सवाल है कि यह राशि पात्रों तक पहुंचे यह सुनिश्चित करने के लिए सरकार क्या उपाय कर रही है? इसके अनुश्रवण की क्या व्यवस्था है?
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जमीनी हकीकत जानने के लिए सही आंकड़े जरूरी
क्या सरकार के पास यह आंकड़ा है की वर्तमान में कितने लोग निजी स्तर पर वृद्ध और अनुपयोगी गायों की देखभाल कर रहे हैं। मान भी लिया जाये कि पात्रों तक यह राशि पहुँच गई तो यह कैसे सुनिश्चित होगा कि पूरी सहायता राशि मवेशी पर ही खर्च की जा रही है। इसके भी अनुश्रवण की व्यवस्था करनी होगी। सरकार का यह मानना है कि प्रति गोवंश राशि मिलने से किसान अनुपयोगी गोवंश को छुट्टा छोड़ने से बचेंगे और उनकी बेहतर देखभाल भी कर सकेंगे। बेहतर होता कि योगी सरकार जमीनी हकीकत जानने के लिए पहले आंकड़े जुटाती और फिर चरणबद्ध तरीके से योजना लागू करती।
सरकार गंभीर लेकिन समस्या भी उतनी ही गंभीर
सरकार समस्या निदान के प्रति गंभीर है लेकिन समस्या भी उतनी ही गंभीर है। इसे समझने के लिए थोडा पीछे जाना होगा। पहले आबादी कम थी मवेशी कम थे, सड़कें कम थीं, आवागमन भी कम था। तब छुट्टा मवेशी इतनी गंभीर समस्या नहीं थे। आवारा पशु को रखने के लिए स्थानीय निकायों के पास कांजी हाउस थे। लेकिन जब छुट्टा जानवरों की संख्या बढ़ने लगी तो कांजी हाउस छोटे पड़ने लगे। मवेशी इनमें भरे जाने लगे, फण्ड कम पड़ने लगे और मवेशी मरने लगे। लगभग ऐसे ही हालात अभी भी हैं बल्कि गंभीर हो गए हैं। इससे पहले जनवरी में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सूबे में बने कांजी हाउस का नाम बदलकर गौ संरक्षण केंद्र कर दिया था। लेकिन नाम बदलने से समस्या हल नहीं होने वाली। इनकी क्षमता बढाने के साथ और बजट भी बढ़ाना होगा और साथ में उसकी कड़ी मोनिटरिंग जरूरी है। दरअसल मई 2017 में मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ ने यूपी के सभी अवैध बूचड़खाने बंद करा दिए। गो तस्करी और गोकशी पर बड़ी कार्रवाई हुई। राज्य भर में बड़े पैमाने पर छापेमारी और धर पकड़ हुई, इसका एक असर ये भी हुआ कि छुट्टा जानवरों की संख्या भी काफ़ी बढ़ गई।
योगी सरकार हरकत में आई और कुछ बड़े फैसे लिए गये। नई योजना की शुरूआत बुंदेलखंड से होगी जहाँ अन्ना पशु गंभीर समस्या बन गए हैं। अन्ना पशुओं की प्रथा पुरानी है। दूध न देने वाले और बूढ़े मवेशियों को खुला छोड़ दिया जाता था। लेकिन अब अन्ना मवेशी किसानों के लिए गंभीर समस्या बन गए हैं। छुट्टा जानवर किसानों की फ़सल खा जाते हैं। छुट्टा जानवर खासकर सांड सड़कों पर घूमते हैं तो हादसे होते हैं। हाल में हुए लोकसभा चुनावों में छुट्टा गोवंश एक बड़ा मुद्दा रहा था। विपक्ष ने योगी सरकार पर जमकर हमले किए थे।
बड़ी चुनौती है योजना को प्रभावी ढंग से लागू करने की
सीएम योगी ने हाल ही में पूर्वांचल व बुंदेलखंड विकास बोर्ड की बैठक के बाद बताया कि इस योजना का लाभ पूर्वांचल, बुंदेलखंड समेत देश के सभी किसानों को मिलेगा। सीएम ने बुंदेलखंड में गोशालाओं के निर्माण कार्य में तेजी लाने का निर्देश भी दिया है। इसके साथ ही मुख्यमंत्री ने मॉब लिचिंग की घटनाओं पर रोकथाम के लिए गोसेवा आयोग के साथ मिलकर एक कार्ययोजना तैयार की है। यदि कोई व्यक्ति एक स्थान से दूसरे स्थान पर गोवंश ले जाता है, तो गोसेवा आयोग उसे प्रमाणपत्र देगा। सुरक्षा की जिम्मेदारी भी आयोग की ही होगी। इसके साथ ही मुख्यमंत्री ने गौ सेवा आयोग को यह भी सुनिश्चित करने के लिए कहा है कि चोरी-छिपे चल रही गौ-तस्करी की घटनाओं को रोका जाए। पहले से चल रही गोशालाओं के निरीक्षण का भी मुख्यमंत्री ने आदेश दिया है. सीएम योगी ने गौ सेवा आयोग के अधिकायरियों को निर्देश दिया है कि गोशालाओं को आत्मनिर्भर बनाने पर काम करें। आवारा पशुओं को गो-संरक्षण केन्द्रों में पहुंचाने के निर्देश भी दिए। राज्य में गायों के आश्रय स्थलों के वित्तीय प्रबंधन के लिए भी कदम उठाये जा रहे हैं। कुल मिला कर योगी सरकार के इरादे नेक हैं लेकिन सवाल अनेक हैं। फिलहाल सबसे बड़ी चुनौती इस मद में दिये गए बजट के सदुपयोग, अनुश्रवण और समय सीमा के भीतर योजना को प्रभावी ढंग से लागू करने की है।