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राहुल गांधी के लिए क्या मायने रखता है कर्नाटक का घटनाक्रम, एमपी-राजस्थान से लेकर 2019 तक क्या होगा इसका असर

By स्टाफ
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नई दिल्ली। गुजरात चुनावों में सुधरे प्रदर्शन के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की सारी आस कर्नाटक के विधानसभा चुनावों पर ही टिकी थी। राहुल जानते हैं कि ये इम्तिहान ही 2019 के लोकसभा और आगामी तीन राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों में उनकी और उनकी पार्टी के भविष्य की राह तैयार करेगा। यही कारण था कि कांग्रेस अध्यक्ष ने कर्नाटक चुनावों में जीत के लिए पूरा दम झोंक रखा था, इसके लिए उन्होंने पार्टी की परंपरागत सेक्यूलर छवि से हटकर सॉफ्ट हिंदुत्व का भी सहारा लिया तो जातिगत समीकरणों को साधने में भी पीछे नहीं रहे। चुनाव परिणामों कांग्रेस के पक्ष में ना रहने के बावजूद वो सत्ता में सहयोगी हो गई है। ऐसे में उसे आने वाले चुनावों में फायदा मिलेगा। अब कांग्रेस की ओर से मोदी पर हमले बढे़ंगे तो कर्नाटक की तरह भाजपा के कुछ टेप भी सामने आ सकते हैं। माना जा रहा है कि कर्नाटक का घटनाक्रम कांग्रेस में नई जान फूंकने का काम करेगा।

अब एमपी-छत्तीसगढ़ और राजस्‍थान पर नजर

अब एमपी-छत्तीसगढ़ और राजस्‍थान पर नजर

लगातार चुनावों में कांग्रेस की जो गत हो रही है उससे कांग्रेस के सामने अपना वजूद खोने का संकट तो है ही पार्टी अपनी मुख्य विपक्ष की भूमिका में भी सिमटती जा रही है। यही कारण है कि कभी पूरे देश में राज करने वाली पार्टी आज कई क्षेत्रीय दलों की पिछलग्गू बनकर रह गई है। ऐसे में अगर पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी को कांग्रेस में जान फूंकनी है तो उन्हें हर हाल में इस साल के अंत में होने वाले तीन राज्यों के विधानसभा चुनावों में जीत दर्ज करनी ही होगी।

गौरतलब है कि तीनों ही राज्यों मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्‍थान में भाजपा की सरकार है। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में तो पिछले 15 सालों से भाजपा का शासन चला आ रहा है। जबकि राजस्‍थान में कांग्रेस बीच बीच में सत्ता हासिल करती रही है। ऐसे में अगर पार्टी को 2019 के आम चुनावों में मजबूत आत्मविश्वास के साथ उतरना है तो उसे इन तीन में से कम से कम दो राज्यों में जीत दर्ज करके ही आगे जाना होगा। क्योंकि यहां हारने का पार्टी के साथ साथ उसके कार्यकर्ताओं के मनोबल पर भी भारी असर पड़ेगा।

सोनिया ने भी संभाली थी 'कमजोर' कांग्रेस की कमान

सोनिया ने भी संभाली थी 'कमजोर' कांग्रेस की कमान

बड़ा सवाल ये ही है कि क्या राहुल लोकसभा चुनावों से पहले विपक्ष को एक मजबूत नेतृत्व दे पाएंगे? हालांकि देश के राजनीतिक परिदृश्य के हिसाब से यह कोई मुश्किल काम भी नहीं दिखता, क्योंकि उनसे पहले उनकी मां और कांग्रेस की पूर्व अध्यक्षा सोनिया गांधी इस काम को बखूबी अंजाम दे चुकी हैं, जब उन्होंने 2004 में देशभर में लगभग सिमट चुकी कांग्रेस पार्टी को चमत्कारिक जीत दिलाते हुए केंद्र में सत्ता की कुर्सी तक पहुंचा दिया था। वह यह दौर था जब भाजपा केंद्र में सत्ता में थी और देश के आधे से ज्यादा राज्यों में उसकी सरकार थी और पार्टी के पास अटल-अडवाणी जैसा प्रभावशाली नेतृत्व था। उस समय अटल बिहारी वाजपेयी को निर्विवाद रूप से देश का सबसे लोकप्रिय नेता माना जाता था और उन्हीं के चेहरे पर जीतकर भाजपा लगातार सबसे बड़ी पार्टी बनती जा रही थी। उसी भाजपा को अकेले दम शिकस्त देकर सोनिया गांधी ने मृतप्राय कांग्रेस की पूरे देश में वापसी कराई थी।

राहुल के सामने कई चुनौती

राहुल के सामने कई चुनौती

राहुल गांधी मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्‍थान में पार्टी की वापसी कराने में सफल रहते हैं तो 2019 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस भाजपा को मजबूत टक्कर दे सकती है। लेकिन इसके लिए उन्हें अभी से तैयारी करनी होगी, उन्हें केवल पार्टी के पुराने कार्यकर्ताओं के सहारे ही नहीं रहना होगा बल्कि पार्टी संगठन का भी व्यापक विस्तार करना होगा, युवाओं को पार्टी के साथ जोड़ना होगा। जनता से जुड़े मुद्दों पर सड़क पर उतरकर लड़ाई लड़नी होगी। बहुत कुछ है जो अभी राहुल को करना होगा.... लेकिन सवाल फिर वही है कि क्या वो ऐसा कर पाएंगे?

कर्नाटक ही नहीं, 2019 में भी मोदी-शाह को परेशान कर सकता है कांग्रेस-JDS गठबंधनकर्नाटक ही नहीं, 2019 में भी मोदी-शाह को परेशान कर सकता है कांग्रेस-JDS गठबंधन

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English summary
yeddyurappa resigns karnataka floor test congress rahul gandhi loksabha election 2019
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