इस्तीफे के बाद क्या येदुरप्पा के इस सपने को भी तोड़ देंगे कांग्रेस-जेडीएस
इस्तीफे के बाद येदुरप्पा के एक और सपने को तोड़ सकता है कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन
नई दिल्ली। तमाम कोशिशों को बावजूद बहुमत जुटाने में नाकाम रहे बीएस येदुरप्पा को शनिवार को इस्तीफा देना पड़ा। इस्तीफे से पहले उन्होंने कांग्रेस और जेडीएस नेताओ पर कई हमले किए। येदुरप्पा अपने भाषण में भावुक दिखे, उन्होंने खुद को बड़ी पार्टी बताते हुए 2019 के लोकसभा चुनाव में सभी 28 सीटें जीतकर दिखाने की बात कही। येदुरप्पा अगर लोकसभा में अपने इस सपने को पूरा करना चाहते हैं तो फिर ये जरूरी है कि लोकसभा में कांग्रेस और जेडीएस अलग-अलग लडें। इस चुनाव के आंकड़े कहते हैं कि कांग्रेस और जेडीएस के साथ लड़ने की स्थिति में भाजपा के लिए लोकसभा चुनाव में कर्नाटक में राह मुश्किल हैं।
गठबंधन में कुछ और होती कहानी
कांग्रेस और जेडीएस अगर मिलकर चुनाव लड़े होते तो कहानी कुछ और होती। इसकी बदौलत ये दोनों दल मिलकर बीजेपी को महज 68 सीटों पर रोक सकते थे। वहीं इन दोनों के गठबंधन को करीब 156 सीटें हासिल हो सकती थीं। वोट प्रतिशत के आधार पर ये दोनों दल बीजेपी को महज 68 सीटों पर रोकने में सफल होते और फिर वो आसानी से सरकार बना सकते थे। कांग्रेस और जेडीएस का ये गठबंधन लोकसभा चुनाव 2019 में भी जारी रहेगा जो कि बीजेपी के लिए खतरे की घंटी हो सकता है।
गठबंधन के कारण लोकसभा चुनावों में बीजेपी को हो सकता है नुकसान
जेडीएस और कांग्रेस गठबंधन को मिले प्रतिशत के आधार पर अगर लोकसभा क्षेत्रों के हिसाब से आंकलन करें तो बीजेपी को कर्नाटक में 28 में से केवल 6 सीटों से ही संतोष करना होगा। ये 2014 इलेक्शन के बाद बीजेपी के लिए बहुत बड़ा झटका हो सकता है जहां बीजेपी ने 17 सीटों पर कब्ज़ा जमाया था। लोकसभा चुनाव 2019 में गठबंधन के खाते में 22 सीटें जा सकती हैं लोकसभा चुनाव 2019 में कर्नाटक के बगलकोट, हावेरी, धारवाड़, उडुपी-चिकमंगलूर, दक्षिण कन्नड़ और दक्षिण बगलकोट में बीजेपी को जीत मिल सकती है। इसके अनुसार,बीजेपी हैदराबाद-कर्नाटक और दक्षिण कर्नाटक में कोई सीट जीतने में कामयाब नहीं हो सकती है। जबकि वर्तमान मत प्रतिशत के आधार पर कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन के खाते में 22 सीटें जा सकती हैं।
कांग्रेस का वोट प्रतिशत बढ़ा है
इस विधानसभा में 2013 के मुकाबले कांग्रेस सीट भले कम मिली लेकिन कांग्रेस के खाते में आये मतदान प्रतिशत कुछ और ही कहानी बयां करते हैं। कांग्रेस को इस चुनाव में 38 फीसदी वोट मिले जबकि पिछले चुनाव में कांग्रेस को 36.6 फीसदी वोट मिले थे। ऐसे में भाजपा के लिए ये भी एक संदेश है कि अपना वोट अभी भी कांग्रेस के पास है।