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Year 2018: सुप्रीम कोर्ट के वो अहम फैसले जो दर्ज हुए इतिहास के पन्नों में

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नई दिल्ली। वर्ष 2018 कई बड़ी घटनाओं के लिए याद किया जाएगा, जिसमे से एक सबसे बड़ी घटना सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में हुई। पहली बार देश में सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा जजों ने प्रेस कॉफ्रेंस का आयोजन किया। 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने कई अहम फैसले भी सुनाए जिन्हें आने वाले समय में याद किया जाएगा। शायद ही कभी ऐसा हुआ हो जब सुप्रीम कोर्ट एक वर्ष में इतनी बार चर्चा में रहा, कभी अपने ऐतिहासिक फैसलों की वजह से तो कभी जजों की प्रेस कॉफ्रेंस को लेकर। आईए डालते हैं ऐसी ही कोर्ट के कुछ अहम फैसलों पर एक नजर।

अनुच्छेद 377

अनुच्छेद 377

सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में 6 सितंबर को समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया। सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने अपना फैसला सुनाते हुए समलैंगिक यौन संबंध को सही ठहराया, जिसकी वजह से एलजीबीटीआईक्यू समुदाय का भारतीय न्याय व्यवस्था में भरोसा एक बार फिर से स्थापित हुआ।

आधार की वैद्यता

आधार की वैद्यता

आधार कार्ड की वैद्यता को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने 26 सितंबर को ऐतिहासिक फैसला सुनाया और आधार एक्ट के सेक्शन 57 को रद्द कर दिया। कोर्ट के फैसले के बाद प्राइवेट कंपनियां आधार कार्ड नहीं मांग सकती हैं। बैंक खाता खोलने, मोबाइल कनेक्शन के लिए आधार कार्ड की अनिवार्यता को खत्म कर दिया गया।

तीन तलाक

तीन तलाक

महिलाओं पर शोषण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अपना अहम फैसला सुनाया और तीन तलाक को मौलिक अधिकारों का हनन करार देते हुए इसपर पाबंदी लगा दी। साथ ही सरकार को छह महीने के भीतर इसपर कानून बनाने को कहा।

कोर्ट की सुनवाई की लाइव स्ट्रीमिंग
सुप्रीम कोर्ट ने कोर्ट के भीतर की सुनवाई को 26 सितंबर को लाइव दिखाने की अनुमति दी। कोर्ट ने यह फैसला इसलिए दिया ताकि लोग कोर्ट के भीतर चलने वाली प्रक्रिया को देख सके।

सबरीमाला मंदिर

सबरीमाला मंदिर

सुप्रीम कोर्ट ने केरल स्थित सबरीमाला में दशकों से चली आ रही परंपरा को तोड़ते हुए महिलाओं के मंदिर में प्रवेश पर लगे प्रतिबंध को हटा दिया। मंदिर में 10-50 वर्ष की महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी थी जिसे सुप्रीम कोर्ट ने हटा दिया।

राम जन्मभूमि विवाद

राम जन्मभूमि विवाद

सुप्रीम कोर्ट ने 27 सितंबर को इस मामले पर सुनवाई करते हुए इस मामले को अगले वर्ष तक के लिए टाल दिया। कोर्ट ने इस मामले को लेकर दो याचिकाओं को भी खारिज कर दिया जिसमे पहली याचिका 2010 में इस मामले को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले को चुनौती दी गई थी।

व्यभिचार

व्यभिचार

सुप्रीम कोर्ट ने व्यभिचार को लेकर अहम फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि महिला और पुरुष के अधिकार समान हैं और आईपीसी में भेदभाव नहीं किया जा सकता है। पति पत्नी का मालिक नहीं है, महिला का सम्मान सबसे उपर है और उसका सम्मान किया जाना चाहिए।

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English summary
Year 2018: The year of the judiciary from landmark verdicts to an unprecedented presser.
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