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Year 2018: गठबंधन की राजनीति को कैसे धार दे गया यह साल

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नई दिल्ली। साल 2018 अब चंद रोज का मेहमान है, सियासी घटनाक्रम की बात करें तो ये साल बेहद ही उठा-पटक वाला रहा है, पिछले चार सालों से मरणासन्न पड़ी कांग्रेस के लिए जहां ये साल जाते-जाते खुशियां देकर जा रहा है वहीं ये पूरा साल गठबंधन की जीत का रहा और ये बताने में सफल रहा कि विपक्षी एकता किसी भी बड़े दल पर भारी पड़ सकती है। विपक्ष की जीत की शुरूआत हुई फूलपुर और गोरखपुर की जीत से, जहां धुर विरोधी सपा और बसपा ने साथ आकर ना केवल लोगों को चौंका दिया बल्कि जीत की पताका फहराकर बीजेपी को चारों खाने चित्त कर दिया।

फुलपुर उपचुनाव ने बदले सियासी समीकरण

फुलपुर उपचुनाव ने बदले सियासी समीकरण

यही नहीं इस जीत के साथ ही सियासी समीकरण भी बदल गए, जिसने महागठबंधन की सुगबुगाहट को, और तेज कर दिया और एनडीए के सामने एक नई चुनौती को जन्म दिया। गोरखपुर लोकसभा सीटों पर हुए उपचुनाव पर जिस तरह से सपा-बसपा और कांग्रेस ने जीत दर्ज की, उसने बीजेपी को एकदम से हिलाकर रख दिया, इस जीत ने विपक्ष को भाजपा से लड़ने का फॉर्मूला दिया यानी कि भाजपा को हराना है तो सारे विपक्ष को एक होना होगा और इसलिए एक-दूसरे के धुर विरोधी दल एक साथ खड़े हो गए और बीजेपी के लिए परेशानी बढ़ गई।

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बीजेपी को बड़ा झटका कर्नाटक में लगा

बीजेपी को बड़ा झटका कर्नाटक में लगा

अब तक लगातार चुनाव जीतकर आगे बढ़ रही बीजेपी को दूसरा झटका कर्नाटक में लगा, जहां एक बार फिर से विरोधी दलों की एकता के आगे उसे मुंह की खानी पड़ी, चुनावों में ज्यादा सीटें पाने के बाद और आनन-फानन में बीएस येदुरप्पा को सीएम पद की शपथ दिलाने के बावजूद उसे शक्ति परीक्षण के दौरान पीछे हटना पड़ा और कर्नाटक में कांग्रेस और जेडीएस की सरकार बन गई। इन घटनाक्रमों के बाद उसके सहयोगी दल भी मुखर हो गए और अब भाजपा पर दवाब बनाने लगे।

सहयोगी दलों ने दिखाए तीखे तेवर

सहयोगी दलों ने दिखाए तीखे तेवर

अकाली दल ने उसे आंखें दिखाई, कुशवाहा ने साथ छोड़ा, लोजपा ने भी तीखे तेवर अपनाए जिसके बाद बिहार में अमित शाह को सींटों के बंटवारे पर जल्द-जल्द से फैसला लेना पड़ा, तीन बड़े राज्यों में हुई हार और गुजरात विधानसभा में बड़ी मुश्किल से हुई जीत ने भाजपा की पेशानी पर बल डाल दिया है और उसे अपनी रणनीति पर सोचने को विवश कर दिया है।

बीजेपी बनाम महागठबंधन

बीजेपी बनाम महागठबंधन

खैर ये सियासी पिच है, जहां एक हार से पार्टी बैकफुट पर चली जाती है और एक जीत से फ्रंटफूट पर आ जाती है, फिलहाल एनडीए में बिखराव और विपक्ष में मजबूती के संकेतों के साथ यह साल समाप्त हो रहा है, देखते हैं कि साल 2019 का नया सूरज बीजेपी बनाम महागठबंधन में से किसके लिए खुशखबरी लेकर आता है क्योंकि सबको पता है कि सियासत में कोई भी चीज स्थायी नहीं होती और यहां के रंग मौसम से भी तेज बदल जाते हैं।

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English summary
Prime Minister Narendra Modi's charisma may be on the wane and these assembly elections may be the beginning of the end of the BJP's winning spree.
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